फ्रेंड रिक्वेस्ट Mukesh Joshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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फ्रेंड रिक्वेस्ट

फ्रेंड रिक्वेस्ट

मेट्रो में सफ़र करते हुए मेरा आज का दिन भी बाकी दिनों के जैसा ही था | आज भी मैं शॉप से बॉस को कोसते हुए घर लौट रहा था |

अप्रैल की वो हलकी गर्मी जो ट्रेन में लोगों की भीड़ से गहरी हो आती थी वैसी ही थी जैसी कल थी और मैंने हर बार की तरह सीट पर बैठते ही अपना मोबाइल फ़ोन बाहर निकाल लिया | अरे भाई एक घंटे का सफ़र भी तो काटना था |

मैं राजीव जो एक गरीब परिवार का 22 साल का युवा लड़का था जो अपनी पढ़ाई का खर्च चलाने के लिए और परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए स्वामी चाट भण्डारमें पार्ट टाइम जॉब करता था |

तो बात चल रही थी मेट्रो ट्रेन की | फोन में जो सबसे ज्यादा काम मैं करता था वो था फेसबुक चलाना | नया-नया जवान हुआ था और पिछले कुछ महीनों से इससे जुड़ा ही था | मैं ट्रेन में अपना एफ. बी. खोल कर टाइम पास करने लगा | आदत कुछ ऐसी बन गयी थी कि किसी भी लड़की को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया करता था सिर्फ उसकी ब्यूटीफुल डीपीदेख कर | अब करता भी क्या दोस्तों | सिंगल था और स्वभाव से शर्मीला और सीधा |

कुछ दिन यूँ ही बीत गये | लाइफ अपनी फुल स्पीड में दौड़ रही थी | एक दिन मैंने देखा कि फेसबुक इनबॉक्स में एक मेसेज आया था| भेजने वाले का नाम था मानसी तोमर’ | कई घंटों के गैप से होते हुए बातचीत कुछ इस तरह थी

मानसी हु आर यु ?

राजीव सक्सेना मी राजीव !

मानसी तोमर डोंट यु हेव सेंस ? सेंडिंग रिक्वेस्ट टू अननोन पर्सन ?

राजीव सक्सेना - सॉरी !

मानसी तोमर व्हाट सॉरी ?

राजीव सक्सेना एक बात बताओ... क्या सच में जाटों का दिमाग घुटनों में होता है ?

मानसी तोमर व्हाट नोंसेंसे !

राजीव सक्सेना - मैंने ऐसा सुना है .. हाहा :D

मानसी तोमर अभी बताती हूँ रुको ! ......

और इस प्रकार हमें ब्लॉक कर दिया गया | वैसे ये कोई नयी बात नहीं थी, मेरे साथ ऐसा होता रहता था | J

अगले दिन फिर उसी आई. डी. से मेसेज आया | हमें अनब्लॉक किया गया था| बात शुरू हुई-

मानसी तोमर - कल तुमने ऐसे क्यों बोला के जाटों का दिमाग घुटनों में होता है ?

राजीव सक्सेना सुना था कहीं .. सॉरी !

मानसी तोमर तुम करते क्या हो ?

राजीव सक्सेना - मैं बी.ए. थर्ड इयर का स्टूडेंट हूँ, और तुम ?

मानसी सक्सेना बी . सी. ए . फर्स्ट इयर ....

इस तरह हमारी बातों का सिलसिला आगे बढ़ने लगा और हम कुछ ही दिनों में अच्छे दोस्त बन गए | लेकिन मुझे ये नहीं पता था वो कौन है ? फेक आई. डी. है या असली | कोई दोस्त तो लड़की बन कर मज़े नहीं ले रहा है ? इस तरह के सवाल मुझे हमेशा घेरे रहते | मैं उसकी बातों के मोहपाश में फंसता चला जा रहा था | धीरे धीरे हम एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए | अपने दिन भर के काम और बातें एक दूसरे को बताने लगे | उससे देर रात तक बात करना , उसके ऑनलाइन आने का इंतज़ार करना| उसके लिए बार बार एफ. बी . खोलना और फिर बंद करना मेरी आदत बनती जा रही थी | या यूँ कहें मुझे उसकी उस लड़की मानसीकी आदत होती जा रही थी |

