आइना सच नही बोलता
भाग २८
लेखिका कविता वर्मा
सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया
वह रात बहुत भारी थी नंदिनी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। आज वह फिर खुद को बेहद अकेला महसूस करने लगी। चिराग की मदद के सहारे ही तो शायद वह इतनी हिम्मत कर सकी थी और अब जब उसने इतनी बड़ी जिम्मेदारी सिर पर ले ली वह जा रहा है। कैसे करेगी वह यह सब अकेली ?
नंदिनी घबरा कर उठ बैठी गला भरा भरा सा लगा साँस अटकती हुई सी महसूस हुई आँखों से आँसू ढुलकने लगे। एक बार फिर सब कुछ निस्सार सा लगने लगा। क्या करूँ सब बंद कर दूँ ? माँ ठीक ही कहती थीं कमाना बिजनेस करना सब औरतों के बस का ना है उन्हें तो घर की चाहरदीवारी के अंदर ही रहना चाहिए। नहीं नहीं मैं ऐसे हार नहीं मान सकती कुछ तो करना ही होगा अब यह काम सिर्फ मेरा नहीं है।
नंदिनी की आँखों में काम मिलने की उम्मीद में आई उन औरतों के मायूस चेहरे घूम गये। इस समय तो उसे खुद को सहारे की जरूरत है मजबूत बॉहों के सहारे की दीपक के साथ की।
इस विचार ने अचानक उसके मन में एक तीखी लहर पैदा की नफरत की या वितृष्णा की वह समझ नहीं सकी। क्यों वह अभी तक दीपक की आस मन से लगाए है ? वह तो शायद उसे कभी याद भी नहीं करता होगा फिर वह क्यों नहीं उसे अपने दिमाग से निकाल देती ? दीपक अगर होता भी तो उसकी इस स्थिति पर उसे अपमानित करने का मौका नहीं चूकता। वह तो उसमे बची खुशी हिम्मत को भी तोड़ देता। वही तो वह हमेशा करता रहा। शायद इसलिए ताकि जब वह उसे छोड़ कर जाये नंदिनी प्रतिवाद ना कर सके। अपने अधिकार के लिए लड़ ना सके। ओह्ह तो इसलिए वह हमेशा उसे झिड़कता रहा।
संसार की हर वह स्त्री जिसे नीचा दिखाया जाता है अपमानित किया जाता है वह उसका मनोबल तोड़ने के लिए होता है ताकि वह अपने अधिकारों के लिए खड़ी ना हो सके। मर्दों को उनकी गलतियाँ ना बता सके उनके सामने बोल ना सके। रात के अँधेरे में खुद की असहायता ने उसे एक बहुत बड़े सच की रौशनी दिखाई। उसे दीपक का वह सौम्य और स्नेहिल रूप भी याद आया और कटु रूप भी।
उसके साथ उसे याद आया उसकी विदाई पर पापा के दो शब्दों का इंतज़ार उन शब्दों का जो उसके लिए सबसे बड़ा सहारा होते। लेकिन सुनने मिले पापा के वो दिल चीरने वाले बोल "अब वो आपकी बहू है। " तो क्या अब वह वाकई उनकी बेटी नहीं रह गई ? और भाई वह तो उसकी विदाई में फूट फूट कर रोया था क्या उसे भी कभी उसकी याद आती होगी ? कभी उसकी चिंता होती होगी ? या पापा और भैया भी पुरुषवादी सोच के तहत उसे अकेला कर उसकी हिम्मत तोडना चाहते हैं। क्या पिता और भाई भी ऐसा कर सकते हैं ? क्या पता हैं तो वो भी पुरुष ही।
एक गहरी निःश्वास लेकर नंदिनी उठी पानी पिया और खिड़की के पास खड़ी हो गई। हवेली के बाहर बड़े से लॉन में श्वेत शीतल चाँदनी बिखरी हुई थी। दूर कहीं चकोर विरही स्वर में विलाप कर रही थी। आवाज़ के दर्द और चाँदनी में खोते नंदिनी की आँखों के आगे कुछ चित्र उभरने लगे। साइड मिरर में उसे देखते, रुमाल को वापस अपनी जेब में रखते , दोस्ती तो है कहते कुछ अक्स जिन्होंने उसके होंठों पर मुस्कान ला दी। कुछ ही समय अंतराल में दो अलग अलग तरह के पुरुष रूप।
