अलमारी से कपडे निकाल कर एक एक कर बैग में रखे जाने लगे । मगर शाम को जब दीपक घर आए तो एक अलग बैग में अपने कपड़े रखने लगे जिससेनंदिनी ने हैरान होकर पूछा
“क्या हुआ , आपके कपड़े तो मैं अपने बैग में पहले ही रख चुकी हूँ ।”
“कुछ नहीं , तुम्हें घर अकेले जाना पड़ेगा , मेरी मुंबई में एक मीटिंग आ गयी है ।”
“क्या , मुझे अकेले जाना है ? “
“हाँ , नही जा पाओगी क्या ? ओह …. मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो कभी ट्रेन में बैठी ही नहीं होंगी !! देखो ट्रेन में बोगिस होती हैं जिसके लेफ्ट राइट टॉयलेट होते हैं । यहाँ से मैं तुमको बिठा दूंगा और वहाँ पिताजी तुम्हें उतार लेंगे । “
“मैं जानती हूँ , कई बार ट्रेन में बैठी हूँ , अकेली आई और गयी भी हूँ …”
“क्या !!! अरे वाह मेरी गाँव की कबूतरी अकेली ट्रेन से आना जाना कर चुकी है , कहाँ ??”
“अपनी बड़ी बुआ के यहाँ…”
“ओहो … तब तो तुम अपने गाँव की बुद्धियाइन देवी हुईं भई , हा हा हा हा हा हा , चलो कहीं तो मेरे जोड़ की हो , हा हा हा हा “
दीपक की ये हंसी नंदिनी को अंदर तक भेद गयी । देर तक कानो में गूंजता रहा “ चलो कहीं तो मेरे जोड़ की हो …. कहीं तो मेरे ….. __जोड़ की हो …”
नंदिनी ने फीकी सी मुस्कान सजाकर गूंजते कानो से अपने बैग से दीपक के कपड़े निकाले और जाने क्या क्या उसमें रखती रही ।
सुबह - सुबह उठकर नंदिनी शोमा बोदी से कुछ दिनों के लिये विदा ले आई और साथ ले आई एक थैले में उनके दिए कुछ अनमोल उपहार ,जिन्हें पाकर उसने उन्हें अपने सीने में भींच लिया …
समय ने रफ़्तार पकड़ी और ट्रेन ने भी , दीपक हाथ हिलाते रहे और वो उन्हें अपलक देखती रही ।
स्टेशन पर समय से पहले मांजी और ससुरजी खड़े थे । ट्रेन से उतरकर वो उनके पैरो में झुक गयी और माँ ने उसे अपने अंक में भर लिया ।
ससुराल आकर दो हफ्ते बीत गए , दीपक दिन में एक दो बार फोन करते , कुछ नॉनवेज मेसेजस भेजते और बदले में वैसे ही जवाबों की उम्मीद करते लेकिन नंदिनी हलकी बातचीत के अलावा और कोई बात नहीं करती । घर के सभी काम जल्द खत्म करके अपने कमरे में चली जाती । घण्टो कमरे से नहीं निकलती और अगर निकलती तो केवल काम खत्म करती और फिर भीतर चली जाती ।
नंदिनी का ये व्यवहार उसकी सास माँ को सालने लगा , उन्हें लगने लगा की या तो दीपक से ज्यादा दिन दूर रहने के कारण बहू उदास रहती है और अकेली रहने लगी है या फिर हो सकता हैकि शादी के बाद मायके वालो की भी याद ज्यादा आती हो इसलिए उन्होंने खूब विचार करउस को मायके भेजने का निर्णय लिया ।
मायके बात करके उसके भाई को बुलवा लिया गया और वे लोग नंदिनी को कुछ दिन के लिये लिवा ले गए ।
लेकिन ये हल भी ढाक के तीन पात साबित हुआ , नंदिनी वहाँ भी कमरे से बहुत कम निकलती , दरवाजा बंद रखती और मोबाइल अपने पास रखती । कभी - कभी अकेले ही बाज़ार निकल जाती और खरीददारी करके चुपचाप सामान लेकर कमरे में चली जाती । दिन हफ्ते बने और हफ्ते महीने , पूरे पांच महीने बीत गए लेकिन नंदनी दीपक समेत सभी से सामान्य बातचीत के अलावा कुछ नही करती ।
