आइना सच नही बोलता - 11 Neelima Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

  • Avengers end game in India

    जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल...

  • Bhay: The Gaurav Tiwari Mystery

    Episode 1 – Jaanogey Nahi Toh Maanogey Kaise? Plot:Series ki...

श्रेणी
शेयर करे

आइना सच नही बोलता - 11

आइना सच नहीं बोलता

हिंदी कथाकड़ी

लेखिका अंजू शर्मा

दिल्ली निवासी अंजू शर्मा एक संवेदनशील कवियत्री और कुशल कहानीकार हैं . स्त्रीमानोभावो पर लिखी उनकी कविता चालीस साला औरते बहुत प्रशंसा प्राप्त कर चुकी हैं | देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओ में उनकी कहानिया कविताएं स्थान पा चुकी हैं | लिखना और पढना उनका सबसे प्रिय शौंक हैं .

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

सोये सोये दीपक ने करवट बदली | नंदिनी की आँखों से नींद कोसो दूर थी ना जाने क्यों ?

अपनी कोख में एक नन्हे अंश के आगमन की ख़ुशी को नंदिनी पहले जीभर जी नहीं पा रही थी! जाने क्यों एक अनचीन्हा डर इस तरह साथ लगा रहता था कि उसका दामन ही नहीं छोड़ता था! बहुत सोचती तो नंदिनी को लगने लगता कि कहीं दीपक के विचार उचित तो नहीं! महज कुछ ही समय पहले तो जीवन ने नई करवट ली थी! उनके बीच की अजनबियत अभी भी किसी न किसी रूप में कायम थी! दीपक सच ही तो सोचते हैं! क्या गलत है अगर उन्हें लगता है कि उन्हें वक़्त चाहिए! सच तो यही है न कि अभी तक अपने प्रेम के बिरवे को ठीक तरह से दीपक के मन में रौंप भी नहीं पाई थी कि उन्हें एक और अनचाहे रिश्ते में बांधने की भूल कर बैठी नंदिनी! रात इसी तरह के विचारों में कुछ यूँ ही ऊभ चूभ होते कब नींद आ गई, कुछ पता ही नहीं चला!

सुबह उठी तो देखा माँ किचन में नाश्ता बना रही थी! पिछले कुछ दिनों से मोर्निंग सिकनेस के कारण नंदिनी का जी भारी हो उठता था तो अमिता कोशिश करती थीं कि नाश्ते में उसे मदद हो जाये! यूँ भी सुबह एकदम उठकर किचन संभालना इन दिनों उसके लिए मुश्किल हो जाता था! पर नंदिनी को लगता अमिता उन दोनों की बीच की इस अदृश्य पर मौजूद खाई को भरने के हर प्रयास में लगी रहती थीं कि कभी भी किसी भी बात से दीपक को नाराज होने का मौका न मिले! परदेस में सासू माँ का ये दुलार और स्नेह महसूस कर नंदिनी को अपनी माँ की याद हो आई! हफ्ते में दो बार बात तो हो जाती थी पर उनकी भौतिक उपस्थिति की चाह को वह छोड़ नहीं पा रही थी, उसने तय किया आज दोपहर में माँ से बात करेगी! माँ से बात कर कभी जी भर जाता तो कभी हल्का हो जाता!

और दिनों के विपरीत नंदिनी आज अच्छा महसूस कर रही थी! करवट ली तो देखा दीपक अभी भी सो रहे थे! सुबह ने पर्दों के बावजूद अपनी रुपहली किरणों से अपने आगमन की इबारत लिख दी थी उनके बिस्तर पर! पूरे कमरे में फैली सुबह की ताज़गी नंदिनी को भली सी लगी! उसने दीपक को निहारा तो सोते हुए दीपक किसी बच्चे से मासूम और अबोध लग रहे थे! नंदिनी को अलबम में रखी उनके बचपन की फोटो की याद हो आई जो माँ ने दिखाई थीं! नन्हे से दीपक हाथ में खिलौना लिए, मुस्कराहट बिखरते, कितने प्यारे लग रहे थे! अभी उन्हें सोये देख उनकी ओर झुकती नंदिनी का दिल किया हौले से उन्हें चूम ले पर उनकी नींद में खलल हो जाने से कहीं ज्यादा इस बात का डर था कि पता नहीं वे कैसे रियेक्ट करें! उसने गर्दन को एक हल्की सी जुम्बिश दी और इस ख्याल को स्थगित कर बिस्तर से उठ गई! उसने तय किया, माँ से कहेगी कि अलमारी में रखे उस सुंदर से फ्रेम में दीपक के बचपन की उस तस्वीर को लगाकर साइड टेबल पर रख दें ताकि उसे देखने और महसूस करने के लिये बार-बार अलबम ना खोलनी पड़े! अपने इस ख्याल पर शर्माते मुस्कुराते हुए नंदिनी बाथरूम चली गई!

