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भाग-११ - पंचतंत्र

पंचतंत्र

भाग — 11

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पंचतंत्र

मुट्टा

सुनो सबकी, करो मन की

तेनालीराम की कहानी

ईमानदारी की जीत

कैसा हो सच्चा मित्र

मुट्टा

एक था घरश्

घर कहां था, दद्दा?'

घर, घर कहां होता है?'

गांव में होता है, शहर में होता है और कहां होता है।''

नहीं यह घर था पहाड़ की तलहटी मे।''

अरे बाप रे पहाड़ परश्

अरे बुद्धू, पहाड़ पर नहीं पहाड़ के नीचे।''

अच्छा३..दद्दा ठीक है, फिर आगे क्या हुआ दद्दाश्

फिर क्या, उस घर में रहते थे करौड़ीलालश्

कैसे थे करौड़ीलालश्

वैसे ही थे जैसे करौड़ीलाल होते है।''

अरे दद्दा ठीक से बताओ न कैसे होते है।''

अरे यार जैसे अपने पकौड़ीलाल हैं, जैसे अपने छकौड़ी लाल हैं वैसे हीश्

अच्छा ऐसा बोलो न कि करौड़ीलाल बूढ़े बाबा थेश्

‘बिल्कुल ठीक कहा तुमनेश्

आगे फिरश्

आगे फिर क्या उनका एक लड़का था मुट्टाश्

मुट्टा, यह क्या नाम है दद्दा?' गबरू हंसने लगा। श्

अबे हंसता क्यों है, लड़का मोटा था इसलिए उसका नाम मुट्टा पड़ गया होगाश्

ठीक है! दद्दा फिर क्या हुआ?'

मुट्टा का एक दोस्त था, अच्छू। दोनों पक्के दोस्त थे। श्दांत काटी चॉकलेटश्

दांत काटी चॉकलेट मतलबश्

एक चॉकलेट को दो लोग आधी—आधी काटकर खाते हैं। पहले एक, अपने दांत से आधी काटकर खा लेता है, बाकी बची आधी दूसरा खा लेता है। श्

दद्दा यह तो दांत काटी रोटी वाला मुहावरा है।''

चुप तू ज्यादा जानता है या मैं।'' दद्दा ने अपने बड़े होने का अहसास कराया।

फिर आगे क्या हुआ दद्दा।'

मुट्टा की इच्छा थी कि वह अच्छू को एक बार अपने घर खाने पर बुलाए। उसने करौड़ीलाल से पूछा तो वे बोले श्बुला लो बित्ते भर का छोकरा कितना खाएगा। अच्छू जी आमंत्रित हो गए। अब क्या था, अच्छूजी सजधज कर मुट्टा के यहां पहुंच गए। भोजन बना पूड़ी—साग, रायता, पापड़, दाल—भात, आम की चटनी। दोनों धरती पर एक बोरी बिछाकर मजे से बैठ गए।

अरे बाप रे इतना नमकश् अच्छू ने पहला ग्रास मुंह में रखते ही बुरा—सा मुंह बनाया। श्कितना नमक खाते हो भाईश् अच्छू ने दो घूंट पानी पीकर नमक को मुंह में ही डायलूट करते हुए कहा।

कहां यार मुझे तो नहीं लग रहाश्, मुट्टा ने थाली में अलग से रखा नमक सब्जी में मिलाते हुए कहा।

अरे मुट्टा इतना नमक खाया जाता है क्या, पागल हो गए हो क्या?'अच्छू ने आश्चर्य की मुद्रा बनाई।

मैं तो इतना ही खाता हूं, शुरू से हीश् मुट्टा ने भोलेपन से कहा।

मेरे भाई कुछ किताबें—विताबें पढ़ा करो। क्या खाना चहिए, कितना खाना चाहिए, इसका मोटा—मोटा अंदाज तो होना ही चाहिएश् अच्छू ने समझाइश देना चाही।

क्या बात करते हो नमक खाने से क्या होता है।''

अरे भाई नमक खाने से कुछ नहीं होता, मगर अधिक खाने से बहुत कुछ होता है।'' अच्छू ने जबाब दिया।

