बदलते रिश्ते
काश वो वक्त वहीं रुक जाता, वहीं थम जाता।
जिंदगी के इस मोड़ से तो न गुजरना पड़ता।
इस आलम मे न कोई अपना है, न कोई पराया है।
यहां पर तो सब है वक्त के बदलते रिश्ते।
जिंदगी की अजीब दास्तान का ये अजीब इम्तिहान।
नजाने कहां से उठा है ये लाजवाब तूफान।
कोरे कागज की तरह है प्रीत का ये जीवन
दुनिया अपने हस्ताक्षर छोड़ जाती है हरपल।
अंश
खुद ही मैं उतना उलझा हूँ मैं कि,
अपने ही अंश को नहीं पहचान पाया मैं।
जो है मेरा ही साया
उसी को कर दिया मैंने पल में पराया,
रिश्ते निभाना मुझे क्यों नहीं आया?
अन्जाने में ही सही मैने
नजाने क्या कर दिया?
जिंदगी में मैंने अपनी
भर दी गमो की परछाईया।
आदत से मजबूर कैसी
जीवन में मेरे भर आई तन्हाईया!
जिंदगी की इस कसौटी में
क्यों नहीं खरा उतर पाया मैं?
आखिर मैंने ऐसा क्यों किया?
जिंदगी में अपनी की है मैंने,
बहुत बड़ी गलतियाँ।
अब एक ही है कसक की
ईश्वर दे हमें ये भूलों की माफिया।
खुदा हो सके तो हमे माफ करना
शायद भूल से प्रीत ने हमें हो बचाया।
रोशनी
आज ये लम्हे जिंदगी में हमारी फिर पास आए हैं।
जीवन में हमारे एक रोशनी जैसे छाई है।
कइ साल बीत गए ऐसे ही चलते चलते।
बरसों से यहां तन्हाइयों से भरी खामोशी है।
हमनें तो निभाए थे अपने हर कसमें वादे
तुमने बेवफाई समझा तो हमारी क्या गलती है?
आज इतने सालों बाद मन में आस है मिलन की।
तुम तूटने न देना उसे जो उम्मीद मन में जागी है।
किस्मत
किस्मत से तुम हमको मिले थे,
किस्मत से ही तुम हमसे दूर हुए थे।
जो कुछ भी हुआ था,
सब किस्मत की ही तो बात थी।
ये किस्मत भी एक अजीब खेल है
क्या पता?
कब किसकी किस्मत से -
अपनी किस्मत का सितारा चमक जाए!
किस्मत में है जो लिखा
वो तो होकर ही रहेगा
होंसला अगर बुलंद हो तो
एक दिन किस्मत को तो झुकना ही पड़ेगा।
पर यह भी तो
किस्मत की ही बात है ना!!!
मुस्कान
तेरी एक मुस्कान पाने को तरसता है ये मन।
तेरे करीब ले के आए मुझे ये पगली पवन।
तेरे बिन जीना तो क्या जीना है दिलबर मेरे?
मेरी तन्हाइयों को आ के देख जरा मेरी यादों में।
तेरे बिना जिंदगी में है तडपन ही तडपन।
क्या कहु इसे मैं? इश्क या फिर पागलपन!
आज भी याद है मुझे तेरी प्यारी सी वहीं मुस्कान।
उसे पाने को तो छू लू मै चांद, तारे या आसमान।
तेरी एक मुस्कान पाने को तरसता है ये मन
अब तो आ जा पीया तरसा ना यू चमन चमन।
दिल की दास्तान
खूब से है खूबतर प्यार जहाँ,
तब्बसुम ही तब्बसुम है वहाँ।
इस आलम मे कोई है अपना
इसलिए तो हम देखते हैं सपना।
होगा वहीं जो मुकद्दर में है लिखा,
अपना काम है अज़ल से लड़ना।
लुत्फ में भी छुपा हुआ है शिकवा
जिंदगी में यह एक ही हो गई खता।
दिल की दास्तान है अपना ये फसाना
फिर कैसे गाफिल रहा ये ज़माना।
हमदमों ने कर ली अदावत
तब से अल्लाह ने छोड़ दी शराफत।
कब तक?
