हेलो - ऐ स्ट्रीट डॉग Mukesh Joshi द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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हेलो - ऐ स्ट्रीट डॉग

“हेलो”- ऐ स्ट्रीट डॉग

मुकेश जोशी

एक ऐसे दोस्त को समर्पित जो बेजुबान था पर मुझे जुबानवालों से ज्यादा अजीज था| देख “हेलो” आज फिर हम अपना बचपन जी रहे हैं| जब तू भी बच्चा था और मैं भी |

दो शब्द –

सादर नमस्कार दोस्तों.... प्रतिलिपि पर ये मेरी दूसरी कहानी है| आशा है कि पहली कहानी “ फ्रेंड रिक्वेस्ट “ की तरह ये भी आपको पसंद आएगी |

बाकी बातें बाद में ...

“हेलो”-ऐ स्ट्रीट डॉग

आज इतने साल बाद “हेलो” के साथ जिए लम्हें लिखते हुए मैं रो पड़ा हूँ| पाठकों से कहना चाहूँगा आपको अगर कोई “हेलो” मिले तो उसे कभी खोना मत क्योंकि ये मूक जानवर सिर्फ बोलते नहीं हैं बाकी सब जानते समझते हैं| जाने – अनजाने ये आपको इतना प्यार दे जाते हैं के आपको कभी किसी अपने की , किसी दोस्त की या किसी साथी की कमी महसूस नहीं होने देते | ये आपको सुनते हैं , चाहे आप सही हों या गलत | ये कभी आपको धोखा नहीं देते|

आज जिस “हेलो” की कहानी कहने जा रहा हूँ वो एक सफ़ेद रंग का, घुंघराले बालों वाला एक शानदार कुत्ता था| हीरे सी चमकती उसकी वो दो आँखें, उसका वो मासूम सा चेहरा सब कुछ ऐसा था कि किसी भी इंसान को उस पर प्यार आ जाए|

यूँ तो वो एक गली का लावारिस पिल्ला था जैसे बाकी गली के कुत्ते हुआ करते थे| पर उसकी नस्ल बाक़ी गली के कुत्तों वाली नहीं थी| वो दौड़ रहा था और गली के छोटे बच्चे उसको डंडों से पीटते हुए दौडाए जा रहे थे| बेचारा सोच रहा होगा ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है?

मैं उसको उठा कर घर ले आया| .......

कुत्तों का तो मैं बहुत पहले से लालची रहा हूँ| गली,मोहल्लों,पार्कों, इधर –उधर जहाँ भी कोई पिल्ला दिखता था मेरा बाल मन मचल उठता था और मैं उसको पालने के लिए उठा लाता था| लेकिन फिर माँ की फटकार पड़ती थी और पिल्लों को उनकी माँ के पास छोड़ कर आना पड़ता था| एक बार तो मैं कहीं से दो बिल्ली के बच्चे उठा लाया था| रात को अच्छा भला दूध पिला कर उनको ईंटों का घर बनाकर उसमें सुला दिया था पर कमबख्त सुबह होते ही ना जाने कहाँ गायब हो गये| अगले दिन कड़ी जांच –पड़ताल और छानबीन करने पर पता चला कि उनकी माँ बिल्ली उनको रात में ही उठा कर ले गयी थी| अब सोचता हूँ कि कितनी महान है एक माँ की ममता| अब बिल्ली को ही देख लीजिये, बोल नहीं सकती पर उसकी ममता किसी दूसरी माँ से कम ना रही होगी| बिल्ली के बच्चों के अपहरण से हम तीनों भाई-बहन बहुत दुखी थे| जो दुखी नहीं थी वो थी हमारी माँ | माँ को कुत्ते-बिल्लियों से सख्त नफरत थी | “गन्दगी” उसका पहला कारण था| ब्राह्मण के घर में गन्दगी ???? ना रे ना :D