दिन में सुमित्रा जी का फोन आया तो नंदिनी ने उनसे और साक्षी भाभी से जीभर बातें कीं! दूर बैठी माँ को बेटी की चिंता तो थी पर अमिता जी से बात कर उनकी चिंता कुछ कम हो गई! उन्हें लगा अब नंदिनी अकेली नहीं, गर्भावस्था के इस पहले पड़ाव पर उसे जिस अनुभवी सहारे और स्नेह की जरूरत है वह उसके समीप है!

समय का पहिया अपनी मंथर गति से चल रहा था! दो हफ्ते और बीत चले थे! पता नहीं यह अमिता की उपस्थिति थी या दीपक के मन ने स्थिति को स्वीकार कर कर लिया था कि वह अब बच्चे के जिक्र पर झुंझलाता नहीं था! या तो उदासीन बना अपना काम करता रहता या फिर कभी हल्के से माँ की बातों पर मुस्कुरा भर देता! काश वह जानता कि उसकी एक मुस्कान से नंदिनी के दिल में सौ-सौ फूल खिल उठते! हाँ, एक बदलाव जरुर आया था! पिछले कुछ दिनों से वह नंदिनी का जरा ध्यान रखने लगे था! ऑफिस से लौटते हुए उसके लिए कभी फल, कभी जूस, आइसक्रीम या उसकी पसंद की चटपटी आलू चाट लेकर लौटता! अपने छोटे मोटे काम के लिए माँ को पुकारते समय उनकी निगाहें नंदिनी पर रहतीं!

अमिता ने भी बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये थे! वे सब समझती थीं इसीलिए धीरे धीरे दीपक की पसंद-नापसंद के बारे में नंदिनी को बताती रहतीं! मसलन दीपक को ये कतई पसंद नहीं कि कोई उसकी निजी वस्तुओं जैसे पर्स, लैपटॉप आदि को छुए! ये भी कि खाने में दीपक क्या पसंद करता है और क्या नहीं! नंदिनी ने तो गांठ बांध लिया! वह हर बात बड़े ध्यान से सुनती और अमिता से सब बनाना सीख रही थी! दीपक के मन में प्रवेश का रास्ता अगर ऐसे मिलता है तो ऐसे ही सही! रही नंदिनी की पसंद नापसंद तो वह तो इतनी सहज और सरल थी कि दीपक की छोटी छोटी खुशियों में अपनी ख़ुशी ढूंढ ही लेती थी! फिर इन दिनों पुराना दीपक कहीं खो सा गया था! कई दिन हुए वह नंदिनी पर चिल्लाया नहीं, गुस्सा नहीं हुआ,उसका यह बदला रूप नंदिनी की जिन्दगी में खुशियाँ ले आया था! यूँ भी सब उसकी पसंद के अनुरूप ही तो चल रहा था! कभी कभी नंदिनी को ख्याल आता कि ये बदलाव अगर स्थायी न हुआ, अगर माँ के लौटने के बाद वह फिर से बदल गया तो...! इस अनामंत्रित ख्याल मात्र से नंदिनी सहम जाती थी! अब तक वह समझ चुकी थी कि दीपक को जिद या टकराव नहीं केवल प्रेम से जीता जा सकता था! और नंदिनी ने ठान लिया कि वह दीपक के मन में घर बनाकर रहेगी!

