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आइना सच नहीं बोलता - 14

आइना सच नहीं बोलता

( 14 )

लेखिका _नीलिमा शर्मा निविया

सूत्रधार _ नीलिमा शर्मा निविया

सुबह का सूरज कुछ अलग सी आभा लिए उसके कमरे की खिड़की से अन्दर झांक रहा था . उसके मन के सीले कोने भी सूरज के साथ माँ भाभी के प्यार की ऊष्मा पाकर अब प्रफुल्लित महसूस कर रहे थे . उदासी की एक महक अब उसमे स्फूर्ति सी जगा रही थी | उसे सिर्फ प्यार याद रखना हैं कोई नाराजगी या गुस्से के पल नही, कह कर उसने मन को समझाया और धीरे से पलंग के नीचे रखी अपनी स्लीपर खिसकाई .

गुलाबी स्लीपर ! आहा!!!!! यह रंग तो लडकियों का होता और ब्लू लडको का . उसको किस रंग के छोटे कपडे खरीदने होंगे या बनाने होंगे ,सामने आइना देख मुस्कुरा दी नंदिनी , चेहरा बिना किसी श्रृगार के भी चमक रहा था , आँखे जैसी सुन्दर आज लगी उसको पहले कभी न लगी थी .खुद को ही खुद से प्यार होने लगा . इतनी बुरी तो नही सूरत कि दीपक उसको प्यार न कर सके . उसको याद आया कि किन्ही नाजुक पलो में दीपक उसकी आँखे चूमता और कहता तुम बहुत प्यारी हो और मासूम भी .

लेकिन अपना मतलब पूरा होते ही उसको झटक कर एकदम बालकॉनी में ऐसे जा खड़ा होता जैसे उसने कोई गुनाह भरा काम किया हो, लेकिन नंदिनी को उस वक़्त अपना मन और तन सुवासित सा महसूस होता था . तकिये को बाहों में भर सो जाती और न जाने कब तक सिगरेट फूँक कर दीपक उसके साथ वाले बिस्तर पर आकर सो जाता .

बाहर भाभी रसोई में नाश्ता बनाने में व्यस्त थी और उसको देखते ही मुस्कुरा कर बोली “उठ गयी आप ,बड़ी गुलाबी गुलाबी लग रही हैं , लगता हैं रात भर जीजाजी सपने में आते रहे “

“नही भाभी ! कोई भी सपना ही नही आया मैं तो बहुत गहरी नींद सोयी . आप चाय पिलाए न अपने हाथ की ढेर सारी इलायची वाली “

चाय का कप थामे दोनों ननद भाभी सखियों की तरह एक दूसरे से बतियाने लगी , कुछ तो था जो दोनों एक दूसरे में टटोलने की कोशिश कर रही थी . “

“भाभी भैया नही जागे अभी तक “

“नही ! रात देर से लौटे थे न एक मीटिंग से “

उसने सुनी थी भैया की देर रात चीखती चिल्लाती आवाज़ लेकिन भाभी को बता कर शर्मिन्दा नही करना चाहती थी .

गर्म चाय का घूँट भरकर उसने भाभी की तरफ देख कर कहा ...

“भाभी अच्छा एक बात बताओ यह पुरुष क्या ऐसे ही मूडी होते जो उनका मूड पल पल बदलता “

बाकियों का तो मालूम नही हाँ तुम्हारे भैया जरुर बदल जाते हैं दिन भर चौधरी बने घूमते हैं और कहते तुझे कुछ आता भी हैं क्या ?, लेकिन शराब के नशे में मैं ही उनको रेखा नजर आती मैं ही करिश्मा कपूर “ भाभी ने हँसते हुए कहा लेकिन नंदिनी को नजर आरही थी उनकी आँखों में एक उदासी वाली डोरी .

“क्या जीजाजी भी ऐसे ही हैं ?”

“पता नही ! मैं अभी तक समझ नही पा रही हूँ कुछ भी “ कहते कहते नंदिनी रुक गयी लेकिन प्रत्यक्षत बोली “ अभी पुराने हो जाए थोड़े तब कुछ मालूम हो न .”और दोनों ठहाका लगा कर हँस दी .

कितना अजीब होता न, विवाह से पूर्व लड़की को भाभी की आँखों में कुछ भी नजर न आता. ना उदासी न असंतुष्टि लेकिन जब उसका अपना पाँव उसी जूते में आजाता तो उसे भाभी के साथ अपना रिश्ता फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता महसूस होती .

लैंडलाइन पर दो बार किसी की मिस्ड कॉल आ चुकी थी हर बार नंदिनी का मन कहता काश यह फ़ोन दीपक का हो लेकिन हर बार फ़ोन उठाने से पहले ही कट जाता . अबकी बार नंदिनी फ़ोन के पास ही ख़ड़ी हो गयी और पहली ही घंटी पर उसने फ़ोन उठा लिया

“हेल्लो !हेल्लो ! कौन बोल रहा हैं ?”

लेकिन दूसरी तरफ गहरा मौन था

बार बार हेल्लो बोलने का जवाब भी मौन था थककर नंदिनी ने फ़ोन रख दिया और इंतज़ार करने लगी उसके फिर बजने का लेकिन अब फ़ोन ने जैसे मौन धारण कर लिया था

मायके आना जैसे पंख लग जाना अरमानो को भी इच्छाओ को भी , किताबे उसका पहला प्यार थी

लेकिन गर्मी की छुटियाँ होते ही हर बरस सिर्फ किताबे पढ़कर आँखे न ख़राब करे तो नंदिनी तो माँ कभी सिलाई तो कभी कढाई की कक्षा में उसका दाखिला करा देतीथी अपनी किताबो की अलमारी उलटपलट करते हुए नंदिनी ने कुछ कढाई और क्रोशिया के डिजाईन की अपने लिय दो किताबे निकाली .

सुबह से शाम कब किताबो के साथ हो गयी उसे मालूम ही न चला .अमृता प्रीतम की कविता “ मैं तुझे फिर मिलूंगी “ के साथ उसे दीपक से बेसाख्ता मिलने का मन हो आया लेकिन जैसे सब भूल गये उसको इन कुछ दिनों में

“नंदिनी तुझे आये आठ दिन हो गये .कल मैं और तेरे पिताजी तेरे ससुराल जाकर तेरे ससुर जी की तबियत का हाल पूछ आयेंगे . रमा चाची को छोटी माता निकल आई हैं इसलिय उन्होंने तुमको आने से सख्त मना किया हैं “ माँ ने फलो की प्लेट उसके सामने करते हुए कहा

“ओह हाँ ! ससुर जी को भी तो पूछना होगा न फ़ोन करके “. नंदिनी ने माँ के हाथ से फल लेते हुए कहा

“माँ वहां मेरे कमरे से विवाह की एल्बम और विडिओ लेती आना “

नही गुडिया मैं माँगती हुई अच्छी नही लगूंगी , फिर जब कभी दुबारा जायेंगे तो तब ले आना ठीक रहेगा . “ माँ ने समझाते हुए कहा और खाली प्लेट लेकर बाहर चल दी

कितना मुश्किल समय हैं न, ना यह घर मेरा रहा अब और वो घर मेरा हुआ नही अभी तो मेरा अस्तित्व ही क्या . नंदिनी की सोचे अब व्यापक होने लगी , अब उसका भाभी की तरफ ध्यान गया कि माँ कहती हैंकि भाई भाभी अब लड़ते बहुत हैं ,भाभी भी अब जवाब देने लगी हैं उसका मन भाभी की तरफ से भावुक हो आया . क्या करे भाभी भी .छोटी उम्र में विवाह फिर संतान उसको भी कहाँ मौका मिला पंख पसार कर उड़ने का ,

अभी पर उगने ही शुरू होते हैं कि चिड़िया को सोने के पिंजरे में बंद कर दिया जाता हैं