अगला दिन बेहद व्यस्तता भरा था। आज अमिता ने सुबह से सारी जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली थी। आने वाली औरतें भी हैरान थीं लेकिन जब उन्हें काम की गंभीरता समझ आई तो वे चुपचाप अमिता की बताई जगह पर बैठ गईं। रमा ने पहली बार उन्हें अपने हाथ से काम पकड़ाया दिन भर में कितना काम करना है बताया और वह इतनी रोमांचित हुई कि अपने आँसू नहीं रोक पाई। जीवन में पहली बार आदेश सुनने के बजाय देना उसे उसके अस्तित्व का बोध करवा गया। नंदिनी के लिए निकले आशीष में इस काम की सफलता में जी जान लगा देने का प्रण भी था।
चिराग के साथ बैठ नंदिनी ने बहुत सारी जानकारी अपनी डायरी में नोट की। अलग अलग कार्ड पिन से लगाये। बने हुए सामान को कैसे पैक करना है भिजवाना है यह सीखा। होलसेल के डीलर से कैसे बात करना है सामान मँगवाने के लिये कितने दिन का मार्जिन रखना है किस चीज़ की इमरजेंसी बताना और किस के लिए ज्यादा टाइम लेना यह समझा। चिराग समझाता जा रहा था और नंदिनी हैरान सी सुनती और हाँ हूँ करती जा रही थी। कितनी सारी चीज़ें है कितने सारे तरीके। चिराग ने सारी रात बैठ कर लिस्ट बनाई होगी क्या क्या समझाना है। नंदिनी की हँसी छूट गई तो चिराग एकदम चुप हो उसे देखने लगा।
"मैंने कोई जोक सुनाया क्या ?"
"नहीं नहीं वो मैं कुछ सोच रही थी " नंदिनी ने बात बनाई लेकिन उसकी हँसी फिर भी नहीं रुकी तो उसने कह ही दिया "आपने रात भर बैठ कर लिस्ट बनाई है क्या क्या सिखाना है मुझे ?"
यह सुनकर चिराग भी अपनी हँसी नहीं रोक पाया हँसते हुए बोला " हाँ जी मैं चिंता में सारी रात नहीं सोया और आपको मजाक लग रहा है। "
डायरेक्टर मैडम की साड़ी तैयार थी चिराग ने उसका महीन मुआयना किया अपने सामने उसे पैक करवाया और कहा वह कल पहले दिल्ली जायेगा और यह साड़ी खुद मैडम को दे आएगा जिससे दिल्ली मेले में स्टाल की बात भी कर सके। नंदिनी यह सुन कर सकुचा गई "आपको लगता है मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठा पाऊँगी ?"
"क्यों नहीं उठा पायेंगी और अब तक और कौन उठा रहा है ये सारी जिम्मेदारियाँ ? बाहर के काम सिर्फ तीस प्रतिशत होते हैं बाकि सत्तर प्रतिशत काम तो आप ही कर रही हैं और आगे भी कर लेंगी। हाँ अब काम करने वाली औरतों में से लीडर तैयार करो कुछ काम उनके सुपुर्द करो ताकि फोन पर बात करने अकाउंट देखने जैसे काम के लिए आपको समय मिले।"
ऐसा ही कुछ तो कल रात अमिता नंदिनी और रमा ने तय किया था। मतलब करते करते मैं सीख रही हूँ। नंदिनी मुस्कुरा दी।
नंदिनी ने माँ को फोन लगाया तो उसकी आवाज़ सुन कर वह रो पड़ी। "कैसी है मेरी बिटिया हम गुनाहगार हैं तुम्हारे जो ऐसी विकट घडी में तुम्हे अकेले छोड़ दिया। "
" माँ फोन तो कर सकती थीं। " ना चाहते भी शिकायत फूट पड़ी।
"किस मुँह से करते बेटा? पर सच मानों कोई दिन कोई घडी ऐसी नहीं जाती जब तुम्हे याद ना करते होयें।"
"पापा कैसे हैं ? वो भी कभी याद करते हैं ?"