बताओ बेटा, बताओ क्या होता है... ज्यादा नमक खाने से, मैं भी खूब खाता हू।'' करौड़ीलालजी बीच में ही बोल पड़ें।

काकाजी नमक शरीर के लिए अति आवश्यक है किंतु हद से ज्यादा नमक खाना बहुत हानिकारक है दिन भर में 5—6 ग्राम नमक शरीर की आवश्यकताओं को पूर्ण कर देता है।''

अधिक नमक खाने से क्या—क्या नुकसान होता है, ठीक से बताओ न।'' मुट्टा ने पूछा।

ज्यादा नमक से हृदय रोग होने का खतरा होता है।''

अरे बाप रे...! कैसे खतरा होता है खुलकर बताओ न...!

अधिक नमक खाने से उसे घोलने के लिए शरीर में अधिक पानी का उपयोग होता है और जलीय अ।''ा के असुंतलन से रक्तचाप बढ़ता है, रक्तचाप बढ़ा तो हृदय पर भार पड़ता है, इससे हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।''

अरे यार, मैं तो बहुत नमक खाता हूं! क्या इसी से तो नहीं मुझे बेचौनी होती रहती है?' मुट्टा को भय सताने लगा था।

हो सकता है तुम्हारे मोटापे का करण भी यही हो।'' अच्छू हंस पड़ा।

आगे बताओ और क्या—क्या नुकसान हैं नमक के?'

नमक के नहीं, ज्यादा नमक के।''

हां—हां, वही तो पूछ रहा हूं।''

देखो मुट्टा भाई, हम लोग जो भोजन करते हैं, उसमें प्राकृतिक रूप से इतना नमक तो रहता ही है कि जितना हमारे शरीर के लिए आवश्यक है। फिर शरीर की स्थूल से लेकर सूक्ष्म, अति सूक्ष्म क्रियाओं के संचालन में नमक की महिती भूमिका होती है। नमक को अंग्रेजी में रसायन शास्त्र की भाषा में सोडियम क्लोराइड कहते हैं। इसका मुख्य काम शरीर की कोशिकाओं में स्थित पानी का संतुलन करना है। ज्ञान तंतुओं के संदेशों का वहन और स्नायुओं का आंकुचन, प्रसरण होने की शक्ति भी नमक से ही मिलती है।''

मित्र यह तो गजब की बात है, मैं तो खाता हूं मनमाना, बिना नमक के खाने में स्वाद ही नहीं आता। और क्या नुकसान है, अच्छू... मुझे तो घबराहट हो रही है।'' मुट्टा उतावला हो रहा था, जैसे नमक के बारे में आज ही सबकुछ जान लेना चाहता हो।

नमक शरीर में सप्त धातुओं में निहित ओज को क्षीण कर देता है, ऊर्जा कम होने से इंसान में एक अज्ञात भय उत्पन्न होता है, वह चिंतित रहने लगता है और उसकी प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है।''

यार मुझे लगता है कि इस कारण से ही मुझे कमजोरी सी लगती है, सुबह कभी—कभी चक्कर भी आ जाते हैं।''

लगता क्या है, यही कारण है मित्र मुट्टा, इतना नमक खाओगे तो यह होगा ही।''

और३ और बोलो मेरे प्यारे अच्छू डॉक्टर! तुम्हारी बातों में बड़ा रस मिल रहा है।'' मुट्टा ने अच्छू को उकसाया।

नमक खाने से कैल्शियम मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है। जितना नमक खाओगे उतना ही कैल्शियम बाहर निकल जाता है। कैल्शियम की कमी से शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, दांत गिरने लगते हैं, त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगतीं हैं और असमय बाल सफेद होने या झड़ने लगते हैं। आंखों के ज्ञान तंतु क्षतिग्रस्त होने से रोशनी कम होने लगती है, मोटापा, मधुमेह३३३...'

