मैंने देखा है बादलों केआगे एक दुनिया और भी
मेरी फ्लाइट छुटने वाली थी। मैं खिडकी के पास वाली सीट पर बैठे सोच में निमग्न थी। मैं पहली बार अकेले घर और अपनी देश से दूर जा रही थी। मेरे पती तेजेश्वर मुझे इन्टरनशनल एरोड्रम तक छोड कर घर वापस लौट गए। वहाँ मेरी बाकी दोस्तों ने भी इसी फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे । हम सब साथ में साल के दूसरे महीना फेब्रुवारी के 21 तारीख को रात 6-30 बजे भूटान यात्रा के लिए घर से निकले थे। हमारा फ्लाइट रात के 9 बजे की थी। हम सब ने टिकट चैकिंग और पासपोर्ट की सारे नियमों को पालन करते हुए फ्लाइट के अंदर पहूँचे। अपना सामान कैब में रख कर मैं अपने सीट पर जा बैठी। यात्री एक एक कर अपने सीट में बैठ रहे थे। उसी वक्त मेरी मेबाइल बज उठी । तेज का फोन था । दो मिनट बात कर रखदिए । मुझे पता था जब तक में सकुशल पहूंच कर उनसे बात कर न लेती तब तक वह चिंतित रहेंगे।
मैंने खिडकी से बाहर देखा एरोप्लेन को सट कर लगाई हुई सीढियाँ हटाई जा रही थी । कुछ ही पल में मेरी फ्लाइट छूटने को तैयार थी। एयर होस्टेस हमारी स्वागत करते हुए सीट बेल्ट बांधने की सूचना दी । मैं अपना फोन बंद करने से पहले मेरे पती और बेटी मेघा से आखरी बार बात की । कॉप्टेन मनोहर जोशी ने थोडी ही देर में प्लैन उडान भरने की सूचना दी । उसके साथ ही सारे सुरक्षा की चेतावनी और हादसे के दौरान खुदको महफूस रखने के लिए जाने वाले सारे जानकारी दी गई ।
गोरी गोरी सुंदर सुंदर जवान एयर होस्टेस लाल और गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाए हुए थे जैसे अभी अभी ब्युटि पार्लर से मेकअप करके फ्लाइट में चढी हो । पैर में काले रंग की नेट कपडे से बनी सक्स घुटनों से उपर तक ढके हुए थे और उसके उपर पएंटेड काले रंग की बूट्स उनकी पहनावा को और भी खुब सूरत बना रही थी । शरीर पर गाढा नीले रंग की टाइट जॉकेट जो शरीर की सौष्टव के अलग अलग अंगों को बारीकी से दिखा रहे थे । वही रंग की स्कर्ट कमर से घुटनों तक ढक रहे थे । वे अपने बालों को पीछे की और कसकर बांध कर रखे थे । उनकी बूट की ठक ठक आवाज बार बार मेरे ध्यान भग्न कर रही थी ।
मैं लता तेजेश्वर के नाम से पहचानी जाती हूँ । संतोष श्रिवास्तव जी ने जब भुटान यात्रा की प्रस्ताव मेरे सामने रखी मैं तो उछल पडी थी। लेकिन संसारिक दौर से चलते मेरा इस कार्यक्रम में भाग लेना हो पाएगा की नहीं इस मिमांसा में थी । लेकिन तेजेश्वर ने मेरा यह मिमांसा को दूर कर दिया ।