1- कौन खुदा
हर कहानी छोड़ कर,आगे ही बढ़ता जाता हूँ।
किरदार जिन्दा रखता हूँ,खुद मिटता जाता हूँ।
तुम आओगे एक दिन,दिलासा दिलाया दिल को,
उसी झूठे वादे में मैं,शर्म से गिरता जाता हूँ।
हर रोज पता पूछते हैं गली के लोग मुझसे,
बेपते के ख़त मैं अब रोज लिखता जाता हूँ।
मेरी ठौर बदल गयी,मेरा ठिकाना भी बदला है,
उसी डाकघर के बगल में दिखता जाता हूँ।
अंधेरों में सोचता हूँ,रौशनी में देखता सब हूँ,
तेरे नायाब से अक्स को,देखता जाता हूँ।
कैसा वक़्त है यह, कौन सी सदी बीत गयी,
तेरे बिताये वक़्त में अब,खुद बीता जाता हूँ।
पूछ लेते हैं लोग 'मैकश' राह से उठाकर,
कौन खुदा है जिसके,सजदे गिरता जाता हूँ।
23-2-16
2- कोई दिल से गया
कोई दिल से गया,और कहता गया,हो मुबारक तुम्हे ये सफ़र आखिरी।
चाहे दिल से गिरो,या नजर से गिरो,ये गिरने की आदत भी हो आखिरी।
-चलते चलते हमने पूछा, ऐसी कौन सी वजह जो थी।
रुकते रुकते उसने बोला,छोड़ो रस्ता जाने दो भी।
कसम जो दी हमने उनको,तब फूट फूट के रोये वो,
कहते कहते फिर बोल पड़े,कमी तो बस अपनेपन की थी।
हाल ऐसा हुआ,जाने कैसा हुआ,आँखे भर सी गयी,सांस थी आखिरी।
चाहे दिल से गिरो....
-आज आई है याद टूटकर देखिये,
हमसे फिर भीं ना जाने क्यों रोया गया।
उसकी यादों में बहकर भी महसूस था,
जाने कैसे किनारों में धोया गया।
तुमसे बेहतर ना अपना मिलेगा हमें,पर बना ना सके हम तुम्हे आखिरी।
कोई दिल.....
'मैकश'
11-12-15
3- हाल तस्वीर से
हाल तस्वीर से कैसे कह दूं उसे,कोई खाली यहाँ मेरे अंदर ही है।
जन्म से अंत तक,गोद से कंध तक,एक बचपन यहाँ मेरे अंदर भी है।
मैंने उसको छुआ,अनछुआ सा रहा,ऐसी कैसी चपलता थी उसने चली,
रात से साँझ तक,धार से बाँध तक,एक धारा यहाँ मेरे अंदर भी है।
हम थे दोनों अलग,फिर भी एकल हुए,एक ऐसा गणित अब ना पल्ले पड़ा,
अंत से शून्य तक,शून्य से अंत तक,कोई गणना यहाँ मेरे अंदर भी है।
हाल पूछा जो उनसे तो क्या कह दिया,जैसे कोई खता हो गयी हो कहीं,
सत्य से झूठ तक,प्यार से रूठ तक,कोई आशिक यहाँ मेरे अंदर भी है।
गद्य लिखना जो चाहा तो दूरी बढ़ी,पद्य लिखने जो बैठे तो सफ की कमी,
शेर से मख्त तक,मख्त से तख़्त तक,मेरे दिल के अंदर सिकन्दर भी है।
'मैकश'
12-11-15
4- क्यों की प्यार नहीं होता
बहस पहुँचने दो अंजाम तक,कहते क्यों की तकरार नहीं होता।
झुकाओ,जरा खाली करो दिल को,कहते क्यों की प्यार नहीं होता।
जरा खुदको उसका हो तो जाने दो,देखो आगे क्या हो जाए,
खुद का खुद पर और दिल पर,वैसे भी क्यों अधिकार नहीं होता।
मोहब्बत में जंग ना हो तो बताओ,तफ्सील-ए-अमन कहाँ से आयेंगे,
