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आइना सच नहीं बोलता

आइना सच नही बोलता

भाग २७

लेखिका – प्रियंका पाण्डेय + कविता वर्मा

सूत्रधार –नीलिमा शर्मा निविया

कार के साथ चाँद भी सफर कर रहा था और उसके साथ साथ नंदिनी का मन भी जाने कितने उतार और चढावों से गुज़र रहा था। शादी से पहले की हर बात पर चहकती खुशमिजाज़ नंदिनी,दीपक के रूखे व्यवहार और धोखे से ठगी सी हतप्रभ भरी भरी आँखों वाली नंदिनी,दिवित की किलकारियों में सबकुछ भूलकर मातृत्व का गौरव सहेजने वाली नंदिनी,समय की अकस्मात करवट से असमय ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी नंदिनी और पिछले कुछ दिनों से एक अजनबी अपनापन महसूस करती पर ऊपर से कठोर बनी नंदिनी सबके बीच एक द्वंद सा चल रहा था।

वकालत करने का कच्चा सपना तो कब का शीशे की भांति टूट चुका था लेकिन अपने शौंक से भी उसको बहुत प्यार रहा था | अपने गुण अपनी कला को बड़े पैमाने पर दुनिया के सामने लाने के सपने तो नही देखे थे नंदिनी ने पर इस तरह यह शौंक एक दिन उसको जिन्दगी की राह दिखाएँगे ये कभी न सोचा था।

रिश्ते सहेजते सहेजते कब मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गये पता ही न चला। बन्द आँखों के सपने आज खुली आँखों में मोती बनकर साकार होने जा रहे थे | नंदिनी समझ ही नही पा रही थी वह इन सपनों के पूरा होने पर खुश हो या अपने खाली हाथों और बाकी दिशाहीन मायूस ज़िन्दगी को सहेजे।

चिराग इधर कुछ दिनों से जाने क्यों नंदिनी के प्रति एक अलग सा आकर्षण महसूस कर रहा था उसके मन में नंदिनी के लिए कुछ कोमल भाव पनप रहा था। उसके चुम्बकीय आकर्षण से बंधा हुआ जितना ही नंदिनी को समझने की कोशिश करता ,अल्पभाषी और गुमसुम सी रहने वाली नंदिनी उसे और भी रहस्यमयी लगने लगती।

विपरीत चुम्बकीय आकर्षण की तरह चिराग जितना ही नंदिनी से सामीप्य चाहता था नंदिनी उतनी ही तटस्थ और एक निश्चित दूरी बना लेती थी।चिराग उसे सामजिक बन्धन मानकर अपने दायरे में ही सीमित हो जाता था।

कार फिर वापसी में गंतव्य की ओर बढ़ती हुई हवा से बातें कर रही थी नंदिनी का मन चिराग से बेखबर नही था, पर उसका कोमल मन पर्त दर पर्त उधड़े सम्बन्धों पर पैबन्द टांकते ,छलनी हो होकर अब कठोर सा होता जा रहा था।

एक तरफ ढलता सूरज गहरी घनी रात थी तो दूसरी तरफ भोर की कोमल सुनहरी किरणें थीं जो उसका जहान रोशन करने को बेताब थीं। इन्हीं विचारों में उलझी नंदिनी को पता ही न चला कब घर आ गया और चौंक कर ख्यालों से नंदिनी सच्चाई की कड़वी जमीन पर आ गयी उसके सोचो के सफर पर विराम लग गया था।

सात फेरों के तमाम दायित्वों के साथ अपना पल्लू सहेजती नंदिनी तेजी से घर की सुरक्षित परिधि में गुम हो जाने को आतुर थी ,जहां नन्हा दिवित उसकी आस में टकटकी लगाए था और उसे देखते ही दादी की गोद से लपक कर उसकी गोद में कूद पड़ा। अमिता ने नंदिनी को देख दरवाज़े की तरफ बढ़कर चिराग को भी अंदर बुलाया और चाय के लिए आवाज़ देते हुए आतुरता से सारी बात पूछने लगी वहीँ नंदिनी अमिता की तबियत को लेकर पूरा दिन चिंतित रही थी पर उसे कुछ ठीक देखकर थोड़ा उसके मन को सुकून आया।

अमिता हर तरह से नंदिनी को सारे दुखों और भ्रम जाल पर विजय हासिल करके अपने लक्ष्य में सफल देखना चाहती थी। इसलिए जो कुछ भी बाजार में जो भी हुआ सबकुछ जान लेना चाहती थी नंदिनी के सपनों की राह का उसे भी साथी बनाना था मन ही मन बेटे की हरकतों से दुखी अमिता नंदिनी के संघर्षपूर्ण सफर में तन मन से साथ रहना चाहती थी।

दीपक के जाने के बाद उदास नंदिनी और चिराग की मदद से इस काम को अंजाम देने से जो चमक आज कल उदास नंदिनी के चेहरे पर दिखाई दे रही थी उससे अमिता मन भीतर बहुत खुशी महसूस कर रही थी।

चिराग अमिता को सारी बातें इतनी सूक्ष्मता से बता रहा था कि रमा और नंदिनी एकटक उसे देख रही थी | उसके कल आने की बात कहकर चले जाने पर इधेर अमिता और रमा ने सुख की गहरी साँस ली उधर नंदिनी इस बड़े ऑर्डर को पूरा करने और काम में एकबार हाथ डालकर गुणवत्ता कायम रखते हुए उसे कैसे और आगे बढ़ाते रहना है इसी जोड़तोड़ में खो गयी।

बेटे के पलायन और पति के देहावसान से टूटी सास को देख कर नंदिनी में हिम्मत आ रही थी | दिवित के साथ साथ सभी की जिम्मेदारियां उठाते हुए काम भी सम्हालना मुश्किल तो था पर उसके हौसलों के आगे सब क्षीण थे।इसी उधेड़बुन में कब नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया पता ही नही चला।

अगली सुबह नंदिनी के लिए एक नई सुबह बनकर आयी थी ,उसे डिज़ाइनों की रूपरेखा बनानी थी ऑर्डर पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी थी और अपनी सहयोगी महिलाओं के साथ एक टीम बनाकर विमर्श करना था जो उसके निर्देश पर उसके सपनों को चार चाँद लगा सकें मन के विस्तृत चादर पर साकार सपनों के बेल बूटे टाँकने में मदद कर सकें।

जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे थे नंदिनी अपने काम में और भी मसरूफ होती जा रही थी। सुबह जल्दी उठ रमा चाची के सहयोग से किचन की व्यवस्था देख लेती। आठ बजे तक दिवित उठ जाता और अपने हाथों से उसे खिलाना दूध पिलाना नहलाना तैयार करना और तुतलाते हुए उससे बातें करना उसे जीवन के सबसे कीमती क्षण लगते।

एक जीतीजागती मनमोहक कलाकृति को अपने हाथों से आकार देना सुकून देने वाले पल लगते थे | इन्ही क्षणों में वह सोचती दिवित का उसके जीवन में होना दीपक का सबसे बड़ा एहसान है उस पर और उसे पिता का प्यार ना देना सबसे बड़ी क्रूरता।

सुबह 10 बजे सहयोगी महिलाओं के आने से पहले तक का समय सिर्फ उसका और दिवित का होता। इस समय में वह कभी उसकी माँ होती कभी अनुशासन सिखाती पिता। उसके बाद फिर शाम तक कपड़ों के रंग फूलों के डिजाइन धागों की मैचिंग सितारों का तालमेल इन्ही सब में डूब कर दिन कब खत्म होता पता ही नही चलता था।

नन्हा दिवित दादी माँ के लाड प्यार में ठुनकता मचलता खिलखिलाता | दिवित और उसकी बाल सुलभ शैतानियां देखकर अमिता भी सब भूल जाया करती थीं। नंदिनी को इस तरह मसरूफ देखकर अमिता के कलेजे में भी कुछ ठंडक आती थी और दीपक के द्वारा नंदिनी को दिए गए कष्ट के अपराधबोध से दबा मन कुछ हद तक हल्का सा महसूस हो उठता था कि नंदिनी एक लक्ष्य की तरफ बढ़ रही हैं ।

दोपहर में अमिता भी बैठक में काम करती महिलाओं के बीच आ बैठती और आने जाने वाली महिलाओं से मुस्कुरा कर हाल चाल पूछती रहती थी। हाँ दिवित की शैतानियां बताते हुए उनकी आँखों में अनोखी चमक आ जाती थी मानों जीवन की सम्पूर्ण धुरी उसपर ही टिकी हो और सच भी था पहाड़ से दुःख में बेवजह मुस्कुराने की वजह दिवित ही तो था।

अमिता ने रमा को भी काम की कुछ ज़िम्मेदारी सौंप दी इससे नंदिनी की मदद तो हो ही जाती थी उनका अपना और रमा का जीवन भी रंगबिरंगे धागे सलमा सितारों के बीच खिलखिलाने लगा था और समय भी निकल जाता था।

नंदिनी सुबह से शाम तक बोलती,सहेजती,सोचती,यंत्रवत चलती ही रहती थी लाल साडी जैसी साड़ी के अनेक आर्डर मिले थे लेकिन डायरेक्टर महोदया की साडी अब सबसे अलग ही रहे इसलिए उसने नए नमूनों के साथ उसके अनेक आर्डर पूरा करने में मनोयोग से लगी रहती |

काम में जुटी नंदिनी धागों के शेड्स और सितारों में खोकर अपनी अपूर्णता को पीछे छोड़ती जा रही थी।समय मानों पंख लगाकर उड़ता जा रहा था| अनगिनत सामान बनकर तैयार हो चुके थे किसी की फिनिशिंग, किसी की पैकिंग,उनकी गिनती करना सहेजना व्यस्तताएं बढ़ चुकी थीं।

काम के लिए गाँव की कई महिलाएं आने लगी थीं जिनमे कई तो ऐसी थीं जिन्होंने कभी घर से बाहर कदम तक न रखा था | अपनी पडोसी रिश्तेदार को स्वाबलंबन की राह पर बढ़ता देख उनके मन में भी खुद की पहचान बनाने और कुछ करने की उमंग जाग उठी।

चूँकि समर प्रताप जी के घर पर काम होता था जहाँ सिर्फ महिलाएं ही थीं इसलिए थोड़े मानमनोव्वल के बाद उन्होंने अपने परिवार को काम करने की अनुमति देने के लिए मना लिया था। ऐसी महिलाएं बड़ी उम्मीद से आतीं और नंदिनी के सामने बड़ा धर्म संकट खड़ा हो जाता।

वह खुद अपने लड़खड़ाते कदमों को सँभालने की कोशिश में थी ,ऐसे में थामे अनाड़ी हाथ कहीं उसके कदमों को ही ना उखाड़ दें। उन्हें सोच में डूबा देख उनकी आँखों में नाउम्मीदी के आँसू आ जाते जो नंदिनी को द्रवित कर देते। मैं देखती हूँ क्या कर सकती हूँ कह कर वह उनके उम्मीद की डोर छूटने तो नहीं देती पर फिर अपनी संभावनाओं को नए सिरे से तलाशने लगती।

सबके जाने के बाद अमिता रमा और नंदिनी एक साथ बैठीं और ऐसी महिलाओं को क्या काम दिया जा सकता है इस पर फिर से विचार करने लगीं। नंदिनी की बड़ी चिंता समय पर आर्डर पूरे करने की भी थी। अगर वह इन लोगों को सिखाने बैठी तो आर्डर कभी समय से पूरे नहीं होंगे।

शुरूआती झिझक के बाद अब महिलाएं काम के साथ हंसी मजाक मौज मस्ती में भी बहुत समय जाया कर रही थीं। उनमे कई उम्र में नंदिनी से काफी बड़ी थीं और गाँव के रिश्ते से जिठानी ननद या सास लगती थीं इसलिए नंदिनी उनसे कुछ कह नहीं पाती थी। उसने झिझकते हुए अमिता से यह बात कही और समय से काम पूरा ना होने पर आगे काम ना मिलने का अपना डर भी बताया।

"यह तो ठीक बात नहीं है " अमिता ने चिंतित हो कर कहा

"अब काम का बंटवारा कर दो उसके हिसाब से सबकी बैठक व्यवस्था भी अलग अलग करो। सबको सुबह ही बता देंगे कि उन्हें दिन भर में कितना काम करना है खाने पीने की कितनी देर की छुट्टी मिलेगी। तू चिंता मत कर अब मैं सब पर नज़र रखूँगी। जिस काम के पैसे मिले हैं उस काम की क़द्र तो करना पड़ेगी ना।"

"और नई औरतों का क्या करेंगे ?"

रमा चाची ने पूछा।

"चाची अभी तो इतनी औरतों को सिखाने का समय नहीं है

नंदिनी ने चिंतित मन से कहा

“बन चुके सामान की पैकिंग का काम भी साथ साथ करना है। कुछ सामान जो व्यक्तिगत भेजना है उसे भिजवाते जाएँ तो अच्छा है। अगर इनमे कुछ पढ़ी लिखी औरतें हैं तो उनमें से दो को रख लें वे पैकिंग कर पता लिख देंगी और एक बार लिस्ट से मिलान कर देंगी। फिर फाइनल लिस्ट से मैं मिलान कर दूँगी।"

" बात तो ठीक है बेटा पर तू देख ले कितना काम बाकि है कितना समय है नहीं तो और औरतें तैयार तो करना ही होंगी। "

अमिता ने चिंतित स्वर में कहा।

अचानक नंदिनी मानों हताश सी हो गई कैसे करेगी वह यह सब ? उसने कातर नज़रों से अमिता को देखा वे सब समझ गईं।

"अच्छा अब उठो मुँह हाथ धोवो खाना खाओ फिर रात में बैठते है सब हिसाब करेंगे।"

खाना परोसते हुए अमिता का मन हवा से भी तेज़ी से सब सोच रहा था .

नंदिनी के सफलता की तरफ बढ़ते कदमों के तले अब असफलता नहीं आना चाहिए नहीं तो यह बच्ची टूट जाएगी और फिर शायद कभी खड़ी ना हो सके। काम नया है लेकिन काम करवाना तो कोई नया काम नहीं है अमिता के लिए।

उसे याद आया चौधरी साहब के चुनाव के समय कैसी बड़ी बड़ी दावतों की जिम्मेदारी वह निभाती थी कितने चाकर भाई भतीजे रिश्तेदार सब उसी से तो हर काम पूछते थे और वही तो सबको साधती थी। खेती बाड़ी देवर की दीपक और दोनों बेटियों की शादी सबमें उसकी राय के बिना तो चौधरी जी भी कोई काम नहीं करते थे।

खाना खाकर नंदिनी ने फैले पड़े कागज समेटे ही थे कि दिवित ने पीछे से आकर उसकी चोटी पकड़ ली और मुँह से टक टक की आवाज़ निकालने लगा। नंदिनी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और तुरंत घुटनों के बल घोड़ा बन गई| रमा चाची ने दिवित को उसकी पीठ पर बैठा दिया और उसे पकड़े रही। दिवित का उसकी चोटी को लगाम की तरह हिलाना और “चल मेले घोले कहना” अमिता भी अपनी हँसी नहीं रोक पाई और पूरी हवेली ही खिलखिलाहट से गूँज गई।

अचानक ही दरवाजे पर चिराग को खड़ा देख नंदिनी सकुचा गई रमा ने जल्दी से दिवित को उतारा नंदिनी बैठो कहते अंदर चली गई लगभग भागते हुए।

चिराग आज गंभीर लग रहा था , दरवाज़े की ओट से उसने कान लगाकर सुनने की असफल कोशिश की लेकिन स्वर धीमा था | वह कमरे में आकर अचानक थम गयी क्युकी चिराग ने जो कहा वह सुन अमिता सुन्न सी हो गई। नंदिनी को एक बारगी लगा मानों बीच भंवर में फिर उसे अकेला छोड़ दिया गया हो लेकिन इस पर अब किसी का जोर नहीं था।

चिराग को पुणे जाना था उसकी बहुत बड़ी कंपनी में जॉब लगी थी जिसका उसे इंतजार था। इंतज़ार के इस समय में वह अपने पिताजी के संबंधों और नंदिनी के आकर्षण के चलते हाथ बंटाता रहा। सबको उदास देखकर चिराग ने हौसला बढ़ाते हुए कहा अब तो नंदिनी जी को सभी कुछ पता है जो थोड़ी बहुत बातें हैं वह कल दिन में आकर सब बता दूंगा। सामान के लिए दुकानदारों के स्टाकिस्टों के पते फोन नंबर भी लिखवा दूँगा। बाकि कोई दिक्कत हुई तो फोन पर बात कर लेंगे।

चिराग जानता था वह रुक नहीं सकता और यह भी जानता था कि नंदिनी को फिर नए सिरे से हौसला जुटाना पड़ेगा और जितनी देर वह वहाँ रुका पूरी कोशिश करता रहा।

जिन्दगी कब रूकती हैं वो अपनी चाल से चलती रहती है| कदम से कदम मिलाने के लिय हमें उसकी ताल पर थिरकना होता हैं | नंदिनी और अमिता ने जिन्दगी की ताल को अभी समझना शुरू किया ही था कि एक कठिन ताली बज उठी...समय की कठिन ताली जिसने बताना चाहा जिन्दगी कहरवा और दादरा जितनी आसन भी नही ....

लेखिका _

कविता वर्मा

प्रियंका पाण्डेय

सूत्रधार _ नीलिमा शर्मा निविया

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