माँ पूजा-पाठ करने वाली औरत थी इसलिए गन्दगी फैलाने वाले जीव उनको सुहाते नहीं थे|

जहाँ हम बच्चों को कुत्ता पालने में माँ का समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता था वहीँ ख़ास बात ये थी कि पापा हमें कभी इसके लिए मना नहीं किया करते थे बशर्ते हम किसी माँ से उसका बच्चा चुरा कर घर ना ले आएं| वो हमारी ही टीम के सदस्य कहे जा सकते थे| लावारिस कुत्तों के वो भी बड़े आश्रयदाता थे| ये दया भाव मुझे शायद पापा से ही विरासत में मिला होगा| पापा को भरोसे में ले कर हमने कई बार कुत्ते पाले पर हर बार कुछ बड़ा होने पर उनकी असमय मौत हो जाया करती थी | हमारे गाँव में या गाँव के आसपास उस ज़माने में न ही कुत्तों का अस्पताल हुआ करता था ना ही कोई कुत्तों का डॉक्टर| दूसरा हमें इसकी उतनी जानकारी भी नहीं थी| जब हमारा आखिरी कुत्ता मरा तो कुत्ता पालने की लालसा को मुझे दफ़न करना पड़ा क्योंकि माँ ने हमें ऐसा डांटा था कि अब हम दोबारा कुत्ता पालने की बात भी घर में नहीं कर सकते थे|

“पहले खुद तो पल जाओ फिर पालना कुत्ता|” उनकी ये पंक्ति रह-रह का आज भी याद आ जाती हैं|

तो मैं उस पिल्ले को उठा कर घर ले आया| पर अब समस्या यह थी कि वह बहुत गन्दी हालत में था| शायद किसी नाली में लोट मार कर आया था या हो सकता है किसी बड़े कुत्ते ने उसको पीटा हो ? बेचारा बहुत डरा-डरा सा था| वो कांप रहा था और कूँ-कूँ की आवाज़ कर रहा था|

मैंने उसको बरामदे में रखा| उसको दूध पिलाया और रोटी खिलाई| माँ ने देख लिया और मुझको डांटने ही वाली थी पर मैं तुरंत ही खतरा भांपते हुए बोल पड़ा-

“ मम्मी इसको बच्चे मार रहे थे मैं बस इसको रोटी खिला कर छोड़ आऊँगा|”

यह सुनकर माँ घर के कामों में लग गयी|

अब खाना खा कर वो गन्दा पिल्ला शांत हो गया था| अब वो मेरे पैर चाट रहा था और ख़ुशी में अपनी पूँछ चकरी से घुमा रहा था| कभी अपने नन्हें दांतों से मेरी पेंट खींचता कभी अपनी प्यारी सी भौं-भौं करता कभी गुर्राता| उसको शायद लगने लगा था कि इस बेदर्द दुनिया में एक ये ही बंदा काम का है| :D

हमारे बरामदे में एक शहतूत का पेड़ था जहाँ हम बच्चे चारपाई डाल कर पढ़ा करते थे| वो वहीँ खेलता हुआ चारपाई के नीचे ही सो गया|

कुछ घंटे सो कर जब वो पिल्ले महाराज जागे तो इधर-उधर सूंघ कर ऐसे एन्कुवायरी करने लगे जैसे यहाँ कोई मर्डर हुआ है और उनको सी.बी. आई. का हेड बनाकर यहाँ तहकीकात करने भेजा गया है| :D

वो मौज में था और मैं इस बात की खैर मना रहा था कि माँ घर पर नहीं थी और पड़ोस में किसी कीर्तन में जा चुकी थी|

गैंग में अब तक मेरी बहन और भाई भी शामिल हो चुके थे पर लीडर मैं ही था| हमें लगा ये कितना गन्दा है क्यों न इसको धोया जाए?