मानसी के बारे में बता दूँ, जैसा मुझे उसने बताता था वो भी मेरी तरह साधारण घर से थी| पढ़ने लिखने में तेज़ और अपने करियर और फ्यूचर को ले कर बहुत सीरियस थी वो | पापा ऑटो चलाते थे और बड़ा भाई किसी कंपनी में जॉब करता था | मिडिल क्लास परिवार था उनका पर हमसे तो अमीर ही कहे जा सकते थे |

एक तरफ वो थी और दूसरी तरफ था मैं ..... जिसके आज और कल का कोई अता-पता नहीं था | घर में मैं, मेरी माँ और दो छोटी बहनें थी | परिवार का गुज़ारा पापा की पेंशन और मेरी पार्ट टाइम जॉब से जैसे तैसे चलता था | दिखने में मैं एक दुबला-पतला, काला, शर्मीला, साधारण शक्ल सूरत वाला लड़का था| बचपन में ही पिताजी के गुज़र जाने पर स्ट्रगल तो बचपन से ही चल रहा था | पढ़ने में अच्छा था तो किसी तरह सरकारी स्कूल से बारहवीं पास करके मैंने बी. ए . ओपन कॉलेज में एडमिशन ले लिया था और उसके साथ साथ मैं एक चाट की दुकान पर काम भी करता था | | साहित्य प्रेमी मैं बचपन से था और टाइम मिलने पर डायरी और क़िस्से लिखा करता था | जीवन में संघर्ष क्या होता है मैंने करीब से जान लिया था | लेकिन गरीबी, रोटी की भाग-दौड़ और ऊपर से किसी पथ प्रदर्शक के न होने पर मुझे समझ नहीं आता था के मेरा क्या होगा और मैं क्या करूँगा आगे |

यूँ तो जीवन संघर्ष ही बना हुआ था पर मानसी के मेरी लाइफ में आने से मुझे एक नया उत्साह महसूस होने लगा था | जीवन में मेरी कोई महिला मित्र नहीं रही थी .....लड़कों की कंपनी में पला-बढ़ा था | शायद मुझे इसीलिए ही एक अजीब सा आनंद आ रहा था | वो जैसे एक ठंडे पानी का झरना थी और मैं थका हुआ मुसाफिर जो चन्द घूँट पानी पी कर राहत महसूस कर रहा था |

तो कहानी आगे बढ़ी..... हम एक दूसरे के और करीब हुए और एक अरसे के बाद नंबर एक्सचेंज हुए | चैट के सिलसिले कॉल में बदलने लगे | मुझे याद है पहली बार जब उसकी आवाज़ सुनी थी मैं सुन्न हो गया था ....

हेलो कैन आई टॉक तो मिस्टर राजीव सक्सेना

मुझे उसके कॉल की उम्मीद नहीं थी क्यूंकि उसने अपना नंबर नहीं दिया था लेकिन मेरा नंबर ले लिया था | बोला था के ठीक समय देख कर एक दिन कॉल करेगी |

सर आपने एक लड़की की दुनिया बदल दी है क्या आपको इस बात का अंदाज़ा है | “

उसकी वो बोली मेरे कानों में बर्फ के जैसे पिघल रही थी | वो ताज़गी वो रस अमर कर देने वाला था | मैं एक दम ब्लेंक हो गया था | क्या बात करू कुछ समझ नहीं आता था | उस दिन उससे पहली बार बात करने के बाद मेरी बेताबी और बढ़ने लगी और मैं उसका पहले से ज्यादा कायल हो गया | होता क्या है ना के जब इंसान किसी को पसंद करने लगता है तो सोते जागते वोही इंसान उसके दिलो-दिमाग पर छाया रहता है और ख़ास कर तब जब वो इन्सान अपोजिट जेंडर हो ! मुझे लगता है उन लोंडो का हाल भी ऐसा ही होता होगा जो मेरी तरह पहली बार किसी के प्यार में पड़े होंगे |

यूँ तो सपने देखने लगा था उसको प्रोपोज करने के पर हिम्मत नहीं होती थी | लगता था के वो अगर मना कर देगी तो क्या करूँगा ? कहाँ जाऊंगा अगर उसने बात करना बंद कर दिया तो | वो मेरे लिए सब कुछ होती जा रही थी | उसकी बातों और व्यवहार से मुझे यकीन हो चला था कि मैं भी उसके लिए दोस्त से बढ़ कर कुछ और हो चला हूँ | पर फिर भी डर लगता था |

फिर एक रात चैट में मैंने हिम्मत करके मैंने उसको अपने दिल की बात बता दी ...