जंग ना हो जो नयनों की तो फिर,छुप छुप के कहीं वार नहीं होता।
यूं तो पुराने दोस्तों से भी अलग होकर,जिया करते हैं लोग यहाँ,
पर सच मानो जहाँ किसी पर,दोस्त पुराने से ज्यादा ऐतबार नहीं होता।
उस सरगम की धुन में मदमस्त रहो,जो तुमको खुश रखती हो,
बाद तेरे जाने के ग़ज़लों में अब,सुरों का सरोकार नहीं होता।
सुनो, हर हिज़रत में जाने वाले को दुआएँ ही देते जाना,
ऊपर वाले की नेमत में झुकने ,हर सर मक्कार नहीं होता।
पूछते थे ना तुम की क्यों "मैकश" कहते सम्हाल याद रखने को,
एकतरफा मुनाफा है यादों में जीने में,एहसास यहाँ व्यापार नहीं होता।
'मैकश'
07-12-15
5- आस चाह की
जो आस चाह की रखता था,है आज ना उसकी खबर कहीं,
जो तुझको गिनता था महलों में,है आज ना उसकी कदर कहीं।
तू सफ़र करता है जख्म बदन पर ढोकर हँसते हुए,फिर बता,
या तो मैं अपना नहीं या तू मेरा नहीं,जो वो है मेरा सफ़र नहीं।
गलतियाँ भी इल्म हैं एक ख़ुसूसी से इंसाँ-ए-खाकसार की,
फिर भी इबादत में खुदा की जाने क्यों,झुकता मेरा सर नहीं।
झुठला देता हूँ मैं अपने माँ पिता की वो सारी खयाल भरी बातें,
जाने क्यों सर रखे हाथों में,दुआओं का अक्स बदतर नहीं।
एक प्यास यहाँ जगी है जाने कब तलक तक जिन्दा रहेगी,
लिखता रहूँ "मैकश" कितना भी,पर होता ये कलेजा तर नहीं।
'मैकश'
30-11-15
6- कब तक जिन्दा रहे
नजरों का ये खेल हमारा,जाने कब तक जिन्दा रहे।
आ फिर दोनों मिल जाए ,जाने कब तक जिन्दा रहे।
यूं तो बेहतर मसलों पे अपनी,रायशुमारी एक तरफ,
चल बैठ जरा मसले सुलझा दें,जाने कब तक जिन्दा रहें।
तेरी हँसी से खुशियाँ ही हैं,बेशऊर हमारी आदत भी,
चल दोनों को आज मिला लें,जाने कब तक जिन्दा रहें।
कुछ वक़्त कमाने निकल पड़ा था,ना जाना तू है मंजिल,
महफ़िल को मंजिल से आज मिला,जाने कब तक जिन्दा रहें।
बेशक तुझमे ही याद रहेगी,बंजारी है वो बस एक बहाना,
आ वजह बहानों को मिलवा दें,जाने कब तक जिन्दा रहें।
तुझे मिली मंजिल तो खुश,हम भी हुए थे वादा था जो,
चल आज मुझे खुशियो से मिला,जाने कब तक जिन्दा रहें।
07-11-15
7- सीख रहा हूँ
जितना भी टूट चुका हूँ,उतना ही जुड़ना सीख रहा हूँ।
हां ये सच है जिंदगी मैं अब,सुधरना सीख रहा हूँ।
तुझे बुलाकर पास यहाँ, खुद को वापस भेज दिया,
अब तक सबको मंजूरी दी,अब मुकरना सीख रहा हूँ।
जो तेरी शिकायत है ना मुझसे,मेरे दूर ही रहने की,
देख हवा को बलखा कर तुझसे,अब गुजरना सीख रहा हूँ।
जो वजह दी दलील में,कि क्यों जुदा हुए थे तुम,
सच बताता हूँ आज भी,मैं उबरना सीख रहा हूँ।
नीरस मेरी ग़ज़ल को सुन,ये कहता चला चल साथ में,
हां है ये सच मेरे मुन्तजिर,मैं लिखना सीख रहा हूँ।