तीनों ने मिल कर ये शुभ काम शुरू किया| दो लोगों ने उसको पकड़ा और एक ने साबुन-पानी से रगड़-रगड़ कर उसको धोया| वो ऐसे पूँछ दबा कर खड़ा था जैसे उसकी बलि दी जा रही हो| कितनी नफरत होती है ना कुत्तों को पानी से.. ये मैंने उस दिन देखा| बच्चू भागने की कोशिश कर रहा था लेकिन हम भी कहाँ पीछे हटने वाले थे| उसको नहलाकर तौलिये से उसको पोंछा| उसके कानों और बगलों के चीचड़ निकाले और उसको साफ़ किया| चीचड़ वो छोटे कीड़े होते हैं जो कुत्तों, गाय, बैल आदि जानवरों का खून चूसते हैं|

अब उसका असली रूप निखरकर सामने आया था| वह पिल्ला एक रूई का एक बेहद खूबसूरत टेडी जैसा लग रहा था| उसके बाल धूप में चांदी से खिल रहे थे| उसको एक लम्बा तिलक लगाया गया| अब वो देखने में “कुत्तों का ब्राह्मण” लग रहा था| :D :D

उस शाम को पापा जल्दी घर आ गये थे| हमने पूरी घटना और पिल्ले की बेबसी नमक मिर्च लगा कर पापा को सुनाई| उस समय ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा जब पापा ने कहा कि हम इस पिल्ले को पाल सकते हैं| मेरी मुँह मांगी मुराद सी पूरी हो गयी थी| प्लान नंबर वन पापा को पटाना कामयाब रहा| प्लान टू जो की मम्मी को शांत करवाना था उसके लिए ज्यादा पापड़ नहीं बेलने पड़े क्योंकि माँ को ना चाहते हुए भी हमारी बात माननी पड़ी| कारण था एक तो हमने वो पिल्ला बहुत साफ़-सुथरा और खूबसूरत सा बना दिया था और दूसरा हमको पापा का भी समर्थन प्राप्त था| कुल मिला कर गठबंधन वाली सरकार बन चुकी थी| लेकिन माँ अन्दर ही अन्दर गुस्से में थी|

आप सोच रहे होंगे उसको “हेलो” नाम क्यों मिला?? “हेलो” नाम उसका यूँ पड़ा जब भी हम उसके पास जाते हम “हेलो” बोल कर अपना हाथ उसके आगे बढाते और वो एक छोटे बच्चे के जैसे अपना नन्हा पंजा हमारी हथेली पर रख देता| बार-बार “हेलो” सुन-सुन कर वो इस शब्द का अभ्यस्त हो गया और इसे सुनते ही कान खड़े कर लेता| उसको भी एहसास हो गया के ये शब्द उसके लिए ही बोला जा रहा है| इस तरह से उसका नामकरण हुआ|

अब जोर-शोर से हेलो के लिए तैयारियां शुरू की गयीं| उसके दूध का कटोरा सेलेक्ट किया गया और उसके लिए एक गरम चटाई को दोहरा करके हम बच्चों के कमरे के एक कोने में बिछा दिया गया| ये उसका बेड था| :D

पर जब हम सोने जाते तो वो हमारे बेड के ऊपर चढ़ने की कोशिश करता और असफल होने पर कूँ-कूँ करके रोने लगता| शायद उसको पता नहीं था के वो कुत्ते का बच्चा है| :D या सोच रहा होगा ये सब भी कुत्ते के बच्चे ही हैं| हाहा :D

बात उसकी भी सही थी जब हम बेड पर सो सकते हैं तो वो क्यों नहीं???

तंग आकर और उसकी कूँ-कूँ से मम्मी ना जाग जाए और हमारी क्लास न लगा दे| इस डर से मैंने उसको चुपके से ऊपर खींच लिया और अपनी चादर में उसको दुबकाकर अपने साथ सुला लिया| ये कुत्ते के साथ सोने का मेरा पहला अनुभव था| कुत्ते तो पहले भी पाले पर ये हेलो तो सबसे ज्यादा जिद्दी टाइप का था|

सुबह माँ के जागने से पहले मैंने उठकर हेलो को उसकी चटाई पर सुला दिया जैसे रात को कुछ हुआ ही नहीं हेलो हमारे बिस्तर में सोया ही नहीं| ऐसे केस में मैं बड़ी चालाकी से घटना को अंजाम देता था| :D

