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बगल वाली टेबिल

बगल वाली टेबिल ( कहानी )

वह एक छोटा सा रेस्तरां था , बमुश्किल दस - बारह टेबिलों वाला। सभी टेबिलें दो पंक्ति में रखी गईं थीं। घर से दूर नौकरी होने के कारण मैं इस शहर में अकेला ही रहता हूँ ,और भोजन के लिए इसी रेस्तरां में लगभग रोज़ ही आया करता हूँ। इसी रेस्तरां में नियमित आने का कारण एक तो ये रेस्तरां मुझ जैसे मध्यम वर्गीय आदमी की जेब का ख़्याल रखता है और दूसरा मेरे निवास और दफ़्तर की दूरी के बीच भी पड़ता है , सो अलग से गाड़ी नहीं घुमानी पड़ती और इस तरह पेट्रोल की भी बचत हो जाती है। आज महीने का दूसरा शनिवार है। इस दिन दफ़्तर तीन बजे ही छूट जाता है , इसलिए मैं बिना कुछ खाये ही अपने कमरे पर लौट जाता हूँ , परन्तु आज सुबह जी कुछ ठीक नहीं था तो भूखा ही दफ़्तर चला गया था और अब बेवक़्त कुछ खाने इस रेस्तरां में चला आया था। मैंने रेस्तरां के भीतर घुसते ही बैठने की जगह तलाशने हेतु सभी टेबिलों पर नज़र दौड़ाई। अनुमान के विपरीत सभी टेबिलें खाली पड़ी थीं।मैंने सोचा , शायद बाहर चल रही लू के थपेड़ों का असर हो। मैं एकदम बीच वाली टेबिल पर जाकर बैठ गया। मुझे देखते ही वेटर आया ,नमस्ते की , पानी का जग और गिलास टेबिल पर रखा और बोला , " आज इस वक़्त ? " मुझे इस रेस्तरां के सभी वेटर भली - भांति पहचानने लगे थे।

" हाँ,आज सुबह जो नहीं आया था। " मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

" जी... फिर वही रोज़ वाली थाली लाऊँ या कुछ और ऑर्डर करेंगे ? "

" नहीं ... नहीं ... कुछ और खाकर भरी गर्मी में मरना है क्या ? तुम बस वही सादी वाली थाली ले आओ। " अनौपचारिक हो मैंने कहा।

" अच्छा साहब " कहते हुए वेटर मुड़ गया ।मैंने पानी का गिलास उठाया और एक घूँट में ही पूरा हलक में उतार दिया ।फिर शर्ट की जेब से मोबाइल निकालकर उसमें व्यस्त हो गया ।कुछ ही क्षण गुज़रे होंगे , जब उस जोड़े ने धीरे - धीरे चलते हुए भीतर प्रवेश किया और कुछ कदम चलकर रुक गए । वे अपनी पसंद व सहूलियत के हिसाब से सुरक्षित जगह तलाशने के लिए नज़रें घूमा रहे थे । पुरुष की दृष्टि छत की ओर गई , जहाँ सिर्फ दो ही पंखे लटके हुए थे ।एक के नीचे मैं बैठा हुआ था , अतः वे मेरी बगल वाली टेबिल की पंक्ति में मेरी बगल की एक टेबिल पर दुसरे पंखे के नीचे बैठ गए ।उन्हें इस रेस्तरां में देखकर मैं थोड़ा अचंभित हुआ , क्योंकि उस पुरूष और स्त्री की वेशभूषा , चाल-ढाल इस रेस्तरां के स्तर से कतई मेल न खाती थी ।पुरुष चालीस से पैंतालीस वर्ष, ऊँचे कद , साफ़ रंग व भरे शरीर का आकर्षक व्यक्ति था ।आँखों पर कीमती चश्मा चढ़ा हुआ था ।जबकि स्त्री उस पुरुष की तुलना में सामान्य कद , सांवले रंग ,साधारण नैन-नक्श की अत्यंत दुबली-पतली महिला थी , हाँ उसका पहनावा बहुत ही सलीकेदार था ।

