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प्रायोरिटी

प्रायोरिट

"ट्रिंग"

"ट्रिंग"

"ट्रिंग"

सुबह सुबह फ़ोन की एक के बाद एक ग्यारह मैसेजो की आवाज से मेरी की नींद खुली। वैसे मैं सोशली काफी एक्टिव हूँ, ऐसे मैसजो का जवाब उतनी जल्दी देता हूँ जितनी जल्दी दे सकता हूँ। शायद ऐसे मैसजो को जवाब देना और सोशली एक्टिव होना मेरी प्रायोरिटी होती है पर उस दिन वो नाम पढ़ कर ना ही मैंने जवाब दिया और ना ही मुझे उसको रिप्लाई देना मेरी "प्रायोरिटी" लगी इसलिए चुपचाप फ़ोन साइलेंट करके सो गया।

वो मैसेज था "श्रद्धा" का,

मेरी श्रद्धा का (कुछ समय तक) पर अब मेरी प्रायोरिटी बदल चुकी थी और अब वो मेरी नही रही थी.....!

ये जो जिंदगी होती है ना जिंदगी........पैदा होने के बाद पहली बार रोने से लेकर आखरी बार सोने तक बीच का जो समय होता है जिसे नॉर्मली लोग जिंदगी या लाइफ कहते है, जिसके बारे में कहा जाता हैं कि धीरे धीरे ये बदल जाती है पर हकीकत तो ये है कि......

.....ये कभी नही बदलतीं, ये जिंदगी हमेशा ऐसे ही रहती है....हां अगर कुछ बदलता है तो वो होती है "प्रिओरिटीस" यानि "प्राथमिकताएं या जरूरते"।

जैसे श्रद्धा की प्रायोरिटी बदल गयी थी आज से तीन हप्तो पहले.....। जब मैं उसकी प्रायोरिटी लिस्ट से हट गया था और उसकी जिंदगी के सबसे जरुरी इंसान से अजनबी बन गया था। आज भी मुझे वो दिन याद है जब उसी कॉफ़ी शॉप जिसमें पहली बार एक दूजे से इजहार किये थे, में बैठ कर श्रद्धा ने मुझे अपनी जिंदगी से बेदखल कर दिया था।

वो दिन शायद शनिवार था, पिछले पांच दिन से एक भी फ़ोन कॉल्स और मेसेजस के रिप्लाई ना देने वाली श्रद्धा का कॉल आया और हम फिर उसी कॉफ़ी शॉप में मिलने गया जहाँ मैंने पहली बार प्रपोज़ किया था। उस दिन पहली बार श्रद्धा मेरा इंतज़ार कर रही थी और मेरे आते ही बोल पड़ी

"इट्स आल ओवर गौरव.....अब हमारे बीच पहले जैसा कुछ नही रहा, अब मुझे भूल जाओ" इतना कह कर श्रद्धा बिना मेरा जवाब सुने या बिना मेरी तरफ देखे ही वो वापस लौट गयी।

वो तो सिर्फ अपना फैसला सुनाने आई थी, क्योंकि अब उसकी लाइफ मेरी इतनी भी अहमियत नही रही थी कि मैं उसे कुछ कह पाता।

मैं और श्रद्धा पहली बार कॉलेज में मिले थे। नए टर्म वालो का एडमिशन हुआ था....सीनियर्स जूनियर्स की रैंगिंग करने में लगे थे। अरे हमारे कॉलेज में रैंगिंग सिर्फ नाम की थी बाकि सब तो फ्रेशर्स पार्टी थी, सीनियर्स जूनियर्स का सिर्फ डर कम करने के लिए थोड़े अजीबोगरीब काम सौपते थे। मैं भी उस रैंगिंग सेशन का हिस्सा था और वो भी। फर्क सिर्फ इतना था कि मैं सीनियर्स की बैच में था और वो जूनियर थी मेरी। उसके साथ दूसरी पांच लड़कियों की रैंगिंग होनी थी, बाकियों को उनके नाम शौक और कर सकने की क्षमता के आधार पर कोई ना कोई काम दे दिया गया था और लगभग सबने अपने हिस्से का काम पूरा कर भी लिया था। अब बारी थी श्रद्धा की।

"नाम क्या है तुम्हारा?" सीनियर्स की पैनल में से एक लड़के ने मस्ती ले मूड में पूँछ लिया।

"जी, जी, श्रद्धा....श्रद्धा नाम है, श्रद्धा शर्मा" उसने थोडा डरते डरते जवाब दिया।

जब तक उसका जवाब आता तब तक सीनियर पैनल के दूसरे सीनियर ने अपना जवाब दाग दिया वो भी पुरे रंग के साथ, बनारस के भांग के रंग के साथ

"कोई बॉयफ्रेंड है तुम्हारा? कभी किसी से प्यार किया है?