कुछ दिनों में ही हेलो ने अपनी हरकतों से और मासूम चेहरे से सबका दिल जीत लिया.. यहाँ तक की माँ का भी| पापा के घर आने पर वो उनका भव्य स्वागत करता| उनके पैरों में लोट जाता, उनके ऊपर कूद कर चढ़ जाता| पापा को लगता था एक हेलो ही उनके सच्चे अर्थों में घर आने का वेट करता है| उनकी बात अब सोचता हूँ तो कितनी सच्ची जान पड़ती है क्योंकि हम बच्चों को लालच रहता था कि पापा कुछ चीज़ लाएंगे शाम को .. लेकिन हेलो बिना किसी लालच के अपना प्यार उन पर लुटाता था| यहाँ देख लीजिये कौन ज्यादा रिश्तों में ईमानदार है ? एक नासमझ कुत्ता या हम समझदार आदमी लोग?? आपका जवाब शत-प्रतिशत हेलो के पक्ष में होगा| माँ भी उसको अब बच्चे की तरह मानने लगी थी| परिवार में अब एक सबसे छोटा पर सबसे प्यारा सदस्य शामिल हो गया था|

हम सब इस बात से खुश थे कि हेलो घर में गंदगी नहीं फैलाता था| हमने पहले जो कुत्ते पाले थे उन सबकी एक गन्दी आदत थी कि वो घर में ही यहाँ-वहाँ जहाँ मन किया टांग उठा कर छिडकाव कर देते थे या पोट्टी कर देते थे| बाद में फिर माँ की डांट मुझे पड़ती थी पर हेलो सबसे अलग था| माँ भी उसकी इस अच्छी आदत की बहुत तारीफ़ करती थी|

“देखो बेचारा बाहर ही पॉटी कर के आता है, घर में गन्दगी नहीं करता कितना समझदार है|”

एक रात मेरी रात 11 बजे नींद खुल गयी| मैंने सुना कहीं से लप-लप की आवाज़ आ रही थी|मैं उठा लाइट जलाई| मैं देख कर दंग रह गया मेरे नीचे की ज़मीन सी खिसक गयी देख कर| हेलो अपनी की हुई पोट्टी खुद ही खा रहा था और वो भी बड़े मज़े ले-ले कर|

मुझे देख कर वो ऐसे खुश हुआ जैसे वो कोई मुंसीपाल्टी का वर्कर है और मैं उसका बॉस... और बॉस उसका सफाई अभियान देख कर बहुत खुश होने वाले हैं| शाबाशी देंगे अब| आगे से मुँह चल रहा था, पीछे से साहब की पूँछ की चकरी चल रही थी| मोदी जी उस ज़माने में अगर प्रधानमन्त्री होते तो ज़रूर स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत हेलो को ईनाम दे डालते और मुझे परमवीर चक्र क्योंकि उसके लिए मैं इतने खतरे जो मोल ले रहा था| पेट-पूजा या सफाई-अभियान खत्म करके साहब मेरे पैरो में आकर लोटने लगे जैसे ईनाम लेने आए हों|

सुबह हम भाई-बहनों की आपातकालीन मीटिंग हुई|

“दीदी हेलो पोट्टी खाता है और अपनी ही खाता है|”

दीदी- “अच्छा तो ये वजह है इसकी अच्छी आदत की|” अब तो मर जाएंगे अगर मम्मी को इस बात का पता लग गया तो और मम्मी इसको भी घर से निकाल देगी|

मीटिंग में ये सर्व-सम्मति से ये फैसला लिया गया कि अब हम तीनों बारी-बारी से रात में जागेंगे और हेलो को पोट्टी खाने से रोकेंगे| रोज़ एक जन की ड्यूटी लगने लगी| हम उसके पोट्टी करने का इंतज़ार करते और पोट्टी करते ही तुरंत उसको पकड़कर दूर ले जाते और उसकी पोट्टी को प्लास्टिक की थैलियों में भर कर बाहर फेक आते| कैसे-कैसे कुकर्म करवा रहा था वो दुष्ट हमसे|

पहले हम बत्ती बुझा कर सोते थे अब बत्ती जला कर सोने लगे| क्या पता कब हम अँधेरे में उठें और ज़मीन पर पैर रखते ही हेलो का बनाया केक हमारे हाथों कट जाए|

