1.कफ़न की चाहत
एक दर्द सा बस गया है जैसे शरीर में मेरे।
वो शख्स खामोश है जैसे,तहरीर में मेरे।
हाथ काट देता है मेरा,वो खंजर सा है मेरा दिल,
पर जंग सी लग गयी है जैसे,शमशीर में मेरे।
एहतराम रख बितायी जाती हैं ये ख़्वाबों भरी रात,
पर पत्थर सी रख गयी है जैसे,वो तकदीर में मेरे।
करवट बदल के सोता हूँ या हारे हुए सिपाही के जैसे,
नींद विधवा हो चली जैसे,सूरत-ए- नजीर में मेरे।
बन्दा पाक खुदा ना सही,नामाकूल ही 'मैकश' हो,
ये दुआ भी मर चुकी हो जैसे,अब तदबीर में मेरे।
जिंदगी भी है शतरंज के माफिक,हर चाल तोड़ देती है,
कफ़न की चाहत रही हो जैसे,हर वजीर में मेरे।
'मैकश'
27-12-2015
2.दो बाँस
तमन्नाओं का एहसास रहने दिया।
जब भी वो आया,पास रहने दिया।
बोल फूटे ना थे अभी बेगारी के,
उसने वो खाली काँस रहने दिया।
बरकत की बस नसीब ही जाने,
उसने कब हमें ख़ास रहने दिया।
वो हरकत अजीब करते हैं जाने,
कैसे लोगों ने उसे ख़ास रहने दिया।
वो लुट गयी साहब इज्जत की मारी,
जाने कैसे वहशी ने माँस रहने दिया।
शरीर का हर गहना नोच लिया गया
जाने कैसे मौत ने दो बाँस रहने दिया।
9-10-2016
3.चीखती औरत
आज फिर गाल पे कुछ उँगली के निशान हैं।
इसीलिए औरत सिर्फ कहने को भगवान् है।
पीठ नीली पडी है,कमर में हलकी सी मोच है।
घर के देवता की देवी पर यही पुरानी सोच है।
चिल्लाती है वो खुद से जितना जोर लगा सकती।
फिर भी उसको मजबूरी है,किसी ओर ना जा सकती।
जिसे माँ ने डांटा ना था,पिता की बस पुचकार सुनी।
माँ जी ने है मारा उसे,पापा जी की बस दुत्कार सुनी।
मैं उसी घर के सामने वाली गली के कोने वाले घर में,
आज भी रहता हूँ,रोज सुनता हूँ चीखती औरत।
हर दिन यहाँ किसी घर में एक चीखती औरत है।
बस उसी के हिस्से सभी ने छोड़ी लुटी हुई गैरत है।
पतियों के अनचाहे रिश्ते हैं,नाजायज औलाद हैं।
बीवी बेचारी खटती,पिटती, बच्चे हैं औलाद हैं।
मेरी गली का नाम सुनो चंद्र विहार कहते हैं सब।
जाने किस उम्र के दानव पति यहाँ बसते हैं सब।
हर रात यहाँ एक औरत चीखती है,चिल्लाती है।
बाकी घर सारा सो लेता है,अपनी रात जग जाती है।
मैं आज भी उसी घर के सामने वाली गली में रहता हूँ।
जहाँ आज भी औरत बीवी बन मर जाती है।
'मैकश'
5-10-2016
4.संसार छोड़ा है
कुछ रिश्तों को तुझ पर उधार छोड़ा है।
ऐ दिल हमने तेरा घर बार छोड़ा है।
ये जो सरगोशी से पूछते हो ना हाल मेरा,
बस इसीलिए ये व्यापार छोड़ा है।
बहुत धोखे खाये हैं अपनों से हमने यहाँ,
बेगाने अपनाये हैं,रिश्तेदार छोड़ा है।
तुम अपनाते हो ना जो बेमन से हमको,
कीमत ले लेते हैं,बेगार छोड़ा है।
उसने भी कंधे से पकड़ पीछे कर दिया,
अकेले ही खुश हैं,यार छोड़ा है।
कहीं दूर जाके बैठ गया है खुदा मेरा,
देश,शहर,पनघट,संसार छोड़ा है।
'मैकश'
29-9-2016
5.मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी
पूछ रहा था पडोसी मुझसे,यार आजादी तुझे कैसी पड़ी।
सोचा,हँसा, मुस्कुराया,गंभीर होके बोल पड़ा.