बस यार, चुप करो! अब आगे नहीं सुन सकता।'' मुट्टा बौखला गया।

दद्दा, क्या यह कहानी बिल्कुल सच्ची हैश्, — गबरू ने दद्दा की पीठ पर लदते हुए पूछा।

तो तुम्हें क्या झूठी लग रही हैश् दद्दा ने आंखें दिखाईं।

नहीं—नहीं सच्ची ही होगी, जब आप सुना रहे हैं तो। हमारे दद्दा की कहानी झूठ हो ही नहीं सकती श्गबरू लड़याते हुए बोला।

दद्दा, मुट्टे ने फिर क्या किया?'

क्या किया, नमक खाना बिल्कुल कम कर दिया।''

दद्दा, इस कहानी का शीर्षक क्या रखा आपने?'

इस कहानी का नाम३. नाम३ हां, मुट्टा की कहानी,

ठीक है न मुट्टा की कहानी?'

हां, दद्दा! ठीक तो है मगर३३३यदि केवल श्मुट्टाश् रखें तो३३...'

वाह बेटे श्मुट्टाश् तो और भी अच्छा है, बहुत अच्छा।''

सुनो सबकी, करो मन की

एक बार की बात है। बहुत से मेंढक जंगल से जा रहे थे। वे सभी आपसी बातचीत में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे। तभी उनमें से दो मेंढक एक जगह एक गड्ढे में गिर पड़े। बाकी मेंढकों ने देखा कि उनके दो साथी बहुत गहरे गड्ढे में गिर गए हैं।

गड्ढा गहरा था और इसलिए बाकी साथियों को लगा कि अब उन दोनों का गड्ढे से बाहर निकल पाना मुश्किल है।

साथियों ने गड्ढे में गिरे उन दो मेंढकों को आवाज लगाकर कहा कि अब तुम खुद को मरा हुआ मानो। इतने गहरे गड्ढे से बाहर निकल पाना असंभव है।

दोनों मेंढकों ने बात को अनसुना कर दिया और बाहर निकलने के लिए कूदने लगे। बाहर झुंड में खड़े मेंढक उनसे चीख कर कहने लगे कि बाहर निकलने की कोशिश करना बेकार है। अब तुम बाहर नहीं आ पाओगे।

थोड़ी देर तक कूदा—फांदी करने के बाद भी जब गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाए तो एक मेंढक ने आस छोड़ दी और गड्ढे में और नीचे की तरफ लुढ़क गया। नीचे लुढ़कते ही वह मर गया।

दूसरे मेंढक ने कोशिश जारी रखी और अंततः पूरा जोर लगाकर एक छलांग लगाने के बाद वह गड्ढे से बाहर आ गया। जैसे ही दूसरा मेंढक गड्ढे से बाहर आया तो बाकी मेंढक साथियों ने उससे पूछा— जब हम तुम्हें कह रहे थे कि गड्ढे से बाहर आना संभव नहीं है तो भी तुम छलांग मारते रहे, क्यों?

इस पर उस मेंढक ने जवाब दिया— दरअसल मैं थोड़ा—सा ऊंचा सुनता हूं और जब मैं छलांग लगा रहा था तो मुझे लगा कि आप मेरा हौसला बढ़ा रहे हैं और इसलिए मैंने कोशिश जारी रखी और देखिए मैं बाहर आ गया।

सीख रू यह कहानी हमें कई बातें कहती है। पहली यह कि हमें हमेशा दूसरों का हौसला बढ़ाने वाली बात ही कहनी चाहिए। दूसरी यह कि जब हमें अपने आप पर भरोसा हो तो दूसरे क्या कह रहे हैं इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए।

तेनालीराम की कहानी

एक बार राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कॄष्णदेव राय से मिलने आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी।

यात्री एकदम दुबला—पतला था। वह राजा के सामने आया और बोला— महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूं और इस समय मैं विश्व भ्रमण की यात्रा पर निकला हूं। सभी जगहों का भ्रमण करने के पश्चात आपके दरबार में पहुंचा हूं।

राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा से मिले सम्मान से खुश होकर वह बोला— महाराज! उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर—सुंदर परियां रहती हैं। मैं अपनी जादुई शक्ति से उन्हें यहां बुला सकता हूं। नीलकेतु की बात सुन राजा खुश होकर बोले — इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?