वह पुरुष वेटर को ऑर्डर दे चुका था और मेरा ऑर्डर भी मेरी टेबिल तक आ चुका था ।ना जाने क्यों खाते वक़्त मेरा पुरा ध्यान उस जोड़े की टेबिल पर बना रहा ।उनके बीच बहुत धीमे आवाज़ में बातें हो रही थीं ।पुरुष पता नहीं क्या कहता कि वह स्त्री शर्माकर नज़रें झुका लेती फिर मुस्कुरा कर उसकी बात का उत्तर देती । मैं समझने का प्रयास कर रहा था कि क्या वे स्त्री-पुरुष पति-पत्नी ही हैं या फिर ...? उम्र को देखूँ तो लगता नहीं मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ परंतु उनके बातें करने का अंदाज़ ,अदाएँ , नवयुगलों से हँसना-शर्माना मेरी धारणा को पुख़्ता कर रहे थे ।इस सबके बीच मेरे हाथ और मुँह यंत्रवत् अपना काम कर रहे थे ।पर मस्तिष्क उस गुत्थी को समझने की उधेड़बुन में ही लगा रहा ।तभी मुख्य द्वार से एक महिला ने प्रवेश किया और वहीं रुक गई ।उसका चेहरा दुपट्टे से पुरा ढँका हुआ था । आँखों पर सुनहरी फ्रेम वाला चश्मा लगा था ।वह लाल और हरे रंग की सिल्क की कीमती साड़ी पहने हुए थी । पैरों में हाई हिल की सैंडिलें थीं । उसके गोरे सोने की दो-दो चुड़ियों भरे हाथ ही दिखाई दे रहे थे जिससे सहज़ ही अनुमान लगता था कि वह एक संपन्न और संभ्रांत परिवार से है ।उसकी आँखें भी शायद बैठने के लिए उचित स्थान खोज़ रही थीं । चश्मे के पीछे छिपी आँखों से मैं यही अनुमान पाया था ।वह मेरी वाली पंक्ति में सबसे अंतिम वाली टेबिल पर बैठ गई ।और बैठते के साथ अपने हैंडबैग की चेन खोलकर कुछ ढूँढने लगी ।कुछ ही क्षणों में उसका हाथ मोबाइल के साथ बेग से बाहर था ।वेटर टेबिल पर पानी से भरा एक जग और गिलास रख चुका था ।महिला ने गिलास भरा और एक ही साँस में खाली कर दिया ।वेटर ऑर्डर की प्रतीक्षा में वहीं खड़ा था ।महिला द्वारा गिलास को टेबिल पर रखते ही वेटर ने पूछा ,

" मैडम ! क्या ऑर्डर करेंगी आप ?"

जैसा कि मैंने पूर्व में ही कहा , रेस्तरां का वह हॉल छोटा ही था इसलिए वेटर की आवाज़ स्पष्ट मेरे कानों तक आ रही थी ।महिला ने वेटर से कुछ कहा ,जवाब में वेटर जी मैडम कहकर चला गया ।महिला को मैं सुन नहीं पाया क्योंकि उसका चेहरा अभी भी दुपट्टे से बंधा था जिसके कारण शब्द वेटर के पास से ही वापस लौट गए ।उस महिला की उँगलियाँ और ध्यान अब मोबाइल पर ही केंद्रित हो गए ।अब जो दृश्य मेरे सामने था वह खासा चौंकाने वाला था ।वह अपने हाथ चेहरे के सामने ले आई थी और मोबाइल की दिशा पहले आकर मेरी बगल वाली पंक्ति में बैठे जोड़े की ओर कर दी ।मैं पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि वह उस जोड़े का वीडियो बना रही थी ।ऐसा उसकी गतिविधि देखकर स्पष्ट पता चल रहा था ।हैरत की बात थी कि मेरे बगल वाले जोड़े को उस महिला की इस हरकत का जरा भी अहसास नहीं था ।वे दोनों अपनी बातों में ही तन्मय थे ।कोई दो तीन मिनिट का वीडियो बना चुकने के बाद उस महिला ने मोबाइल वापस हैंडबैग के सुपुर्द कर दिया और उठ खड़ी हुई ।मुझे लगा शायद वह बाहर लौट जायेगी पर नहीं वह तो धीरे धीरे इधर ही चली आ रही थी ।अब वह उस जोड़े की टेबिल पर आकर रुक गई ।अपनी टेबिल के पास इस महिला को खड़ा देखकर दोनों का ध्यान भंग हुआ ।कुछ क्षण आश्चर्य और अजनबियत के भाव उभरे ।मैं भी बहुत हैरान था । खाते खाते मेरे हाथ रुक गए ।मेरे भीतर का मानव स्वभाव उन अजनबियों की दुनिया में झाँकने को बेताब हो गया था ।जानते हुए भी कि ये अभद्रता है , मैंने अपनी दृष्टि बगल की टेबिल पर जमा दी ।

" त..तुssमss... यहाँ ss...?'

