पंचतंत्र
भाग — 14
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पंचतंत्र
सबसे बड़ा हथियार
बादशाह का सपना
जोरू का गुलाम
कवि और धनवान आदमी
सब बह जाएंगे
सबसे बड़ा हथियार
बादशाह अकबर और बीरबल के बीच कभी—कभी ऐसी बातें भी हुआ करती थीं जिनकी परख करने में जान का खतरा रहता था। एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा— श्बीरबल, संसार में सबसे बड़ा हथियार कौन—सा है?'
बादशाह सलामत! संसार में सबसे बड़ा हथियार है आत्मविश्वास।'' बीरबल ने जवाब दिया।
बादशाह अकबर ने बीरबल की इस बात को सुनकर अपने दिल में रख लिया और किसी समय इसकी परख करने का निश्चय किया।
दैवयोग से एक दिन एक हाथी पागल हो गया। ऐसे में हाथी को जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता था।
बादशाह अकबर ने बीरबल के आत्मविश्वास की परख करने के लिए उधर तो बीरबल को बुलवा भेजा और इधर हाथी के महावत को हुक्म दिया कि जैसे ही बीरबल को आता देखे, वैसे ही हाथी की जंजीर खोल दे।
बीरबल को इस बात का पता नहीं था। जब वे बादशाह अकबर से मिलने उनके दरबार की ओर जा रहे थे, तो पागल हाथी को छोड़ा जा चुका था। बीरबल अपनी ही मस्ती में चले जा रहे थे कि उनकी नजर पागल हाथी पर पड़ी, जो चिंघाड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा था।
बीरबल हाजिर जवाब, बेहद बुद्धिमान, चतुर और आत्मविश्वासी थे। वे समझ गए कि बादशाह अकबर ने आत्मविश्वास और बुद्धि की परीक्षा के लिए ही पागल हाथी को छुड़वाया है।
दौड़ता हुआ हाथी सूंड को उठाए तेजी से बीरबल की ओर चला आ रहा था। बीरबल ऐसे स्थान पर खड़े थे कि वह इधर—उधर भागकर भी नहीं बच सकते थे। ठीक उसी वक्त बीरबल को एक कुत्ता दिखाई दिया। हाथी बहुत निकट आ गया था। इतना करीब कि वह बीरबल को अपनी सूंड में लपेट लेता।
तभी बीरबल ने झटपट कुत्ते की पिछली दोनों टांगें पकड़ीं और पूरी ताकत से घुमाकर हाथी पर फेंका। बुरा तरह घबराकर चीखता हुआ कुत्ता जब हाथी से जाकर टकराया तो उसकी भयानक चीखें सुनकर हाथी भी घबरा गया और पलटकर भागा।
बादशाह अकबर को बीरबल की इस बात की खबर मिल गई और उन्हें यह मानना पड़ा कि बीरबल ने जो कुछ कहा है, वह सच है। आत्मविश्वास ही सबसे बड़ा हथियार है।
बादशाह का सपना
एक रात सोते समय बादशाह अकबर ने यह अजीब सपना देखा कि केवल एक छोड़कर उनके बाकी सभी दांत गिर गए हैं।
फिर अगले दिन उन्होंने देश भर के विख्यात ज्योतिषियों व नुजूमियों को बुला भेजा और और उन्हें अपने सपने के बारे में बताकर उसका मतलब जानना चाहा।
सभी ने आपस में विचार—विमर्श किया और एक मत होकर बादशाह से कहा, श्जहांपनाह, इसका अर्थ यह है कि आपके सारे नाते—रिश्तेदार आपसे पहले ही मर जाएंगे।'
यह सुनकर बादशाह अकबर को बेहद क्रोध हो आया और उन्होंने सभी ज्योतिषियों को दरबार से चले जाने को कहा। उनके जाने के बाद बादशाह ने बीरबल से अपने सपने का मतलब बताने को कहा।
कुछ देर तक तो बीरबल सोच में डूबा रहा, फिर बोला, श्हुजूर, आपके सपने का मतलब तो बहुत ही शुभ है।
इसका अर्थ है कि अपने नाते—रिश्तेदारों के बीच आप ही सबसे अधिक समय तक जीवित रहेंगे।'
बीरबल की बात सुनकर बादशाह बेहद प्रसन्न हुए।
बीरबल ने भी वही कहा था जो ज्योतिषियों ने, लेकिन कहने में अंतर था।
बादशाह ने बीरबल को ईनाम देकर विदा किया। (समाप्त)
जोरू का गुलाम
बादशाह अकबर और बीरबल बातें कर रहे थे।
बात मियां—बीवी के रिश्ते पर चल निकली तो बीरबल ने कहा— श्अधिकतर मर्द जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी बीवी से डरते हैं।'
मैं नहीं मानता।'' बादशाह ने कहा।
हुजूर, मैं सिद्ध कर सकता हूं।'' बीरबल ने कहा।
सिद्ध करो?'
ठीक है, आप आज ही से आदेश जारी करें कि किसी के भी अपने बीवी से डरने की बात साबित हो जाती है तो, उसे एक मुर्गा दरबार में बीरबल के पास में जमा करना होगा।'
बादशाह ने आदेश जारी कर दिया।
कुछ ही दिनों में बीरबल के पास ढेरों मुर्गे जमा हो गए।
तब उसने बादशाह से कहा— श्हुजूर, अब तो इतने मुर्गे जमा हो गए हैं कि आप मुर्गी खाना खोल सकते हैं। अतः अपना आदेश वापस ले लें।'
बादशाह को न जाने क्या मजाक सूझा कि उन्होंने अपना आदेश वापस लेने से इंकार कर दिया।
खीजकर बीरबल लौट गया।
अगले दिन बीरबल दरबार में आया तो बादशाह अकबर से बोला— हुजूर, विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि पड़ोसी राजा की पुत्री बेहद खूबसूरत है, आप कहें तो आपके विवाह का प्रस्ताव भेजूं?'
यह क्या कह रहे हो तुम, कुछ तो सोचो, जनानाखाने में पहले ही दो हैं, अगर उन्होंने सुन लिया तो मेरी खैर नहीं।'' बादशाह ने कहा।
हुजूर, दो मुर्गे आप भी दे दें।'' बीरबल ने कहा।
बीरबल की बात सुनकर बादशाह झेंप गए। उन्होंने तुरंत अपना आदेश वापस ले लिया।
कवि और धनवान आदमी
एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा।
लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, ‘तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।''
‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।' ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया।
अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा।
धनवान बोला, ‘सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।''
कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, ‘अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ।
हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।''
कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया।
नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने—पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे।
धनवान की बेचौनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं?'
‘खाना, कैसा खाना?' बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है?'
‘खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।'' जवाब बीरबल ने दिया।
धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘यह सब क्या है?
इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या? तुमने मुझसे धोखा किया है।''
अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो३।
तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।''
धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।
वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे।
सब बह जाएंगे
बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा— श्क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न?'
उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला— श्हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है?'
तुम्हारा नाम क्या है?' बादशाह ने पूछा।
गंगा।'
तुम्हारे पिता का नाम?'
जमुना और मां का नाम सरस्वती है?'
हुजूर, नर्मदा।'
यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला— श्हुजूर तुरंत पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें, वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।'
यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सकें।