जैसे की मैने संतोष जी के इस प्रस्ताव की बारे में बताया तुरंत ही उन्होंने कहा आप को भी जाना चाहिए । यह बात सुनकर मेरी खुशी का अंत नहीं था। मैं तुरंत ही तैयार हो गयी। इस तरह संतोष श्रिवास्तवजी के साथ साथ विद्या चिटकोजी, रोचना भारती जी क्रीष्ना खत्री जैसी बडे बडे रचनाकारों के साथ कुछ दिन बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुई। इनके अलावा अनुया दलवी मिथिलेश कुमारी आदी प्रमुख महिला लेखिकाएँ भी इस यात्रा में शामिल थीं । इन सब को मैं पहली बार मिली मगर ऐसा लगा की जैसे मैं बहुत पहले से उन्हें जानती हूँ । मेरा खुशी का तो अंत नहीं था। हम सब साथ निकल पडे। हमारा मक्शद दुसरे देशों में जाकर लोगों से मेल जूल बढ़ाना और उनकी रोजमर्रा जिंदगी के अहं जानकारी हासिल करना था । पाश्चात् देशों के लोगों की जीने की सलिका उनकी रिती रिवाजें उनकी रहन सहन और उनकी जीवनी पर लिखकर लोगों को पाश्चात देशों की तौर तरीके से रूबरू करवाना हमारा मक्शद था । साथ ही हमारा राष्ट्र भाषा हिंदी को पाश्चात् देशों में एक मंच देना और बेटी बचाव आंदोलन की प्रचार भी हमारे मक्शद में शामिल थी । मैने खिडकी से बाहर देखा प्लेन धीमी गती से निकल कर रफ्तार पकड़ चुकी थी । कुछ ही पल में हम मुंबई की धरती छोडने ही वाले थे।
एरोड्रम में जगह-जगह हवाई जाहाजें खड़ी थी । किसी ने अभी अभी उड़ान भर कर आराम कर रहा था तो किसी फ्लाइट को उड़ान भरने से पहले की सजावट की जा रही थी । किसी हवाई जाहज को नहालाया जा रहा था तो किसी जाहज गर्भवती महिला की तरह लोंगों को शरीर में लिए रास्ता क्लियर होने का इंतजार कर रही थी। तरह तरह की उड्डन जाहाज थे । कई छोटे तो कई बड़े, कई प्राइवेट प्लेन थे तो कोई सरकारी । जैसे की हमारी फ्लाइ मुंबई की मिट्टी को छोडकर आकाश की तरफ उछल पड़ी वैसे ही खुशी और ड़र का एक मिश्रित भाव मन में कसमकस हो रहा था । जैसे की मुझे इस ट्रिप में जाने की इजाजत मिलगई मैं तो बहुत खुश थी । साथ साथ घर न लौटने की ड़र भी था जो कि अक्शर हवाई जाहाज के हादसों के चलते जो मन में होती रहती है।
मैं सीट बेल्ट बांध कर पीछे की तरफ आराम से बैठने की कोशिश की । तब एयर होस्टेस की बूट की ध्वनि ठक ठक कर सुनाई दी । वह चकलेट की टोकरी लेकर सामने रखी मैं कुछ चकलेट लेकर टोकरी वापस कर दी फिर खिडकी की ओर देखा। खिडकी से धरती का नज़ारा बहुत खूब सूरत नज़र आ रहा था । बढ़ते हुए गती के साथ साथ धरती पर चीजें छोटे छोटे और बहुत छोटे दिखने लगे। उपर से पूरी मुबंई शहर दिख रहा था । गतिशील गाडियाँ फ्लाइ ओवर पर चिटियों सी नज़र आ रही थी । बड़ी बड़ी इमारतें धरती पर नाक रगड़ते दिख रहे थे। मुंबई का भूगोल रुप रेख सहित बिजली की रोशनी से बिंदूओं सी सजाई हुई दिख रही थी । प्रशांत महा सागर की एक छोर मुबंई की गेट वे से निकल कर मेराइन ड्राइव और चौपाटी से होकर शहर को छू कर निकल रहा था । मुबंई की मेराइन ड्राइव भारत माता को पहनाई हुई हीरे जेवरात की नेक्लेस की तरह खूब जगमगा रही थी । इसलिए मेराईन ड्राइव को डायमंड नेकलेस भी कहा जाता है । मुंबई की लंबे खुब सूरत ब्रिड्ज और मुंबई की शान सी-लिंक की नज़ारा तो खासमखास था । धीरे धीरे सारे नज़ारे आँखों से ओझल होने लगे।
