अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 2 Mirza Hafiz Baig द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 2

अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे

भाग-2

भेड़ियों का घेरा

इस प्रकार वह व्यापारी दो दिन वहां बड़े आराम से रहा और इस बात से प्रसन्न हुआ कि उसकी सब आशंकाये गलत साबित हुई ।

पर इन दो दिनो मे सरदार ने अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श करके अपनी योजना को सुदृढ़ किया ताकि वह दुबारा धोखा न खा जाये ।

दो दिन बाद व्यापारी को विदा करने के समय डाकुओ के सरदार ने कहा “मित्र आशा करता हूं इन दो दिनो मे आपने हमारे आतिथ्य का भरपूर आनंद उठाया होगा । इधर दो दिनो मे आपकी ही दी हुई सीख को ध्यान मे रखते हुये अपने साथियों से मन्त्रणा करके मैने दो निर्णय । पहला निर्णय आपकी सुरक्षा के हित मे है कि इस बार हम आपको अकेले नही भेजेंगे इस बार मेरे दो आदमी आपके साथ जायेंगे जो आपकी सुरक्षा और आपकी आवश्यकताओं का ध्यान रखेंगे …” व्यापारी ने सोचा कि एक बार इधर से निकल जाऊं फ़िर इन्हे किसी तरह चकमा देना मुश्किल तो नही होगा । सरदार ने दूसरा निर्णय यूं सुनाया “… पूर्व कि तरह इस अभियान की अवधि एक माह ही होगी और इस अवधि मे अगर आप अपनी खोज मे सफ़ल नही होते हैं तो हमारे गिरोह के नियमानुसार दंड के भागी होंगे । लेकिन इस बार हम अपनी योजना मे पूर्ण सतर्कता का ध्यान रखते हुये आपसे ज़मानत की मांग रखते हैं ।“

अब व्यापारी को अपने पैरो तले धरती खिसकती लगने लगी । वह बोला- “हे दस्युराज, आपके दोनो निर्णय बिल्कुल उपयुक्त और परिस्थिति के अनुकूल हैं, फ़िर भी ज़मानत के लिये मेरे पास कुछ नही है अत: मै आपसे आग्रह करता हूं कि मेरी ज़बान को ही मेरी ज़मानत समझें ।“

“तो ठीक है मित्र हम तुम पर विश्वास करते हुये तुम्हारी ज़बान को ही ज़मानत के तौर पर रख लेते हैं । मै अभी अपने जल्लाद को आदेश देता हूं कि वह आपकी ज़बान काटकर मुझे देदे ।“

यह सुनकर व्यापारी कांप गया । फ़ौरन बोला “लेकिन सरदार यह न्यायसंगत नही होगा, क्योंकि मै इससे हमेशा के लिये वाक् शक्ति से वंचित हो जाऊंगा ।“

“तुम्हारा कहना बिल्कुल उचित है मित्र और इसके लिये मैने एक उपाय पहले से सोच रखा है ।“ सरदार ने कहा “हम ज़मानत मे तुम्हारा एक कान ऊपर से आधा काटकर रख लेंगे । इससे तुम्हारे सुनने की क्षमता पर कोई असर नही होगा फ़िर तुम्हारे सफ़ल होकर आने पर हम शल्य चिकित्सक से उसे तुम्हारे कान से वापस जोड़ देंगे । आशा है इस शर्त से तुम्हे कोई एतराज़ नही होगा ।“

अब, मरता क्या न करता । व्यापारी ने सोचा वैसे भी बुद्धिमान व्यापारी कहते हैं कि यदि सब जारहा हो तो उसमे से जितना बचा सको वही तुम्हारा लाभ है । यही सोचकर उसने हामी भर दी ।

अब व्यापारी का आधा कान काटने के पश्चात् उसे दो दिन का विश्राम देकर विदा किया गया । विदा करते समय सरदार ने व्यापारी से कहा कि “मित्र आधा कान काटाने का एक तात्पर्य यह भी था कि अब तुम भागकर कहीं भी जीवन नही गुज़ार सकते । क्योंकि इस देश मे ठगों को यही दंड दिया जाता है ताकि सब उससे सतर्क रहे । इसलिये इस देश मे जिसका एक कान आधा कटा हो उसकी कोई बात सच नही मानी जाती । उससे कोई व्यवहार नही करता और कोई बात तक नही सुनता भले वह तड़प-तड़प कर मर जाये ।“