उसने राजा कृष्णदेव को रात्रि में तालाब के पास आने के लिए कहा और बोला कि उस जगह मैं परियों को नृत्य के लिए बुला भी सकता हूं। नीलकेतु की बात मान कर राजा रात्रि में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल गए।

तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु ने राजा कृष्णदेव का स्वागत किया और बोला— महाराज! मैंने सारी व्यवस्था कर दी है। वह सब परियां किले के अंदर हैं।

राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगे। उसी समय राजा को शोर सुनाई दिया। देखा तो राजा की सेना ने नीलकेतु को पकड़ कर बांध दिया था।

यह सब देख राजा ने पूछा— यह क्या हो रहा है?

तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोले — महाराज! मैं आपको बताता हूं?

तेनालीराम ने राजा को बताया — यह नीलकेतु एक रक्षा मंत्री है और महाराज...., किले के अंदर कुछ भी नहीं है। यह नीलकेतु तो आपको जान से मारने की तैयारी कर रहा है।

राजा ने तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दिया और कहा— तेनालीराम यह बताओं, तुम्हें यह सब पता कैसे चला?

तेनालीराम ने राजा को सच्चाई बताते हुए कहा — महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था। फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्णदेव ने खुश होकर उन्हें धन्यवाद दिया।

ईमानदारी की जीत

चारों ओर सुंदर वन में उदासी छाई हुई थी। वन को अज्ञात बीमारी ने घेर लिया था। वन के लगभग सभी जानवर इस बीमारी के कारण अपने परिवार का कोई न कोई सदस्य गवां चुके थे। बीमारी से मुकाबला करने के लिए सुंदर वन के राजा शेर सिंह ने एक बैठक बुलाई।

बैठक का नेतृत्व खुद शेर सिंह ने किया। बैठक में गज्जू हाथी, लंबू जिराफ, अकड़ू सांप, चिंपू बंदर, गिलू गिलहरी, कीनू खरगोश सहित सभी जंगलवासियों ने हिस्सा लिया। जब सभी जानवर इकठ्‌ठे हो गए, तो शेर सिंह एक ऊंचे पत्थर पर बैठ गया और जंगलवासियों को संबोधित करते हुए कहने लगा, श्भाइयों, वन में बीमारी फैलने के कारण हम अपने कई साथियों को गवाँ चुके हैं। इसलिए हमें इस बीमारी से बचने के लिए वन में एक अस्पताल खोलना चाहिए, ताकि जंगल में ही बीमार जानवरों का इलाज किया जा सके।''

इस पर जंगलवासियों ने एतराज जताते हुए पूछा कि अस्पताल के लिए पैसा कहां से आएगा और अस्पताल में काम करने के लिए डॉक्टरों की जरूरत भी तो पड़ेगी? इस पर शेर सिंह ने कहा, यह पैसा हम सभी मिलकर इकठ्‌ठा करेंगे।

यह सुनकर कीनू खरगोश खड़ा हो गया और बोला, श्महाराज! मेरे दो मित्र चंपकवन के अस्पताल में डॉक्टर हैं। मैं उन्हें अपने अस्पताल में ले आऊंगा।''

इस फैसले का सभी जंगलवासियों ने समर्थन किया। अगले दिन से ही गज्जू हाथी व लंबू जिराफ ने अस्पताल के लिए पैसा इकठ्‌ठा करना शुरू कर दिया।

जंगलवासियों की मेहनत रंग लाई और जल्दी ही वन में अस्पताल बन गया। कीनू खरगोश ने अपने दोनों डॉक्टर मित्रों वीनू खरगोश और चीनू खरगोश को अपने अस्पताल में बुला लिया।

राजा शेर सिंह ने तय किया कि अस्पताल का आधा खर्च वे स्वयं वहन करेंगे और आधा जंगलवासियों से इकठ्‌ठा किया जाएगा।

