भाग-१३ - पंचतंत्र MB (Official) द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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भाग-१३ - पंचतंत्र

पंचतंत्र

भाग — 13

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पंचतंत्र

बीरबल कहां मिलेगा

कुंए का पानी

छोटा बांस, बड़ा बांस

पैसे की थैली किसकी

मूखोर्ं की फेहरिस्त

बीरबल कहां मिलेगा

एक दिन बीरबल बाग में टहलते हुए सुबह की ताजा हवा का आनंद ले रहे था कि अचानक एक आदमी उनके पास आकर बोला, श्क्या आप मुझे बता सकते हो कि बीरबल कहां मिलेगा?'

बाग में।'' बीरबल बोला।

वह आदमी थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर संभलकर बोला, श्वह कहां रहता है?'

अपने घर में।'' बीरबल ने उत्तर दिया।

हैरान—परेशान आदमी ने फिर पूछा, श्तुम मुझे उसका पूरा पता ठिकाना क्यों नहीं बता देते?'

क्योंकि तुमने पूछा ही नहीं।'' बीरबल ने ऊंचे स्वर में कहा।

क्या तुम नहीं जानते कि मैं क्या पूछना चाहता हूं?' उस आदमी ने फिर सवाल किया।

नहीं।' बीरबल का जवाब था।

वह आदमी कुछ देर के लिए चुप हो गया, बीरबल का टहलना जारी था। उस आदमी ने सोचा कि मुझे इससे यह पूछना चाहिए कि क्या तुम बीरबल को जानते हो? वह फिर बीरबल के पास जा पहुंचा, बोला, श्बस, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या तुम बीरबल को जानते हो?'

हां, मैं जानता हूं।'' जवाब मिला।

तुम्हारा क्या नाम है?' आदमी ने पूछा।

बीरबल।'' बीरबल ने उत्तर दिया।

अब वह आदमी भौचक्का रह गया। वह बीरबल से इतनी देर से बीरबल का पता पूछ रहा था और बीरबल था कि बताने को तैयार नहीं हुआ कि वही बीरबल है। उसके लिए यह बेहद आश्चर्य की बात थी।

तुम भी क्या आदमी हो...' कहता हुआ वह कुछ नाराज—सा लग रहा था, श्मैं तुमसे तुम्हारे ही बारे में पूछ रहा था और तुम न जाने क्या—क्या ऊटपटांग बता रहे थे। बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया?'

मैंने तुम्हारे सवालों का सीधा—सीधा जवाब दिया था, बस!'

अंततः वह आदमी भी बीरबल की बुद्धि की तीक्ष्णता देख मुस्कराए बिना न रह सका।

कुंए का पानी

एक बार एक आदमी ने अपना कुंआ एक किसान को बेच दिया।

अगले दिन जब किसान ने कुंए से पानी खिंचना शुरू किया तो उस व्यक्ति ने किसान से पानी लेने के लिए मना किया। वह बोला, श्मैंने तुम्हें केवल कुंआ बेचा है ना कि कुंए का पानी।''

किसान बहुत दुखी हुआ और उसने बादशाह अकबर के दरबार में गुहार लगाई।

उसने दरबार में सबकुछ बताया और बादशाह अकबर से इंसाफ मांगा।

बादशाह अकबर ने यह समस्या बीरबल को हल करने के लिए दी।

बीरबल ने उस व्यक्ति को बुलाया जिसने कुंआ किसान को बेचा था।

बीरबल ने पूछा, श्तुम किसान को कुंए से पानी क्यों नहीं लेने देते? आखिर तुमने कुंआ किसान को बेचा है।''

उस व्यक्ति ने जवाब दिया, श्बीरबल, मैंने किसान को कुंआ बेचा है ना कि कुंए का पानी। किसान का पानी पर कोई अधिकार नहीं है।''

बीरबल मुस्कुराया और बोला, श्बहुत खूब, लेकिन देखो, क्योंकि तुमने कुंआ किसान को बेच दिया है, और तुम कहते हो कि पानी तुम्हारा है, तो तुम्हे अपना पानी किसान के कुंए में रखने का कोई अधिकार नहीं है।

अब या तो अपना पानी किसान के कुंए से निकाल लो या फिर किसान को किराया दो।''

वह आदमी समझ गया, कि बीरबल के सामने उसकी दाल नहीं गलने वाली और वह माफी मांग कर वहां से खिसक लिया।

छोटा बांस, बड़ा बांस

एक दिन बादशाह अकबर एवं बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहा था और बादशाह अकबर उसका मजा ले रहे थे।

तभी बादशाह अकबर को नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।

बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, श्क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो?'

बीरबल लतीफा सुनाता—सुनाता रुक गया और बादशाह अकबर की आंखों में झांका।

बादशाह अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।

अब जैसा बेसिर—पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था।

बीरबल ने इधर—उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था।

उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।

बीरबल बोला, श्हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।'

बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।

निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।

पैसे की थैली किसकी

दरबार लगा हुआ था। बादशाह अकबर राज—काज देख रहे थे। तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।

बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया। दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।

कहो क्या समस्या है तुम्हारी?' बादशाह ने पूछा।

हुजूर मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं और हुजूर यह कसाई है।

इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की भरी थैली भी ले गया। जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें।'

जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है?' बादशाह ने कसाई से कहा। श्हुजूर मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूं, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए।'

दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हाथ फैसला दें। उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा।

बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया। बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी को गौर से देखा। फिर बादशाह से कहा— श्हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल जरा—सा भी अ।''ा पानी में नहीं उभार रहा है। यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन पर सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता।'

बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और फिर बीरबल की बात से सहमत हो

बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलाया और कहा— श्मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है। काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है।'

हुजूर यह थैली मेरी है।'' काशी एक बार फिर बोला।

बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा— श्यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ—न—कुछ तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो३ तेल तो अ।''ा मात्र भी नजर नहीं आ रहा है।'

काशी चुप हो गया।

बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया।

मूखोर्ं की फेहरिस्त

बादशाह अकबर घुड़सवारी के इतने शौकीन थे कि पसंद आने पर घोड़े का मुंहमांगा दाम देने को तैयार रहते थे।

दूर—दराज के मुल्कों, जैसे — अरब, पर्शिया आदि से घोड़ों के विक्रेता मजबूत व आकर्षक घोड़े लेकर दरबार में आया करते थे।

बादशाह अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए चुने गए घोड़े की अच्छी कीमत दिया करते थे।

जो घोड़े बादशाह की रुचि के नहीं होते थे उन्हें सेना के लिए खरीद लिया जाता था।

बादशाह अकबर के दरबार में घोड़े के विक्रेताओं का अच्छा व्यापार होता था।

एक दिन घोड़ों का एक नया विक्रेता दरबार में आया। अन्य व्यापारी भी उसे नहीं जानते थे। उसने दो बेहद आकर्षक घोड़े बादशाह को बेचे और कहा कि वह ठीक ऐसे ही सौ घोड़े और लाकर दे सकता है, बशर्ते उसे आधी कीमत पेशगी दे दी जाए।

बादशाह को चूंकि घोड़े बहुत पसंद आए थे, सो वैसे ही सौ और घोड़े लेने का तुरंत मन बना लिया।

बादशाह ने अपने खजांची को बुलाकर व्यापारी को आधी रकम अदा करने को कहा।

खजांची उस व्यापारी को लेकर खजाने की ओर चल दिया। लेकिन किसी को भी यह उचित नहीं लगा कि बादशाह ने एक अनजान व्यापारी को इतनी बड़ी रकम बतौर पेशगी दे दी। लेकिन विरोध जताने की हिम्मत किसी के पास न थी।

सभी चाहते थे कि बीरबल यह मामला उठाए।

बीरबल भी इस सौदे से खुश न था। वह बोला, श्हुजूर! कल मुझे आपने शहर भर के मूखोर्ं की सूची बनाने को कहा था। मुझे खेद है कि उस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है।'

बादशाह अकबर का चेहरा मारे गुस्से के सुर्ख हो गया। उन्हें लगा कि बीरबल ने भरे दरबार में विदेशी मेहमानों के सामने उनका अपमान किया है।

गुस्से से भरे बादशाह चिल्लाए, श्तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमें मूर्ख बताने की?'

श्क्षमा करें बादशाह सलामत।'' बीरबल अपना सिर झुकाते हुए सम्मानित लहजे में बोला, आप चाहें तो मेरा सर कलम करवा दें, यदि आपके कहने पर तैयार की गई मूखोर्ं की फेहरिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर रखना आपको गलत लगे।'

दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया कि सुई गिरे तो आवाज सुनाई दे जाए।

अब बादशाह अकबर अपना सीधा हाथ उठाए, तर्जनी को बीरबल की ओर ताने आगे बढ़े। दरबार में मौजूद सभी लोगों की सांस जैसे थम—सी गई थी। उत्सुक्तावश व उत्तेजना सभी के चेहरों पर नृत्य कर रही थी। उन्हें लगा कि बादशाह सलामत बीरबल का सिर धड़ से अलग कर देंगे। इससे पहले किसी की इतनी हिम्मत न हुई थी कि बादशाह को मूर्ख कहे।

लेकिन बादशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया। वह कारण जानना चाहते थे। बीरबल समझ गया कि बादशाह क्या चाहते हैं। वह बोला, श्आपने घोड़ों के ऐसे व्यापारी को बिना सोचे—समझे एक मोटी रकम पेशगी दे दी, जिसका अता—पता भी कोई नहीं जानता। वह आपको धोखा भी दे सकता है। इसलिए मूखोर्ं की सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है।

हो सकता है कि अब वह व्यापारी वापस ही न लौटे। वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएगा और आपको ढूंढ़े नहीं मिलेगा। किसी से कोई भी सौदा करने के पूर्व उसके बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए।

उस व्यापारी ने आपको मात्र दो घोड़े बेचे और आप इतने मोहित हो गए कि मोटी रकम बिना उसको जाने—पहचाने ही दे दी। यही कारण है बस।'

तुरंत खजाने में जाओ और रकम की अदायगी रुकवा दो।'' बादशाह अकबर ने तुरंत अपने एक सेवक को दौड़ाया।

बीरबल बोला, श्अब आपका नाम उस सूची में नहीं रहेगा।'

बादशाह अकबर कुछ क्षण तो बीरबल को घूरते रहे, फिर अपनी दृष्टि दरबारियों पर केन्द्रित कर ठहाका लगाकर हंस पड़े।

सभी लोगों ने राहत की सांस ली कि बादशाह को अपनी गलती का अहसास हो गया था।

हंसी में दरबारियों ने भी साथ दिया और बीरबल की चतुराई की एक स्वर से प्रशंसा की।