हमारी हवाई जाहज आवाज़ करते हुए बादलों में प्रवेश करने लगा। समय समय पर फ्लाइट की कप्तान बाहर की मौसम और फ्लाइट की जमीन से उंचाइ के बारे में सचेत कर रहे थे । हम में से कुछ बातें करने में निमग्न थे तो कुछ हमारे अगले कार्यक्रम के बारे में चर्चा कर रहे थे। कुछ हंसी मजाक कर रहे थे तो कुछ नींद की दुनिया में सैर कर रहे थे । बीच बीच में शेर शायरी का चटखा खूब मज़ा आ रहा था ।
समय ६बजकर १० मिनट हो चुका था । जैसे की फ्लाइट बादल में प्रवेश करने लगा धरती का नज़ारा बिल्कुल ही दिखना बंद हो गया । जहाँ भी देखो सफेद तैरते हुए बादल। जैसे की दूध फर्श पर गिर कर सफेद हो गई हो और मलाई जगह जगह अलग अलग सैप में दूध पर तैर रही हो । कहीं पलता सा एक सफेद चद्दर जैसी एक परदा जिसके अंदर से कहीं नीला आसमान दिख रहा है तो कहीं गाढा मलाई से भरी पाहड जैसी बादलें । जब इन बादलों से हवाइ जाहज रगड़ कर चलता तब आवाज़ सहित विमान हिलता ड़ुलता हुआ महसूस होता रहता ।
अचानक ही कप्तान की आवाज़ सुनाई दी खराब मौसम की चलते सुरक्षा के खातीर बेल्ट लगा कर बैठने की सूचना दी गई । तब एयर होस्टस नाश्ता का पैकेट के साथ पानी ले कर पहूँची। मेरा ध्यान कुछ समय के लिए नीला आसमान से हट कर उस एयर हस्टेस के उपर केंद्रित हुई। 'थैक्यू' कह कर मैने पैकट ले ली। खोल कर देखा एक सॉ्डविच प्लास्टिक् से लपेटे हुए साथ ही एक सॉस का पैकेट कुछ भूने हुए चने और एक एपल् ज्यूस की बोतल था। मैं प्लास्टिक हटा कर सॉंडविच खाकर एपल ज्यूस पी ली। कुछ फ्रेश लगा । २ घंटे एयर पोर्ट में बैठे बैठे हल्की सी भूख भी लगी थी । मन कर रहा था की कुछ चाय या कॉफी हो जाए । हमारी एक दोस्त ने एयर पोर्ट के अंदर एक कॉफी शॉप में पूछा तो उसकी दाम एक अच्छी रेस्तराँ की अच्छी चाय से भी ४गुना अधिक था । फिरभी जरूरत तो जरूरत होते हैं चाहे छोटी हो या बड़ी । हमने कॉफी पी कर ही जाहज का इंतजार किया।
मैं कुछ देर आँख बंद कर सोने की कोशिश की लेकिन शाम का वक्त नींद कहाँ आनी थी । मन न जाने कहाँ कहाँ घूम कर आ जाती है । फिर मेरे मन की पटल पर घर और बच्चों की तस्विरें खिलने लगी । वैसे मेरे बच्चे बड़े हो चुके हैं लेकिन माँ बाप के लिए बच्चे तो बच्चे ही होते हैं चाहे कितने भी बड़े हो जाए। बेटा श्रावण तो अपनी जिम्मेदारी खूब समझता है लेकिन बेटी मेघा अब भी नादान है और तो और माँ बाप के लिए बेटी एक कागज की फूल की तरह होती है इसलिए वे बहूत नाजूक से संभाल कर दिल से लगाए रखते हैं । आखिर बेटी माँ की दिल की टुकुडा और बाप की जान होती है । उन्हे भी दुनिया से ताल मेल बनाए रखने के लिए पढ़ा लिखा कर समाज में एक नाम और जगह बनाए रखना बहुत ही जरूरी हो गया है । समाज में स्त्री के प्रती हो रहे मानसिक शारिरिक प्रताड़नाएँ माँ बाप के दिल दहला कर रख देती है । ऐसे हालात में उन्हें शिक्षा और काबिलियत ही एक ऐसा मार्ग है जो उन्हें समाज में कंधे से कंधा मिला कर चलने के लिए हिम्मत देती है । इसलिए हर वक्त उन्हें पढ़ाई के लिए जोर देनी पड़ती है । पर बच्चे तो बच्चे ही हैं, उनके जो मन में आया उन्हें वही सही लगता है । यही ख्याल अक्शर मन में आती है न जाने पढ़ने बैठी होगी की नहीं ।