अमिता दीपक की पसंद का खाना बनाने में नंदिनी की मदद करती और जब दीपक ऑफिस से लौटता तो इधर-उधर हो जातीं! कभी शोमा के यहाँ चली जातीं तो कभी पड़ोस के मंदिर! दीपक और नंदिनी को अवकाश सौंपने के पीछे उनकी केवल एक ही मंशा थी कि वे दोनों शायद इसी बहाने करीब आ जाएँ! उनकी अनुपस्थिति में दीपक और नंदिनी के बीच के अबोले में सेंध लगने लगी! हालाँकि उनके बीच अब भी एक अदृश्य दीवार बनी हुई थी जो दो दिलों को एक होने से रोक देती पर जाने क्यों नंदिनी उस दीवार में एक छोटी की खिड़की की कल्पना कर उस पर दस्तक की प्रतीक्षा करती रहती!

एक शाम इस दस्तक में उसकी पहल भी शामिल हो गई! आज मन न जाने क्यों बहुत खुश था! म्यूजिक सिस्टम पर उसके पसंदीदा गाने बज थे! आज उसने हलके पीले रंग की फूलों वाली शिफोन की साड़ी पहनी थी, दीपक का प्रिय रंग जो था! साउथ इंडियन स्टाइल का सच्चे मोतियों का एक लाइन का नेकलेस और कानों में मोतियों के ही टॉप्स पहने! हाथों में मोतियों का एक ब्रेसलेट खूब जम रहा था! हलका-सा मेकअप करके उसने खुद को आईने में फिर से निहारा, तो खुद पर ही मोहित हो गई! मुस्कुराते हुए संतुष्टि की एक नजर डालकर मुड़ी ही थी कि दीपक ऑफिस से आ गया! नंदिनी आईने से मुड़ी तो देखा वह दरवाजे पर खड़ा अपलक उसे निहार रहा था! उसे यूँ देखकर नंदिनी शर्मा गई और एक पल उसके करीब से गुजरते हुए ठिठकी और बाहर आकर गुनगुनाते हुए खाना लगाने लगी! ऑडियो पर गाना चल रहा था, “तेरे बिना जिया जाए न....”! अपनी टाई ढीली करते हुए दीपक उसे ही देख रहा था और अमिता उसके मनोभावों को भांप ख़ुशी से निहाल हुए जा रही थीं!

“दीपू, आज मौसम बहुत अच्छा है! तुम दोनों कई दिनों से बाहर नही गये! आज तूने अच्छा किया जो ऑफिस से जल्दी घर आ गया! जाओ आज नंदिनी को कहीं घुमा लाओ!”

“मैं?.....कहाँ माँ?.....” दीपक ने अचकचाकर कहा मानो उनकी चोरी पकड़ी गई हो!

“अरे कहीं भी, जहाँ मेरी बहू का मन करे! नंदिनी बेटा, जाओ कहीं घूम आओ! कब से बोर हो रही हो!”

अमिता ने दोनों को साथ घूमने भेज दिया! मौसम सचमुच बहुत अच्छा था! शहर का भी और नंदिनी के मन का भी! इतने दिनों बाद दीपक का साथ जो मिला था! धीमी धीमी हवा चल रही थी, हवा की ठंडक बता रही थी कि पास ही कहीं बारिश हुई है! हवा के झोंकों में मिली ताजगी और ठंडक ने मौसम के गुलाबीपन को गहरा दिया था! दूर आसमान में सूरज डूबने की इज़ाज़त मांग रहा था! इन दिनों नंदिनी प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षणों से उभर चुकी थी! अब जी भी कभी कभार ही मितलाता था! चेहरे की रंगत खिलने लगी थी! देह कुछ भरने लगी थी और मातृत्व के लावण्य ने असर दिखाना शुरू कर दिया था! खिले चेहरे ने उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे!

शोमा ने अपने फ्लैट की खिड़की से दोनों को जाते देखा तो ख़ुशी से मुस्कुराते हुए दूर से ही दोनों की बलाएँ ले ली! उन्हें लग रहा था एक सफर पर साथ बांध दिए अनजान मुसाफिरों ने जब साथ चलना तय कर लिया तो देर सवेर मंज़िल भी मिल ही जाएगी! गाड़ी अब मेन रोड पर आ चुकी थी!

“कहाँ जाना है मेमसाहेब ?” स्टेअरिंग से नज़र उठा एक पल शरारत से उसे देखते हुए दीपक ने पूछा!

“जहाँ आप ले चलें...” नंदिनी ने उत्तर दिया!

“फिर भी कुछ तो बताओ! पिक्चर जाना है या शॉपिंग करनी है!”