व्यापारी ने कोई उत्तर नही दिया ।

अब व्यापारी फ़िर से कुत्ते की रस्सी थामे उसके पीछे-पीछे चलने लगा । दोनो डाकू उसके दायें बायें अंगरक्षक की तरह चलते । इस बात का उसे फ़ायदा भी था और नुकसान भी । फ़ायदा यह था कि वे डाकू जंगल के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ थे तो हर जगह पहुंचने मे आसानी थी और वे उसकी हर ज़रूरत का ख्याल रखते थे । लेकिन नुकसान यह था कि वह भाग नही पा रहा था ।

अब यह हर दिन का काम हो गया था आगे आगे वह कुत्ता चलता और पीछे-पीछे वे तीनो । जब वह कुत्ता कहीं रुकता और ज़मीन को सूंघता तो वे तीनो कुत्ते के संकेत का इंतेज़ार करते और जिस जगह ठहर कर वह कुत्ता ज़मीन को अपने पंजो से खुरचता वे वहां खुदाई करने लगते, लेकिन ऐसी जगहों से अब तक कोई हड्डी या किसी जीव की विष्ठा के अलावा कुछ नही मिला । इस तरह तीन-चार दिन गुज़र गये । दोनो डाकुओं के मन मे व्यापारी और उसके कुत्ते के प्रति उपेक्षा और अविश्वास की भावना बढ़ने लगी । यह देखकर व्यापारी चिंतित होने लगा । उसे उन दोनो की मन: स्थिति समझ आने लगी थी ; लेकिन वह यह निर्णय नही ले पा रहा था कि यह स्थिति उसके पक्ष मे जायेगी या विपक्ष मे । जैसे- उनके अविश्वास के साथ-साथ उनकी उपेक्षा भी बढ़ती जायेगी और उपेक्षा बढ़ेगी तो स्वभावत: उनकी रूचि उसकी ओर से कम होती जायेगी । और तब उन्हे झांसा देकर, उनके चंगुल से भाग निकलना आसान हो जायेगा । लेकिन चिंता इस बात की थी कि, प्रवृत्ति से तो वे डाकू ही थे इसलिये इस बात की भी पूरी सम्भावना थी कि उनका अविश्वास उनके अंदर क्रोध को बढ़ावा दे । और यह स्थिति उसके लिये बड़ी विकट हो सकती है ।

उसे जल्द ही कोई उपाय सोचना था ।

उसने उन्हे एक किस्सा सुनाना शुरू किया …

एक बार मै व्यापार के लिये दूर देश के लिये यात्रा कर रहा था । हम लोग जल-मार्ग से यात्रा कर रहे थे । हम बीच समुद्र से होकर गुजर रहे थे । एक रात हमारा जहाज रास्ता भटक गया । पूर्णिमा की रात थी लेकिन आकाश मे धीरे-धीरे बादल छाने लगे और धुंध ने हमे घेर लिया और हम अपने रास्ते का अनुमान नही लगा पा रहे थे । ऐसे मे और बुरा यह हुआ कि हमारा जहाज भयानक रूप से डोलने लगा । अभी हम परिस्थिति का अनुमान लगाने की कोशिश कर ही रहे थे, तभी हमे लगा कि हमारा जहाज यकायक ऊपर की तरफ़ उठता चला जा रहा है । जब तक हम समझ पाते कि क्या हो रहा है हम तेज़ी से नीचे की ओर आने लगे । धुंध और अंधेरे के कारण हमारे हाथ को हाथ नही सूझ रहे थे । हम बस चीख पुकारों से ही एक दूसरे के बारे मे अनुमान लगा पा रहे थे । अचानक हमारा नीचे गिरना रुक गया और लगा हम एक झूले मे सवार है जो बड़े धीरे-धीरे डोल रहे है । अचानक चारों ओर शांति छा गई । शांति क्या उसे सन्नाटा कहना अधिक उचित होगा । हमने स्थिति को समझने के लिये एक दूसरे को आवाज़ देना शुरू किया लेकिन हमारी आवाज़ें एक तेज़ और कान के पर्दे फ़ाड़ देने वाली चिंघाड़ मे दब गई ।