इस प्रकार वन में अस्पताल चलने लगा। धीरे—धीरे वन में फैली बीमारी पर काबू पा लिया गया। दोनों डॉक्टर अस्पताल में आने वाले मरीजों की पूरी सेवा करते और मरीज भी ठीक हो कर डाक्टरों को दुआएं देते हुए जाते। कुछ समय तक सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा। परंतु कुछ समय के बाद चीनू खरगोश के मन में लालच बढ़ने लगा। उसने वीनू खरगोश को अपने पास बुलाया और कहने लगा यदि वे दोनों मिल कर अस्पताल की दवाइयां दूसरे वन में बेचें तथा रात में जाकर दूसरे वन के मरीजों को देखें तो अच्छी कमाई कर सकते हैं और इस बात का किसी को पता भी नहीं लगेगा।

वीनू खरगोश पूरी तरह से ईमानदार था, इसलिए उसे चीनू का प्रस्ताव पसंद नहीं आया और उसने चीनू को भी ऐसा न करने का सुझाव दिया। लेकिन चीनू कब मानने वाला था। उसके ऊपर तो लालच का भूत सवार था। उसने वीनू के सामने तो ईमानदारी से काम करने का नाटक किया। परंतु चोरी—छिपे बेइमानी पर उतर आया।

वह जंगलवासियों की मेहनत से खरीदी गई दवाइयों को दूसरे जंगल में ले जाकर बेचने लगा तथा शाम को वहां के मरीजों का इलाज करके कमाई करने लगा। धीरे—धीरे उसका लालच बढ़ता गया। अब वह अस्पताल के कम, दूसरे वन के मरीजों को ज्यादा देखता।

इसके विपरीत, डॉक्टर वीनू अधिक ईमानदारी से काम करता। मरीज भी चीनू की अपेक्षा डॉक्टर वीनू के पास जाना अधिक पसंद करते। एक दिन सभी जानवर मिलकर राजा शेर सिंह के पास चीनू की शिकायत लेकर पहुंचे। उन्होंने चीनू खरगोश की कारगुजारियों से राजा को अवगत कराया और उसे दंड देने की मांग की।

शेर सिंह ने उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि सच्चाई अपनी आंखों से देखे बिना वे कोई निर्णय नहीं लेंगे। इसलिए वे पहले चीनू डॉक्टर की जांच कराएंगे, फिर अपना निर्णय देंगे। जांच का काम चालाक लोमड़ी को सौंपा गया, क्योंकि चीनू खरगोश लोमड़ी को नहीं जानता था।

लोमड़ी अगले ही दिन से चीनू के ऊपर नजर रखने लगी। कुछ दिन उस पर नजर रखने के बाद लोमड़ी ने उसे रंगे हाथों पकड़ने की योजना बनाई। उसने इस योजना की सूचना शेर सिंह को भी दी, ताकि वे समय पर पहुंच कर सच्चाई अपनी आंखों से देख सकें।

लोमड़ी डॉक्टर चीनू के कमरे में गई और कहा कि वह पास के जंगल से आई है। वहां के राजा काफी बीमार हैं, यदि वे तुम्हारी दवाई से ठीक हो गए, तो तुम्हें मालामाल कर देंगे। यह सुनकर चीनू को लालच आ गया। उसने अपना सारा सामान समेटा और लोमड़ी के साथ दूसरे वन के राजा को देखने के लिए चल पड़ा। शेर सिंह जो पास ही छिपकर सारी बातें सुन रहा था, दौड़कर दूसरे जंगल में घुस गया और निर्धारित स्थान पर जाकर लेट गया।

थोड़ी देर बाद लोमड़ी डॉक्टर चीनू को लेकर वहां पहुंची, जहां शेर सिंह मुंह ढंककर सो रहा था। जैसे ही चीनू ने राजा के मुंह से हाथ हटाया, वह शेर सिंह को वहां पाकर सकपका गया और डर से कांपने लगा। उसके हाथ से सारा सामान छूट गया, क्योंकि उसकी बेइमानी का सारा भेद खुल चुका था। तब तक सभी जानवर वहां आ गए थे। चीनू खरगोश हाथ जोड़कर अपनी कारगुजारियों की माफी मांगने लगा।