मुझे मेरी बचपन याद आ गई। मैं भी बचपन में कहाँ पढाई करती थी । कहने को तो किताब गोद में रहती थी पागल मन कहीं ओर भटकता रहता था । छत पर बैठे बैठे शाम की सुनहरा आकाश को ताकती रहती थी । आकाश के बदलते रंगों को निहारती रहती थी । जब सूरज ढ़लने लगता दिन का उजाला अंधेरे में छुपने लगता तब आकाश में चमकती वह सांझ तारा मेरा सारा ध्यान अपने तरफ खींच लेता । आकाश में वह अकेला तारा जैसे मुझे टुकुरू टुकुरू देखता था । जब उस चमकते सितारे को देखती थी मैं अपना पलक छपकाना भूल जाती। मेरा मन चंचल संमंदर जैसे उछलने लगता था । बहुत देर तक उस तारे को देखती रहती थी । उस सांझ तारा से जैसे एक बंधन सी जुड़ गई हो । कभी लगता उस तारे से कोई जमीन पर उतर आए और मेरे हाथ पकड़ कर उस दूर आकाश में सैर कराने ले जाए। जी करता उस अनंत नीली अंबर की इस छोर से लेकर उस छोर तक उस तारे की आँखों में आँखें ड़ाल कर पूरी आसमान की सैर करलूँ । इतने में मेरी पास बैठी संतोष दी और लक्षमी खिलखिला कर हँसने लगी । मेरा ध्यान सोच से हट कर उन पर केंद्रित हो गई । कुछ समय हंसी मजाक और शेर शायरी चलती रही । पानी पी कर वक्त देखा अभी काफी वक्त था अपने गम्य स्थल पर पहूँचने को।
जब मैने आकाश की ओर देखा मेरे सामने नीली आकाश बाहें फैलाए नज़र आ रहा था। नीचे देखूँ तो जैसे सफेद बादलों की चद्दर बिखेर पड़ी थी । जगह जगह दूध की गहरी रंग जैसी बादल कहीं गाढ़ी तैरती मलाई जैसी बादल तो कहीं हल्के भूरे रंग के बादल । कहीं कहीं हवा से इधर उधर उड़ती हुई कपास जैसे बादल । दूर कहीं ड़ुबते सूरज की सुनहरी रोशनी बादल के उपर से प्रस्फूटित हो रही थी। कहीं लाल तो कहीं पीले रंग से सुसज्जीत दिख रही थी जैसे की शादी के जोड़े में हँसती खेलती दुल्हन। मैने आँखे पसार कर दूर गगन की ओर देखा दूर नीली अंबर पर मुस्कुराती हुई वही सितारा नज़र आई जो मेरी बचपन की सखी सहेली सबकुछ थी। मेरे होंठों पर एक हल्कि सी मुस्कुराहट खिल गई । एक पल तो मन किया हवाई जाहज की दरवाजा खोल कर बाहर चली जाउँ उन बादलों के बीच जो की मुझे हाथ पसार कर बुला रहे थे और उस सांझ तारे को एकदम से गले लगा लूँ । खिडकी के अंदर से ही हाथ फैला कर मैने उसकी किस्सी ली ।