ओह माय गॉड! तुम मज़ाक कर रहे हो ना राजीव ? .. आई कान्ट बिलीव यार ... आई एम स्पीच्लेस ! ओके गिव मी टाइम .. मैं तुम्हे कल जवाब देती हूँ | “

यकीन मानिए उस रात मैं सो ना सका | जैसे-तैसे रात कटी | उसका ना गुड़ मोर्निंग वाला मेसेज आया ना कोई कॉल | मेरी बेचैनी बढ़ रही थी | मुझसे रहा न गया और मैंने मोबाइल निकाला ...

तुमने जवाब नहीं दिया” .. मैंने मेसेज टाइप किया और भेज दिया उसको !

अगले ही मिनट में मेरा फोन बजा | उसका मेसेज आया था ...

राजीव इट्स येस

मुझे यकीन नहीं हुआ ! ख़ुशी के मारे मैं कूद पड़ा | मेरे जैसे बदसूरत से भी कोई प्यार कर सकता है ऐसा मैंने बस अपने सपनों में ही फील किया था | मैंने उसको कॉल लगाया | जब उसके मुँह से आई लव यूसुना तब ही यकीं आया | दिन सपनों में और उस पहले प्यार की दिलकश फीलिंग में गुजरने लगे | मिलने की बात करने पर पहले वो गुस्सा हो जाया करती थी पर अब लगने लगा था जैसा वो भी मिलना चाहती थी | लड़कियों में जलन की भावना शायद खून में होती है क्यूंकि मेरे फोटो पर अगर किसी लड़की का लाइक या कमेंट आ जाता था तो वो गुस्सा हो जाती थी | मैं हालांकि साधारण था पर मुझे वो क्यूट कहती थी | कुल मिला कर मुझे अपना फ्यूचर उसके साथ दिखाई देता था |

फिर मिलने का दिन आया | मैंने अपने सबसे अच्छे वाले कपड़े पहने | हम गरीबों में होता क्या है.. कपड़े दो तरह के होते हैं | एक रोज़ पहनने वाले और दूसरे शादी ब्याह या बारात में पहन कर जाने वाले | कुछ पैसे बचाए हुए थे तो उसके लिए टेडी और चॉकलेट खरीदा | मिलने का स्थान तय हुआ था राजीव चौक मेट्रो स्टेशन | वहाँ से हमको दिल्ली यूनिवर्सिटी नार्थ कैंपस जाना था हम दोनों को कुछ काम था जिसके बहाने वो मुझसे मिलने वाली थी |

राजीव चौक पर जब मैंने उसको पहली बार देखा तो मैं उसको देखता ही रह गया | उसकी वो आँखें वो चेहरा पहले से भी ज्यादा आकर्षक था जैसा मैंने उसकी डी.पी . में देखा था |

लेकिन वो मुझे देख कर चुप थी कुछ बोल नहीं नहीं रही थी | मैंने बैग से निकाल कर उसको टेडी और चोकलेट दिया | थैंक यु कह कर उसने वो ले लिया शायद शरमा रही थी | में खुद बहुत बड़ा शर्मीला था | मुझसे भी ज्यादा कोई शर्मीला हो सकता है मुझे नहीं लगता | इतना शर्मा रहा था के डी. यु. जाना तो दूर, इतनी छोटी सी मुलाक़ात करके मैं वापिस लौट आया | उस दिन मैं बहुत खुश था |

मुझे उसकी हर बात पसंद थी | उसका भी मेरी तरह कोई दोस्त ना था | बस एक रोहितथा जिसके बारे में वो बताया करती थी | जिसको वो अपने भाई से भी ज्यादा मानती थी और उससे सब बातें शेयर करती थी | बहुत तारीफ किया करती थी रोहित की | उसके किस्से, बातें करके जाने कितनी बार उसने मुझे पकाया होगा | लड़कों को अपनी गर्ल फ्रेंड के मुँह से किसी और लड़के की तारीफ सुनना अच्छा नहीं लगता | फिर चाहे वो उसका दोस्त हो या भाई | पर मुझे उस पर पूरा विश्वास था शायद खुद से भी ज्यादा |

