आइना सच नहीं बोलता Neelima Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आइना सच नहीं बोलता

हिंदी कथाकड़ी -6

आइना सच नहीं बोलता

लेखिका - श्रध्दा

सूत्रधार – नीलिमा शर्मा निविया

रसोई में जैसे ही नंदिनी आई तो उसे लगा यह ‘मेरी रसोई’ है. इस अहसास से दीपक की बात सुन कर आई तिक्तता कहीं तिरोहित हो गई. बड़े मन से उसने चाय बनाई. चाय लेकर वह कमरे में गई तो पाया कि दीपक फिर से सो चुका था. दीपक को सुबह की मीठी नींद में खोये पाकर उसे उठाने का मन नहीं किया. उसने चाय वापस रसोई में रख दी और तैयार होने लगी. शादी के बाद अब तक की छुट्टियां तो घर में सब के बीच बीतीं थी. छुट्टियों के ये अंतिम दो दिन उन्हें बस एक दूसरे के साथ बिताने थे. दीपक के साथ पूरे दिन अकेले रहने की सोच उसके मन में झुरझुरी भर आई.

नहा कर उसने अपना ब्ल्यू चंदेरी सिल्क का कुरता और उन्नाबी चूड़ीदार पहन लिया. हॉल के एक कोने में शंकर भगवान जी का एक फोटोफ्रेम रखा था. उसने फोटो फ्रेम अच्छे से साफ़ कर दो अगरबत्ती जला ली. नंदिनी आज खुद को बेहद तरोताजा, खूबसूरत और आत्मविश्वासी महसूस कर रही थी. वह जल्दी से अच्छा सा नाश्ता तैयार करने लगी. मन का उत्साह जो ना करा ले सो कम है. आज नंदिनी पहली बार अपने दम पर रसोई में काम कर रही थी. इस उत्साह में उसने जल्दी से आलू पूरी हलवा बना लिया और खाने के लिए राजमा भिगोने लगी.

वह राजमा भिगो ही रही थी कि पीछे से आकर दो बलिष्ठ हाथों ने उसे घेर लिया.

“बहुत सुन्दर लग रही हो तुम” नंदिनी बाहों के घेरे में पिघलने लगी.

“आप जल्दी से तैयार हो जाइये. मैंने नाश्ता तैयार कर लिया है.”

कसमसाते हुए नंदिनी ने खुद को छुड़ाने की झूठमूठ कोशिश की

“तुम्हें छोड़ के जाने का मन नहीं है आज ऐसे ही नाश्ता कर लेता हूँ... किसने कहा था तुम्हें कि इतनी सुन्दर लगो. दीपक ने नंदिनी के गालों में अपनी दाढ़ी रगड़ते हुए कहा.

“छी! चुभता हैं मुझे . जाइए आप ब्रश तो कर लीजिये.” नंदिनी हंसते हुए खुद को ज़बरदस्ती छुड़ाते हुए बोली.

“तुम ही करा दो न” इस बात पर दोनों हंस पड़े. पूरे घर में हरसिंगार की फूल बिखर गए. नंदिनी का अंतस हंसी के हरसिंगार की खुशबू से महकने लगा. अलसभोर में दीपक की कही नीम सी कड़वी बातों को उसके प्यार ने भूला दिया.

दीपक जल्दी से ब्रश कर के आ गये. तब तक नंदिनी ने डाइनिंग टेबल सजा लिया. सुबह की ठंडी हवा की हल्की खुनक. लम्बे धुले बालों से टपकते पानी के मोती. नयी शादी का, दीपक के प्यारे शब्दों का खुमार. नंदिनी खुद को ख़ुशी के सातवें आसमान पर महसूस कर रही थी. दोनों ने नाश्ता किया. नाश्ता करते हुए दीपक न्यूज़ पेपर पर निगाहें फिराने लगा. न्यूज़ पेपर पर निगाहें फिराते हुए अचानक वह हो.. हो...हो... कर हंस उठा.

“चलो इतना तो तय हो गया कि मैं हाई ब्लड प्रेशर से नहीं मरने वाला.”

नंदिनी ने अपनी माथे पर बल के साथ अपनी प्यार भरी नजरें दीपक पर टिका दीं. उसका पूरी पकड़ा हुआ हाथ थमा रह गया, चेहरा मंद मुस्कान से दमक रहा था लेकिन इस मुस्कान में शिकायत की तीव्र आंच भी थी कि ये अशुभ बात क्यों?

