आइना सच नही बोलता भाग चार Neelima Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आइना सच नही बोलता भाग चार

आइना सच नही बोलता

शब्दावकाश

हिंदी कथाकड़ी भाग ४

प्रियंका पांडे

भावुक मन की कोमल कल्पनायें जाने अनजाने अक्सर बादल,धूप,हवाओं,चाँद ,सूरज से रंग उधार ले लेकर चित्र उकेरती गयीं और शब्दों ने उन्हें मोती बन कविताओं की शक्ल में ढाल दिया।
जीवन के सफर में भावनाएं और शब्द साथी रहे।ठोस ज़मीन से जुड़ भावनाओं की सतत उड़ान अभी भी जारी है।

लेखन विधा-हिंदी छंद,गीत,दोहे,मुक्तक,ग़ज़ल, लघुकथा,छंदमुक्त काव्य।

सात साझा संकलन

Colours of refuge
अंतर्राष्ट्रीय साझा संकलन

अनेक मैगज़ीनों में छंदबद्ध और छंदमुक्त कविताओं का प्रकाशन

ब्लॉग-
मेल-

आइना सच नही बोलता

शब्दावकाश

हिंदी कथाकड़ी भाग ४

अचानक दीपक की दीदी ने अपने कंधे पर एक पुरुष स्पर्श महसूस किया | दीपक ने उनको कंधे पर थपथपाकर कर आँखों से नंदिनी की तरफ इशारा किया \\ उसकी आँखों के भाव दीदी ने पढ़े और पलट गयी

नंदिनी की घबराहट भांप दीपक की दीदी ने औरतों को घुड़कने के अंदाज़ में कहा "अब इसमें पढ़ीलिखी और अनपढ़ जैसी बात कहाँ से आ गयी? नयी जगह की घबराहट में हो जाता है" और मुस्कुराते हुए नंदिनी का भारी लहंगा थोडा ऊपर उठा कर बोली,"दाहिना पैर उठा कर शगुन करो।" नंदिनी थोडा संयत हो भारी पाज़ेब वाले कोमल पैरों से महावर की छाप छोड़ते घर में गृहलक्ष्मी बन आ गयी।
भीड़भाड़ से भरे कमरे में मुहल्ले की बुज़ुर्ग औरतों ताई, चाची सभी के पैर छूने की रस्म के बाद दीपक की चचेरी भाभी रचना ने "आओ लल्ला अब भी शरमा रहे हो या दिखावा कर रहे हो?" यह बोलते हुए दीपक और नंदिनी को अगल बगल लाकर बैठा दिया। सुषमा दीपक की बड़ी बुआ दूध की परात में अंगूठी डालकर ले आईं और बोलीं,

“आओ अंगूठी खिलाई रसम हो जाए "देखें किसकी हुकूमत चलती है ज़िन्दगी भर?"

छोटी ननद मीतू नंदिनी की तरफ थी तो बुआ दीपक को कह रही थीं

“देखो चूकना मत”

।एकबार अंगूठी नंदिनी के हाथ आई तो दो बार दीपक ने लपक ली और बहन को मुंह चिढ़ाता गर्व से बोला,

"अब बोल भाभी की चमची"तभी हँसते हुए नीतू ने आधा लड्डू दीपक के मुंह में ठूंस दिया और आधा नंदिनी को खिलाते हुए बोली,"भैया गृहस्थी की गाडी तो दोनों पहियों पर चलती है लो अब मुंह मीठा करो।"

दीपक के साथ आये कुछ विदेशी दोस्त सारे रीतिरिवाजों का मज़ा ले रहे थे और साथ ही वीडियोग्राफी भी कर रहे थे उनमे एक लड़की लीज़ा तो बड़ी ही तल्लीनता से एक एक रस्म देख रही थी और उसके बारे में पूछ कर नोट भी कर रही थी।बुआ मुंह बिचका कर बोलीं,"ये वहां जाकर फिलम विलम बनाएगी और पैसे कमाएगी" हालांकि उसका आना घरवालों को कम अच्छा लगा था पर अतिथि देवो भव् की तर्ज़ पर सबने स्वागत में कोई कसर नही छोड़ी थी।
नंदिनी एक गुड़िया की तरह निगाहें झुकाए चुपचाप बैठी थी तभी दीदी की आवाज़ सुनाई दी,"अब इसे भी थोडा आराम करने देते हैं" तो सभी ने अपनी सहमति जताई कि हाँ ले जाओ अपने कमरे में थोडा आराम कर ले वैसे भी शाम को और भी औरतें आएँगी मुंह दिखाई की रस्म में।
कमरे में आकर नंदिनी ने चैन की सांस ली भारी गहने कपड़े तो नहीं उतार सकती थी पर थोडा पैर फैला कर मनचाहा लेट तो सकती थी। शादी ली उलझनों बीती बातों के तनाव और थकान से बुरी तरह टूटी नंदिनी लेटते ही नींद के आगोश में आ गई।