फिर यूँ मिलने के सिलसिले बनने लगे | हम अक्सर मिलने लगे | तीसरी मुलाक़ात मुझे हमेशा याद रहेगी | एक दिन हम वहीँ राजीव चौक पर मिले |फिर हम दोनों डी. यु. गए | वहाँ से मौल गये मूवी हाल में अँधेरे में उसने मेरा हाथ पकड़ा | पहली बार किसी लड़की ने मेरा हाथ पकड़ा था | उसने मेरे कंधे पर सर रख दिया और फिर ना जाने मुझे कैसा नशा सा होने लगा | जिस लड़की के साथ चलने में मैं कांप रहा था अब उसी लड़की को बाहों में ले कर मैं एक अजीब से गर्मी महसूस कर रहा था | कब उसके चेहरे को चूमते हुए मेरे होंठ उसके होंठो से जा मिले थे पता ही नहीं चला | हम एक दूसरे में ऐसे खो गये जैसे इस दुनिया से बाहर किसी दुनिया में निकल आए हो| उस दिन मुझे पता चला के ’’किस’’ करना इतना आनंद देना वाली क्रिया है | उसके दिये हुए ’’लव बाईट’’ ये प्रमाणित कर रहे थे के उसको भी वैसा ही महसूस हुआ होगा जैसा मुझे हुआ था |

कसमों वादों के दौर से गुज़रते हुए ज़िन्दगी और आठ महीने आगे बढ़ गयी | लेकिन एक बात जो थी के पिछले लगभग एक महीनों में हम मिल नहीं पाए थे | उसने बताया था के उसके एग्जाम चल रहे हैं |

कुछ दिन से तो गुड मोर्निंग के मेसेज भी लेट आने लगे थे | मुझे पता नहीं चला ऐसा क्यों हो रहा है | काफी मशक्कत के बाद मिलने का प्लान बना | हम वहीँ डी.यु. वाले पार्क में मिले | पर वो शायद उतनी खुश नहीं थी जितना हुआ करती थी | मुझे देखते हुए उसने कहा ...

तुम और काले होते जा रहे हो राजीव “ | मुझे सुन कर अजीब लगा | मैं उससे कुछ और सुनने की उम्मीद कर रहा था | अनमने मन से मिली थी वो | पर उसका ये बदलाव मुझे समझ नहीं आ रहा था | फिर उसको कॉलेज में कुछ काम था| मुझे वेट करने के लिए कहकर वो चली गयी | मैं काफी देर बैठा रहा पर वो नहीं आई | उसका फोन भी ऑफ था | मैं वहीँ जड़ बना बैठा रहा और शाम होने पर वापिस आने के लिए उठा | मन में एक अजीब सी उदासी छाई हुई थी जैसी कुछ अधूरा सा लग रहा था कुछ पीछे छूटता सा |

मैं घर पहुँचा पर मन उदास था |

रात को उसका मेसेज मिला

सॉरी राजीव .. एक फ्रेंड मिल गयी थी इसीलिए उसके ही साथ वापिस आना पड़ा और मोबाइल के बैटरी खत्म हो गयी थी| आई एम रियली वैरी सॉरी| “

मुझे उसका मेसेज आने से जितनी ख़ुशी हुई उतना दुःख उसका ऐसे चले जाने से नहीं हुआ था |

लेकिन उस दिन से उसके बातों के सिलसिले कम होने लगे | विश्वास और भरोसे के रंगों से जो तस्वीर मैंने बनाई थी वो मुझे धुंधली नज़र आने लगी थी | अब वो बहाना बनाने लगी थी, मुझसे कटने लगी थी | इसी वजह से हमारे बीच झगडे भी होने लगे थे | मैं अन्दर ही अन्दर टूट रहा था | मुझे समझ आने लगा था के मुझसे मिलने के बाद उसको एहसास हो गया है के मैं उसके लेवल का नहीं हूँ शायद इसीलिए वो ऐसे व्यवहार कर रही है | लेकिन मैं करता भी क्या मैं उसको बेपनाह प्यार करता था | लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो मुझे ऐसे इग्नोर करने लगी थी |