हम तुमको न भूला पाए है आज तक
आगे क्या पता ये प्यार टिकेगा कब तक?
मेरी नज़र में तो सिफँ तुम ही तुम बसे हो
तेरे नैनो में मेरे लिए प्यार रहेगा कब तक?
दुनिया के चेहरे में देखती हूँ मैं चेहरा तेरा
तू मेरे चेहरे के आँसू पोंछेगा कब तक?
मेरी आँखों में बसा है अरमान सिफँ तेरा
तू मेरे बारे में सोचता रहेगा कब तक?
तू कहे ना कहे तेरी आँखे तो यही बोलती हैं
तेरा प्यार आखिर मुझसे छिपेगा कब तक?
मुकद्दर
अपना मुकद्दर आज अपने से रुठा है।
मन में कई सवाल का अस्तित्व उठा है।
मन में आशा का एक किरण उगा है।
खोए हुए अरमान पर फिर से प्यार जगा है।
गुमां में प्यार करने का अपना भी करीना है।
खुदा शाहिद अपना तो सिफँ यही तरीका है।
मुकदर में जो लिखा है वो तो होना ही है।
अपना मुकद्दर खुद से रुठे, खुदा चाहता यही है।
पुराना रिश्ता
दिल की कश्ती में बैठकर जिंदगानी का,
जैसे दरिया पार करने चले थे हम।
रास्ता भी कठिन था, रुकावटे भी आई,
फिर भी ये सफर काटते न हिले थे हम।
प्यार नफरत की बरस रही थी बारिश,
सब भीगे इसमें सिर्फ न गिले थे हम।
एक धुआँ सा उठा था जैसे चारों ओर,
चौमेर फैली ज्वाला फिर भी न जले थे हम।
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ओ खुदा तेरे साथ तो है मेरा पुराना रिश्ता।
तुझे तो बहोत ही करीब से मिले थे हम।
सच
जिंदगी कोई खेल या जुआ नहीं है।
वह तो सामने पड़ा हुआ सच है।
ना ही इसमें हार है, ना ही जीत है।
यह तो गोल चक्कर लगाती दौड़ है।
कभी जन्म की खुशी, कभी मौत का गम,
एक दिन सबको पहनना कफन है।
सुबह आफताब की, रात शशांक की,
इन दोनों के बीच पृथ्वी गुलशन है।
लोग उड़ते हैं सपनो के कायनात में,
जिंदगी की अपनी एक पहचान है।
पात्र भी सच, नाटक भी सच, सब सच,
जिंदगी ही हमारी सच्ची दास्तान है।
हम तुम
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
एसे ही जिंदगी बसर कर गए।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
एसे ही संसार को बदलते चले।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
एसे ही रिश्ते निभाते चल दिए।
थोडा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
एसे ही जिंदगी का रास्ता काटते चले।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
कुछ कहते कहते कुछ ना कह पाए।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
नये सफर में यादों को बहाते चले।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
किसी की लंबी उम्र की दुआ देते चले।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
किसी जीवन की पहलीयाँ बुझाते चले।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
किसी के करीब जाने की सजा सहते रहे।
थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम बदले,
एसे ही प्रीत को निभाते चले।
तन्हा
गमो से भरी हुई ये कैसी तन्हाई!
जो याद सिर्फ तुम्हें ही कर पाई?
तन्हा तन्हा जिंदगी थी जैसे शबनम,
तेरी यादों से चुनरी जैसे लहराई।
कुछ ना कहो कहते कहते ही जैसे,
तेरी बात दिल को कुछ कह पाई।
तन्हा अकेली थी जो ये जिंदगानी,
ये बात कहे बिना न रह पाई।
अब कहने को लफ्ज़ नही मिलते,
तो ये कहानी मैं कैसे कह पाती?