कुछ लाख जवान बेटे,
कुछ लाख अधूरी सी विधवाएं।
कुछ ख़ाक होते घर जले,
कुछ लाख बिन जली चिताए।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
कई माँ घर से बिन बेटे रही,
कई गलियां भी रही सुनसान।
कई घर तो उजाड़ ही रहे,
रौशन होते गए जलते शमशान।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
अंदर से टूट रहा हूँ मैं,
एक दिन मुझसे बीत नहीं पाता।
मेरे घर का पलने वाला बेटा,
मेरे घर का अब नहीं खाता।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
कौवे सुनाते हैं आवाज अपनी,
कोयलों से गाया नहीं जाता।
इतने धोखे की लत लगाई है,
अब अपनाया नहीं जाता।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
घर के कारिंदे सोते रहे,
दुश्मन चौखट पर खड़ा हो गया।
बचाने वाले छोटे होते रहे,
दुश्मन अपनों से बड़ा हो गया।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
मजारो पे अब फ़कीर नहीं,
बार में बालाएँ बढ़ गईं।
जितनी भी कमी थी कभी,
ये मगरिबी हवाएं कर गयी।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
बेटियां बिकने लगी चौराहों पर,
खुले में जीना दूभर हो गया।
गैरों ने हथिया ली अपनी हवेली,
घर का मालिक बेघर हो गया।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
आजाद हुए सब इतना की,
अपना अपनों को ही बाँट गया।
जो शान से लहरा तिरंगा था,
रख उस पर कोई पाँव गया।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महंगी पड़ी।
मैं भर गया गद्दारों से,
बू आती है इन चोचले बीमारों से।
कब पाऊंगा असल आजादी,
'मैकश' पूछना पड़ता घर के मक्कारों से।
बस मेरे यार,मेरी आजादी इतनी महँगी पड़ी
'मैकश'
15-8-2016
6.मैं रोऊँ
मैं रोऊँ या गम में बिखरु,अब तेरा जाता है क्या,
मुझे भुला के सूने जग में,तू आखिर पाता है क्या।
***
हर दिन ही रुकेगा यहाँ पे मगर, रौशनी भी भटकती रहेगी सदा,
ख्वाब आँखों से निकला करेगे अगर,चांदनी भी सिसकती रहेगी सदा।
रूठे रहे ज़माने वाले,या रूठा रहे खुदा भी कह,
तेरा आखिर मुझसे नाता है क्या?
मैं रोऊँ........
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हां जो पूछा जो होता तो कहते भी हम,
कि आंसुओ से घटाए ये भर जाएँगी।
तुम जो आये ना आये फिकर अब नहीं,
ये सदाये हमारी भी मर जाएंगी।
आये,गए,रुके औ ठहरे,आज बता,
मेरे दिल में,तेरा आखिर "खाता " है क्या?
मैं रोऊँ..........
"मैकश"
19-5-2015
7. उदास कलम
आज मैं लिखने बैठा था कहानी अपनी,जाने क्यों कलम रास ना आयी।
जब भी बुलाया था कुछ लिख देने को, वो पास ना आयी।
#नजरे थकी कुछ बोझल सी, ना जाने क्या ये हाल रखे,
चलन तो फिर भी ठीक था, ना जाने कैसी चाल रखे।
जो ठुमक ठुमक कर चलती थी वो रवानी किधर गयी,
आती सब कुछ साँसों की वो सारी हालत बदहाल रखे।
जो मेरी ताकत थी अब तक वो मेरी ही आस ना आयी।
जब भी बुलाया.......
#आज चाल कुछ उसकी अधूरी सी रही।
कुछ टीस थी उसमे जो जरूरी सी रही।
बरकत जो देती थी खुद घिस घिस कर,
उसकी ये अदा ना जाने मगरूरी सी रही।
मर कर लिखने बैठा "मैकश" फिर तो उसकी सांस ना आयी।
आज मैं.....
'मैकश'
18-6-2015
8.एक छोटी सी भूल
एक छोटी सी भूल पे तेरी,देख ले हम जुदा हो गए।
तेरी सजा को निभाते हुए,देख ले हम फ़िदा हो गए।
#कुछ इल्तिज़ा थी बस तेरी, जो समझ ना आई हमे,
सब कुछ ही तो तोड़ दिया था, पर भुला ना पाई हमे।
जाने कैसी मझधार थी वो, ना जाने कैसी शोख लहर,
समन्दर बहा के साथ गयी ले, पर भिगा ना पाई हमे।
तेरे इश्क़ में टूटके जाना, देख ले हम अलहदा हो गए।
एक छोटी सी...........
#ग़ज़ल रही अधूरी तेरे बिन, पर हमने सब माफ़ किया,
जो लिखी थी वो भी कहती, हां हमने कोई पाप किया,
आहिस्ता से छूते "मैकश", चोट फिर से उभर ना आये,
तेरे कारन दिल का अपने, हर रस्ता फिर से साफ़ किया।
जा माफ़ किया तुझे ऐ जालिम,देख ले हम खुदा हो गए।
एक छोटी सी.........
'मैकश'
'30-7-2015'
9.फिर आखिर तुम क्यों आये
आज बता दो मुझसे मिलने, फिर आखिर तुम क्यों आये।
जब वक़्त हमारा बीत गया, फिर आखिर तुम क्यों आये।
#सीख लिया है हमने तुम बिन, जीना अब इस सूने जग में।
रुकना भी जायज ना था तो,चलने लगे तनहा पग में।
खूँ भी सर्द सा ठहरता है यही कही शीतल होकर,
तेरी याद भी जब बहने लगी,अब संग लहू के मेरे रग में।
बस बेचारी यादो को जिन्दा करने, फिर आखिर तुम क्यों आये।
आज बता दो....।
#मेरे दिल का ठौर ठिकाना , रब जाने या जाने ना कोई।
मैं तो हूँ "मैकश यहाँ पे, तू जाने या जाने ना कोई।
तू खुश हो जा पाकर उसको, जो तेरा ही प्यार है,
मेरी हालत खोकर तुझको, अब जाने या जाने ना कोई।
बस आज मुझे यूं तनहा करने, फिर आखिर तुम क्यों आये।
आज बता दो...।
#कल जब रोयेंगी नदिया इन आँखों की, तब इनमे सूनापन होगा।
सन्नाटो में तब रचते गीतों में,जैसे इनका सूनापन होगा।
जब भी मेरी गजल को पढ़ना, बस उसमे खो जाना तुम,
उन भाव भरी,टूटी ग़ज़लो में भी, शायद एक सूनापन होगा।
बस आज मेरी गज़लों में सजने, फिर आखिर तुम क्यों आये।
आज बता दो......।
'मैकश'
7-8-2015
10.दिल रोयेगा
कल फिर से दो आँखे खोजेंगी,घर के अँधेरे कोनो में।
दिल रोयेगा फिर से इश्क़ तेरा,मांग हाथ के दोनों में।
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बचपन बिखर गया था जब,तुमसे नैना दो चार हुए।
सब कुछ उधर गया था तब,तुमसे दिलकश दीदार हुए।
अरे वही जो बाते दिल की,आ बैठ जरा दोहरा ले हम, गुजर के अरसा बीत गया जब,तुमसे हमको प्यार हुए।
आती रहती है खुशबु सोंधी सी,इन माटी के खिलोनो में,
दिल रोयेगा..........।
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ऐसा क्या लिख दूं आज बता,दिल तेरा खुश कर जाए।
कहा से ला दूं आज बता, दिल तेरा ये तरकश कर जाए।
नहीं जानता मैं बस कुछ भी,तू गीता और कुरान यूं बन,
खोलूँ मैकद मैं किधर आज,दिल तेरा मैकश कर जाए।
दिल फिर से हो जाता है बच्चा,देख पालकी छौनों में,
दिल रोयेगा.....।
' मैकश '
31-8-2015