यह लड़की होना कितना मुश्किल होता है न ,छोटी सी उम्र में जब सपने देखने के लिए आँखे बंद होती तो नजर आता सफ़ेद रंग के घोड़े पर एक सजीला सा नौजवान जो चलते भागते घौड़े पर राजकुमारी सा उन लडकियों को उठाकर ले जाता एक सपनीले शहर में लेकिन जैसे ही धुंध ख़त्म होती एक कठोर धरातल नजर आता जहाँ सुबह से शाम तक चक्करघिन्नी की तरह घूमती नजर आती वो राजकुमारी और हर गलत काम पर उसको यही सुनाया जाता

“तुझे रखा किसलिये हैं इस घर में , घर सही से सम्हाला नही जाता क्या तेरे से “, मानो लड़की कोई बेजान वास्तु हैं जिसे खरीद कर रखा जाता हैं , पैदा करने वाले माता पिता भी अपनी बेटी सब सुखसुविधा के सामान संग देते हैं

उसने कई बार अपने पिताजी और भाई के मुंह से यह शब्द सुने थे लेकिन तब इनका मर्म नही समझ पायी थी . माँ के लाख बुरा कहने के बावजूद उसे भाभी पर कोई गुस्सा नही आया बल्कि उसको अपनापन ही महसूस हो रहा था उनके साथ

“यह दीपक फ़ोन क्यों नही कर रहा उसको आखिर “

बच्चे को महसूस कर नंदिनी अक्सर उदास हो जाती उसका मन चाहता था दीपक से हर बात शेयर करे उसका हाथ अपने उभरते पेट पर रख कर खूब सारे सपने बुने .

लेकिन इन उतार_चढ़ावों को वो अकेले महसूस कर रही थी या माँ और भाभी के साथ कभी कभी बात करती थी . माँ से भी अब उसका जुड़ाव बढ़ रहा था , “माँ होकर जाना माँ का दर्द “वाली बात अब सच लग रही थी .

कई बार पिताजी और भाई की तेज आवाज़ को वो मध्य आकर बंद कराने का प्रयत्न करती लेकिन हर बार “अब यह तुम्हारा घर नही हैं , स्त्रीयों को चुप रहना और सहना आना चाहिए तुम भी सीख लो यह सब , नयी नयी हो अभी से जड़ेजमा लो वहां वरना कहीं की न रहोगी “कहकर चुप करा दिया जाता .

नंदिनी अपने घर आकर भी परायी हो गयी थी और पराये घर को अपनाकर भी पराये घर से आई हुयी थी नंदिनी . आखिर उस अपना क्या था ? एक प्रेम का पल भी ऐसा नही था उसके पास जिसे उसने अपने अनुसार जीया हो ? उसके हिस्से अवहेलना ही आई थी अभी तक .

यह कहीं कहाँ होता हैं कोई स्त्री आज तक न जान पायी और हर स्त्री को तलाश है उस कहीं नाम के कोने की जहाँ वो अपने अस्तित्व को पहचान सके और अपने आप को जी सके . कभी वह अंदर से परेशान होती तो कभी बाहर से! एक उमस सी छा गयी थी. वह उस उमस को झेलने के लिए मजबूर थी. आखिर लड़की का जीवन त्याग, परिवार आदि के इर्द गिर्द घूमता रहता है. उसका अपना कमरा कितना अपना है? कितना अपना है उसका अपना कहा जाने वाला पल? उसके अपने कपडे किस सीमा तक उसके अपने हैं? उसकी आसमान कहा जाने वाला आसमान कितना अपना है? नंदिनी का दम घुटता जा रहा था.

उसे ऐसा लग रहा था कि न जाने कब से वह रेगिस्तान में खडी थी, वह मरीचिका की तलाश में थी. जो मरीचिका उसके सामने आती और गायब हो जाती. कभी वह दीपक से अपने लिए इंसान होने का अधिकार मांगती, तो कभी अपने घर वालों से! पर इससे पहले उसे खुद सोचना होगा कि क्या उसने कभी खुद को इंसान माना? क्या उसने कभी सोचा कि वह परिभाषा से हटकर काम करे? क्यों वह सबकी अपेक्षाओं को पूरा करने की मशीन बनती गयी? कब उसने सोचा कि छलांग लगाकर अपना चाँद पकड़ ले? कब उसने सोचा कि जलाने वाली चांदनी को गले लगा ले? कब उसने सोचा कि कहने दो, मैं तो अपने मन की आइसक्रीम खाऊँगी? आज तो अपने मन के आकार की रोटी बनाऊँगी?आज तो सिर्फ किताबे पढूंगी . ओह, वह नहीं कह सकी थी! जबकि उसे कहना था! उसे अपने मन का पहाड़ा कब पढने दिया गया, तो क्या कभी उसने खुद भी कोई कोशिश की!