अगले ही पल हमारा सारा का सारा अस्तित्व उस भयंकर चिंघाड़ की चपेट मे था ।

मैने कई टन का धक्का और दबाव अपने चारो ओर महसूस किया । ऐसे लगा जैसे मै किसी भीषण शक्ति के द्वारा किसी दिशा मे खिचा चला जा रहा हूं । मैने पता नही किसी चीज़ को बड़ी मज़बूती से थामा हुआ था । लग रहा था जैसे हज़ारो तेज़ नुकीले नाखून मेरे कपड़ो को चीरे जा रहे है । और कई खरोचे मै अपने शरीर पर भी महसूस करने लगा था ।

मै समझा यह मृत्यु का अनुभव है । वे लोग मेरी आत्मा को खीचकर लिये जारहे हैं । और सैकड़ो बल्कि हज़ारो नुकीले नाखूनो से मेरे कपड़ो को चीरकर मेरी आत्मा को नग्न किये देरहे हैं । और वह दर्द वह चुभन… ? क्या मुझे मेरे कर्मो की सज़ा दी जारही है । यह सब कितनी जल्दी शुरू हो गया है । पता नही इस सब मे कितना समय बीत गया ? या, क्या पता उस लोक मे शायद समय का कोई अस्तित्व ही न हो ।

व्यापारी ने देखा वे दोनो डाकू स्तब्ध से उसकी ओर देख रहे थे । उनकी आंखो मे विश्वास था और हैरानी भी । यह ऐसे भाव थे जैसे कोई असम्भव सा चमत्कार साक्षात देख लेने पर उत्पन्न होता है । व्यापारी के चुप होते ही पूरी तरह शांति व्याप्त हो गयी ।

थोड़ी ही देर मे वह शांति उन दोनो डाकुओं के लिये असहनीय हो गई ।

“फ़िर ???” उन्होने बेचनी से पूछा ।

“पहले कुछ खा पी लें, फ़िर मै आगे की कहानी सुनाता हूं ।“ व्यापारी ने कहा । वह यह देखकर प्रसन्न था कि कहानी का उनपर गहरा प्रभाव हुआ था ।

“ठीक है ।“ दोनो ने कहा और जल्दी से खान-पान की व्यवस्था मे जुट गये ।

खान-पान से निबटकर जब वे सामान समेट रहे थे कि कुत्ता जिसे वे लोग अब शेरू बुलाने लगे थे यकायक भौंकता हुआ एक तरफ़ को भागा । व्यापारी भी शेरू-शेरू पुकारता पीछे भागने लगा । उसके पीछे-पीछे वे दोनो डाकू भी भागे । कुत्ता यानि शेरू झाड़ियों के बीच से होता हुआ तेज़ी से भाग रहा था और इस प्रकार उसके पीछे भागना व्यापारी के लिये सम्भव नही था । वह झाड़ियों का चक्कर लगा कर उसके पीछे पहुंचता तब तक शेरू की उससे दूरी बढ़ जाती । इस तरह शेरू से उसकी दूरी लगातार बढ़ने लगी तभी उसने एक डाकू को अपने पास से तेजी से भागकर आगे निकलते देखा । वह हिरन की तरह झाड़ियों के ऊपर से कुलांचे भरता हुआ शेरू तक पहुंच गया । उसने जल्दी से उसकी रस्सी पकड़ उसे क़ाबू मे कर लिया । तब तक दूसरा डाकू भी उसके पास पहुंच चुका था । शेरू अभी भी भौंके जा रहा था और छूट कर आगे भागने का प्रयास कर रहा था । जल्दी-जल्दी वह व्यापारी और दूसरा डाकू भी वहीं पहुंच गये । वे तीनो एक बड़े पेड़ के नीचे खड़े सामने की ओर देखने लगे जहां एक खुला मैदान था और वहां सूर्य की किरणे सारे मैदान पर पड़ रही थी जिससे वह छोटी सी खुली जगह खूब चमकदार और आकर्षक लग रही थी । उस छोटे से मैदान मे बीच-बीच मे कही-कही जंगली फ़ूलो की छाड़ियां भी थी जिसमे खिले रंग बिरंगे फ़ूल, बरबस ही उस व्यापारी का ध्यान अपनी तरफ़ खींच रहे थे । शेरू बराबर उस तरफ़ देखकर भौंके जारहा था ।