पुरुष की आवाज़ अटक अटक कर दो शब्द ही बोल पाई ।जिसका अर्थ था कि वह उस महिला को चेहरा ढका होने के बावजूद भी पहचान गया था ।

" हाँ , घर पर अकेले बोर हो रही थी , सोचा तुम्हारे साथ ही लंच कर लूँ ।थोड़ा सरकिये न ..." उसने कहते हुए पुरुष को सरकने का इशारा किया ।टेबिल एकदम बराबरी पर होने से मैं उनको स्पष्ट सुन पा रहा था ।उस जोड़े के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थी ।दोनों ही बेहद डरे हुए दिख रहे थे ।उनके विषय में जानने की मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ चुकी थी ।पुरूष दीवार की ओर सरक गया और वह महिला उसके बगल में इत्मीनान से बैठ गई ।कुछ पल गहरी ख़ामोशी पसरी रही ।जितनी सहज़ वह महिला नज़र आ रही थी उतना ही असहज वह जोड़ा था ।जोड़े वाली महिला की तो आँखें ही ऊपर नहीं उठ रही थी ।

पाठकों अब चूँकि दोनों महिलाएं एक साथ बैठी हैं और दोनों ही मेरे लिए अजनबी हैं ।उनके बीच का रिश्ता भी मेरी समझ से परे है ,सो अब मैं जो कुछ भी आगे उनके विषय में कहूँगा पहले वाली और दूसरी वाली महिला कहके कहूँगा ।पहली यानी जो पुरुष के साथ पहले आई और दूसरी यानि जो आई तो बाद में और अकेली थी , परंतु अब वह पहले वाली महिला के सामने और पुरुष की बगल में बैठी थी ।

दूसरी महिला ने धीरे से अपने चेहरे पर बंधे दुपट्टे को खोला, चश्मा उतारा और दोनों वस्तुओं को मेज़ पर एक ओर रख दिया ।वास्तव में वह बहुत गौरवर्ण सुन्दर और अति आकर्षक महिला थी ।उस पर नज़र पड़ने के बाद चाहकर भी कोई तुरंत अपनी दृष्टि नहीं हटा सकता था ।उसने माँग में सलीके से सिन्दूर भरा हुआ था ।माथे पर साड़ी से मैच करती बिंदी लगी हुई थी ।आँखों में काजल और ओंठों पर सुर्ख मेहरून रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी ।यानि वह विवाहिता थी और जिस अधिकार और विश्वास से पुरुष के बगल में जाकर बैठ गई थी उससे तो मेरी बुद्धि मुझसे यही कहती थी कि उसका सिन्दूर उसके बगल में बैठा पुरुष ही था ।सहसा अंतर्मन से आवाज़ उठी तू इतने यकीन से कैसे कह सकता है ? ये भी तो हो सकता है वह पुरुष की बहिन या करीबी रिश्तेदार हो ।ख़ैर , दूसरी महिला के चेहरे से दुपट्टा हटाने का कोई नया भाव उस जोड़े के चेहरे पर नहीं आया ।अर्थात् उस जोड़े ने महिला के चेहरा ढँके होने के बाद भी पहचानने में कोई भूल नहीं की थी ।वेटर कब का उनकी टेबिल पर ऑर्डर रखकर जा चुका था लेकिन किसी ने भी अपने हाथ प्लेट्स की ओर नहीं बढ़ाये थे ।तीनों के बीच सन्नाटा पसरा हुआ था ।अंततः दूसरी महिला ने ही खामोशी तोड़ते हुए कहा,

" अरे! बैठे क्यों हैं आप दोनों ? लो भई... सब ठंडा हो रहा है ।

"