"जी........जी.......न.....नही" उसने घबराते घबराते जवाब दिया।

"तब तो किसी को प्रपोज़ भी नही किया होगा?" ये सवाल तो और भी मादक था और इस बार श्रद्धा सिर्फ और सिर्फ वहाँ खड़े सभी का चेहरा निहार रही थी।

"ऐसे मुर्दाशंख सी आँखे लिए काहे ताड रही हो और किसे ताड रही हो.....!!!" एक लड़की ने तपाक से बोल दिया।

"जी नही"

"तो चलो.....आज ये महान काम भी कर दो, यही तुम्हारा रैंगिंग टास्क है"

एक मिनट तो हक्का बक्का हुई बूत सी खड़ी श्रद्धा ने अगले ही पल एकक काल्पनिक बुके को ले कर अपने घुटनो पर बैठ कर मुझे प्रपोज़ कर बैठी और मैंने उस रैंगिंग प्रपोसल को हां बोल का उसे अपनी मान बैठा।

उसका फर्स्ट इयर ख़त्म होते होते हम कॉलेज के लैला-मंजनू, हीर-राँझा जैसे ही प्रसिद्ध हो चुके थे। हम "Made for Each Other" "सो क्यूट" कपल थे।

हम दोनों की सारी प्रिओरोटी एक दूजे से ही शुरू हो कर एक दूजे में ही ख़त्म होने लगती थी, हम ही एक दूसरे की प्रायोरिटी थे।

दिन भर चैटिंग, कालिंग, फेसबुक, व्हाट्सऐप, हाइक, लेक्चर्स, रोमिंग, मूवीज, शॉपिंग ऐसे ही लगभग सारे कामो में साथ रहते रहते ना जाने कब 3 साल पुरे हो चुके थे हमारे रिलेशनशिप को पता ही नहीं चला।

फिर अचानक जब सब कुछ बिल्कुल सही चल रहा था, जब हम एक दूसरी की टॉप मोस्ट प्रायोरिटी होने ही वाले थे तभी......तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने हमारी सारी प्रायोरिटी बदल कर रख दी और दुनिया की माने तो ये ज़िन्दगी थी जो बदल रही थी।

आज से करीब छः हप्ते पहले कोई और श्रद्धा की जिंदगी में आ चूका था, कौन था वो मुझे नही पता शायद उसके बचपन का दोस्त था। उसके आ जाने पर अब श्रद्धा की प्रायोरिटी बदल गयी और धीरे धीरे मैं से कोई और उसके लिए इम्पोर्टेन्ट हो गया और तीन हप्ते पहले ही......।

एक बार फिर मेरा ध्यान मेरे फ़ोन के आवाज से ही भंग हुआ। इस बार कोई मैसेज नही बल्कि कॉल था, कॉल था एक जाने पहचाने अनसेव्ड नंबर से......और ये......नंबर था.......श्रद्धा का। एक समय था जब श्रद्धा का नाम डिस्प्ले पर देखते ही एक अलग जोश आ जाता था मुझमे और एक आज का वक्त है जब मैं उसका कॉल रिसीव रहा हूँ, शायद मेरी भी ज़िन्दगी बदल चुकी है या फिर.....मेरी प्रिओरिटीस बदल चुकी है..!!!

एक के बाद एक पांच मिस्ड कॉल हो चुके थे पर मैंने कोई जवाब नही दिया था ठीक वैसे ही जैसे उस दिन कॉफ़ी शॉप में मैं कुछ नही बोला था। उस दिन उसके जाने के बाद कुछ घंटो तक मैं वही चुपचाप बैठा हुआ उसके साथ बिताये पलो को याद कर रहा था पर नाम ही मेरे लब्ज चल पाये और ना ही मेरी आँखों ने उसके लिए रोना उचित समझा पर इसका मतलब ये नही की मुझे दुःख नही था.....था.....बहुत दुःख था पर एक बात समझ आ गयी थी कि अब गौरव श्रद्धा की प्रायोरिटी नही..!!

एक बार फिर फ़ोन रिंग होने लगा और इस बार मैंने फ़ोन उठा ही लिया। मेरे कहने से पहले ही एक आवाज आई, एक जानी पहचानी आवाज जिसके लिए मैं कभी पागल था वही आवाज। मैंने उससे बात की.....आखरी बार....सिर्फ उसे अपनी प्रिओरिटी बताने को।

"हेल्लो गौरव, क्या हम मिल सकते है?"

थोड़ी देर शांत रहने के बाद मैं जवाब दिया

".........नही.....अब नही"

"क्यों"

"क्योंकि अब वो जिंदगी नही है, और शायद अब तुम मेरी प्रायोरिटी नही हो.....!!"

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