“पेपर में लिखा है कि जिनकी पत्नियों का मानसिक स्तर पतियों से कम होता है उन्हें तनाव की परेशानी कम होती है.”

यह कहते हुए दीपक ने वह पेपर एक ओर फेंक दिया. नंदिनी को लगा जैसे उसे ही सातवें आसमान से नीचे फेंक दिया गया हो. जैसे उसके अन्दर धधकती अग्नि का वास हो गया हो. वह दीपक के चेहरे को देखती रह गई और दीपक ने उसके शिफ्फोंन के उन्नाबी दुपट्टे से मुंह पोंछ दूसरे पेपर में मुंह घुसा लिया. नंदिनी जेठ की तपती धरती से मन से जूठे बर्तन उठा रसोई की ओर बढ़ गई.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. नंदिनी ने हाथ पोंछते हुए वह रसोई से निकलने को हुई तो पाया कि दीपक पहले से ही दरवाजे पर हैं. दरवाजे पर दो-तीन आदमी खड़े दिखे. नंदिनी वहीँ रुक गई. दीपक बार-बार पीछे पलट कर देख रहा है जैसे नंदिनी से आगंतुकों को छुपाना चाह रहा हो. नंदिनी को उसने वहीँ से आवाज दी,

“दरवाजा बंद कर लो”

वह उन आदमियों के साथ बाहर निकल गया. दरवाजा बंद करते हुए नंदिनी ने देखा कि उनमें से एक आदमी ने दीपक का कॉलर पकड़ लिया और उसे झकझोरने लगा. दीपक किसी दोषी इंसान की तरह सर झुकाए हुए खड़ा रहा. तभी उस दूसरे आदमी ने कुछ कहा और दोनों ने दीपक को धक्का देते हुए एक कार में बैठा दिया. यह सब कुछ ही सेकंड्स में हो गया. नंदिनी जब तक दरवाजे से बाहर निकली कार तेजी से चल पड़ी थी.

नंदिनी भौंचक, स्तब्ध, सन्न सी खड़ी रह गई. एक पल तो उसे समझ नहीं आया कि इस अनजाने अपरिचित नगर में अकेली वह क्या करे? उसने पापा को फोन लगाने की सोची पर सैकड़ों मील दूर पापा भी परेशान होने के अलावा क्या कर सकते थे. उसने बगल के फ्लैट की घंटी बजाई एक बार... दो बार...तीन बार... किसी ने दरवाजा नहीं खोला. उसे याद आया पुलिस का नंबर –एक सौ...

“हो सकता है यहाँ भी पुलिस का नंबर एक सौ ही हो.”

उसने पुलिस को फोन लगाने के लिए जैसे ही मोबाइल उठाया. एक महिला धड़धड़ाती हुई घर में घुस आई और तेज आवाज में दीपक...दीपक... चिल्लाते हुए कमरों में रसोई में घुस देखने लगी. ऐसे जैसे वह इस घर के चप्पे-चप्पे से परिचित हो. आवाज में ऐसा अधिकार था जैसे उसकी एक आवाज पर दीपक किसी आज्ञाकारी पपी की तरह दुम हिलाता खड़ा हो जायेगा.

“कहाँ है दीपक?” वह महिला नंदिनी की ओर मुखातिब हुई.

“मैं छोडूंगी नहीं उसे” ”कहाँ है बताओ?” “क्या सोचता है मुझे धोखा दे कर वह बच जायेगा.” “हमारे विवाह के पूरे सबूत हैं मेरे पास”

नंदिनी को काटो तो खून नहीं. उसने किसी तरह अपनी हिम्मत बटोरते हुए कहा,

“हमारे विवाह से आपका क्या मतलब है? आप कौन हैं?”

“पत्नी हूँ मैं उसकी... ये शांखा-पोला देख रही हो, उसी के नाम का है. हमारी शादी को सिर्फ छः महीने ही हुए थे कि ...पर ये सब मैं तुम्हें क्यों बता रही हूँ...कहाँ है दीपक?” उस जींस टॉप पहने महिला ने अपने कोहनी तक सफ़ेद शंख और लाल-लाल लाख की चूड़ियों से भरे हाथ उसके सामने हिलाते हुए कहा.