‘इसे फ़ूल इतने पसंद है ? आश्चर्य की बात है ।‘ व्यापारी ने मन मे कहा । उसने वहां पहुंचने के लिये सामने की झाड़ी को पार करने की कोशिश की; कि तभी एक डाकू ने उसका हाथ पकड़ कर पीछे खींच लिया ।

“छोड़ो मुझे, मै कहीं भागा नही जा रहा हूं ।“ व्यापारी ने चिढ़कर कहा ।

“भेड़िये … ।“ एक डाकू ने उसे कसकर अपनी बगल मे भींचते हुये उसके कान मे कहा ।

“कहां ? कहां ??” वह चौंक कार पुकार उठा । उसे वहां फ़ूलों और पेड़ पौधो के अलावा कुछ नज़र नही आरहा था । उन दोनो ने उसे आगे की ओर हाथ के इशारे से दिखाया । उसे कुछ नज़र नहीं आया ।

“मुझे तो नज़र नही आरहे ।“ उसने कहा ।

“ध्यान से देखो ।“ एक ने कहा “वहां… उन पेड़ों के पीछे …”

उसने ध्यान से उन पेड़ों की तरफ़ देखने की कोशिश की लेकिन उसे वहां उसे सूर्य की तेज़ किरणों से नहाई सूखी झाड़ियों और पेड़ के तनो के सिवा कुछ नज़र नही आरहा था ।

“घेरा डाल रहे हैं… घेरा डाल रहे हैं…” दोनो फुसफुसा कर आपस मे बात करने लगे । व्यापारी समझ गया यह सब उसे भयभीत करने के लिये नाटक कर रहे हैं । लेकिन वह उनके इस दांव का कोई तोड़ ढूंढता कि अचानक उसे सामने मैदान के पार के पेड़ों के नीचे की झाड़ियों मे कुछ हरकत दिखाई दी । अगले ही क्षण उसे भेड़िये का एक सिर नज़र आया जो दायीं ओर को बढ़ते हुये अचानक पृष्ठभूमि मे अंतर्धान हो गया । नही, वे उसे डरा नही रहे बल्कि सच बोल रहे हैं । वह और कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसका कुत्ता शेरू भौकते हुये अपनी दायी तरफ़ को भागा । उसने देखा, वहां से कुछ ही दूर की एक झाड़ी से एक भेड़िया निकलकर शेरू के ऊपर लपका । वह भेड़िया शेरू से दुगने कद का था और उसकी आंखे लाल थी । लेकिन शेरू पीछे हटने की बजाय पूरी ताक़त से उसके उपर लपका । शायद उसे अपने साथ अपने मालिको की मौजूदगी से आत्मविश्वास मिला हो । लेकिन वह जानवर बेचारा नही जानता कि उसका मालिक खुद उसके बिना कुछ नही कर सकता ।

क्रमश: ___

तृतीय भाग मे पढ़ें ___

मुझे लगा मेरी बंद आखों के ऊपर कोई प्रकाशपुन्ज धीरे-धीरे मेरे अस्तित्व को सहला रहा है । वह धीरे-धीरे मेरे शरीर को गर्म कर रहा है । यह प्रकाशपुंज निश्चय ही बड़ा दयालू है । क्या यह ईश्वर की दया का प्रकाश है क्या वह ऐसा ही दयालू है । क्या यह स्वयं ईश्वर का ही आलोक है । मै तो धन्य हो गया ।

धीरे-धीरे मेरे शरीर मे शक्ति का संचार होने लगा और इसी के साथ असंख्य सुईयों के चुभने का अहसास भी होने लगा । मेरा शरीर हिल-डुल नही पा रहा था । मेरी पलकें सूजी हुई और भारी थी । मै आखें भी नही खोल पा रहा था । मुझे लगने लगा जैसे हज़ारो कीड़े मेरे शरीर पर रेंग रहे है । क्या मै फ़िर से नर्क मे फ़ेंक दिया गया हूं ।

_मिर्ज़ा हफ़ीज़ द्वारा रचित ।