कुछ झिझकते हुए पिक्चर या मॉल नही किसी पार्क में जाने की इच्छा जताई! दीपक ने ख़ामोशी से गाड़ी एक पार्क के बाहर रोक दी! पार्क के बाहर दोनों ने नारियल पानी पिया! नंदिनी की नजर की दिशा में देखा तो दीपक ने पाया कि वहां एक महिला एक टोकरी में फूल लेकर बैठी थी! दीपक के बिना कुछ कहे एक नोट उसकी और बढाया और कुछ फूल लेकर नंदिनी के बालों में सजा दिए! विवाह में दोनों पक्षों की ओर से नंदिनी को खूब जेवरात मिले थे पर इन फूलों की तुलना उनका मोल कुछ भी तो नहीं था! नंदिनी को लगा जैसे कोई साध पूरी हो गई हो! शाम का सूरज डूबते हुए आकाश को अपनी लालिमा से रंग चुका था और वे दो जवां दिल प्रेम के सतरंगी रंग में अपनी सारी झिझक, सारे अहम को घुलता देख रहे थे! नंदिनी ने दीपक की बांह थाम ली और दोनों पार्क में चहलकदमी करने लगे! अँधेरा गहराने लगा था! दोनों को भूख भी लगी थी! दीपक ने नंदिनी की पसंद की आइसक्रीम ली और दोनों घर लौट गये!!

ये रात नंदिनी के जीवन में कितनी प्रतीक्षा की बाद आई थी! शायद जन्म जन्म की प्रतीक्षा! उस रात नंदिनी ने उस अदृश्य द्वार पर एक हलकी सी दस्तक को महसूस किया जो कब से उसके और दीपक के मध्य खड़ी हुई थी! कुछ झिझकते हुए उसने द्वार खोल सुगन्धित हवा के एक झौंके का स्वागत किया जिसने उसके समूचे वजूद को, धीमे धीमे अपनी गिरफ्त में ले लिया!

एक सुबह नंदिनी ने अख़बार उठाया तो ख़ुशीमिश्रित विस्मय से उसकी आँखे चमक उठी! वह माँ को पुकारते हुए उनके पास गई! सुबह की पूजा से फ्री हुई माँ ड्राइंग में बैठकर सुस्ताते हुए चाय पी रही थीं!

“माँ....माँ....देखो न माँ!!!!!!”

“अरे, क्या हुआ नंदू? कुछ बताओगी भी!”

“देखो न माँ, अपनी ही कॉलोनी के गेट के पास साथ वाली बिल्डिंग में ये इंस्टिट्यूट खुला है! आप तो जानती हैं मुझे डिजाइनिंग का कितना शौक़ है! माँ, मुझे भी ड्रेस और इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करना है!! प्लीज माँ, सारा दिन बोर होती रहती हूँ! शादी से पहले कुछ नहीं कर पाई! अब ....”

अभी नंदिनी की बात अधूरी ही रह गई कि फोन की बेल ने हस्तक्षेप कर दिया! ये फ़ोन घर से था! अमिता ने बात की तो मालूम पड़ा कि समरप्रताप जी की तबियत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी! कोई हफ्ता भर पहले मामूली बुखार हुआ था जो अब स्थायी हो चला था! टेस्ट कराने पर डॉक्टर ने टॉयफोइड बताया! इधर उनकी बेटी नीतू भी उनसे मिलने आ गयी थी !

बेटे की गृहस्थी ज़माने आई अमिता अपनी गृहस्थी की चिंता में डूब गयीं! कैसे जाये नंदिनी और दीपक को छोडकर! अभी तो सब संभलने लगा था पर घर लौटना भी तो जरूरी था! आखिर कब तक यहाँ रह सकती थीं! अमिता के चेहरे पर छाई चिंता की लकीरों ने नंदिनी को छुआ तो उसने अमिता के हाथो को अपनी हथेलियों में भरकर कहा कि वे उसकी तनिक भी फ़िक्र न करें और कल ही घर रवाना हो जाएँ! अब सब ठीक है, उसकी तबियत भी संभल गई है! उसका गाल थपथपाते हुए अमिता ने हामी भर दी हालाँकि चिंता की लकीरे अब भी उनके चेहरे पर ज्यों की त्यों बनी हुई थीं

अंजू शर्मा

सूत्रधार : नीलिमा शर्मा निविया