नंदिनी तो गश खाकर गिरने को हो आई. उसने पास की दीवार थाम ली. शरीर को तो सहारा मिल गया पर मन को? अपने मम्मी-पापा, घर-बार छोड़ कर जिसके नाम उसने अपनी जिंदगी कर दी उसी के नाम का सिन्दूर कोई और भी लगा रही है. अब क्या करे वह? दीपक को भी किन लोगों ने उठा लिया है? अचानक सब भूल वह दीपक की सुरक्षा के लिए वह चिंतित हो उठी. उसने उस महिला को स्थिति बताने की कोशिश करने लगी. तभी एक आदमी हड़बड़ाते हुए अन्दर घुसा. उसने उस महिला से कहा,

“दीपक का एक्सीडेंट हो गया है. जल्दी चलिए”

यह सुन वह महिला तुरंत बाहर दौड़ पड़ी. नंदिनी दो पल वह क्या करे? क्या न करे? सोचते खड़े रह गई फिर उसने भी उनके साथ चलने के लिए कदम बढ़ा दिए.

चौदहवी मंजिल से नीचे उतर लिफ्ट से उन्होंने बाहर कदम रखा तो देखा कि एक व्यक्ति दीपक को सहारा देते हुए अन्दर ला रहा है. लाल-लाल खून से सनी रुई के ऊपर दीपक के माथे में बैंडेज बंधी हुई है. नंदिनी घबरा कर दीपक की ओर बढ़ने को हुई कि वह दूसरी महिला दौड़ कर दीपक के पास जा पहुंची और उसका हाथ पकड़ लिया. पट्टी को छू कर देखने लगी.

उसके गाल पर हाथ फिराने लगी. नंदिनी के कदम थमक कर रह गए. यहाँ अपार्टमेंट के सामने उसे कुछ कहना सुनना उचित न लगा. वह उनके साथ चुप-चाप घर पर चली आई. घर? अब वो घर था भी? अब उसकी रुलाई फूट पड़ना चाहती थी. वह बस मम्मी-पापा के पास होना चाहती थी पर थी तो उनसे कोसों दूर इस अनजान माहौल में अजीब परिस्थिति में उसने अपने पर नियंत्रण बनाये रखा.

उस महिला ने दीपक के हाथों को थाम सोफे पर बैठा दिया और खुद उसके पास बैठ गई. दीपक से कहने लगी,

“ये क्या हो गया? कैसे हो गया? कहीं उनलोगों ने तो तुम्हें नहीं मारा? मैंने उन्हें नहीं भेजा था.”

अचानक से वह चिल्ला उठी, “इस नागिन ने ही हमारी शादी को डस लिया है मैं इसे छोडूंगी नहीं.” वह तेजी से उठ कर नंदिनी की ओर बढ़ने को हुई.

दीपक आँखें बंद कर सोया हुआ था जैसे अपनी शक्ति बटोर रहा हो. उसने तुरंत उस महिला का हाथ पकड़ लिया और धीरे से पुकारा, “नंदिनी”

वह महिला हड़बड़ाई सी बोल पड़ी, “उफ़ दादा, अभी क्यों बुला रहे हो. अभी रुको न.”

नंदिनी को उसका ऐसा कहना अजीब लगा पर वह इस अजीब लगने की तह में नहीं गई, जाने का समय भी नहीं था. अभी वह दीपक के पास जाना नहीं चाहती थी लेकिन उसमे कदम दीपक की ओर बढ़ गए. दीपक ने उस महिला का हाथ छोड़ दिया और उसका हाथ पकड़ अपने पास बैठा लिया फिर उसके हाथ को अपनी चोट की ओर ले गया. चोट सहलाने लगा. नंदिनी ने दीपक को होने वाले दर्द के डर से अपना हाथ वापस खींचने की कोशिश की लेकिन दीपक की पकड़ मजबूत थी. वह नंदिनी का हाथ पकड़े अपनी चोट पर बंधी पट्टी खींचने लगा. नंदिनी हड़बड़ा कर कह उठी,

“ये क्या कर रहे हैं आप? दर्द होगा.” पर दीपक नहीं रुका उसने पट्टी खींच दी, नंदिनी की आँखें बंद हो गई. वह दीपक का दर्द महसूस कर कराह उठी,

“आह”

इस ‘आह’ के जवाब में उसके कानों ने सुने- तीन जोरदार ठहाके. उसने झटके से आँखें खोल दी. सामने दीपक, वह महिला और दीपक का दोस्त तीनों पेट पकड़ कर हँसे जा रहे थे. दीपक के माथे पर कोई चोट नहीं थी बस चिपचिपाहट दिख रही थी. नंदिनी को एक चिर-परिचित गंध आई- टमाटर सॉस की. उसने अपनी उंगलियाँ नाक के पास ले जाकर सूंघी.