अचानक एक स्नेहमयी आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग हुई सर पर पल्लू सम्हालते उठने की कोशिश में लड़खड़ा उठी तो सास ने मधुर आवाज़ में कहा,"बैठी रह तू भी मेरी मीतू नीतू जैसी ही है"

छुई मुई सी तन्वंगी कमउम्र नंदिनी को जबसे उसकी सास ने देखा जाने क्यों बड़ा अपनापन सा हो चला था उन्हें अपनी बहू से या यूँ कहें कि अपना बहुत कुछ फिर से याद हो चला था वह खुद कम उम्र आई थी वो बीते ज़माने की बात थी पर दबी ज़बान से तमाम विरोधों और नीतू के आगे और पढ़ने की इच्छा के बाद भी न चाहते हुए बेटी को विदा करने की मज़बूरी पल रही थी कहीं उनके मन में जो नंदिनी को देख उमड़ सी आई आगे बढ़ धीरे से उसके सर पर हाथ फिरा बोलीं,"अपने घर सा ही समझना सब तुम्हारे अपने ही हैं” और बाहर चली गईं।
थोड़ी देर में छोटी ननद इठलाते हुए थाली में खाना लेकर आई और बोली भाभी खाना खा लो थकान और मायूसी से नंदिनी दो कौर से ज़्यादा नही खा सकी |रह रह कर माँ की सूरत उसके निगाहों में आ रही थी| अपना घर आँगन भाई भाभी छोटा सा भतीजा और रोबीले पिताजी जो विदा के पलों में आँखों में नमी छिपाते सहज होने की कोशिश में नाकाम से दिखे ,सभी चलचित्र की तरह आ जा रहे थे।
शाम होते होते उसको फिर से गुलाबी लहंगे मैचिंग ज्वेलरी चूड़ी मेकअप मेंतैयार कराया गया | नंदिनी किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी।मुंह दिखाई को आई औरतें उसकी सुंदरता और दीपक संग उसकी जोड़ी की तारीफ करते न अघाती थीं।बहने हर बार बोल उठती

“हमारी पसंद है अच्छी तो होगी ही”

।हंसी मज़ाक नाच गाने खानेपीने के दौर के बीच नंदिनी के कान आँख बन दीपक को ढूंढ रहे थे।रस्म के समय अंगूठी पकड़ते दीपक की उँगलियों का स्पर्श सिहरा रहा था उसे।मुंह दिखाई के बाद जिठानी और ननद दोनों उसके कमरे में ले आयीं उसे जिसे मुँह दिखाई की रस्म के बीच ही जाने कब वक्त निकाल कर फूलों और सुगन्धित मोमबत्तियों से सजाया जा चुका था।नंदिनी की धड़कनें और तेज हो गयी थीं| जिस पल का इंतज़ार किया उसी के आने की आहट से जाने क्यों इतनी घबराहट हो रही थी।उसकी मनोदशा भांप जिठानी धीरे से हाथ दबा कर बोली” होता है सबके साथ ऐसा “और हंस कर जाते जाते दरवाज़ा बंद करती गयी।थोड़ी देर बाद हलके रेशम वर्क के कुर्ते और पायजामे में मुस्कुराता हुआ दीपक कमरे में दाखिल हुआ।उसकी मुस्कुराहटों के बीच कहीं हलकी सी झिझक भी झलक रही थी।
दरवाज़ा बंद कर सीधे आकर पलंग के पास खड़ा हुआतो शर्माती सी नंदिनी अपने लहंगे को सम्हालती उठने की कोशिश करने लगी तो धीरे से उसका कोमल हाथ हाथोंमें लेकर दीपक उसके पास बैठ गया और जेब से एक दिल के आकार का डायमंड पेन्डेन्टसोने की चैन समेत निकाल कर जिस पर "डी" लिखा हुआ था नंदिनी को पहना दिया। नंदिनी से उसके शौक इत्यादि के बारे में पूछने पर उसने बताया कि उसे पढ़ने का बेहद शौक है।एक चुप्पी के बाद दीपक बोला,"तुम बहुत सुंदर हो और साथ ही समझदार भी मुझे उम्मीद है तुम माँ पिताजी और घरवालों को निराश नही करोगी।खुद भी संयुक्त परिवार से हो तो परिवार की अहमियत तो समझती होगी।लेकिन मुझसे बहुत ज्यादा की उम्मीद न रखना क्युकी तुम्हारी और मेरी आदते बहुत अलग होंगी "और एक चुम्बन उसके माथे पर टांक दिया।
पर्दे के पीछे हल्के बादलों से अठखेली करता चाँद,मुस्कुराती हौले-हौले गुज़रती रात,महकते मोगरे के फूल,ख़ुशी-ख़ुशी पिघलती मोमबत्तियां साथी रहे और नंदिनी दीपक के आगोश में पिघलती चली गयी।
चाँद का हाथ थामे रात उन दोनों के मिलन की साक्षी बन गुज़र चुकी थी।खिड़की के पर्दे के पीछे से सूरज की हल्की किरण नंदिनी के चेहरे और बालों से खेल एक नयी ज़िन्दगी की शुभकामना दे रही थी।

तभी दरवाज़े पर हल्की थाप से नंदिनी की नींद टूटी तो हड़बड़ाकर कपड़े बिस्तर सही कर दीपक की ओर देखा उसके चेहरे पर हल्की रौशनी घुंघराले बालों वाले गोरे चेहरे को और सुंदर बना रही थी } तभी दोबारा दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ से सर पर पल्लू लेकर नंदिनी के दरवाजा खोलने भागी |सामने चचेरी जिठानी खड़ी थी बोली चलो नहा कर तैयार हो जाओ बड़ों का आशीर्वाद लेना है, चौका छूने की रस्म भी है और उसे देख धीरे से मुस्कुरा दी।नंदिनी ने शरमाते हुए हाँ में सर हिलाया।दीदी के साथ पूजाघर में जामुनी रंग की साडी हलके जेवर मेकअप में नंदिनी किसी गुड़िया से कम नही लग रही थी |उसका नैसर्गिक सौंदर्य उभर कर सामने आ रहा था।पहले पूजाघर में भगवान फिर ताऊ जी, ससुर जी,चाचा जी सबका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ी तो दीदी ने परिचय करवाया “

ये हैं मेरे पतिदेव जिन्हें बरात में चोट लग गई थी”

नंदिनी ने बढ़कर उनके पैर छू लिए पर मन ही मन उस हादसे को याद कर घबराई भी पर जीजा जी शांत दिखे।
अंदर कमरों में ताई,चाची,बुआ,सासू माँ सबका आशीर्वाद लेती गलियारे से गुज़रती नंदिनी की निगाह सफेद साडी में लिपटी एक महिला पर पड़ी जो उसे देख कर दरवाज़े की ओट में हो गयी लेकिन उसकी सूनी आँखें देर तक नंदिनी महसूस करती रही।जी में आया कि दीदी से उसके बारे में पूछे पर संकोचवश पूछ नही सकी।
रसोई घर में जिठानी कई तरह के पकवान बनाने में व्यस्त थीं तो नंदिनी को देख कर मुस्कुराईं बोलीं,"आ जाओ सब बन रहा है थोडा थोडा हाथ लगा देना है आजही तुम पर बोझ नहीं आयेगा बाकी दिनों तो तुम्हें ही करना है।"और सभी औरतें हंस पड़ीं तो दीदी भी बोल पड़ी “हम औरतों को इससे कहाँ फुरसत। तभी नंदिनी ने एक तेज़ आवाज़ सुनी,"चाय नही मिलेगी क्या?" दीदी हड़बड़ा कर बोली दीपक भैया की चाय अभी नहीं पहुंची क्या? और जल्दी से चाय बनाकर महंगे वाले कप में तरे में सजाकर चाय लेकर चल दी |नंदिनी सोच में गुम हो गई कि दीपक इस तरह क्यों चिल्ला रहा है तभी जिठानी की आवाज़ से चौंक गई कि नयी बहू आओ देखो क्या-क्या करना है तुम्हे?
थोड़ी रस्म अदायगी कर नंदिनी को उसके कमरे में पहुंचा दिया गया जहाँ चाय के साथ रिश्ते की ननदें देवर उसको घेर कर बैठ गए।दीपक भी थोड़ी देर बाद किसी बहाने से अपनी अपने कुछ देशी वेदेशी दोस्तों के साथ आ जमा।सबके हंसी मज़ाक के बीच लीज़ा उसके जेवर कपड़े छू छू कर देखती और तारीफ़ करती रही पर दीपक के विदेशी दोस्तों की बातें पूरी तरह नंदिनी समझ नहीं पा रही थी और उसकी झुंझलाहट दीपक के चेहरे पर साफ दिख रही थी।

रस्मों रिवाज़ घर वालों के अपनेपन और दीपक के साथ बीते लम्हे पंख लगा कर ज्यों उड़ से रहे थे

दिन सोने से और राते चांदनी सी बीत रही थी |कैसे 15 दिन बीत गए पता ही न चला रिश्तेदार अपने अपने घरों को वापस जा चुके थे बची थी तो दीपक की एक बहन नीतू उसका भी कुछ दिन बाद जाना निश्चित था।
एक रात नंदिनी के बालों से खेलते-खेलते अचानक दीपक कह बैठा “मेरी भी तैयारी कर दो छुट्टियां खत्म हो रही हैं वापस जाना होगा”।नंदिनी मानों बादलों की सैर करते करते ज़मीन पर आ गिरी।इस बात से अनजान तो नही थी कि दीपक वापस जाएगा पर कल और आज में फर्क था दीपक के बगैर कल्पना करने के नाम पर कलेजा मुँह को आ गया |न चाहते हुए भी उसकी रुलाई फूट पड़ी।दीपक भी उसे समझाते हुए बोला,"देखो तुम्हें जाने में समय लगेगा और माँ पिताजी भी यहां अकेले हैं कुछ दिन उनके साथ रहलो | अभी तुमको मायके भी जाना है न |यह हमारे संस्कारों के खिलाफ है तुरन्त साथ जा भी नहीं सकते और मेरी छुट्टी खत्म हो रही है रुकना भी सम्भव नहीं।"
नंदिनी पूरी रात सो नही पायी।सुबह नंदिनी को गुमसुम देख उसकी सास ने पूछा क्या बात हुई तो बताते हुए नंदिनी की आँख में आंसू आ गए।एक ठंडी सांस लेकर उसकी सास बोल उठी जाना तो उसे होगा ही ,नौकरी छोड़ तो नही सकते।धीरे धीरे घर के कामों में रचबस जाओगी | मायके हो आओगी तो मन बदल जाएगा |

और उसका हाथ थपथपा कर चुप हो गयी तभी बाहर किसी नौकर पर दीपक के चिल्लाने की आवाज़ आई | नंदिनी अक्सर दीपक के दोहरे व्यवहार पर चकित सी रह जाती थी एक ही पल में वह इतना निष्ठुर सा कैसे हो जाता है?प्रेम में डूबा पास आने के बहाने खोजता दीपक अचानक उसे अजनबी सा लगने लगता।शादी के पहले सुहाने सपने सजाये नंदिनी का मन विरह की कल्पना से सिहर उठता।पिता के आदेश और ज़िद के आगे किसकी चली थी। आज वो नंदिनी बहू थी उसकी शादी हो चुकी थी उसका पति ही उसका परमेश्वर हैं
भाभी चुहल करतीं थी नन्द रानी वहां जाकर हमें भूल तो नही जाओगी?तो नंदिनी शरमाकर हंस पड़ती थी ।यहाँ का माहौल उसके अपने घर से कुछ अलग तो था उतनी बंदिशें नही थीं। भाभी से माँ से बात भी हुयी थी फ़ोन पर लेकिन पिता ने सिर्फ ससुर और दामाद से बात करके हर बार फोन रख दिया था |
अपनी ख्वाहिशों की उड़ान के सपने लेकर उड़ती नंदिनी को उसके अपने पंख बौने से महसूस होते दिखे। साड़ियां जेवर पैसे रुतबा कभी भी उसकी प्राथमिकता नहीं रही उसका मन तो रमता था किताबों की तिलिस्मी दुनिया में जहाँ एक दरवाज़ा छूते ही तमाम रास्ते खुल जाते थे।कभी बादलों पर सैर तो कभी अथाह समुद्र सी उनकी गहराई नापते उसका मन कुलांचे भरता रहता था। उसके सुख दुःख की साथी किताबों ने तो पीहर की देहरी से ही उसे नम आँखों से विदा दी थी उसका मन तो था अपनी सारी सखियों को संग ले जाने का पर पीहर की देहरी लांघते ही सब पीछे छोड़ना ही पड़ता है।अल्हड़ लड़की से गंभीर ज़िम्मेदार बहू बनने के सफर में कभी पीहर से कोई साथ आता है भला?

लेकिन दीपक और नंदिनी कब एक जैसे थे ....उसे याद हो आती थी पहली रात को कही गयी दीपक की बात .........

प्रियंका पाण्डेय

सूत्रधार –नीलिमा शर्मा निविया