देवों की घाटी - 14 BALRAM AGARWAL द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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देवों की घाटी - 14

… खण्ड-13 से आगे

‘‘गढ़वाल घाटी के कई इलाकों में बादल फटा। चारों तरफ तबाही मच गई। केदारनाथ घाटी में कई हजार लोग मारे गए। भ्यूंडार और घंघरिया जैसे कितने ही गाँव हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो गए।’’

‘‘और उनके बाशिंदे?’’ अल्ताफ ने पुनः पूछा।

‘‘कुछ बाढ़ में बह गए, कुछ बच गए।’’ दादा जी ने बताया, ‘‘बचे हुए लोगों को राज्य सरकार अब नई जगहों पर बसा रही है।’’

‘‘फूलों की घाटी समुद्रतल से कितनी ऊँचाई पर होगी दादा जी?’’ दादा जी की उदासी को दूर करने की दृष्टि से मणिका ने पूछा।

‘‘होगी करीब दस हज़ार फुट की ऊँचाई पर।’’

‘‘उससे ऊपर भी कोई जगह है?’’

‘‘हाँ है...’’ दादा जी बोले, ‘‘और वह भी संसारभर में प्रसिद्ध है—हेमकुण्ट साहिब, सिख भाइयों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ। यह करीब तेरह हजार फुट की ऊँचाई पर बना है। पहले इस जगह का नाम हेमकुण्ट लोकपाल था। लोकपाल यानी भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी ने यहाँ तपस्या की थी। सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं द्वारा लिखित ‘विचित्र नाटक’ में एक स्थान पर कहते हैं कि सप्तशृंग नाम की पर्वत श्रेणियों के बीच हेमकुण्ट नाम की पर्वत चोटी पर किसी समय में उन्होंने तप किया था। बाद में इसी आधार पर सिखों ने गुरुदेव की याद में यहाँ पर गुरुद्वारा बना दिया। तभी से इस ‘चट्टीघाट’ का नाम भी ‘गोविंदघाट’ पड़ गया।’’

बदरीनाथ या हेमकुण्ट साहिब की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री गोविंदघाट के श्रीराम मन्दिर में मत्था टेकने के बहाने कुछ देर आराम कर लेते हैं। वे आराम करते हैं तो उनकी गाड़ियों के इंजनों को भी कुछ देर आराम मिल जाता है। लम्बी दूरी तय करने वाले ड्राइवर गाड़ी के इंजन की सेहत का उतना ही ध्यान रखते हैं जितना कि अपनी खुद की सेहत का। सुरक्षित यात्रा के लिए यह बहुत जरूरी है कि गाड़ी और उसके इंजन की सेहत का पूरा ध्यान रखा जाय।

बाबा नन्दा सिंह चौहान

‘‘हेमकुण्ट साहिब में सर्वधर्म समभाव की भावना को सिद्ध करने वाले एक सच के बारे में आप सब को बताता हूँ—’’ दादा जी आगे बोले, ‘‘अभी-अभी पुलना भ्यूंडार के भगत सिंह चौहान का जिक्र किया था न!’’

‘‘जी।’’ सुधाकर ने कहा।

‘‘उनके पिताजी थे—श्री नन्दा सिंह चौहान। उन्नीस सौ छियासी में मैंने एक बार उनको देखा था। केदारनाथ यात्रा के उद्देश्य से वे भगत सिंह चौहान के पास नेग्वाड़ में आकर रुके थे। गुरवाणी उन्हें जुबानी याद थी। वे रोजाना गुरु नानक देव जी द्वारा लिखित टीका का पाठ करते थे। उन्होंने सनातन धर्मी होने के बावजूद करीब 18 वर्षों तक मुख्य ग्रंथी के तौर पर गुरद्वारा हेमकुण्ट साहिब की सेवा की। उसके बाद घंघरिया के गुरद्वारा गोविंद धाम में पधारने वाले तीर्थ यात्रियों की संगत के सामने हेमकुण्ट साहिब की खोज से जुड़े इतिहास पर प्रवचन देने लगे थे।’’

‘‘यह तो आपने वाकई आश्चर्यजनक बात बताई बाबू जी।’’ सुधाकर ने कहा।

‘‘बेटे, साम्प्रदायिक सोच को धर्म नहीं, धर्म से जुड़ी राजनीति जन्म देती है। धर्म तो समानता और बराबरी का सन्देश देता है।’’ दादा जी बोले, ‘‘संगत के लोग उन्हें बड़ा सम्मान देते थे और ‘बाबा नन्दा सिंह चौहान’ के नाम से पुकारते थे।’’