वे दोनों दूसरी महिला के प्रवेश से अभी तक सहज़ नहीं हो पाये थे ।दोनों के चेहरों पर अभी भी हवाइयाँ उडी हुई थीं उन्होंने खाना तो दूर प्लेट्स की ओर हाथ तक नहीं बढ़ाए थे ।मेरा कौतुहल उनके विषय में और अधिक जानने को बढ़ता ही जा रहा था ।सोच रहा था जो पुरुष के साथ पहले आकर बैठी वह उसकी पत्नी थी या जो बाद में आई वह ।यदि बाद वाली पत्नी है तो वह इतने शांत भाव से मुस्कुराते हुए उन्हें खाने को कैसे कह सकती है ? क्योंकि जहाँ तक मेरी समझ कहती है एक पत्नी किसी दूसरी औरत के साथ अपने पति को एक पल बर्दाश्त नहीं कर सकती ।जबकि वह बहुत एकदम सामान्य दिख रही है ।ख़ैर मैंने भी ठान लिया कि वहाँ तब तक रुकूँगा जब तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा लूँगा ।पहले वाली महिला अभी भी बुत बनी हुई थी शायद अपनी सफ़ाई में कुछ बोलने के लिए शब्द खोज़ रही थी पर सफ़ल नहीं हो पा रही थी । पुरुष दूसरी वाली महिला से पूछ रहा था , " तुम क्या खाओगी ?" आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी ने कसकर गला पकड़ लिया हो और कह रहा हो दम हो तो अब बोलकर दिखाओ ।

" कुछ भी मंगा लीजिये ।" दूसरी ने कहा ।

पुरुष ने सारी शक्ति इकट्ठी की और वेटर को आवाज़ लगाई ।

" जी सर ।"

" एक प्लेट इडली सांभर ले आओ ।" अर्थात् वह उस महिला की पसंद बहुत अच्छी तरह जानता था ।महिला ने भी कोई विरोध या अरुचि उस ऑर्डर को लेकर प्रकट नहीं की थी ।पहले वाला ऑर्डर ज्यों का त्यों पड़ा हुआ था ।अब शायद वे नए ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रहे थे या हो सकता है दूसरी महिला को अकेले छोड़कर खाने का साहस नहीं कर पा रहे हों ।जो भी हो शिष्टाचार भी यही कहता है ।

दूसरी महिला के होंठ हिले यानि वह कुछ कहने जा रही थी , क्या कहने वाली होगी ? मैंने अपने कान इतने गहरे उधर लगा दिए कि एक भी शब्द मेरी श्रवण शक्ति से चूक नहीं जाये ।

" अपना घर तो तोड़ चुकी हो, अब मेरा घर भी तोड़ना चाहती हो ।" बात बहुत तीखी थी परंतु दूसरी महिला ने इतने इत्मीनान से मुस्कुराते हुए कही जैसे बहुत ही सामान्य हास परिहास कर रही हो ।

" जैसा आप समझ रही हैं , वैसा कुछ भी नहीं है ।मुझे आपके पति ने ही बुलाया था ।" बहुत मुश्किल से वह पहले वाली महिला ने कहा ।पति का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था या शर्म से , ठीक से नहीं कह सकता ।हाँ उसके चेहरे के भाव बदल गए थे ।

ओह ! तो ये बात है ।यानि पति उस सामान्य शक्ल सूरत वाली महिला के लिए अपनी बेपनाह खूबसूरत पत्नी से छल कर रहा था ।मुझे लगा मैं ' इवनिंग शो ' देख रहा हूँ और वह भी मुफ़्त में ।

" हूँ... कल मेरे पति कहेंगे मेरे साथ सो जाओ तो सो जाओगी उनके साथ ?" दूसरी महिला ने बहुत आराम से कहा ।सुनकर पुरुष अपना नियंत्रण खो बैठा ।तेज़ परंतु घबराये से स्वर में बोला, ' इट्स इनफ ... '