मैंने बहुत कोशिश की उसको बाहर पोट्टी करने की आदत डालने की| पर वह नहीं सुधरा| वो जैसे ठान चुका था के हमारी हड्डियां तुडवा कर ही मानेगा| जिस दिन हमको रात में उसका किया कुकर्म दिखाई नहीं देता हम जान जाते के ड्यूटी में कहीं कमी रह गयी है और हेलो अपना काम कर चुका है... बाजी मार चुका है भगवान की कृपा से मम्मी कभी ये राज़ नहीं जान पाई|

कुछ महीनों में ही हेलो किसी बड़े कुत्ते जैसा दिखने लगा| इसका कारण था उसका भुक्खड़पन| वो ऐसा भुक्खड़ था जिसको शब्दों में बताना शायद कम हो| उसको हम दिन में 3 से 4 बार खाना देते थे| लेकिन वो ऐसा पेटू था कि उतने में उसका पेट नहीं भरता था| जन्मों का भूखा जान पड़ता था| वो आम,केला,सेब,संतरा,टमाटर,आचार,मटर,केला सब खाता था| ये कह लीजिये उसके और हमारे-आपके टेस्ट में कोई फर्क नहीं था| किचन में वो जो कुछ देखता या हमें खाता देखा वो सब खा जाता| परिणाम ये हुआ अगले 6 महीनों में वो मोटा-ताज़ा गब्बर बन गया|

हमारे स्कूल चले जाने पर वो उदास हो जाता| हम स्कूल के लिए तैयार होते तो वो हमारे साथ-साथ घूमता रहता| उसी वक़्त नाश्ता खाता.... अपना भी और हमारा भी| ऐसे टकटकी लगाकर देखता जैसे कितने जन्मों से भूखा हो| मैं बाथरूम में जाता तो वो साथ में जाता| मैं गेट बंद कर लेता तो वो बाहर बैठकर पंजों से गेट को कुरेदता, नीचे से झाँक-झाँक कर देखता और बेसब्री से कूँ-कू करने लगता| उसको लगता होगा ये क्या कर रहे हैं अन्दर ... “अरे खोलो भाई मुझे भी देखने दो| “ :D हमसाया बन कर घूमता था वो मेरा|

समय बीता..... अब हेलो करीब एक या डेढ़ साल का हो गया था| उसके साथ बिताया वो एक साल ज़िन्दगी के बेहतरीन दिनों में शामिल है क्योंकि एक तो बचपन के अमर दिन और दूसरा उन दिनों को हेलो अपने होने से और ज्यादा अमर कर रहा था|

हेलो और बचपन का अगला साल दुःख भरा रहा| उन दिनों उसकी भूख जो कम होनी शुरू हुई वह दिन पे दिन कम होती चली गयी| जाने क्या रोग लगा बैठा था वो बेजुबान| एक समय खाने का कटोरा पलक झपकते ही साफ़ कर जाने वाला हेलो अब खाने से मुँह फेरने लगा| वह उदास पड़ा रहने लगा| कुछ दिनों बाद तो उसने खाना-पीना बिलकुल बंद कर दिया| पास जाने पर या पुचकारने पर बस पूँछ हिला देता था और गोदी में सर रख देता था| उसको ऐसी कोई चोट या बीमारी भी नहीं दिख रही थी| सब दुखी थे पर सबसे ज्यादा दुखी शायद मैं था| ये मेरा बनाया किला था जो मुझे ढहता दिखाई दे रहा था और वो भी मेरी आँखों के सामने|

पिछले कुछ महीनों से हेलो बाहर अन्य कुत्तों से मिलने और उनके साथ घूमने लगा था| कोई कहता के किसी ने इसको ज़हर खिला दिया है क्योंकि वो बहुत शैतान है.. अक्सर पड़ोसियों की चप्पलें उठा लाता था और कुतर देता था| कोई कहता कि इसको किसी की नज़र लग गयी है, सब टोकते हैं के कितना ज्यादा खाता है ये|