वह लाल खून टमाटर सॉस ही था. वह महिला दीपक के पास से उठ उसके दोस्त के कंधे से सट कर हंस रही थी उसने हंसते हुए कहा, “वेलकम नंदिनी... अ वेरी स्पेशल वेलकम.”

नंदिनी अचकचाई सी खड़ी रह गई. उस महिला ने दीपक के दोस्त को पकड़े हुए आगे कहा, “मैं दीपक की वाइफ नहीं इनकी वाइफ हूँ. ये सब तो बस तुम्हारा गृहप्रवेश यादगार बनाने के लिए था पर इस दीपक को बीच में ही तुम पे तरस आ गया.”

उसने नकली नाराजगी से दीपक की ओर देखते हुए कहा.

“बस यार कितनी परेशान दिख रही थी नंदिनी, इसलिए मुझसे रहा नहीं गया.”

दीपक की इस बात पर दोनों ने दीपक की बहुत खिंचाई की. दीपक ने दोनों से नंदिनी का परिचय कराते हुए कहा,

“नंदिनी ये हैं रीमा और ये मेरा बेस्ट फ्रेंड अमितेष बनर्जी. अमितेष मेरी ही कंपनी में हैं और रीमा भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, मुंबई में एक बड़ी कंपनी में थी फिलहाल शादी के बाद नौकरी छोड़ कर अभी लंबी छुट्टी मना रही है, आज वीकेंड है तो अमितेष भी फ्री था, इसीलिए ये नौटंकी... ये मेरी नहीं रीमा की ही प्लानिंग थी.” दीपक ने नंदिनी को सफाई देने के अंदाज में कहा.

नंदिनी को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या बोले . लेकिन जाने क्यों उसका मन दीपक से लिपट कर रोने का कर रहा था. दीपक की बाँहों के कसाव में खुद को ढीला छोड़ देने का कर रहा था.

दोनों से परिचय होने के बाद नंदिनी ने खुद को सम्हाला, फिर उस जिंदादिल जोड़ी के साथ अगले कुछ घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. नंदिनी ने उनके मजाक को मजाक मान स्वीकार कर लिया और उनके साथ खुद पर हंसने लगी. सचमुच बेहद यादगार दिन दिया था उन्होंने. सब ने मिल कर खाना बनाया और खाया, फिर दीपक और नंदिनी को उनकी नयी-नयी शादी और पहले अकेले दिन के लिए चिढ़ाते हुए रीमा और अमितेष अपने घर के लिए निकल गए. जो बगल में ही था, वह घर जिसकी घंटी बजा-बजा कर नंदिनी किसी की सहायता लेने की कोशिश कर रही थी. जिसे किसी ने खोला ही नहीं था, खोलते भी कैसे उस घर में रहने वाले ही तो उसे हैरान-परेशान कर देने वाले नाटक के पात्र थे.

अब घर में दीपक और नंदिनी अकेले बचे. अब तक तो नंदिनी ने खुद को किसी भी तरह से सम्हाला हुआ था, लेकिन जैसे ही वे दोनों अकेले हुए नंदिनी के अन्दर दीपक के अपहरण होने की काल्पनिक स्थिति की जो वास्तविक पीड़ा नंदिनी ने सहन की थी. वह घनीभूत पीड़ा उमड़ आई. नंदिनी दौड़ कर दीपक से लिपट गई, उसकी रुलाई फूट पड़ी.

“अरे क्या हुआ? अब रो क्यों रही हो?” दीपक ने उसे खुद से अलग करते हुए कहा.

“तुम तो यूँ डरी हुई दिख रही थी कि... तुम्हें तो मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं. क्यों?

