वेल विशर
गतांक से आगे ....
'' वॉट इज़ दिस अमित ..फ्रॉम वन वीक वेयर आर यू ..नो मैसेज नो फ़ोन ? नाराज़ हो मुझसे ? बोलो न ...?" एक इल्तेज़ा सी थी आवाज़ में सोनिया की ।
''नो हनी ..नथिंग लाइक दैट...बस बिजी था । तुम सुनाओ ..एवरीथिंग ओके न ...?''
'' नो ..ऍम नोट ओके ...मिसिंग यू टू मच...आज बोर भी हो रही हूँ ...!"
'' क्यों अंशुम के साथ मूवी देख आओ ...शौपिंग जाओ ..बोरियत ख़त्म ! '' अमित ने तरीके बताने शुरू कर दिए । मानो अपनी पत्नी को तो मूवी दिखाकर या शौपिंग करवाकर दुनिया की सैर करवाकर खुश रखा हुआ है ।
''नो ...अंशुम को मूवी देखना अच्छा नहीं लगता ...कभी ६ मंथ्स में एक मूवी देखते हैं ..और शौपिंग में हमारे टेस्ट मिलते नहीं सो अपनी अपनी शौपिंग खुद ही कर लेते हैं ।" सोनिया ने अपनी मज़बूरी बताई !
'' ओह्ह ..पूअर गाइ....चलो मैं दिखा दूँ ? मैं तो पहले दिन पहले शो देखता हूँ ...चलो न बहुत दिन हो गए तुम्हें देखे हुए ...सोनू ..बोलो कब चलना है ?''अमित पूरी तैयारी के साथ बोला । जहाँ औरत ने अपनी मज़बूरी का ताना बाना बुना वहाँ मर्दो की फेक हमदर्दी उस ताने बाने को, उसकी जड़ो तक खोलने की कोशिश में लग जाते हैं । मर्दो की नज़र में भावुक, मजबूर और घर पति की उपेक्षित औरत तो सबसे पहले उनकी झोली में गिरती है ..। इसीलिए वो हर उस औरत को अपने वश में चुटकियों में कर लेते हैं ।ऐसे ही सोनिया लम्हा लम्हा अमित की तरफ बढ़ती गई ।एक एक पैंतरा एक एक शस्त्र बन जाता ...सोनिया के मन को ..वज़ूद को चीरता हुआ ...फिर से एक पैनी धार के लिए तैयार खड़ा हो जाता ! अमित की सोच की मशीन छूरी तेज़ करते हुए उठती चिंगरिओं की आदी थी और पैर अपने मंसूबों का तालमेल बिठाने में । छूरी को तेज़ किस हद तक करना है और अपने पैर का संतुलन बनाने का गुर उसे आता था । बस गलत सही के आवरण में ढकी छुपी ...दलीलों से बंधी नारी देह पर उस छूरी का इस्तेमाल होना बाकी था ।
मुलाकातों के इस दौर में फिर एक दिन शहर की पुरानी मार्किट से कुछ सामान लाने की ज़रूरत मिलने का बहाना बन गई । सोनिया को रास्ता मालूम न था वहाँ का..अंशुम का व्यस्त होना एक खूबसूरत संयोजन बन गया । अमित से रास्ता पुछा तो उसने झट से खुद ले जाने का ऑफर दिया जिसे सोनिया ने स्वीकार कर लिया ।मन वैसे ही व्याकुल अधीर सा हर मुलाकात के बाद अगली मुलाकात के लिए मौके की तलाश में रहता । आज फिर मौका मिला मानो हसरतों को पंख लग गए ।
सामान खरीद कर दोनों ने कुछ ठंडा पीने के लिए कहीं कार रोकी गई ।
पेप्सी पीते हुए अमित को अपनी तरफ देखते हुए सोनिया ने पूछा...''ऐसे क्या देख रहे हो ?''
''देखने की चीज़ ही तो देख रहा हूँ ..साथ ही सोच रहा हूँ..जहाँ सुंदरता के पुजारी होते हैं वहाँ सुन्दर मूर्ति नहीं और जहाँ मूर्ति है वहाँ किसी को मूर्ति निहारने का वक़्त नहीं ..यार ..अंशुम लकी है इस मामले में ...!"
''क्या मतलब तुम्हारा ...?'' कुछ समझी कुछ नहीं सोनिया ।
'' यार बात ये है कि अंशुम को बहुत ही सुंदर..कीमती चीज़ मिल गई है बस उसने उसको सजा कर रखा है ..यू आर जस्ट लाइक ऐ मेनिकुईन....इन ऐ शोकेस ...वेयर योर हस्बैंड सेज़ "शी इज़ माइ वाइ वाईफ !"
"एक्चुअली...सोनिया .. यू आर जस्ट अ स्टेटस ...फॉर हिम..नथिंग एल्स .. !" बड़े ही अप्रत्यक्ष ढंग से अपनी बात बता दी अंशुम की और कटाक्ष करते हुए ।
अंदर तक तिलमिला गई सोनिया सुनकर ...''अच्छा ..! तो ...तुम क्या हो फिर ?''
''...हे ..आई बिलीव इन विंडो शौपिंग ....शोकेस में खड़ी मेनिकुइन हो या उस पर सजे कोई कपडे या जेवलरी ..बस गौर से देखते हैं ...देखने में क्या जाता है ...कहीं कहीं शोकेस खुला हो तो छू कर भी देख लेते हैं ..। लेकिन सच पूछो तो शो केस में पड़ी चीज़े कॉमन सी लगती है । हर कोई देखेगा और आगे बढ़ जाएगा ।
फिर दुकानदार बेशक अपनी उस कीमती चीज़ से प्यार करे पर ग्राहक तो नई चीज़ ही ढूंढ़ता है न ...विंडो शौपिंग का यही तो मज़ा है !'' जोर से हंस पड़ा अमित ।
हँसते हँसते रुक के बोला ..''सॉरी यार ..डोंट टेक ईट अदरवाइज़ ..आई एम् जस्ट जोकिंग .. !"
'' मैं तो विंडो शौपिंग में भी गहने कपडे की जगह ''डम्मी'' देखता हूँ कौन सी सुन्दर और सेक्सी है ..।"कहीं पर प्योर व्हाइट तो कहीं एक दम ब्लैक ..किसी के बाल हैं तो किसी के नहीं ..मज़ा आता है देखने में ...कभी दोस्तों के साथ जाना हो तो हम अपनी अपनी डम्मी सेलेक्ट कर लेते हैं ...आँख मरते हुए कहा अमित ने ।
'' डम्मी ..क्यों सेलेक्ट करते हो ...? "सोनिया अंदर ही अंदर अमित की सब बातो के अर्थ समझने की कोशिश में लगी थी ।
''डफ्फर ..इतना भी मालूम नहीं यार ...! फैंटेसी के लिए ..यार तुम भी न ! बच्चों जैसे सवाल करती हो ..!" अमित टोंट करते हुए फिर हँसा ।
''व्हाट ऐ चीप मेंटेलिटी यू हेव ? क्या किसी जीती जगती औरत और डम्मी में तुम्हे कोई फर्क नज़र नहीं आता ? अंशुम की छोडो ,क्या तुम हर औरत को ऐसी ही नज़र से देखते हो कि तुम फैंटसी करने लग जाओ कहीं भी किसी के साथ ? हाउ डिस्गस्टिंग ...? "अमित उसकी बातों से चिढ सी गई !
''व्हाट डिस्गस्टिंग ? तुम मेरी मेंटालिटी की बातें करती हो ? कभी खुद के गिरेबान में झाँका है क्या तुमने ? फिर हम तो खुलमखुल्ला कहते हैं ...मानते हैं कि हम फ्लर्टिंग करते हैं ...फैंटेसी करते हैं ! पर तुम औरतें ..! तुम तो ऊपर से सती सावित्री होने का ढोंग करती हो ..लोयल बनती हो ,वफादारी ..लिमिट्स की बातें करती हो और अंदर ही अंदर एक आग में जलती हो ! यू नो वॉट ...तुम औरतें अपने अंदर की आग को चिंगारी से भड़काने का काम हम मर्दो को देती हो और फिर बाद में उस आग से अपने आप को बचाने की कोशिश में लगी रहती हो ! ताली दोनों हाथों से बजती है सोनिया डिअर..सो डोंट ब्लेम मैन ओनली । डोंट माइंड ...आज तुम मेरे साथ हो और मुझे लेक्चर दे रही हो अच्छे बुरे का ? एंड लेट मी टेल यू वन थिंग लास्टली ....येस..आई एम् अ फलर्ट ..एन यू आर नोट ओनली वन फॉर मी ...सो डोंट यू डेयर टू से एनीथिंग टू मी ? समझी ?" अमित ऐसे भड़का सोनिया की बात सुनकर कि खुद कितना कुछ बोल गया उसे आभास ही नहीं हुआ ।
उधर सोनिया पर मानो आज वज्रपात सा हुआ । कुछ कहते न बना ..लफ्ज़ आंसुओं में तब्दील होकर आँखों में ही रह गए ।एक एक शब्द उसे अपनी नज़रों से ..अपने वज़ूद से ...अपने आदर्शों से नीचे धकेलता हुआ लगने लगा ! तठस्थ सी बैठी रही ... ! आंसू तो जज़्ब कर लिए पर पसीने की बूंदों ने अपना रास्ता ढूंढ लिया चिल्ड पेप्सी पीने के बावज़ूद भी । खामोश सी अमित के चेहरे को देखती रही जैसे किसी अपने की मौत पर इंसान जैसे सुधबुध खोकर जड़वत हो जाता है ..
"ओके ..लेट्स मूव ऑन नाओ....।" अमित ने ख़ामोशी तोडते हुए कहा !
''नहीं ..तुम जाओ ..मैं थोड़ी देर बाद जाऊंगी ।"
''नाउ डोंट बी इमोशनल एंड स्टुपिड सोनू ....तुम्हारा घर यहाँ से बहुत दूर है ..कम ऑन ..लेट्स गो ..!"
''अमित ..प्लीज़ मैं चली जाउंगी ..तुम जाओ ..! ''
'' यार ... वॉट इज़ दिस ? '' अमित बार बार साथ चलने की ज़िद्द करने लगा।''अमित फॉर गॉड सेक ..प्लीज़ गो अवे ! कोई बच्ची नहीं हूँ ..अपने आप आ जाऊंगी । ''
''ओके ..एज़ यू विश !"अमित गुस्से से उठा और चला गया ।
सोनिया ने बिल चुकाया और ऑटो किया ।बस चुपचाप सी बैठी ..अमित के शब्दों के मतलब निकालती हुई ...मन रो रहा था ..आंसू अभी भी शायद उसकी मर्ज़ी का इंतज़ार कर रहे थे ...दुःख और गुस्से की जदोजहद में ।
घर आकर सामान एक तरफ पटका । शिवम् अभी नीचे ही था ..बाई के साथ ही जो दोपहर ३ बजे से रात ८ बजे तक उसके यहाँ ही रहती थी । सब्र का बाँध टूटा और वो कुछ पल रोती रही ।मन का बोझ हल्का होने की बजाये बढ़ता जा रहा था । अमित के साथ बिताए पल ...सिर्फ एक दोस्ती से तो नहीं बंधे थे ? तन मन से सब तार जुड़े थे ...कहने को बस कुछ बाकी था पर बहुत कुछ ऐसा हुआ जो उस बचे हुए बाक़ी के बराबर था ...जिसके लिए वो बार बार अपने मन को झूठी दलीलें देती रही थी ..कि वो ''उस हद्द '' तक नहीं जाएगी । फिर आज अमित की फैंटेसी की बाते उसे क्यों बुरी लगी ? क्या अमित की फैंटेसी उसकी तन की भाषा से अलग हैं ?
फिर क्यूँ नहीं खुद को अलग कर पाई अमित से ? बार बार क्यों उसको पाने की ख्वाइश करता रहा उसका तन भी और मन भी ? क्यूँ नहीं उसने आप को रोका खुद को उस दलदल में गिरने से ? जब अपनी ही कश्ती डोल रही थी फिर माझी या लहरों को कोसने का क्या फ़ायदा ? बार बार अपने और अमित के रिश्ते के सिरे को पकड़ती ..फिर उलझ जाती । अचानक याद आया अंशुम के आने का वक्त हो गया है ।
खोई खोई सी रसोई में गई । दाल,सब्ज़ी आटा सब तैयार था बस एक छौंक लगाना बाकी था । अंशुम को प्याज़ अदरक का तड़का पसंद था । काटने के लिए प्याज़ छीलने लगी तो वो आखिरी परत तक सड़ा गला सा निकला । यादों की परत दर परत खुली तो उसे अपने और अमित का रिश्ता भी उसी प्याज की तरह लगा जिसकी कितनी भी परतें खुलेंगी उसकी हर परत सड़ी गली ही निकलेगी ...एक गन्दी सड़ांध से भरा हुआ प्याज जैसा उसका रिश्ता, जिसको फेंकने के अलावा और कोई चारा नहीं ।
''अच्छा ही हुआ ..आज अमित ने जो भी कहा ...कम से कम इन तानों ने दिल को छलनी किया ...असलियत आज अमित की नहीं खुली बल्कि उसकी अपनी खुली है । बर्बादी के कैसे गर्त में जाने लगी थी कि वहाँ से लौट आना नामुमकिन था ।
आज उसे अपने उस स्वप्न की गहराई ..उसका अर्थ समझ आने लगा की अंशुम का दरवाज़ा उसके लिए क्यूँ बंद हो जाता था ...क्यों उसका हाथ छूटता सा लगता था ...जिसको सोचते हुए वो अक्सर घबराई हुई उसका मतलब निकलने लगती थी और फिर उसे झटक देती थी । नहीं ..नहीं ..बस अब ..अब इस दलदल में पाँव रखा तो वो धंसती चली जाएगी ..उसकी पुकार कोई नहीं सुन पाएगा न कोई निकाल पाएगा और वो हाथ पाँव मरती हुई उस में डूबकर मर जाएगी ...नहीं ..इस ख्याल से ही सिहर उठी सोनिया ! हाथ पाँव ठन्डे पड़ गए इस सोच से । परन्तु मन ही मन अपनी गलतियों का प्रायश्चित करते हुए ..ईश्वर से माफ़ी मांगती रही । पश्चाताप आंसुओं से धुलता रहा और एक दृढ निश्चय बढ़ता गया ।
तूफ़ान आने से पहले यदि उसकी नकारत्मकता को इंसान देखे तो चारों तरफ अनहोनी या बर्बादी ही नज़र आती है परन्तु तूफ़ान का सामना करने की कवायद, उसका सकारत्मक पहलु कोई नहीं देखता । रिश्तों की तुलना ज़िन्दगी में कितना बड़ा तूफ़ान ले आती है ....आज सोनिया को वही अंशुम प्यारा लगने लगा । अपनी गृहस्थी प्यारी लगने लगी ।
रात को अचानक उसके मोबाइल पर फिर एक मैसेज से लाइट ऑन हुई !
''सॉरी हनी ..फॉर माई वर्ड्स .मैं तुम्हे हर्ट नहीं करना चाहता था !प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ! ''
अमित का मेसेज देख कर सोनिया एक पल को बौखला सी गई कि अब क्या जवाब दे ? अगर वो खुद पीछे हटने की बात कहेगी तो अमित फिर से उसे चिकनी चुपड़ी बातें करके बर्गलाएगा । गुस्से से कही बात उसको अपने पुरष अह्म पर चोट समझ कर उसे भी बहुत कुछ सुनाएगा या बात न करने के लिए उसे ब्लैकमेल करने की धमकी भी दे सकता है । अजीब कश्मकश में थी । सोच रही थी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा । एक झूठ से अगर वो अपनी गृहस्थी बचा सकती है तो गलत क्या है ? उसने मेसैज किया ।
''अंशुम ने आज मुझे तुम्हारे साथ जाते हुए देखा । शायद उसे शक हो गया है ।इस बार तो मैंने बात सम्भाल ली ...लेकिन आगे नहीं सम्भाल पाऊँगी ।डोंट मेसेज और कॉल मी प्लीज़ ...नहीं तो तुम्हारे घर भी मुश्किल आ सकती है ...आई होप यू विल अंडरस्टैंड ...!" लिखने को लिख दिया सोनिया ने पर अंदर ही अंदर डर भी रही थी न जाने अब क्या होगा ? कैसे अमित उसकी इस बात को लेगा ? थी तो बेवकूफों वाली सोच ...अचानक इस तरह से कहना कि शक हो गया है पति को कोई विश्वास करेगा क्या ? कहीं वो समझ तो नहीं जाएगा कि आज जो उसने कहा उससे नाराज़ होकर उसने झूठ कहा है ! हे भगवन...मेरी रक्षा करना ! इस बार बचा लो प्रभु ..आइंदा किसी परपुरुष का ख्याल भी मन में नहीं लाऊंगी । पता नहीं कितनी प्रार्थनाएं ..कितने वचन खुद से ही कर लिए उस दो मिनट के भीतर जब तक कि अमित का जवाब नहीं आया ।उसे लगता कि पक्का अमित समझ जाएगा कि यह एक बहाना है और वो नाराज़गी में ऐसा कदम उठा रही है । इफ्स एंड बट्स में उलझी सोनिया की धड़कने बढ़ती जा रही थी ।
''अरे डिअर इतनी नाराज़गी ....अब बहाने मत बनाओ ..कहा न सॉरी ..!"अमित ने वैसे ही कहा जिसका उसे अंदाज़ा था ।
"नहीं सच कह रही हूँ अमित ...आज अंशुम जल्दी घर आ गए और वो मुझसे पूछने लगे कि मैं तुम्हारे साथ कहाँ जा रही थी तो मुझे कहना पड़ा कि तुमसे मजबूरी में लिफ्ट ली थी ! अंशुम सुनकर चुप हो गए पर अमित मुझे उनकी ख़ामोशी से डर लग रहा है ! प्लीज़ ट्राई टू अंडरस्टैंड ...!"
''ओके डिअर..डोंट वरी...आई एम् विद यू ...आफ्टर ऑल आई एम् योर वेल विशर....! आई विल नोट डिस्टर्ब योर फैमिली..!"
''..वेल विशर....?? '' सोनिया मन ही मन इस शब्द को सोच कर हंस पड़ी । उसे मालूम था वेल विशर कौन है और कौन नहीं ? पर आज इस झूठ से उसे एक तसल्ली थी कि अमित अपनी गृहस्थी पर आंच नहीं आने देगा अब उसकी ज़िन्दगी में रहकर । शायद इसी बहाने उसकी गृहस्थी भी बची रहेगी । उसे याद आई वो बात जब उसने अमित को उसकी पत्नी के लिए कुछ कटाक्ष किया तो वो तिलमिला गया था और उसने एक स्पष्ट सा जवाब दिया था ।
''सी डियर ...डोंट इन्वॉल्व अवर फैमिलीज़ इन अवर रिलेशन ..ओनली वी आर फ्रेंज एंड विल न्जॉय दिस रिलेशन ! न तुम अपने पति को बीच में लो न मैं अपनी पत्नी को । बहुत गलतफहमियां हो जाती हैं ।डोंट मेक ईट खिचड़ी यार , आई काँट मैनेज लाइक दिस ! ओनली यू एन मी ..डेट्स ईट ..! ''
उस दिन अमित की इस थ्योरी को समझ नहीं पाई आज उसी की थ्योरी को हथियार की तरह इस्तेमाल करना पड़ा स्वंरक्षा के लिए ।
आज फिर से अपनी माँ की कही बात में निहित गहरा अर्थ समझ आया कि,'' ज़िन्दगी में हमें दो राहें मिलती हैं ..एक सही एक गलत ..! ये हम पर निर्भर करता है कि हम कौन सी राह इख्तियार करते हैं ।सही तो सही है ही ..गलत राह भी एक न एक दिन भी हमें घुमाकर फिर वहीं सही राह पर ले ही आती है ...शायद कुछ ठोकरें खाने के बाद !"'सोनिया ने भी आज सही राह का चुनाव कर ही लिया था ...थोडा सा वक़्त लगा बस अपनाने में !
समाप्त