"मुँह से नहीं कहते लेकिन तुम्हारी पूरी खोज खबर रखते हैं। कभी कभी तुम्हारा नाम लेकर आवाज़ लगा बैठते हैं। पुरुष हठ है लेकिन दिल तो बाप का ही है। "
हँस दी नंदिनी ये कैसा पुरुष हठ। माँ ने बताया भाई भाभी के बीच बहुत दूरी आ गई है अब तो दोनों एक दूसरे से बात भी नहीं करते। साक्षी मायके जाने का कह रही है। मैं कैसे रोकूँ समझ नहीं आ रहा मायके जा कर रहना कोई असं नही होता | कोई इज्ज़त नही मिलती भाई बंधू रिश्ते नाते सबको जवाबदेही बन जाती हैं | दोनों तरफ की इज्ज़त पर आंच आ जाती हैं यह बात साक्षी को समझ नही आरही |
और अब तेरी सहेली सुनीता है ना उसको ही देखो उसकी तो बहुत बुरी हालत है। माँ बापनही रहे पति गुजर गया और भाई भाभी उसे बोझ समझते हैं दिन भर नोकरों जैसा काम करती है और भाभी की जली कटी सुनती है। सूख कर काँटा हो गई है। विधवा होना गुनाह बन गया \\ कहने को तो माँ कह गयी लेकिन अपनी ही जीभ फिर दांत से काट ली .हाँ हम इसी डर से ही शायद नंदिनी को मायके नही ले गये | अभी तक सब रिश्तेदारों से बात छिपी हैं कि नंदिनी को दीपक ने त्याग दिया हैं और तलाकनामे पर हस्ताक्षर करके यही छोड़ गया हैं \\
"माँ अगर मैं सुनीता को यहाँ बुला लूँ तो ? मेरे साथ काम में हाथ बंटा देगी और सूखी रोटी भी इज्जत से तो खायेगी। "
" पागल है क्या जवान विधवा को घर में रखना सहज नहीं है। फिर तेरी सास भी मना कर देंगी। "
" अच्छा माँ आप भाभी को कुछ दिन यहाँ भेज दो मुझे सबकी बहुत याद आती है। मैं वहाँ नहीं आ सकती तो मायका तो यहाँ आ सकता है। मम्मी की चिंता मत करो मैं उनसे बात कर लूँगी।
"लेकिन तेरे पापा भाई मानेंगे साक्षी ननद के घर जाकर रहे। लोग क्या कहेंगे ?"
" कौन लोग माँ किसे फुरसत है देखने कहने की। कोई पूछे तो कह देना मायके गई है। यहाँ मैं कह दूँगी मिलने आई है। "
अमिता ने खुद ही समधन को फोन कर साक्षी को भेजने को कहा। सुनीता को बुलाने की बात पर एक बार तो अमिता भी चुप रह गई। जवान विधवा लड़की कल को कोई ऊंच नीच हो गई तो ?
"कैसी ऊंच नीच मम्मी वह घर में रहेगी जहाँ हम तीन औरतें हैं किसी को पता भी नहीं चलेगा।"
"और गाँव की औरतें ?"