राजा शेर सिंह ने आदेश दिया कि चीनू की बेइमानी से कमाई हुई सारी संपत्ति अस्पताल में मिला ली जाए और उसे धक्के मारकर जंगल से बाहर निकाल दिया जाए। शेर सिंह के आदेशानुसार चीनू खरगोश को जंगल से बाहर निकाल दिया गया। इस कार्रवाई को देखकर जंगलवासियों ने जान लिया कि ईमानदारी की हमेशा जीत होती है।

कैसा हो सच्चा मित्र

झील किनारे एक जंगल में हिरण, कछुआ और कठफोड़वा मित्र भाव से रहते थे। एक दिन एक शिकारी ने उनके पैरों के निशान देखकर उनके रास्ते में पड़ने वाले पेड़ पर एक फंदा लटका दिया और अपनी झोपड़ी में चला गया। थोड़ी ही देर में हिरण मस्ती में झूमता हुआ उधर से निकला और फंदे में फंस गया।

वह जोर से चिल्लाया — बचाओ। उसकी पुकार सुनकर कठफोड़वा के साथ कछुआ वहां आ गया। कठफोड़वा कछुए से बोला— मित्र तुम्हारे दांत मजबूत हैं। तुम इस फंदे को काटो। मैं शिकारी का रास्ता रोकता हूं।

जैसे ही कछुआ फंदा काटने में लग गया। उधर कठफोड़वा शिकारी की झोपड़ी की तरफ उड़ चला। उसने योजना बनाई कि जैसे ही शिकारी झोपड़ी से बाहर निकलेगा, वह उसे चोंच मारकर लहूलुहान कर देगा। उधर शिकारी ने भी जैसे ही हिरण की चीख सुनी तो समझ गया कि वह फंदे में फंस चुका है। वह तुरंत झोपड़ी से बाहर निकला और पेड़ की ओर लपका। लेकिन कठफोड़वे ने उसके सिर पर चोंच मारनी शुरू कर दी। शिकारी अपनी जान बचाकर फिर झोपड़ी में भागा और पिछवाड़े से निकलकर पेड़ की ओर बढ़ा।

लेकिन कठफोड़वा शिकारी से पहले ही पेड़ के पास पहुंच गया था। उसने देखा की कछुआ अपना काम कर चुका है, उसने हिरण और कछुए से कहा — मित्रों जल्दी से भागो। शिकारी आने ही वाला होगा।

यह सुनकर हिरण वहां से भाग निकला। लेकिन कछुआ शिकारी के हाथ लग गया। शिकारी ने कछुए को थैले में डाल लिया और बोला इसकी वजह से हिरण मेरे हाथ से निकल गया। आज इसको ही मारकर खाऊंगा।

हिरण ने सोचा उसका मित्र पकड़ा गया है। उसने मेरी जान बचाई थी, अब मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उसकी मदद करूं। यह सोचकर वह शिकारी के रास्ते में आ गया।

शिक्षामुसीबत के समय ही मित्रता की असली परख होती है। मित्रता का सिर्फ दम भरना ही काफी नहीं है, बल्कि मौका मिलने पर उसका असली मतलब भी सिद्ध करना चाहिए। जो मुसीबत में काम आए वही सच्चा मित्र होता है। शिकारी ने हिरण को देखा तो थैले को वहीं फेंककर हिरण के पीछे भागा। हिरण अपनी पुरानी खोह की ओर भाग छूटा। शिकारी उसके पीछे—पीछे था। भागते—भागते हिरण अपनी खोह में घुस गया। उसने सोचा एक बार शिकारी इस खोह में घुस गया तो उसका बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा।

थोड़ी ही देर में शिकारी खोह में पहुंचा। उसने सोचा अब हिरण भागकर कहां जाएगा। वह भी खोह के अंदर घुस गया। खोह के अंदर भूल—भुलैया जैसे रास्ते थे। शिकारी उन रास्तों में भटक गया।

हिरण दूसरे रास्ते से निकलकर थैले के पास जा पहुंचा और कछुए को आजाद कर दिया। उसके बाद वे तीनों मित्र वहां से सही—सलामत निकल गए।

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