माँ और भाभी के लाख पूछने पर भी वो यही कहती “ कुछ नही करती हूँ कमरे में , बस यूँ ही दो चार पुरानी किताबें अलट पलट लेती हूँ ।
सास के बाद अब नंदनी का व्यवहार उसकी माँ के लिये भी चिंता का विषय बन गया । हंसती खेलती नन्ही चंचल बेटी अचानक अधेड़ लगने लगी थी । ना हंसना , ना घूमना ,, केवल कमरा और नंदिनी _____ नंदिनी और कमरा
माँ का ज्यादा जी घबराने लगा तो उन्होंने नंदिनी से बात की लेकिन उसका खामोश लहजा कुछ न कह पाया ।दीपक भी आखिर खुद से आगे होकर नंदिनी को अपने पास क्यों नही बुला रहा की सोच ने माँ को भीतर से कुछ परेशान भी किया लेकिन अगले ही पल उदासी झटक कर उन्होंने नंदिनी की सास से बात की और दोनों को उसकी उदासी का एक मात्र उपाय सूझा और वो था पति प्रेम , शायद ये विरह ही उसे पतझड़ की ओर ले जा रहा हो ।
सास ने दीपक को फोन करके सारी परिस्थिति से परिचित करवाया और जल्द आकर नंदनी को ले जाने को कहा , दीपक ने पहले ना नुकुर की अपनी व्यस्तता का बहाना बनाया और फिर माँ के समझाने पर मान गये
देह की चाह थी या प्रेम की
घर से हरी झण्डी मिलते ही नंदिनी को बिना सूचित किये दीपक उसे लेने पहुंच गए ।
यूँ अचानक दीपक को सामने पाकर नंदिनी ऐसे खिल उठी जैसे सीप से मोती निकलकर अपनी आभा से पूरे वातावरण में एक पवित्र उजास भर देता है ।
जितनी उजास नंदिनी पर आई , उससे दुगुनी उजास उसकी माँ और सास के चेहरे पर छा गयी , उन्हें अपने अनुभव की जीत और नंदिनी की मुस्कुराहट ने गर्व से भर दिया ।
दीपक क्या आए , नंदिनी को ना दिन का होश रहा - ना रात का ,, मदमस्ती से दिन भीग गए और होश खो बैठी रातें ,, जब दो फूल मिलते आस पास कई पराग झर जाते , एक कोमल नन्हा गुलाब - दूसरे बलिष्ठ गुलाब में एकाकार हो जाता ।
एक हफ्ता बीत गया , अब नंदनी को मायके से विदा लेनी थी और पिया के संग उड़ चलना था । माँ सारे सामान के साथ अपना प्यार - दुलार और नंदिनी की पसन्द की चीजे बाँधने लगी । बीच - बीच में वो एक एक मोती आंसू का भी हर सामान के साथ सहेज कर रखती चलतीं ।
तभी पूरे जोशो खरोश से नंदिनी की बचपन की सहेली मीरा अपने पति नीलेश के साथ उससे मिलने आ गयी । मीरा के पति लन्दन में डेंटिस्ट थे और मीरा कुछ सालों से वहीँ सैटल थी । वो भी मायके आई थी कुछ दिन के लिय और नंदिनी के यहाँ होने की खबर सुनकर दौड़ी चली आई थी । दोनों सहेलियां बैठी तो बातें तूफ़ान एक्सप्रेस की तरह दौड़ने लगी ।
दीपक और मीरा के पति आपस में देर तक इण्डिया और लंदनऔर अमेरिका की बाते करते रहे ।
अचानक दीपक बोल उठा “ मीरा एडजस्ट कर पा रही हैं उसके साथ विदेशी माहौल में ?
कई जोड़ी आँखे एक साथ उठी और प्रशन उभर आये सबकी नजरो में |
दीपक ने बात बदलते हुए कहा विदेशो में पति पत्नी दोनों काम करते हैं लेकिन मीरा तो घरेलु है ना बस इसी लिय उत्सुकता हुयी ...
नंदिनी का मन फिर चटका लेकिन अगले ही पल मीरा के पति के साथ दीपक का ठहाका सुन कर मुस्कुरा उठी | शायद कुछ अतरंग बाते शेयर की जा रही थी दो हमउमर पुरुषो में |
माँ ने सुहाना मौसम देखकर दोनों युगल जोड़ों का लंच ऊपर छत पर लगवा दिया ।
चारों साथ होकर बेहद प्रसन्न थे और सबसे अधिक प्रसन्न थी नंदिनी क्योंकि आज उसे अपने प्यारे दीपक को अपने एक और गुण को दिखाने का प्रथम अवसर प्राप्त हुआ था । उसकी महीनो की मेहनत की आज परीक्षा थी ।
जब तक मीरा रही नंदिनी ने उसके पति और उससे नॉन स्टॉप केवल अंग्रेंजी में बात की , बीच - बीच में कनखियों से दीपक को देखती और ख़ुशी से फूल जाती ।दीपक की नजरो में हैरानगी थी लेकिन कोई प्रतिक्रिया नही थी उसकी तरफ से | मीरा ने कोहनी मार मजाक भी किया कि जीजू की सांगत में इंग्लिश बोलना सीख गयी तुम \\ माँ भी हैरान थी उसको इंग्लिश बोलते देख कर |
दीपक मीरा और नीलेश के साथ खूब घुल मिल गए और उनके जाने तक उनके साथ ही बने रहे ।
मीरा के जाते ही दीपक कुछ देर के लिये बाहर चले गए और जब लौटे तो सीधे ऊपर नंदिनी के कमरे में चले गए ।
बेटी - दामाद की फ्लाइट का टाइम होते देख नंदनी की माँ ऊपर उनसे मिलने आई
“ कैसी ड्रेस पहनती हो तुमऔर तुम्हारी सहेली , यह तुम्हारी सहेली तो मुझे जरा पसंद न आई , विदेश रह कर भी गवारुपन न गया बहनजी टाइप सहेली तुम्हारी तभी तुम भी ऐसी |
“ मूड ख़राब कर दिया इनको बुलाकर मुझसे मिलने , बेहतर होता मैं आता ही ना तुमको लेने “
नंदिनी को काटे खून नही था गोया . उसकी देह सफ़ेद पड़ गयी डर और घबराहट के मारे
माँ भी हैरान थी दामाद की ऐसी भाषा सुनकर लेकिन उसको भी तो अपने पति से कई बार इस तरह अवमानना सहनी पड़ती थी तो जिन्दगी का एक हिस्सा होती हैं ऐसी बाते तो मन को समझा कर दरवाज़ा खटखटा दिया
दीपक ने दरवाज़ा खोला और मुस्कुरा दिया
“ बेटा चलो खाना खा लेते हैं , फिर आपको एयर पोर्ट भी पहुंचना है न ! “
“ जी , भैया और भाभी कहाँ है ? “
“ वो नीचे खाना लगा रही है , आप खाना खा ले और बस दो चार घड़ी हम नंदिनी के और करीब रह लें फिर तो वो आपके साथ ही ….. माँ की आँखे सजल हो उठीं ,फिर खुद को संयमित करके वो बोली
“ धन्यवाद बेटाकि तुम यूँ नंन्दिनी को लेने दौड़े चले आए वरना तुम्हारे बिना तो वो एक कमरे की कैदी हो गयी थी , बस यहाँ से निकलती ही नही थी “
“ अरे नहीं माँ , धन्यवाद मत कहिये , और आंसू भी पोछिए , आप चलिये मैं आता हूँ । “
माँ दामाद के जवाब से गदगद हो उठीं और अपने भाग्य पर इतराती हुईं नीचे आ गयी ।
दोनों लोगो ने खाना खाया और झटपट एयर पोर्ट चल दिए । घर के आधे से ज्यादा लोग दोनों को छोड़ने एयर पोर्ट तक आए इसलिये चाह कर भी नंदिनी दीपक से बात नही कर पाई ।
फ्लाइट में दोनों साथ तो बैठे लेकिन पांच ही मिनट बाद दीपक सो गए और नंदिनी देर तक उन्हें प्यार से निहारती रही ।
सफर पूरा हुआ , घर आ गया , दरवाजा खुला फिर बंद हुआ , दीपक भीतर जाकर अलमारी से कपड़े निकाल ही रहे थे की नंदिनी पीछे से आकर अमरबेल की तरह दीपक से लिपट गयी
“ कैसी लगी आपको “
“ क्या “ स्वर जैसे कहीं दूर से आया हो
“ मेरी अंग्रेजी ? जानते हैं इन पांच महीनो से मैंने अपनी अंग्रेजी पर खूब काम किया , ढेरों किताबे पढ़ी और खुद को आपके जोड़ का बनाने का प्रयास किया । कैसा रहा ?? “