इस तरह बातें करते हुए आराम करने के बाद जब सभी टैक्सी में आ बैठे तो अल्ताफ ने उसे स्टार्ट कर दिया। सभी लोग गोविंदघाट की सुन्दरता का आस्वाद मन ही मन ले रहे थे, इसीलिए चुप थे। अल्ताफ तो रहता ही अक्सर चुप था, सो वह टैक्सी चलाता रहा। कुछ ही देर में टैक्सी को उसने पाण्डुकेश्वर के निकट पहुँचा दिया।

पंचकेदार और पंचबदरी

‘‘सुनो,’’ दादा जी अचानक बोले, ‘‘मैंने उत्तराखण्ड के प्रयाग यानी संगम तुमको गिनाए थे न।’’

‘‘जी।’’

‘‘उनमें पाँच उत्तराखण्ड के प्रमुख प्रयाग कहलाते हैं। उसी तरह केदारनाथ और बदरीनाथ की भी पाँच-पाँच शाखाएँ हैं जिन्हें पंचकेदार और पंचबदरी के नाम से जाना जाता है। आगे, पंचबदरी में से एक, पाण्डुकेश्वर आने वाला है।’’

‘‘आप उन सभी के नाम बताइए न!’’ मणिका बोली।

‘‘ठीक है। सुनो, पहले मैं तुमको पंचकेदार के नाम गिनाता हूँ। पहला, केदारनाथ तो प्रमुख है ही। दूसरा, मध्यमहेश्वर। यह केदारनाथ जाने वाले रास्ते में कालीमठ नाम की जगह के पास पड़ता है। तीसरा, तुंगनाथ। यह गोपेश्वर-ऊखीमठ मार्ग पर चौपता के पास पड़ता है। चौथा, रुद्रनाथ। यह भी उसी मार्ग पर गोपेश्वर से करीब बारह किलोमीटर दूर मण्डलचट्टी गाँव से पैदल मार्ग पर बीस-पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर बड़े मनोहर स्थान पर स्थित है; और पाँचवाँ कल्पेश्वर। पैदल यात्रा कर सकने वाले साहसी लोग रुद्रनाथ से ही उरगम घाटी में स्थित कल्पेश्वर केदारनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं।’’

‘‘अब पंचबदरियों के नाम गिनवाइए बाबूजी।’’ इस बार ममता बोली।

‘‘सुनो—बदरीनाथ, आदि बदरी, भविष्य बदरी, योगध्यान बदरी और वृद्ध बदरी; ये पाँचों पंचबदरी कहलाते हैं। धार्मिक लोग, विशेष रूप से संन्यासी, इन पाँचों ही बदरी स्थानों के दर्शन करके अपने ज्ञान, अनुभव और तप को सार्थक करते हैं।’’

सुखी परिवार

टैक्सी के पाण्डुकेश्वर की सीमा में प्रवेश करते ही दादा जी ने पुनः उसी के बारे में बताना शुरू कर दिया, ‘‘हस्तिनापुर के राजा पाण्डु एक शाप के कारण अपना सारा राज्य अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र को सौंपकर वन को चले गए थे और अपने अन्तिम दिन उन्होंने वन में ही गुज़ारे थे। अपनी दोनों पत्नियों—कुन्ती और माद्री के साथ। कहते हैं कि वह इसी क्षेत्र में आकर रहे थे जिससे इस समय हमारी टैक्सी गुजर रही है।’’

‘‘हमारी टैक्सी इस समय किस क्षेत्र से गुजर रहे हैं बाबूजी?’’ ममता ने पूछा; और इससे पहले कि दादा जी उसके सवाल का जवाब दें, सुधाकर बोल उठा, ‘‘पाण्डुकेश्वर से।’’

‘‘अरे वाह! आपको कैसे पता चला डैडी?’’ निक्की ने आश्चर्यपूर्वक पूछा।

‘‘भाई बचपन में अम्मा और बाबूजी के साथ आखिर मैं भी रहा हूँ इस इलाके में। सब-कुछ थोड़े ही भूल गया हूँ।’’ सुधाकर ने बड़बोले अन्दाज़ में कहा।

‘‘आ...ऽ...हा-हा-हा, बाहर लगे लैण्डमार्क को पढ़कर इस जगह का नाम बता दिया तो ‘जानकार’ बन बैठे!’’ तुरन्त ही उनकी बात को काटते हुए ममता बोली, ‘‘आप खिड़की के सहारे वाली सीट छोड़कर जरा उधर बैठिए, पीछे वाली सीट पर। तब देखती हूँ कि इस इलाके के बारे में कितनी अच्छी जानकारी अभी भी बाकी है जनाब के भेजे में।’’

‘‘लो यार,’’ सुधाकर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोले, ‘‘न घर में कुछ बोलने देती है न बाहर। कैसी लड़की से आपने मेरी शादी करा दी है बाबू जी? हर समय पति की इज़्ज़त का फलूदा बनाने पर तुली रहती है!’’