दीपक की नजरें तौल रही थीं. नंदिनी की रुलाई दबी सिसकियों में बदल गईं.

वह रुलाई उसका दीपक के प्रति प्रेम था जो उमड़ आया था. नंदिनी बस दबी सिसकियाँ लेती रही. दीपक से दूर हो जाने के अहसास ने उसे दीपक के और करीब ला दिया था. लड़कियां तो यूँ भी सिन्दूर के साथ अपने सारे रंग सिन्दूर लगाने वाले के नाम कर देती हैं. अपनी आशा-निराशा, सुखदुख, अपेक्षा सब-कुछ यहाँ तक की अपने सात जन्म उस एक अनजान के नाम कर देती हैं.

नंदिनी भी कुछ अलग नहीं थी. लेकिन दीपक नंदिनी के रोने का सही कारण समझ न सका, यूँ भी स्त्री के रोने का सही कारण आज तक कौन समझ सका है या यूँ कहें कि किसने सही कारण समझना चाहा है. नंदिनी ने दीपक की बाहों में अपने आंसू दो पल को बहा कर प्रेम से उलाहना दिया,

“आपने मेरी तो जान ही निकाल दी थी. क्यों किया ऐसा?”

“ये सब तो मजाक ही था. अब रो मत इसे लेकर. कोई सच नहीं था ये?”

दीपक नंदिनी के रोने से बौखला उठा. उसने सोचा नंदिनी का रोना उसके ऊपर दोषारोपण है. दीपक की आवाज की रुखाई ने नंदिनी के उलाहने की मिठास को सोख लिया. उसने अपने आंसू पोंछ लिए. दीपक के सीने से दूर हट गई. दीपक उसे रोना बंद करते देख मुस्कुरा उठा जवाब में नंदिनी ने भी फीकी मुस्कान बिखेर दी. नंदिनी के मुस्काते ही दीपक ने उसे अपने करीब खींच लिया और हंसते हुए कहा,

“रीमा और अमितेष ने कल ही ये प्लान बनाया. पहले तो मैंने मना किया फिर सोचा कि गाँव-देहात से इतने बड़े शहर में रहने का मौका पाकर, मुझ जैसे लडके को खाली फ़ोकट में पाकर बहुत फूली-फूली आई हो, तो चलो एक झटका दे के देखा जाये, पर तुम तो एकदम ही डर गई थी. वो तो तुम्हारा चेहरा देख मुझे दया आ गई वरना दोनों का प्लान तो बहुत कुछ था.”

नंदिनी जड़ हो गई. मजाक को मजाक मान, इसे कुनैन समझ उसने निगल लिया था लेकिन दीपक का ऐसा कहना दिल को चीर गया. पति-पत्नी गृहस्थी के दो पहिये होते हैं जो साथ-साथ चले तो जिंदगी का सफर आगे बढ़ता है लेकिन यदि एक पहिया दूसरे पहिये को चोट पहुंचाता रहे तो जिंदगी का सफर लड़खड़ाता रह जाता है. पति बादल की तरह होता है, पत्नी धरती की तरह. बादल अपना प्यार बरसायें रहे तो धरती प्रेमाँकुरों से लहलहा उठती है लेकिन यदि बादल पल में बरसे पल में सूरज की तीखी किरणों से तपने के लिए धरती को अकेली छोड़ दें. फिर बरसे फिर धरती को सूख जाने दें तो धरती के ह्रदय के प्रेमांकुर धीरे-धीरे सूख जाते हैं. धरती बंजर हो जाती है. यूँ तो धरती जीवट होती है. अपनी जिजीविषा बनाये रखती है लेकिन कब तक? बादल को पता ही नहीं चल पाता कि धरती के दिल में दरारें पड़ने लगीं हैं. दीपक को भी इसका अहसास नहीं था नंदिनी का मान क्या सोच रहा महसूस कर रहा हैं ...........

क्रमश:

नाम- श्रध्दा
वर्तमान निवास- रायपुर, छत्तीसगढ़
शिक्षा- एम.एस.सी. (वनस्पतिशास्त्र), बी.एड., एम.ए. (लोक प्रशासन)
रुचियाँ- साहित्य के अध्ययन एवं लेखन में रूचि,
सम्प्रति- राज्य वित्त सेवा अधिकारी, छत्तीसगढ़

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया