कैसे कह दूँ Shreyas Apoorv Narain द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कैसे कह दूँ

1. ना कहो तुम।

जो सर ढक के आये,वफ़ा ना कहो तुम।

जो रुस्वा हो दो पल,जफ़ा ना कहो तुम।

ये सोहबत,ये चाहत ये कैदी की किस्मत,

सजा है ये खुद की,दफा ना कहो तुम।

जो होंठों ने गाया, वो अल्फाज हो तुम।

सुर सातों ने सोचा,वो ही राग हो तुम।

किस्मत बेचारी,इन जुआरों की मारी,

कैसे कहें हम,की पुखराज हो तुम।

जो हमने है पहना, वो अंदाज हो तुम।

जो गिरती है हम पर,वही गाज हो तुम।

किसी से ना कहना,सदा चुप ही रहना,

जो कल था दीवाना,वही आज हो तुम

'मैकश'

16-3-16

2.जहाँ कही पर रहते थे तुम।

जगह वो खाली छोड़ चले हैं, जहा कही पर बसते थे तुम।

यादो को तनहा छोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

मालिकाना हक़ भी छूट गया है, अब कैसी ये सोहबत तेरी,

वो घर कमरा भी छोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

हैं जो भी यादो के कतरे, वही कही पर देखो हैं बिखरे,

बेवक़्त मुहाजिर मोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

तुमने ही तो था जोड़ा, खुशियो का अनसुलझा दामन हमसे,

बेवजह दीवाने तोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम। कुछ बतिया हमसे करते जाओ,टूट के चौखट बोला ऐसे,

कैसे यूं मुंह मोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

यायावर सा बीता जीवन, सूनी रही डगर और मंजिल,

फिर से मंजिल छोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

अँधियारो में ढूढ़ा जीवन, पर नूर मिला तो बस तुझमे,

हम वो चौबारे छोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

सबको मंजिल पाने की चाहत, मेरी ख्वाहिश तू ही तू,

हां आज मैकदे होड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

बस जिन्दा हो जा इश्क़ में यूं, कल बिखरेंगे "मैकश" यहाँ,

दिल अपना हम तोड़ चले हैं,जहा कही पर रहते थे तुम।

"मैकश"

13-8-15

3. एक कहानी लिख दी।

जागने को सारी रात हमने,अपनी एक कहानी लिख दी।

नींद को करके कत्ल तेरी,हमने अपनी रवानी लिख दी।

तू जब भी आया साथ में तेरे,ये गुफ्तगू सी चल निकली,

दिल तेरे ही नाम करके ,हमने अपनी निशानी लिख दी।

खत एक तेरा वो भी देख,हदीस हमारा बन बैठ गया,

बस तुझे खुदा बना अपना, हमने अपनी परेशानी लिख दी।

नफ़्तिश-ऐ-इश्क में गुजरे तो,कुछ समां भी महबूब रहा,

लफ्ज तेरे ये बोल के देख, हमने अपनी जुबानी लिख दी।

मखलूक गम का बाजार कहा ये,तू जो रहता था वहाँ,

देख जरा उसकी खातिर हमने,अपनी दिल की कुर्बानी लिख दी।

कुछ तो वजह सलामत रख ले,जिंदगी है बड़ी डगर,

खातिर याद रहे तुझे हमेशा,हमने अपनी जिंदगानी लिख दी।

यूं तो वजहें है जीने की पर, तू बन मौत मिले तो अलग वजह,

किसी और से छूट ना जाए,हमने अपनी प्रेम कहानी लिख दी।

अंतिम मख्ता ये "मैकश" का,तू और हम एक, मुसाफिर दोनों,

हम तेरे दीवाने बन बैठे,हमने अपनी दीवानी लिख दी।

'मैकश'

15-8-15

4. ग़ज़ल ये मेरी अमर कर दे।

दिल तेरा है तोडा हमने,अब एक सजा मुक़र्रर कर दे।

ना दोहराये ये गलती फिर से,हाथों को अपने सर कर दे।

भूल गए थे महफ़िल में,वो ख़ास तेरा,हम ऐसे ही,

ख़ास उसे ही रहने दे,आज हमे बस बेघर कर दे।

ना तोड़ेंगे ये दिल तेरा,टूटे फिर तो वजह नहीं,

पूछे बिना विदा कर देना,आज हमे तू दर बदर कर दे।

वक़्त जो बीता साथ में अपने,मुफ़लिस नहीं था जायज,

जायज को दे रहने अब, नाजायज को अकबर कर दे।

माना बुरा कहा था हमने,पर दिल था सच्चा,लफ्ज नहीं,

हाथ ये उसका थाम ले जा,तन्हाई की मेहर कर दे।

मिसाल बना दे इश्क़ की तू,सदा में चर्चे बस हो तेरे,

भूल बना के वजह ये ऐसे,बदनामी हमारे सर कर दे।

थोड़े सख्त तो लगते हैं,पर अंदर से टूटन की टूटन,

थोडा नशा तो चढ़ने दे,ये आज नशीली जहर कर दे।

यूं तो ग़ज़लो ने गलत कहा,तू ही कह दे जुबानी अपनी,

तेरा प्यार रहे सदियो तक,कलम आज ये कहर तो कर दे।

मेरे गीतों की वजह है तू,'मैकश' इससे ज्यादा ना दे पाया,

होंठो से इसे उठा कर बस, ग़ज़ल ये मेरी अमर कर दे।

"मैकश"

3-9-15

5. सब तेरे लिए

कुछ नजर लिखूँ,कुछ वजह लिखू,जो कलम को भाये वो लिखूँ।

सब तेरे लिए मैं लिखता आया,कुछ जो सबको भाये वो लिखूँ।

#

ये कैसा बाहर से सन्नाटा,अंदर से है आता शोर,

गिरती हैं विद्युत् हम पर,बादलो का झुण्ड घनघोर।

तितलियों का झुण्ड है घायल,बाज यहाँ जीते शह पर,

पाप की आंधी ले गयी उड़ा,सत्य यहाँ बन बैठा है चोर।

तो फिर ऐसे कैसे आज बता,मैं कतरे में बूँद लिखूँ।

सब तेरे लिए........।

##

सपनों में जीना भी वाजिब है,पर याद रहे हकीकत भी,

माना सब कुछ तुझको हासिल है,पर याद रहे गनीमत भी।

मैं तो तनहा बेचारा आवारा,हर सफ में तुझको ही ढूँढू,

महफ़िल में पदवी तो नाजिल है,पर याद रहे फजीहत भी।

बेशक गलियों में खोया सा,पर कैसे खुद को झूठ लिखूँ।

सब तेरे लिए.....।

'मैकश'

8-9-15

6. बेबस कलम

लिखने बैठे थे हम कहानी अपनी,कलम ने लिया हाथ थाम।

खबरदार बुरा ना मुझसे होगा कोई,जो फिर लिया उसका नाम।

टूट चुकी मैं हरपल बेबस, उसको लिखते उसको ढोते,

सौगन्ध तेरी खा के चलती रही,ना फिर किया कभी आराम।

रौशनी दोनों को खोती जा रही,कुछ तो संभाल लेने दो,

निकाल दो उसे दिल से अब,यादो को दे दो वो पावन धाम।

अब वो ना आएंगे,ना तक वो राहे जो पथराई हुई हैं,

बरबस ही यादो को करो मुतासिर,फिर से कोई ऐसा काम।

'मैकश'

10-9-15

7. शिकायत

तालीम दे देते हैं इश्क़ की पूछे बगैर, टूटे दिल की सफाई नहीं देते।

कहते हैं ये निशानी होगी मेरे प्यार की,बस जाते जाते कोई जुदाई नहीं देते।

कहते लिखने को है तुम्हे हमारी प्रेम कहानी ,लिखो,

लिख तो दें हम दिल पर,लिखने को रौशनाई नहीं देते।

हां कुछ शब्दों से ही बाते होती हैं अब हमारी,सुनो,

हां,नहीं,बस,कुछ नहीं,रहने दो, बेशक अब सुनाई नहीं देते।

कल महफ़िल में होंगे चर्चे उनके,और वो रहेंगे बेखबर,

उनकी यादो के मसले महफ़िल में,जाने क्यों तन्हाई नहीं देते।

आना जाना तो उनका मसला,जाने देना मजबूरी अपनी,

ना जाने की कसमों को ,जाने क्यों रुसवाई नहीं देते।

लफ्ज जो कल तक दिल में थे,आज गली में आवारा,

बदनाम हमे ही कर लेते हैं,जाने क्यों सुनवाई नहीं देते।

झोंका तो बन जाते हैं,बस हमसे गुजरना गवारा नहीं,

साँसे हमसे छीन कर अपनी,जाने क्यों पुरवाई नहीं देते।

गैरो को दिल का तख़्त मिला,पैबन्द भी यहाँ मंजूर नहीं,

मौत भी यहाँ ढूंढ ना पाये हम,जाने क्यों खुदाई नहीं देते।

"मैकश"

12-9-15

8. वो इस दिल से जाती नहीं।

उलझता रहा हूँ खुद से,वो खुद से सुलझाती नहीं,

आखिर ऐसी बात है क्या,जो वो मुझसे कह पाती नहीं।

दर्द सह के देख लिया,आज हकीकत जान पड़ी है,

ऐसा कौन सा है दर्द बता,जो खुदसे सह जाती नहीं।

बता देती तो क्या जाता,ऐसा जो उसे घोले जा रहा,

गम तो करती रहती है,वो मेरे इश्क़ में घुल पाती नहीं।

हम दोनों के बीच ना आओ,आखिरी लफ्ज थे बस,

हम तो दिल से जा चुके,वो इस दिल से जाती नहीं।

वक़्त नहीं है पास वहाँ,माफ़ करो और जाने दो,

ऐसे जाने दे सकते हैं कैसे,वो कभी बाद में आती नहीं।

थोड़े से अकेले हैं हम,कमतर तन्हा वो भी वहाँ,

अधूरी सी रह जाती है,पर हमे खुद से मिलाती नहीं।

थोड़ी दुनिया की मैकश,कुछ मैकदे की रंजिश हमसे,

प्यासे रह जाते हैं पी पी,क्यों वो आँखों से पिलाती नहीं।

"मैकश"

18-9-15

9. कौन कहाँ पाता है मुझको

तुझसे जो उलझता हूँ तो,ये जहाँ भाता है मुझको।

तुझे भुला के सूने जग में,कौन कहाँ पाता है मुझको।

थोड़ी है बेकारी,थोड़ी है रुसवाई चल साथ कही पर,

तन्हा अपने सूने पग में,नजर कहाँ आता है मुझको।

तुझको देखा कल एक पल,नजर झुकी तो तुर्बत जैसे,

मख़्सूस मेरे सूने दिल में,शजर कहाँ आता है मुझको।

महसूस यहाँ होता है मुझको,दिल मेरा है तेरा घर,

बिना बुलाये पंछी आँगन में,पैगाम कहाँ लाता है मुझको।

खामोश हैं वो तो बेहतर है,बोल पड़े तो रब ही जाने,

कितने दरिया फिर दिल हारेंगे,ये सेहरा कह जाता है मुझको।

तूने मुझे दुआएँ दे दी,मैं ठहरा टूटा दिल जाहिल,

खुदा यहाँ मौजूँ है माफिक,गवाह कहा जाता है मुझको।

तुम बस इश्क़ के हो काबिल,ये नजर तुम्हारी नजर नहीं,

बिना नजर के यहाँ तेरी अब,कौन पिला पाता है मुझको।

तू देगा जिरह में गवाही, कर, वादा मेरी बेगुनाही का,

तेरी याद में पीता हूँ तो,"मैकश" कहा जाता है मुझको।

"मैकश"

22-9-15

10. दिल के टूटन की बात

दिल के टूटन की बात सुनो,वो खुश तो हैं तनहा होकर,

मिलते हैं जो मुस्का कर वो,कुछ हँस कर कुछ रो कर।

यहाँ नींद भी आती है तो,सपनो में आ जाते हैं वो,

यही तो हमने पाया है अब,प्यार में उनके खुद खोकर।

चन्द कमाई मेरे दिल की,जो अब शायद आज लुटाता हूँ,

वाह कमाता हूँ हरदम,जब लिखता हूँ उसका होकर।

बाजारों में मोल नहीं अब,कल महफ़िल में ये पाया हमने,

खरीद हमें वो ले जाए और,मिट जाएँ हम खुद बिककर।

एक यही आस है आज हमारी,वो सोया करेंगे चांदनी में,

चाँद निहारेगा वहाँ दूर से,और देखेंगे हम पास में सोकर।

अब ना है मदीने की चाहत,ना ख्वाब हैं हिजरत के बस,

वो जन्नत बन जायेगी,जहाँ ले चलेंगे वो हाथ थामकर।

किस्मत को कैसे देखूँ लकीरों में,हाथ उन्होंने पकडे है,

तदबीर बदल देते हैं बस वो, माथे पे यूं हाथ फिराकर।

कल उर्दू में नज्म लिखी,कविता हुई तो हिंदी में जैसे,

हिंदी में प्रेमी वो कहते "मैकश",उर्दू में कह देते शायर।

"मैकश"

16-10-15