बाबू जी ही नहीं, अल्ताफ भी उनके इस अभिनय पर मुस्करा दिया।

‘‘मुझे नहीं बैठना इसके पास।’’ अपनी सीट से उठकर खड़े होने की कोशिश करते वह बोले, ‘‘इधर आप आ बैठिए।’’

‘‘दादा जी कैसे उधर बैठ सकते हैं डैडी?’’ उनकी एक्टिंग को वास्तविकता मानकर मणिका घबराए स्वर में बोली।

‘‘वैसे ही बैठ सकते हैं जैसे मैं बैठा हूँ। वो मुझसे ज्यादा मोटे हैं क्या?’’

‘‘बात मोटे या दुबले होने की नहीं है डैडी,’’ मणिका ने समझाते हुए कहा, ‘‘आपके इधर आ जाने और दादा जी के उधर चले जाने से हमारा तो कॉम्बीनेशन ही बिगड़ जाएगा।’’

‘‘कैसा कॉम्बीनेशन ?’’ सुधाकर ने पूछा।

‘‘वो ऐसा कि यहाँ, पीछे तो हम और दादा जी आमने-सामने की सीटों पर बैठे हैं, जैसे कि सुनाने वाले और सुनने वाले को वास्तव में बैठना चाहिए। वो सुना रहे हैं और हम सुन रहे हैं। दादा जी की जगह आप आ बैठे तो आप इतना कुछ बताने से रहे...और दादा जी को हमसे बातें करने के लिए बार-बार पीछे को गरदन घुमानी पड़ेगी। उस तरह तो बात करने का सारा मज़ा ही खत्म हो जाएगा न।’’

‘‘यानी कि मैं यहीं बैठा रहूँ?’’

‘‘जी।’’

‘‘ठीक है।’’ सुधाकर ने ऐसे कहा जैसे वहाँ बैठने को उसे मजबूर किया जा रहा हो, और सामने की ओर मुँह करके पहले की तरह अपनी सीट पर बैठ गया।

‘‘हाँ, तो क्या बता रहा था मैं?’’ वह सीधा बैठा तो दादा जी ने बात का सिलसिला जारी रखने की दृष्टि से पूछा।

‘‘आप नहीं बता रहे थे बल्कि बच्चे आपसे पूछ रहे थे कि जिस क्षेत्र में हम प्रवेश कर रहे हैं, उसका नाम क्या है?’’ सुधाकर उनकी बात पर बोले, ‘‘सो तो मैंने बता ही दिया कि हम पाण्डुकेश्वर क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं। अब आप आगे बताइए।’’

‘‘आगे भी आप ही बता दीजिए स्वामी!’’ सुधाकर की बात सुनकर ममता ने हाथ जोड़कर विनयभरे अन्दाज़ में मुस्कराते हुए कहा।

‘‘स्वामी लोग सिर्फ शुरुआत करते हैं बालिके!’’ सुधाकर प्रवचन करने वाले स्वामियों के अन्दाज़ में बोला, ‘‘मुख-कपाट बन्द करके अपने कर्ण-कपाटों को खोलो और पीछे से आनेवाली मनभावन कथा को ताज़ा हवा के झोकों की तरह मस्तिष्क में घुसने दो...हरिओ...ऽ...म!’’

उनका यह वाक्य समाप्त होते-न-होते अल्ताफ ने टैक्सी को पहाड़ की ओर किनारे पर लगाया और नीचे उतरकर जोर-जोर से हँसने लगा।

‘‘इसे क्या हुआ!’’ टैक्सी को एकाएक रोककर इस तरह हँसते हुए देखकर सुधाकर आश्चर्यपूर्वक बुदबुदाया। बच्चे भी मुँह बाए उसकी ओर देखते रह गए। कुछ देर तक हँस लेने के बाद अल्ताफ मुस्कराता हुआ-सा पुनः स्टेयरिंग पर आ बैठा और गाड़ी को स्टार्ट करने की कोशिश करने लगा।

‘‘क्या हुआ अल्ताफ?’’ सुधाकर ने भोलेपन के साथ पूछा, ‘‘कोई पुराना चुटकुला याद आ गया था क्या? अगर सुनाने लायक हो तो सुनाओ, हम भी हँस लें थोड़ी देर।’’

अल्ताफ कुछ न बोला। स्टेयरिंग से हटा और दोबारा हँसने लगा पेट पकड़कर। जब सामान्य हो गया तब आकर अपनी सीट पर बैठ गया। बोला, ‘‘आप भी, इतनी सीरियस कॉमेडी करते हैं सर, कि मुझे अपनी हँसी पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है कभी-कभी।’’

‘‘मैंने तो कोई कॉमेडी नहीं की।’’ सुधाकर बोला, ‘‘सीधी-सादी बातें कर रहा हूँ यार, और तू इसे कॉमेडी कह रहा है!’’