अब वो इतना कमज़ोर हो गया था के उसके मुँह से लार टपकने लगी और अब तो उसने किसी के हेलो का जवाब देना पूँछ हिलाना सब बंद कर दिया था| ना वो उठ पता था न आँखें खोलता था| पापा कहीं दूर गाँव से एक जानवरों के डॉक्टर को ले आए| उन्होंने उसको कुछ इंजेक्शन लगाए और कुछ और दिन तक आते रहे पर वो हेलो की बीमारी ना पकड़ पाए|

एक समय आया जब हम सबको लगने लगा कि हेलो अब कभी नहीं जागेगा.. वो शायद मर चुका था पर उसकी साँसे कहीं अटकी हुई थीं और साँस अटकी थी मेरी भी| उसकी ऐसी हालत देख कर मैं अकेले में बहुत रोता था|

एक रात मम्मी ने उसके लगभग मृत मुँह में गंगाजल डाला और भगवान से प्रार्थना की के या तो उसको जीवनदान मिल जाए या भगवान उसको उठा ले| उसकी ये हालत कोई नहीं देख पा रहा था| मैं भगवान को क्या जानूं ..मैं तो अबोध था पर माँ की पूजा पर मुझे विश्वास था| इतने व्रत-पूजा करती थी ..मुझे लगता था भगवान से तो इनका डायरेक्ट कनेक्शन होगा , इनकी तो ज़रूर सुनेंगे भगवान|

सुबह हम स्कूल चले गए | वापिस आते वक़्त मैं ऐसी विश मांगता आता था..

“ भगवान प्लीज ... हेलो जिंदा हो| मैं अब से सब बदमाशी छोड़ दूंगा .. मेरी साइकिल लेलो, वो कंचों से भरा हुआ मेरा डब्बा ले लो.. मेरे लट्टू, मेरी गुल्लक सब ले लो...... पर मेरे हेलो को ठीक कर दो|

पर भगवान सबकी सुनता कहाँ है| उस दिन जब मैं घर वापिस आया तो पता चला हेलो मर चुका था| मैं बस्ता फेंक कर उसके पास लपका| मेरा प्यारा हेलो मेरा दोस्त मुझे छोड़ कर जा चुका था| उसको पापा ने उसकी चादर में लपेटा हुआ था जिस पर वो सोया करता था| मैं रोये जा रहा था जैसे मेरा सबसे प्रिय खिलौना टूट गया हो|

गाँव के एक बंजर मैदान में ले जा कर हमने उसको मिटटी में गाड दिया| वही मिट्टी जिसमें लथपथ था वो जब मैं उसको लाया था| उसके साथ उसकी चादर उसका खाने का कटोरा.. उसकी चैन सब दफ़न हो गया| पर जो अब तक दफ़न ना हो पाई वो थी उसकी यादें| कई दिनों तक मैंने खाना नहीं खाया| मैं रात में उठकर बैठ जाता.. ऐसा लगता था कि अभी वो बेड के नीचे से निकलेगा और कूद कर मेरी गोद में आ जाएगा|

“हेलो टू आता क्यों नहीं यार.. क्यों रूठ कर चला गया.. ना तू अब टॉयलेट में आने की जिद करता है न टू कहीं दिखाई देता है|” मैं खुद में बडबडाया करता था|

कुछ समय बाद मेरा बालमन जीवन के खेल में फिर से मशगुल हो गया| पर मेरा कुत्ते पालने का शौक जाता रहा| पर एक नाम “हेलो” जो आज भी ज़हन में जिंदा है और कई पासवर्ड का हिस्सा बना हुआ है|

मैंने आज उन जानवरों के बारे में लिखा है जिनके बारे में कोई बात नहीं करता| ये जानवर वो फ़रिश्ते होते हैं जो बदले में आपसे कुछ नहीं मांगते .. ये आपको तब सुनते हैं जब आप दुनिया के लिए किसी मोल के नहीं होते|

इस कहानी को शुरू करते हुए दिल भारी रहा और आज इस कहानी को पूरा करते हुए एक बार फिर आँखों में आंसू हैं| अच्छा कलम को रखता हूँ रात काफी हो गयी है| फिर मिलेंगे एक नए किस्से के साथ ... आपकी या मेरी किसी और कहानी के साथ| .....

*** समाप्त ***