"उनसे कह देंगे दूर के रिश्ते की बहन है।" नंदिनी ने पहली बार अमिता से किसी चीज़ की जिद की। सुनीता को चुपके से बुलाने की योजना तो बनी लेकिन किसी की मदद के बिना यह संभव नहीं था। नंदिनी ने जी कड़ा कर भाई से बात की। भैया उसे वहाँ से निकलने में मदद करो नहीं तो वह मर जाएगी। पता नहीं यह बहन के लिए प्यार था या वक्त की चोट खाया पुरुष, भाई ने सुनीता को नंदिनी तक पहुँचाने के लिये हाँ कर दी।
अपनों के बेगानेपन ने सुनीता की जीने की हिम्मत ही तोड़ दी थी। जब उसने बचे खुचे दिन कट ही जायेंगे का राग अलापा नंदिनी ने उसकी एक ना चलने दी। बचेखुचे नहीं अभी पूरी जिंदगी बची है। बस अब उस नरक में और नहीं रहना छोड़ दे सबको जो तेरे अपने हैं ही नहीं। सोचने दे सबको कि तू किसी के साथ भाग गई।
सुबह चार बजे हवेली के दरवाजे पर खटखटाहट हुई कोई देख पता किसके घर यह गाडी आई उसके पहले ही धूल उड़ाती वहाँ से चली गई। दोनों सहेलियाँ गले मिल फूट फूट कर रोईं। ना जाने कबसे इकठ्ठा हुए दुःख आँखों के रास्ते बह गये। सुनीता की हालत देख अमिता और रमा भी द्रवित हो गईं। ठीक ही किया जो इस लड़की को यहाँ बुला लिया वहाँ तो यह ज्यादा दिन जी भी नहीं पाती।
साक्षी के साथ माँ ने ढेर सारी सौगातें भिजवाईं सबके लिए साड़ियाँ दिवित के कपड़े खिलौने मिठाइयाँ बड़ी पापड़ नींबू आँवले का अचार नींबू नमक लगी सौंफ और भी ढेरों चटर पटर चीज़ें। साक्षी ने बताया माँ उसके लिए सब सामान बना बना कर रखती रही हैं कि कभी तो तुम आओगी या यहाँ से कोई जायेगा और जानती हो नंदिनी माँ सभी सामान लाने को पापा जी से ही कहतीं और वे बिना कुछ कहे बिना भूले शाम को सब मँगवा देते। नंदिनी की आँखें भर आईं उसने कमरे में जाकर पापा को फोन लगाया "हैलो पापा कैसे हैं आप ?" बिना किसी गिले शिकवे के दोनों के शिकवे और खेद धुल गये।
साक्षी को तो जैसे अपनी दुनिया ही मिल गई उसने तुरंत सबके साथ काम करना उसकी क्वालिटी का ध्यान रखना शुरू कर दिया। नंदिनी ने कुछ अकुशल कारीगरों को सिखाने का काम भी साक्षी को सौंप दिया। सुनीता अभी बेहद कमजोर थी सबके सामने आने का आत्मविश्वास भी उसमे नहीं था। कुछ दिन आराम करने का नंदिनी का प्रस्ताव भी उसने नहीं माना। वह नंदिनी की एहसानमंद थी लेकिन उसके ससुराल में रहने संकोच उसे उसके लिए कुछ करने को उकसा रहा था। वह नंदिनी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। उसने अंदर कमरे में बैठ कर सामान पैक करने का काम संभाल लिया। अमिता उसे चुपचाप देखती लेकिन उसके खाने पीने का ध्यान रखती।
घर में जैसे रौनक आ गई दिवित को भी एक दोस्त भाई मिल गया दोनों दिन भर खेलते खिलखिलाते। नंदिनी के पास भाई के फोन आते और बिना उनके कहे वह समझ जाती कि यह फोन भाभी के बारे में जानने के लिये हैं। वह भी बिना पूछे बताती कि भाभी अच्छी हैं यहाँ सबसे खूब काम करवा रही हैं मना करने पर भी नहीं मानती दिन भर काम करती हैं और शाम को जिद करके सबको गरमा गरम खाना खिलाती हैं। भाभी बहुत अच्छी हैं भैया वो सबका ध्यान रखती हैं बस उन्हें भी थोड़ा मान सम्मान ही चाहिए।
नंदिनी हिसाब किताब की कॉपी लेकर बैठी थी कई बार ऊँगलियों पर केलक्यूलेटर पर हिसाब लगाने के बाद सिर पर हाथ रख कर बैठ गई। उसकी आँखें भर आईं अमिता ने उसे परेशान देख कर उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा क्या हुआ ?
"माँ इतना सामान बनाया भिजवाया सबकी मजदूरी निकालने के बाद ज्यादा कुछ तो बचा ही नहीं। इसमें हमारा खर्च कैसे चलेगा ?
निवेश का प्रतिफल इतनी आसानी से कैसे मिल सकता हैं व्यापर के अपने रूल होते हैं कच्चे अनुभवहीन लेकिन हिम्मती हाथो ने हार ना मानने का संकल्प किया और एक सकारातमक सोच के साथ कॉपी बंद कर अलमारी में रख दी
दिवित ने ड्राइंग शीट पर आढी तिरछी रेखाए खीच कर माँ के सामने रख दी ..उन रेखाओं में खोजने लगी अमिता और नंदिनी भाविष्य की राहे .....
लेखिका
कविता वर्मा
सूत्रधार – नीलिमा शर्मा निविया