सहेलियों की बाते याद आती जो अपनी मधुर प्रेम की कहानियाँ सुनाया करती थी तो कभी माँ की बातें कि ससुराल जाकर चुपचाप सब कुछ बर्दाश्त करती रहो एक दो साल में सब अपना लेते हैं लेकिन नंदिनी को भाभी को देख कर लगा कोई नही अपनाता बस स्त्री को खुद आदत हो जाती हैं उन हालातो में जीने की ,उनको अपनी किस्मत मान स्वीकार लेने की ,

तो दीपक भी अब उसकी किस्मत ही हैं जैसी भी है भगवान् ने उसकी किस्मत में अगर रुखा सा पति लिखा तो कुछ सोचकर ही लिखा होगा यह सब पिछले जन्मो का कर्म है कहकर मन बहलाने की कोशिश करती नंदिनी लेकिन तभी मन का एक कोना बगावत करता उठकर अपने लिए जीने को प्रेरित भी करता

“सुन बिटिया सुबह उठकर दो घूँट पानी जरुर पीया कर घी का काम करता हैं और हाँ सौफ नारियाल भी खूब खाया कर आजकल , बेटा गौरे रंग का होगा “

माँ ने रात के खाने के बाद सौंफ की डिब्बी पकडाई तो नंदिनी हैरान हुयी

“बेटा!!! “

“अगर बिटिया हुयी तो माँ ?

उसने सवाल करते हुए माँ की तरफ देखा

“शुभ शुभ बोल बिटिया रानी “

“ क्यों माँ ! जब मैं जन्मी तो अशुभ हुआ था क्या ?”

“ ऐसा नही बिटिया लेकिन पहली संतान बेटा हो तो ससुराल में इज्ज़त बढ़ जाती हैं , जमाई बाबू भी बेटे की ही इच्छा रखते होंगे ना ,तेरे ससुर ने तो आने वाले पोते के लिये अभी से जायदाद खरीदनी शुरू करदी हैं “

लेकिन दीपक ने तो इस विषय पर कभी बात भी न की , उनको तो संतान ही नही चाहिए थी . उन्होंने तो यह कहा कियह उसकी संतान आ ही क्यों रही हैं इस दुनिया में . सब नंदिनी का कसूर हैं उसका नही “

कहने को कह तो गयी नंदिनी लेकिन भाभी और माँ की प्रश्न वाचक नजरो का सामना न कर पायी और अचानक उसकी आँखों से कुछ आंसूं टपक ही पड़े

और अब सभी स्त्रियाँ एकाकार हो गयी थी मानो हर रिश्ते को पार कर , कोई भी स्त्री माँ होने के हक पर प्रश्न या अधिकार उस पुरुष को भी नही देती हैं जो उसकी संतान का पिता होता हैं. और माँ के गले लगकर नंदिनी रो ही पड़ी और बह उठा एक सैलाब , भावनाओं का सैलाब जो पिछले कई महीनो से ठहरा हुआ था भीतर और ठहरे पानी में अक्सर काई जम जाती .आज हलचल हुयी तो सब बाँध टूट गये और सब स्त्रीयां अपने अपने हिस्से के दुःख को याद कर रोने लगी एक दुसरे को दिलासा देते देते

यह पुरुष अपने चरम आनंद को प्राप्त करते हुए तब उसकी परिणिति को नही सोचते और उर्वरक जमीन पर गिरे उस दो बूँद वीर्य की पैदावार की जिम्मेवार बना दी देते स्त्री को ,और फल लगते ही मालिक बन गौरान्वित भी फिर से पुरुष ही होते इस मध्यकाल में एक स्त्री पल पल किन भावो से गुजरती हैं नही जान पाते हैं , उनके लिए पिता हो जाना आसान होता हैं उतना जितना एक स्त्री के लिय माँ होना जितना कठिन