फिर एक दिन ऐसा हुआ जिसकी मुझे भनक लगने लगी थी | उसने फोन पर बताया के उसके पापा ने उसका रिश्ता तय कर दिया है और अब वो इस रिलेशनशिप को और नहीं चला पाएगी | मैंने उसको बहुत समझाया -

मैं तुम्हारे पापा से बात कर लूँगा उनको मना लूँगा | मैं बहुत मेहनत करूँगा | और कुछ बन कर दिखाऊंगा | पर उसने मेरी किसी बात का समर्थन नहीं किया और एक ही रट लगाए थी के वो अपने पापा मम्मी के खिलाफ नहीं जाएगी |

गुड बाय राजीव .... मुझे भूल जाना अपना ख़याल रखना |”

उस दिन शायद पहली बार मैं किसी लड़की के लिए रोया-गिडगिडाया था |

वो जा चुकी थी मुझे उस समंदर के बीच में छोड़कर जिसका कोई किनारा मुझे नज़र ना आता था | मैं कमरे में पड़ा रोता रहता था | मैं बीमार और कमज़ोर होता जा रहा था | मुझे ये दुनिया फीकी लगने लगी थी | ऐसा लगता था के मेरे पैरों में जान नहीं है | सैड सोंग्स सुनना और पड़े रहना ये दो काम थे जो मैं कर रहा था मैं चाहता था कोई मुझे सुने , मुझसे बात करे | पर मेरे आस पास कोई ना था सिर्फ मैं था.... जो ऐसे मकान में कैद हो गया था जिसमे रौशनी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ अँधेरा था | कई बार मन किया कि सुसाइड कर लूँ | पर चाह कर भी ऐसा न कर सका क्योंकि मुझ पर जिम्मेदारियों का एक पहाड़ था | मुझे समझ न आता था कि अब मेरा क्या होगा, मैं कहाँ जाऊंगा? और क्या करूँगा ?

हालांकि मैं टूट चूका था अन्दर से, पर मुझे कहीं ऐसा विश्वास था कि ऐसा उसने अपने माँ-पापा के लिए ही किया है और वो मजबूर होगी | मैंने उसको कभी दोष नहीं दिया ना उसको कभी कसूरवार ठहराया | किस्मत तो शुरू से ही खराब रही थी| इसको भी मैंने खराब किस्मत की अगली किश्त मान लिया था |

दिन गुजरने लगे | कहते हैं वक़्त हर मर्ज़ की दवा होता है | मैंने भी अपने प्यार के टूटे शीशों को कुछ समेटना शुरू कर दिया था | देवदास बन कर कब तक रहता | खाने को तो रोटी चाहिए | देवदास वाली बातें बस फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं | मुझे तो लगता है गरीबों को प्यार करना ही नहीं चाहिए |

करीब 6 महीने बाद मैं किसी काम से डी. यु. गया | वहाँ से मैं उसी पार्क में जा बैठा जहाँ मैं मानसी से आखिरी बार मिला था | वहाँ मैंने मानसी को एक लड़के के साथ आपत्तिजनक हालत में बाहों में बाहें डाल के गार्डन के एक बेंच पर बैठे देखा | ये तो रोहित था | वही रोहित जिसकी पिक उसने मुझे एक बार सेंड की थी | वही रोहित जो उसके साथ पढ़ता था और जिसको वो अपना भाई बताती थी | दोनों एक दूसरे में खोये किसकर रहे थे | मेरा दिमाग घूमने लगा | आखिर ये हो क्या रहा था मेरे साथ ? क्या उसकी शादी वाली बात झूठी थी ? उसका वो रोना वो मजबूरी सब फरेब था ?

मेरा मन किया उससे जाकर ये सारे सवालों के जवाब मांगूं | उससे पूछूं कि उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? ज़िन्दगी मुझे ऐसा भी दिन दिखाएगी ऐसा कब सोचा था मैंने | मैं उससे बचता हुआ वापिस घर आ गया | प्यार की जो आग बुझ चुकी थी शायद उसमे कुछ चिंगारी बाकी थी | पर उस रात ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस चिंगारी पर पानी डाल दिया हो | मैं रोना चाह रहा था पर मेरी आँखों से आंसू नहीं निकाल रहे थे | मेरा मन पत्थर हो रहा था| जिसकी मैं इतनी इज्ज़त करता था जिसके साथ मैंने ज़िन्दगी के इतने सपने देखे थे, जिसे मैंने खुद से ज्यादा चाहा था उसने मेरा साथ वो किया था जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी |

उस दिन से मेरी ज़िन्दगी में अलग सी मैचोरिटी आने लगी | इंसान जब हकीकत से रूबरू हो जाता है तो आगे का रास्ता उसको साफ़ दिखाई देने लगता है | मैंने भी अब ठान लिया था के मुझे पिछली बातों को भुला कर अपनी माँ और परिवार के लिए कुछ करना है | मैंने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया | दिन रात अब मैं पढ़ाई में लगा रहता | शॉप में भी सीरियस रहने लगा था | एक अलग सा बदलाव आ रहा था मेरे जीवन में | अब तूफ़ान थम चुका था और मैं लाइफ को ले कर बहुत गंभीर हो चुका था |

समय बीता .....मेरी जी तोड़ मेहनत रंग लाई | मैंने एस.एस.सी . का एग्जाम अच्छी रैंक के साथ क्लियर किया | मैं बहुत खुश था क्योंकि अब मैं अपनी माँ और परिवार को वो सब देने वाला था जिसके सपने मैंने बचपन में देखे थे | अब मेरे पास सब कुछ था | नाम, रुतबा, अच्छी नौकरी, पैसा और बाकी सब कुछ | सबसे बड़ी बात थी कि एक अरसे के बाद मैंने अपनी माँ को खुश देखा था | वो माँ जिसने पिताजी के जाने के बाद कितनी मुसीबतों से घर को संभाला था | कभी कभी सोचता था के अगर उस वक़्त मैं सुसाइड कर बैठता तो किसी का क्या जाता.. मेरी माँ और परिवार के सिवा ? मेरी माँ का क्या होता ? ऐसे सवाल सोच कर मेरा दिल दहल जाता था |

अब ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से दौड़ रही थी | मैं काफी व्यस्त रहता था | फेसबुक जो पहले मेरे लिए बहुत ज़रूरी बन गयी थी वो अब बस एक अकाउंट मात्र रह गयी क्योंकि मेरे पास अब उतना वक़्त नहीं होता था और न कोई वजह जिसके लिए मैं ऑनलाइन आऊं | हालांकि मेरी प्रोफाइल में कुछ बदलाव आ गया था | राजीव सक्सेना वर्क्स ऐट स्वामी चाट से हो गया था-

राजीव सक्सेना वर्क्स ऐट इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ‘ ...

दिन काफी थकान वाले होने लगे | मीटिंग्स और सर्वे और अन्य कार्यक्रम में इतना व्यस्त रहने लगा था और ये व्यस्तता मुझे इतना सुकून देती थी कि देर रात तक बैठा कुछ ना कुछ ऑफिस का काम करता रहता था | नींद आसानी से आती नहीं थी और कई बार अचानक देर रात में खुल भी जाती थी | यूँ ही एक रात 2 बजे आँख खुल गयी | टेबल पर रखा पानी का गिलास मैं एक सांस में गटक गया | लेकिन फिन नींद नहीं आई | जाने क्या मन में आया मैंने अपना मोबाइल निकाला और

अपना फेसबुक अकाउंट ओपन किया | कुछ लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट पेंडिग पड़ीं थी | एक ऐसी ही फ्रेंड रिक्वेस्ट पर मेरी नज़र पड़ी| लिखा था

मानसी तोमर वांट्स टू बी योर फ्रेंड !

मैं काफ़ी देर तक उस नाम को देखता रहा | प्रोफाइल चेक किया जो उसी का था | कमरे से बाहर बालकॉनी में आया | मैं अनायास ही हंसने लगा फिर बरबस आँखों से आंसू निकलने लगे जो एक अरसे बाद निकले थे | रात गहरी हो चली थी | यूँ तो कई बार रातों में मैं बालकॉनी में आ कर गलियों को निहारा करता था पर आज गलियों में एक अजीब सा सुकून था .........||

**समाप्त**

अगर आपको मेरी ये कहानी पसंद आई हो और आप मेरी अन्य कहानियों और कविताओं को पढ़ना चाहते हैं या आप कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपके विचार सादर आमंत्रित है |

मुकेश जोशी