भूटान यात्रा Lata Tejeswar renuka द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान यात्रा

भूटान यात्रा

हम कोलकता से दुसरे फ्लाइट ले कर भूटान की ओर बढ गए। सफर बहुत ही सुहाना था। मैं भूटान की सर ए जमीं पर पैर रख कर गर्वान्वित मेहसूस करने लगी । भारत की जमीं से दूर सरहद पार किसी साहित्यिक कार्यक्रम में हिस्सा लेना सचमुच ही बहुत गर्व की बात है। मैं इस कार्यक्रम में भाग ले कर फूले समा नहीं पा रही थी । मैं और मेरे साथी हवाई जाहज से उतर कर खूब सारे फोटो खींचे । वहाँ से हमारे ट्रिप गाइड़ ने हमारे लिए पहले से सारी व्यवस्था कर रखे हुए थे । एयर पोर्ट में उतरते ही हम थिंफू की ओर रवाना हो गए । पारो की एयर पोर्ट से थिंफू का सफर कुछ खास नहीं था । हमारे देश की हरियाली वहाँ हमें दूर दूर तक नज़र नहीं आ रही थी । हमारे देश की हवा पानी की बात तो कुछ और ही है । वहां दूर पाहाड़ी पर कहीं कुछ सुखे हुए कंटिले पैधे के अलावा कहीं हरियाली नज़र नहीं आ रही थी । हमारे ट्रिप एड़वाइजर रज़त और सुमन्त बासू वहां की मौसम और पाहड़ियों के बारे में समय समय पर अवगत कराते रहे । उनका कहना था वे सारे वृक्ष सेब के हैं । वहां की बदलते मौसम के चलते सेब के वृक्ष सुखे और निर्जीव प्राय दिख रहे थे, मौसम बदलते ही वे फिर से फल फूलने लगेंगे । पाहड़ के सर्पिला रास्ते से होकर हमारा बस आगे बढ़ रहा था । पाहाड़ के एक तरफ खाई नज़र आ रही थी । प्राय १.३० सफर करते हम थिंफू के होटल तख्तसॉग में पहुँचे।

उस पूरा दिन हम होटेल में ही आराम किये । शाम को भूटान की सड़कों पर शहर का जायजा लेने बाहर निकले। वहां के घर मुझे बहुत ही सुंदर लगीं । सारे मकान के बाहरी सजावट एक जैसी ही थी । लकड़ी से खिड़की और छत की उपरी अँश डिजाइन किया गया था। दूर से देखो तो कोई फिल्मी सूट के लिए बनाए गए मोड़ल घर या कोई आर्ट कलोनी जैसे दिख रहे थे। सड़क और आस पास की सफाई का खूब ध्यान रखा गया था । गाड़ी चालकों ने भी पर्यावरण का खूब ख्याल रखते हुए बेवजह हर्न का इस्तेमाल न करते हुए वाहन चला रहे थे। इस वजह से गाड़ियाँ बड़ी मात्रा होने पर भी और लोगों की भारी भीड़ होने के बावजूद शोर शराबा बहुत कम था। वहाँ के लोग एक खास तरह की मसाला पान 'दोना' की शौकिन हैं। वह पान कच्चा सुपारी से तैयार किया जाता है । हम जब वहाँ पहुंचे रास्ते पर एक लडंकी कुछ खास किस्म की पेय बेच रही थी । वह पेय वहाँ के लोगों की बहुत ही लोकप्रिय है। मेरी दोस्त की बेटी दिव्या ने उस पेय को पी कर बहुत खुश लग रही थी। हम कुछ देर मार्केट में घूमते हुए वहाँ के लोगों से तरह तरह के प्रश्न कर जानकारी ले कर वापस आ गये।

दुसरे दिन सुबह हमारा साहित्यिक कार्यक्रम था। हम सुबह सुबह कानफरेन्स हल में पहुंचे । उस पुरा दिन का कार्यक्रम बहुत ही अच्छी तरह से संपन्न हुई। बिभिन्न लेखिकाओं की १२पुस्तकों का लोकार्पण किया गया उनमें मेरी दो किताबें "मैं साक्षी यह धरती की" और "हवेली" भी शामिल थी । मैं अपनी किताब "हवेली" के कुछ पन्ने पढ़ कर सुनाई । द्वितीय सत्र में भी मेरी एक कविता पाठ की। साहित्यिक कार्यक्रम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगी क्यों की मुझसे ज्यादा अच्छा संतोष जी बिस्तार से बता सकेगे। उस रात हम सब बहुत खुश थे। क्यों न हों हमारी कार्यक्रम जो इतनी सफल रही । रात भर डाइनिंग टेबल पर बस उसी दिन की कामयाबी की चर्चा होती रही। सब से बड़ी विषय यह थी की थिंफू के कुछ शिक्षिका और एक इंजीनियर की छात्र भी उपस्थित रहे।

तीसरे दिन मिथिलेशजी और बिहार से आई हुई लेखिकाएं हम सब से छुट्टी लेकर वापस लौट गए। उन्हें बिदा कर हम भुटान सैर करने गए। थिंफू से हम थिंफूछू (थिंफू की नदी) को पार करते हुए हम सिंथोका जंग (सिंथोका जंग एक फोर्ट है भुटानी भाषा में पुरानी हवेली को जंग कहते हैं।) के तरफ बढ़ गए। रास्ते की मरम्मत चलते हमें करीब दो घंटे रास्ते में रूकना पडा। वहाँ पहाड़ी के उपर कॉफी ठण्ड थी। करीब 4-5डिग्री रही होगी। हम सब बहुत सुबह निकलने की वजह से नास्ता पैक कर लिए थे। वहां हम ने जलपान कर चाय वाले से चाय पिए। उस चाय वाले सोनम ने हमें उनकी जीवन शैली और उनकी तौर तरिके शादी के रिश्ते रिवाज़ उनकी पहनावे के बारे में बहुत सारी जानकारी दी इसलिए हम उसका बहुत शुक्र माना। हमे ये जान कर ख़ुशी हुई की भूटान में स्त्री पुरुष को समान अधिकार दिया जाता है और बाल मज़दूरी शुन्य है। हमें बहुत ख़ुशी हुई की वे हमसे बहुत ही अच्छी तरह से हिंदी में बात कर रहे थे । हमारा राष्ट्र भाषा हिंदी, भारत के अलावा दूसरे प्रदेशों में मशहूर है जान कर बहुत ख़ुशी हुई।

हमारा मुख्य गम्य स्थल दोचिला था। जो की ३२००मिटर ऊंचाई पर स्थित है जो की भुटान की सबसे ज्यादा ठंडी प्रदेश है। हम पाहड़ के उपर स्थित बुद्ध मंदिर गए। जहाँ से पूरी भुटान शहर दिख रहा था। बुद्ध की एक बहुत बड़ी प्रतिमा के अंदर यह मंदिर था। वहाँ की हवा की तेज से हमारे आंचल को समेटना मुश्किल हो रहा था । वहाँ की सुंदरता हमारे मन को छू गई। उस तेज़ हवा के चलते हलकी सी धुप बहुत ही सुहाना लग रही थी। इस भुटान की जमीन को थंडर ड्रागन भी कहा जाता है। वैसे ही यहां की लोग भी ड्रैगन को बहुत मानते हैं। इसलिए उनकी राष्ट्रध्वज में भी ड्रैगन का प्रतिक शामिल है। लौटते समय हम 108 सैनिकों की स्मारक भी देखा जिसे वहां के लोग 'चोतन' कहते हैं । इस तरह हमारे तीसरे दिन की यात्रा ख़त्म हुई।

अगले ही दिन हम जलपान कर भूटान की सबसे ऊँची जगह देखने के लिए निकले जहाँ से भूटान से चीन की लंबी दीवार या चाइना गेट दिखती है । हमारे टूर गाइड रजत दादा और सुमंतो बासु जी का कहना था की उस जगह पर कभी-कभी बर्फ की एक झलक भी दिख जाती है । शायद हम कुछ ज्यादा ही खुश-किस्मत थे इसलिए हम पहाड़ की कुछ ही दुरी जाने के बाद ही हमें बर्फ दिखने को मिली। हम तो ख़ुशी से पागल हो गए थे । जहाँ भी देखो जैसे बर्फ की चद्दर बिछाई हुई थी । पत्ते पत्ते ड़ाली ड़ाली पर बर्फ भरी हुई थी। जैसे की स्वर्ग जमीं पर उतार आया हो । पेड़ पौधे बर्फ की बोझ से झुक झुक कर सलाम कर रहे थे। बर्फ में हमारे पैर धसे जा रहे थे जैसे की हम रेत पर चल रहे हो । बर्फ से झुकी पेड़ पौधों के बीच से चमकता हुआ सूरज और भी लुभावना लग रहा था । सूरज के किरणें बर्फ की ऊपर गिर कर प्रतिफलित हो कर हमारे आँखों में झिलमिला रहे थे । हम तो बस पागल होते जा रहे थे धरती की उन सूंदर वादियों में खुद को भूल कर नाच उठे थे। आखिर विद्या चिटको जी हो या रोचना जी हो संतोष दी या अनुया दलवी हम सब अपनी उम्र की बचपन को जैसे फिर से जी उठे थे। जीवन की सारे उलझने सारी परेशानी भूल कर बर्फ में खो गए थे । वैसे भी रचनाकारों में थोड़ी सी पागलपन जरुर होना चाहिए हम भी उस वक्त जैसे उस सूंदर प्रकृति में होश खो बैठे थे । ज्यादा बर्फ बारी की संभावना हेतु आगे न बढ़ते हुए हम वहां से लौट आए।

वहाँ से लौट कर हमारा बस शॉपिंग के लिए बीच बाजार में रुकी । वहां का मौसम बहुत ही सुहाना था । हलकी सी बारिश धरती को भिगो रही थी । हम एक शॉप से दूसरे शॉप घूमते रहे । वहां की विभिन्न प्रकार के चीजें जिसमे केशर का प्रधान्यता दिखाई दे रहा था । बौध धर्म की तरह तरह मूर्तियां पीतल और अन्य धातुओं से बानी हुई चीजें मशहुर थीं। उन लोगों में बौध धर्म का खास प्रभाव नज़र आ रहा था । रंग बिरंगी मोतियों से बनी खुब सुरत मालाएँ भुटान की लड़कियों की खास पसंद थी। जानवर याक् की हड्डियो से बनीं तरह तरह की बौद्ध मूर्तियां और जानवर की प्रतिमाएँ बाजार में मशहूर थी। हाथ से बनी सूंदर सूंदर प्रिंटेड डिज़ाइन ख़ास भूटान की शान है। वहां शॉपिंग करने के बाद हम अपने रूम में चले आये । उस दिन की एक ख़ास प्रस्तुति थी वहां की लोक नृत्य । लोकनृत्य का मज़ा लेने हम एक नृत्य मंडली को बुलाया था। वे अपनी पूरी तैयारी के साथ रंगबिरंगी मालाएं पहनकर 6 बजे पहुंचे। उनकी साही अंदाज से हमारे सामने नृत्य प्रस्तुत किया । आखरी दौर में हमारे साथी सहेलियां भी उस नृत्य में शामिल हो गए थे। हमारे साथ देने से वह नृत्य मंडली भी काफी खुश थी। देशी विदेशी भूलकर हम सब साथ साथ नाच उठे थे । इन्ही सारी यादों को लेकर हमारा थिम्फू का दौर ख़त्म हुआ ।

अगले दिन यानि 5वीं दिवस हमें भूटान की पारो शहर में गुजारनी थी। हम सुबह सुबह थिम्फू से निकल कर पारो के तरफ रवाना हो गए । करीब डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद हम पारो पहुंचे । छोटे छोटे गलियों से गुजरते हुए हम हमारा बुक किया होटल पहुंचे । होटल एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित थी। जब हमारा बस पहाड़ी चढ़ रहा था उसकी सर्पिल जैसी रास्ते से गुजरते हुए मैं तो ड़र के मारे जैसे ऑंखें बंद कर ली थी । बस की सीट के रॉड को जोर से पकड़ रखी थी । किसी भी तरह पतली सी कच्चे रास्ते से हो कर हमारा बस होटल पहुंचा । अपने सामान होटल के रूम में रख कर हमने खाना खाया। कुछ देर आराम करने के बाद हम पारो घूमने निकल पड़े । इस दौरान हमने देखा पारो हो या थिम्फू हो भूटान की हर जगह हर कुछ मीटर के दुरी पर लंबे लंबे लकड़ियों पर कपडों के झंडे जैसे लगाये हुए थे। जिसमें बहुत कुछ लिखा हुआ था इसके अलावा अगर आकाश की तरफ देखी जाए तो रंगीन झंडों को रस्सी से बाँध कर हर इलाका के चारों और लगायी गयी है । पूछने पर मालूम हुआ ये पताकों और झंडों पर कुछ मन्त्र लिखी हुई है जो की नेगेटिव एनर्जी या भूत प्रेत को गांव से दूर रखने के लिए लगायी गयी है। पहाड़ियों की इन शक्तियों से लोगों को बचाने के लिए इन पताकाओं में कई लाख या करोड़ों मंत्र से सुरक्षित की गयी है ।