“माँ ! मुझे बेटी ही हो काश “, कहती नंदिनी के मुंह पर हाथ रखते हुए माँ बोली

“जो भी हो बिटिया बस तेरी कद्र करने वाली संतान हो “

माँ बेटी बहूँ सब के सांझे जज्बात हो गये थे माँ की शिकायते भाभी से अब कम होने लगी थी .बात करने का लहज़ा भी बदल रहा था दोनों का आपस में . नंदिनी अक्सर मुस्कुरा देती थी अब लेकिन दीपक की याद अक्सर उसे अकेले कमरे में और भी उदास कर देती थी . सास का फ़ोन अक्सर आजाता और प्यार से नसीहते देती सास में उसे माँ की छवि नजर आती .दीपक ने पुरानी नौकरी छोड़कर नयी जगह नौकरी कर ली थी यह खबर भी उसको नीतू दीदी और सास से मालूम हुयी थी लेकिन वो दीपक का हाल चाल चाहकर भी न पूछ पाती क्युकी वो अपने सिवा अब किसी का मन नही दुखाना चाहती थी .कोई न जान पाए कि उनका बेटा अपनी पत्नी की अवहेलना कर रहा हैं .

छोटे कपडे भी बनाने होंगे ,अब खुद ही खुद को सम्हालना भी होगा न . दीपक की नजर में अब उसे खुद को स्वालंबी भी साबित करना होगा . अपनी हर जरुरत या काम के लिए उसकी तरफ देखने से बेहतर होगा खुद कर लेना . नंदिनी की सोच अब बदल रही थी पहले की छोटी सी नंदिनी अब परिपक्वता से सोचने लगी थी .

माँ ! क्या तुम भी मेरी तरह सशंकित रहती थी जब पहली बार माँ बनी “

नंदिनी ने एकसुबह माँ से मुस्कुराते हुए पूछा

“हाँ बिटिया लेकिन माँ होने के बाद स्त्री को एक नया जन्म मिलता हैं जैसे . सब बदल जाता सोचना खाना पीना रहना बोलना , क्युकी माँ के हर कदम का असर उसकी संतान पर पड़ता हैं

माँ ने प्यार से उसका सर थपथपाते हुए कहा

नंदिनी सोच रही थी और उसने कपडे बदल कर बाजार जाने की सोची ताकि खरीद लाये कुछ ऐसी पुस्तके जिनसे उसके मन और तन में होने वाले बदलावों पर उठती जिज्ञासाए शांत हो सके ............

नंदिनी के अन्दर का तूफान अब आकार लेने लगा है, जब तक तूफान का लक्ष्य न निश्चित हो तभी तक तूफान से डरना चाहिए. उसके बाद तो स्वागत करना चाहिए, ये तूफान ही है जो पुराना तहसनहस कर नए की नींव डाल देता है. नंदिनी के अंदर काफी कुछ तहस नहस हो चुका है, और वह अब उस ज्वालामुखी के लावे से अपनी नई पहचान बनाएगी.

भाभी के कमरे में रेडियो पर सुनाई दे रहा हैं

“काँटों से खींच कर ये आँचल, तोड़ के बंधन बांधी मैंने पायल, कोई न रोको दिल की उड़ान को, दिल वो चला, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है”

“हुंह, मरे दुश्मन, अब तो नया जन्म होने जा रहा है ........

लेखिका /सूत्रधार

नीलिमा शर्मा निविया

परिचय

नाम- नीलिमा शर्मा निविया ..

शिक्षा - एम् ए अर्थशास्त्र बी एड

स्वतंत्र लेखन

प्रमुख विधा - लघुकथा कहानी छंदमुक्त कविताएं मुक्तक

२० काव्यसंकलनो में कविताएं शामिल

४ लघुकथा संकलनो में कथाये शामिल

एक लघुकथा संकलन "मुट्ठी भर अक्षर " का सह्सम्पादन

कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओ में लघुकथा कविताओ का प्रकाशन

कई संचार पत्रों और इ पत्रिकाओ में रचनाये प्रकाशित

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