प्रेमिका हाँ प्रेमिका ।चूँकि अब स्थिति स्पष्ट हो चुकी है कि पहले वाली महिला पुरुष की प्रेमिका है और दूसरी वाली पत्नी ।सो अब पहले वाली या दूसरी वाली नहीं बल्कि अब दोनों महिलाओं को पत्नी और प्रेमिक कहकर ही संबोधित करूँगा ।हाँ तो मैं बता रहा था कि प्रेमिका की आँखों से आँसूं की बून्दे गाल से बहते हुए टेबिल पर टपक गई थीं ।उसने शर्म और अपमान से चेहरा पूरा झुका लिया था ।देखकर सहज़ अनुमान लगाया जा सकता था कि पत्नी साहस प्रेमिका के साहस से कई गुना ज्यादा था ।और ये भी हो सकता है कि स्थिति की नज़ाक़त में प्रेमिका का साहस कहीं गुम या दब गया हो ।दोनों के साहस की तुलना करने का कारण था कि आज भी सामान्य महिला किसी पर पुरुष के साथ अकेले रेस्तरां या लांग ड्राइव पर जाने का साहस चाहकर भी नहीं जुटा पाती । जो जुटा पाती हैं मेरी नज़र में वे समाज की कुंठित सोच को चुनौती देतीं हैं इसलिए साहसी हैं ।अर्थात् अपने अपने स्तर पर दोनों महिलाएं साहसी थीं ।ये अलग बात है कि इस वक़्त एक कमजोर पड़ गई थी ।" वैसे भी तुम कहाँ और मैं कहाँ ... पत्नी अपनी रौ में बोले जा रही थी ।पति की ओर उसने ध्यान नहीं दिया ।कोई उसकी आवाज़ भी सुन रहा है इसकी भी शायद उसे कोई परवाह नहीं थी तभी वह बेझिझक खुलकर अपनी बात कहे जा रही थी ।

" कुछ भी तो नहीं है तुममे ऐसा कि मेरे पति तुम्हारे लिए मुझे छोड़ देंगे ।बहुत प्यार करते हैं ये मुझसे और अपने बच्चों से ।मेरी एक माँग पर पलकें बिछा देते हैं ।तुम सिर्फ टाइम पास हो उनका । यकीन न हो तो मेरे सामने पूछो ।यदि ये कहेंगे कि मैं तुम दोनों को छोड़कर यहाँ से चली जाऊँ तो मैं सच्ची चली जाऊँगी ।क्या मैं जाऊँ ?" पति की ओर चेहरे घुमा कर उसने पूछा ।पति ने कोई जवाब नहीं दिया । अलबत्ता गर्दन झुका ली ।पत्नी का ऑर्डर भी टेबिल पर लग चुका था ।उसने प्लेट अपनी ओर सरकाते हुए दोनों को कहा , " चलिए , शुरू करिये अब । मेरी वज़ह से आपका मजा और ऑर्डर दोनों बेमज़ा हो गए ।"

दोनों ने धीरे से प्लेट की ओर अपने हाथ बड़ा दिए ।इस समय वे दोनों मुझे कठपुतली की तरह लग रहे थे जिसकी डोर पत्नी के हाथ में थी ।वो जिधर का धागा खींचती उधर की कठपुतली हरकत में आ जाती ।मैं अपना भोजन पूर्ण कर चुका था परंतु अब क्या होगा ये जानने की लिप्सा ने मुझे उठने से रोक दिया ।परन्तु खाली भी तो बहुत देर नहीं रुका जा सकता था सो मैंने अपने लिए एक कप कॉफी ऑर्डर कर दी ।तीनों ख़ामोशी के साथ हर कौर मुँह तक ले जा रहे थे ।जो कुछ अभी घटा उसके बाद ये ख़ामोशी आने वाले किसी बड़े तूफ़ान की ओर इशारा कर रहे थे ।सहसा अधूरी प्लेट छोड़ प्रेमिका उठ खड़ी हुई ," अब मैं चलती हूँ ।"

" अरे ! ऐसे कैसे जा सकती हो ? तुम्हारा बिल कौन भरेगा ? " पत्नी ने बहुत ही सहजता से कहा ।जितना पत्नी को देख सुन रहा था उससे यही समझा कि वह बहुत ही शातिर बुद्धि की महिला है ।जो इतने बड़े तूफ़ान में भी पुरजोर अपने अधिकार का प्रयोग तो कर रही थी परंतु संयम बिलकुल नहीं खोया था ।प्रेमिका के चेहरे पर एक साथ कई रंग आये और चले गए ।वह इस हद तक भी अपमानित हो सकती है उसने कतई नहीं सोचा होगा ।उसने झटके से पर्स खोला और उसकी ओर एक नोट बढ़ा दिया ।