‘‘यह कॉमेडी तो हमारे घर में चौबीसों घण्टे चलती रहती है अल्ताफ।’’ पीछे बैठे दादा जी उससे बोले, ‘‘रिश्तों और बातों को हम बोझ की तरह सिर पर लादकर नहीं घूमते, मज़ा लेते हैं उनका।’’

‘‘मैं पिछले पन्द्रह साल से टैक्सी चला रहा हूँ बाबा जी।’’ टैक्सी को स्टार्ट करते हुए अल्ताफ बोला, ‘‘एक से एक नकचढ़ी फैमिली को झेला है मैंने; लेकिन आपकी जैसी खुले दिमाग वाली फैमिली के साथ इतने सालों में पहली ही बार सफर कर रहा हूँ। आप लोगों के बीच आपस में इज्ज़त का जज़्बा भी है और बात कहने-झेलने का सलीका भी।’’

‘‘भई, कहने-झेलने का सलीका पनपाना पड़ता है परिवार में। जब तक हम खुद कहना-झेलना नहीं सीखेंगे, बच्चे कैसे सीखेंगे?’’ दादा जी ने कहा।

‘‘सो तो है,’’ अल्ताफ बोला, ‘‘लेकिन एक बात आपको माननी पड़ेगी, कि सर जी जैसे मान-सम्मान देने वाले बहू-बेटे आज के समय में हर बुजुर्ग को नसीब नहीं हैं।...आप लकी हैं बाबा जी।’’

‘‘तेरा मतलब है कि अकेला मैं ही लकी हूँ!’’ दादा जी तुनककर बोले, ‘‘ये लोग लकी नहीं हैं जिन्हें मुझ-जैसा सहनशील बाप मिला है?’’

‘‘लो सुन लो...’’ सुधाकर तपाक-से बोला, ‘‘अल्ताफ, जब से होश सँभाला है, शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो जिसकी शुरुआत इन्होंने मुझे ‘बुद्धू’ कहकर और मैंने इनके चरण छूकर न की हो। अब तू ही बता कि सहनशील ये हुए कि मैं?’’

‘‘अरे आप दोनों ही बहुत लकी हो सर जी!’’ अल्ताफ इस बार भावुक स्वर में बोला, ‘‘और आप दोनों से ज्यादा लकी मैं हूँ, जिसे टैक्सी ड्राइवर के तौर पर ही सही, आपके साथ रहने का एक मौका मिल रहा है।’’

‘‘अब हँसते-हँसते तू रोने वाले रोल में मत आ यार।’’ सुधाकर बोला, ‘‘बाबू जी ने हमें यह सिखाया है कि टेंशन वाली चीजों को चुप रहकर पीछे सरकाते रहो, बड़ों की इज्जत करो और बच्चों को प्यार दो।’’

‘‘...और बराबर वालों को?’’ ममता ने पूछा।

‘‘बराबर वालों के लिए दुआ करो कि हे ईश्वर! इनकी सेहत ठीक रख और इनके हाथों को मजबूती दे ताकि किसी के सिर और पैर दबाते हुए वे जल्दी थक न जाएँ।’’ सुधाकर ने गम्भीर स्वर में कहा तो ममता ने अपनी बायीं कोहनी उनके पेट में दे मारी।

‘‘उई बाबूजी!’’ सुधाकर के मुँह से निकला।

‘‘उई बाबूजी नहीं, शुक्रिया भगवान बोल।’’ दादा जी ने कहा।

‘‘अरे, कितने जोर से पेट में कोहनी मारी है इसने!’’ सुधाकर ने रुआँसी आवाज बनाकर कहा, ‘‘शुक्रिया किस बात का?’’

‘‘शुक्रिया इस बात का कि ऊपर वाले ने तेरी दुआ इतनी जल्दी सुन ली। अभी कोहनी तक पहुँची है ताकत, शाम होते-होते हाथों तक जरूर पहुँच जाएगी।’’

उन तीनों की इस शरारत भरी बातचीत पर अल्ताफ होठों ही होठों में मुस्करा दिया। उसने तो पहली बार ऐसा परिवार देखा था जिसमें बड़े ही नहीं, बच्चे और बेटा-बहू भी बेतकल्लुफ हों।

‘इस हँसी-दिल्लगी को सबकी जिन्दगी में बरकरार रख मेरे अल्लाह!’ उसने मन ही मन दुआ पढ़ी।

खण्ड-15 में जारी……