गर वक़्त का तकाजा है तो,मंजूरी तुम्हे बिछड़ जाने की,
अब कैसे बताऊँ हाथ छुड़ाकर,मैं बिछड़ना सीख रहा हूँ।
जानते हैं ये फूल कली ये बगिया ये उपवन दिल के,
तुमसे ही तो गंध को लेकर,मैं महकना सीख रहा हूँ।
मय को ना हाथ लगाते मैकश,फिर भी सुरूर जो तेरा है,
वाजिब अब तेरी यादों में पीकर,मैं बहकना सीख रहा हूँ।
"मैकश"
08-11-15
8- मैं आज ऐसी ग़ज़ल लिखूँ
जो बस तुझको कहती हो,मैं आज ऐसी ग़ज़ल लिखूँ।
जिसमे बस तू ही रहती हो,मैं आज ऐसी गजल लिखूँ।
***
याद ना आये तो दिखलाऊं तुझको,मंजर इस दिल की टूटन का,
भूल गए तुम जो तो फिर याद दिलाऊँ,स्वाद इश्क़ के जूठन का,
तुमको तो आता चर्चे में रहना,गुमनामी की मार क्या जानो,
आज मनाना भूले हो तो याद दिलाऊँ,बेवजह बात की रूठन का।
जिसको बोने से इश्क़ उगे,मैं आज ऐसी फसल लिखूँ।
जिसमे बस तू.....।
***
हाल मेरा तुम पूछोगे,तो एतमाद भी शायद बेहतर हो जाए,
इतिहास मेरा तुम जानोगे,तो एहसास भी शायद बेहतर हो जाए।
हमसे ज्यादा तो चैन में है वो,जिसने साँसों का कर्ज लिया,
बस तुम पलट के आने दोगे,तो एखलाक भी शायद बेहतर हो जाए।
हाथ तेरे मेहँदी करने को,मैं आज हिना को मसल लिखूँ।
जिसमे बस तू...।
***
आहिस्ता करना बातों को,दो कान कही से सुन ना लें,
चुपके चुपके टकराना कनखे,दो आँख कही से गुन ना लें।
जब भी करनी हो पूरी फरमाइश,तुम कर लेना,पर,ध्यान रहे,
ख़ामोशी से गाना ये धुन,दो राग कही से चुन ना लें।
जो जज्बे का इतिहास लिखे,मैं आज ऐसी नसल लिखूँ।
जिसमे बस तू...।
'मैकश'
01-10-15
9- एक शाम
एक शाम गुजरी है तेरा नाम लिए बगैर।
सोचता हूँ मैं वो शाम छोड़ दूँ।
तुम लिया नहीं करते हो अब नाम मेरा,
सोचता हूँ मैं वो नाम छोड़ दूँ।
जो काम करने पर भी तुम तक ना जाए,
सोचता हूँ मैं वो काम छोड़ दूँ।
कल रोई मेरी माँ ऐ राम तुम्हे पुकार कर,
सोचता हूँ मैं वो राम छोड़ दूँ।
मिलता भी नहीं है मेरा दुश्मन उस बाम,
सोचता हूँ मैं वो बाम छोड़ दूँ।
कल मैकद में साकी टूट गया एक जाम,
सोचता हूँ मैं वो जाम छोड़ दूँ।
'मैकश'
06-12-16
10- हाले-शायर
कुछ खुद से सीखते हैं,कुछ दूसरों को सिखाते हैं।
हम जिंदगी को प्यारे,कुछ ऐसे ही बरगलाते हैं।
यूं तो कई वजहों से मशहूर हैं ज़माने में हम भी,
लोग पीठ पीछे हमारी नाकामियां फुसफुसाते हैं।
हमारी खुदगर्जी से हुआ है त्रस्त ये जमाना भी,
हमारे बाद ही वो हर किसी को अपनाते हैं।
तुम्हे ना समझ आये तो अकेले में पढ़ लेना,
बहुत से शायर 'मैकश' यूं ही समझ आते हैं।
यूँ तो हदीसों में चर्चे तेरे जलवों के है साकी,
पर हम अपनी ग़ज़लों को तेरे बाद गाते हैं।
'मैकश'
11-11-16