" मुझे क्यों दे रही हो , न मैं वेटर हूँ और न इस होटल की मालकिन ।"कहते हुए उसने वेटर को आवाज़ लगाई ।

" जी मैडम , कुछ स्वीट डिश लाऊँ ?" उसने अपनी ड्यूटी का निर्वाहन किया ।

" नहीं बहुत मीठा हो गया आज ।बस बिल ले आओ ।और हाँ ... बिल अलग-अलग लाइयेगा ।मेरा और साहब का इकठ्ठा और इन मैडम का अकेला ।'

वेटर की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं पर वो जानता था उसे इसका कारण जानने और पूछने का अधिकार नहीं।अतः वो बिल लेने चला गया ।पति और प्रेमिका दोनों की स्थिति बहुत ही विचित्र हो गई थी ।मैंने अपने जीवन में एक पुरुष को अबसे पहले कभी इतना लाचार नहीं देखा था ।

वेटर दो बिल बुक लेकर आया और सौंफ शक्कर की ट्रे के साथ टेबिल पर रख दिया ।पत्नी ने दोनों बिल बुक खोलकर सरसरी निगाह से देखी और एक बिल बुक पति की ओर तो दूसरी पहले वाली महिला की ओर बढ़ा दी ।पत्नी के अधिकार का ये सर्वोत्तम उदाहरण जान पड़ा मुझे ।पति को पत्नी की ये हरकत बेहद नागवार गुजरी । उसने पर्स खोला और वेटर को बिल राशि भुगतान कर दी । उसकी प्रेमिका भी बिल राशि का भुगतान कर चुकी थी पर उठकर जाने का साहस नहीं कर पा रही थी ।सहसा पत्नी ने पति की ओर देखते हुए कहा , " चलिए , अब चलते हैं ।"

पति बिना किसी विरोध के उठ गया ।वह अपने सारे हथियार बहुत पहले ही फेंक चुका था ।फिर जैसे ही पत्नी ने कहा ," आप चलिए मैं आती हूँ ।" तो पति ऊपर से नीचे तक काँप गया ।पता नहीं अब क्या करेगी ये ।वह तुरंत घबराते हुए बोला , " हम साथ चलते हैं न ।"

" क्या हम साथ आये थे ? नहीं न । वैसे भी साथ का असल मतलब क्या होता है , घर चलकर अच्छे से समझाऊँगी ।"

पति के पास कोई जवाब नहीं था एक और अप्रत्याशित कटाक्ष का ।वह चुपचाप बाहर चला गया । पत्नी ने पति के रेस्तरां से बाहर निकलने तक प्रतीक्षा की ।प्रेमिका की हालात डर और घबराहट से बद से बदतर होती जा रही थी ।

" मुझे कमजोर समझने की भूल मत करना और न ये समझना कि मेरे और इनके बीच प्यार नहीं है ।तुम इनके लिए स्त्री शरीर से ज्यादा कुछ नहीं हो ।पति होने से पहले वे एक पुरुष हैं । तुम सिर्फ एक भटकन हो , खिलौना हो , अंत में वह मेरे पास ही आएँगे, ये तुमने अभी कुछ देर पहले देख भी लिया ।इसलिए अब तुम दोबारा मेरे पति पर डोरे डालने की कोशिश न करना ।हाँ, मैं बताना भूल गई । मैंने तुम्हारे और पति के साथ बैठे हुए का वीडियो बना लिया है अगर तुमने कोई हिमाकत की तो उसे तुम्हारे परिवार को भेजने में जरा देर न होगी मुझे ।" कहते हुए उसने अपना हाथ तेज़ी से हवा में घुमाया और उसके गाल पर जोर से दे मारा ।वह लड़खड़ा कर वहीं बैठ गई । पुरे रेस्तरां में चांटे की गूँज गूँज गई ।कोई कुछ समझ पाता इसके पहले ही वह साक्षात् दुर्गा अवतार पत्नी दनदनाती हुई रेस्तरां से बाहर निकल गई । मैं भी उठ खड़ा हुआ था , इस रेस्तरां में अब और बैठे रहने की वज़ह जो चली गई थी ।

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शशि बंसल

भोपाल ।

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