“क्या “
“ मेरा प्रयास “
“ रद्दियास्टिक “ दीपक चिल्लाते हुए उसके छिटक कर दूर हो गए
“ क्या !!!! आप ही तो चाहते थे की ……”
“ चाहता था लेकिन खुद को नीचा दिखाकर नही , क्या समझती हो खुद को , गंवार …, मैंने तो पढ़ने के लिये इजाज़त दे दी थी ना ???? फिर वहां जाकर ये सब ड्रामा क्यों रचा ?? पांच महीनो से मैडम अंग्रेजी पढ़ रही हैं...घर वाले और मैं समझ रहे हैं की तुम मेरे लिए …. हूँ …“ कैसी लगी आपको “
“ क्या “ स्वर जैसे कहीं दूर से आया हो
“ मेरी अंग्रेजी ? जानते हैं इन पांच महीनो से मैंने अपनी अंग्रेजी पर खूब काम किया , ढेरों किताबे पढ़ी और खुद को आपके जोड़ का बनाने का प्रयास किया । कैसा रहा ?? “
“क्या “
“ मेरा प्रयास “
“ रद्दियास्टिक “ दीपक चिल्लाते हुए उसके छिटक कर दूर हो गए
“ क्या !!!! आप ही तो चाहते थे की ……”
“ चाहता था लेकिन खुद को नीचा दिखाकर नही , क्या समझती हो खुद को , गंवार …, मैंने तो पढ़ने के लिये इजाज़त दे दी थी ना ???? फिर वहां जाकर ये सब ड्रामा क्यों रचा ?? पांच महीनो से मैडम अंग्रेजी पढ़ रही हैं...घर वाले और मैं समझ रहे हैं की तुम मेरे लिए …. हूँ …. और मैडम तो खुद को अंग्रेज बना रही थीं , अपनी सहेली को बुलाकर अपनी अंग्रेजी का रौब दे रही थीं ….”
“ ये क्या कह रहे हैं आप , मीरा खुद आई थी और मैं …. मैं … कोई रौब …”
“ ज्यादा नाटक मत करो , खूब जानता हूँ मैं तुम गंवारुं लड़कियों का त्रिया चरित्र … बताओ जरा… और मैं पागल सोच रहा था की मैडम मेरी याद में …लेने के लिये भागा चला गया …..” दीपक ने अपना बायां हाथ जोर से अलमारी के दरवाजे पर दे मारा । दीपक के इस व्यवहार से नंदनी सहम गयी
“ ये आप ….”
“ क्या आप ?? एक बात कान खोलकर सुन लो तुम , मेरे जोड़ की ये सब नाटक करके नही बन सकती । कभी नहीं ...अगर अंग्रेजी सीखनी ही थी तो मुझसे कहती … मैं पढ़ाता … बड़ी आई .. मुझे रौब दे रही हो
, अपने बोलने का तरीका देखा एक्सेंट होता हैं अंग्रेजी बोलने का यह रेपिडेक्स पढ़कर अंग्रेजी आती तो आज सब गंवारू लोग आफसर लगे होते “ दांत पीसकर दीपक ने ये शब्द कहे और पलंग पर जाकर धम्म से मुंह फेर कर सो गया ।
नंदिनी वहीँ जड़वत् खड़ी रह गयी , वो ये नहीं समझ पाई की जो मेहनत उसने दीपक को खुश करने के लिए की थी वो दीपक के पुरुष अहंकार पर चोट की तरह क्यों पड़ी ?
जिस अवगुण के कारण दीपक उसे कमतर समझते थे , उसी के गुण बन जाने पर वो तिलमिला क्यों गए ।
सुना था स्त्री ह्रदय की थाह पाना असम्भव है लेकिन शायद पुरुष अहंकार की थाह पाना उससे भी जटिल है ।
एक जिन्दा सैलाब की तरह आँखों में कई पनियल सवाल लिए नंदिनी वहीँ कुर्सी पर बैठ गयी ।
रात बीतती जाती थी और सवाल पैदा होते जाते थे , हर सवाल के साथ एक धार गालों को छूती हुई , गर्दन को नापती हुई ,सीने में वापिस जमा होती जाती थी ।आज की रात फिर अकेली थी कई महीनो बाद हुए शरीर मिलन के बावजूद .....
परिचय लेखिका
नाम - संजना तिवारी
जन्म - 7 मई 1981
दिल्ली शिक्षा - बी ए ऑनर्स (राजनीतिक शास्त्र ), एम ए ( राजनीतिक शास्त्र ), एम ए (हिन्दी 2014)
लेखन - 2013 से कई पत्र - पत्रिकाओं के लिए लेखन जारी है ।
विचार - मैं आज हूँ और कल भी रहूँगी , टुकड़ा – टुकड़ा किताबों मे ।
सूत्रधार
नीलिमा शर्मा निविया
शब्दव्काश हिंदी कथाकड़ी