पहाड़ियों के बीच एक सूंदर जगह है पारो । हम जहां ठहरे हुए थे वहां से दूर दूर तक पहाड़ ही पहाड़ नज़र आ रही थी । झुकी हुई आस्मां के तले बदलों की घेर में पूरा पहाड़ ढ़का हुआ था पर हरियाली की कमी कुछ खटक रही थी, कमी तो थी हरियाली की वरना उन वादियों में खो जाने का मज़ा ही कुछ और होता। कच्चे सड़कों पर बस जब 'U' टर्न लेता था उन पहाड़ियों से खाई में गिरने का ड़र भी भयानक लग रहा था । हम पहाड़ियों में घूम कर एयरपोर्ट देख कर जब वापस लौटने लगे तब हम लोगों ने वहां ढ़ेर सारी शॉपिंग की । रंग बिरंगी मोतियों की मालाएँ तरह तरह की फ्रेंडशिप बैंड्स लकेट्स कपडे सच कहें तो क्या नहीं था उनके पास । हमने पुछा इन सारे चीजें बनती कहाँ है कोई फैक्ट्री या कंपनी है यहां ? उनका कहना था, " नहीं, ये सारे चीज़ें भारत या नेपाल और आस पास देशों से इम्पोर्ट किया जाता है । हमें और एक बात की आश्चर्य हुई की कही भी हमने सब्जी या धान या कुछ भी खाने की द्रव्य उगते या उगाते नहीं देखा। मेरा कहना ये है की किसान या लोग जमीं पर निर्भर नहीं है। शायद ये सूखे जमीं और पहडियों में पानी की कमी के वजह से खेती को प्राधान्यता नहीं रही हो सकती है । लोग पेट पालने के लिए महँगी सूती से बनी कपड़े हाथ से तैयार करते है और पहनते भी हैं। वे बहुत महँगी होते है । लोग गाड़ी चलाते हैं। चाय की और अलग व्यापार भी करते है । हमने ज्यादातर यह महसूस किया की लोग आस पास देशों से रॉ मैटेरियल्स जैसे सूती, उन, सब्जियां हो या चिकेन मट्टन सब इम्पोर्ट कर देश में लाया जाता है । वहाँ की याक की हड्डियों से स्थानीय लोग खुबसूरत मूर्तियां या पशु पंक्षियों की नमूने तैयार करते है । जब मैंने उन सूंदर मुर्तिया दिखी तो उनमे से बुद्ध की एक प्रतिमा को खरीदने को सोचा पर जब मुझे यह पता चला की ये याक की हड्डियों से बनी है तो मैने उसे चुप चाप यथास्थान रख दी।

जब हम वापस आ रहे थे एक छोटी सी कच्चे रस्ते से गुजर रहे थे । एक तरफ पहाड़ तो दूसरे तरफ खाई थी । मैं खुद अपनी कार का चालक होने हेतु रास्तों की बारीकियों को और उस परिस्थिति में ख़तरे को खूब जानती थी। बाकी सब तो अपने ही धुन में अंताक्षरी खेल रहे थे। अचानक ही एक कार दूसरे तरफ से आ गयी । वक्त 5.30 मिनट हुआ था । सुरक्षा के ध्यान में रखते हुए जितने जल्द हो उजाला रहते ही हम रूम में लौटने को सोच रखा था । अँधेरे होने से पहले ही वापस लौटना था । अचानक ही सामने से कार आनेसे रास्ता काट कर आगे बढ़ने का रास्ता भी नहीं था । मेरे गले से चीख तो निकल ही चुकी थी । लेकिन वहां की ड्राइवर्स के लिए ऐसी बातें रोज़ के हैं और वह बहुत ही सूझ बुझ के साथ हमें उस रस्ते से निकाल कर पक्के रास्ते पर ले आये ।

भूटान की यात्रा चाहे जैसे भी हो हम बहुत ही हिम्मत और सूझबूझ के साथ ख़ुशी ख़ुशी इन सात दिन का यात्रा तय किया । ये हमारे लिए एक अनोखी यात्रा थी । जब जब कोई ड़र जाते थे या डिप्रेशन फील करते तो बाकी सब हमारे साथ देते रहे । डॉ राजश्री के होते हुए हम बहुत सुरक्षीत महसूस कर रहे थे । हम अंताक्षरी खेलते हुए और गाना गाते हुए बहुत मज़े से पूरा यात्रा का मज़ा लिया। जिस दिन वहां से निकलना था उस रात को हम ने एक छोटी सी प्रोग्राम रखी थी । जिसमे सारे सदस्यों ने अपनी अपनी कला और साहित्य नृत्य और सोलो प्रस्तुति की । ये सब हमारे यादगार पल थे जिस पल में हम सब साथ साथ गुजारे थे । हंसी ख़ुशी के साथ प्रोग्राम ख़त्म होते ही सब अपने रूम में विश्राम किये और सातवें दिन सुबह 7.30 बजे भूटान से निकले। इन सब ख़ुशी पलों में हमारे साथ जुड़े रहे रजत दादा और सुमंत दादा का बहुत शुक्रिया मानते हुए उनसे बिदा लेकर सकुशल भारत पहुंचे।

© लता तेजेश्वर