हवाई जाहज को मेरे मन में चल रहे इन सारे ख्यालों का क्या पता था वह तो अपनी ही धुन में उड़ती जा रही थी और मैं अपनी दुनिया में खोई हुई थी । जैसे की खराब मौसम का ऐलान हुआ मैं सीट बेल्ट कस कर बांध कर रखी । कुछ ही देर में वह सफेद बादल कहीं गायब हो गए भूरे रंग के बादलों के बीच हवाई जाहज उड़ता चला । आगे जाते जाते वह रंग और भी गहरा होने लगा । कहीं कहीं बिजली कड़कने लगी । बिजली की कड़कती आवाज़ हवाई जहाज की आवाज़ में कहीं गुम हो रही थी पर भूरे रंग के बादलों के बीच से बिजली की झलक दिख रही थी । मैं समझ गई की धरती पर बिजली चमक रही होगी जिसकी झलक बादलों के उपर तक दिख रही है । लेखिका अगर रियलिटी में जीने लगी तो लेखिका कैसे बनीं ? मैं तो सपनो को घेरे में जी रही हूँ । रियलिटी में भी कुछ नया ढूँढ लेना उस नया पन में एक नयी कहानी ढूँढ लेना ही तो लेखिका की खासियत है । नए नए शब्दों से एक नयी कहानी रचना उन कहानियों में रंग भर कर पाठकों को पेश करना कोई आसानी बात नहीं थी । इस बात पर एक बात याद आ गई बहूत खूब कहा है किसीने और बिल्कुल सही कहा है, " जहाँ पहूँच न पाता है रवी वहाँ पहूँच जाता है कवी" । वाह!
यही खयालात मेरे मन को छू गई, उन कड़कती बादलों को देख कर मेरे मन का ड़र बाहर उभर आया । जगह जगह बिजली की झलक बादलों के उपर से टर्च की रोशनी जैसी नज़र आ रही थी । पल भर के लिए लगा जैसे किसी पिता ने अंधेरे में अपनी रास्ता भटकी हुई बच्ची की तलाश में टर्च लेकर ढूँढ रहा हो । दिल में भय और ममता लिए कड़कड़ाती और थरथर्राती आवाज़ से अपनी लाड़ली बेटी को पुकार रहा हो । एकदम से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और रोम रोम काँप उठे । मेरी अपनी बेटी की याद आ गई और मैं सपनों को तोड़ कर सीधी बैठ गई । बहुत देर तक उन आवाज़ों को महसूस करती रही । बिल्कुल उसी वक्त ही कप्तान का आवाज़ सुनाई दिया कि हम मंजिल के करीब पहूँच गए हैं और कुछ ही देर में हमारा हवाई जाहज लेंडिंग हो जाएगा । मैने आखरी बार उस सांझ तारा को देखा । वह मेरे बहुत ही करीब नज़र आ रही थी , एक पल में लगा मैने बचपन में देखी हुई वह सपना साकार हो गयी। मैं बहुत देर तक उस नीली नीली अंबर में बादलों के बीच उस सांझ तारे की आँख में आँख मिला कर सैर ही तो कर रही थी ।
कुछ ही देर में हमारी हवाई जाहज भूमी की ओर गतीमान होने लगी। वह बादलों से निकल कर धीरे धीरे धरती के तरफ बढने लगा । मेरी सामने खिडकी पर बारिश के बूँदे टपटपाने लगे थे । एयर पोर्ट की बिजली, बारिश के साथ साथ हमारा स्वागत कर रही थी । न जाने क्यों कुछ पल के लिए मेरे आँखें नम हो गए । लगा कि ये अश्रु वो पिता के तो नहीं जो अपनी बच्ची के तलाश में भटक रहा था । क्या यह अश्रु अपनी बच्ची को पाकर उससे मिलने कि ख़ुशी से होगी या...... फिर... खोने की दुःख से..?
फिर क्या था धरती की हर चीज मुझे धूंधली सी नजर आने लगी । हमारी मुम्बई से कोलकत्ता की सफर इस तरह रहा। हवाई जाहज धरती को छूते ही हम सब लेखिकाएँ अपने अपने सामान कैब से निकालने लगे और आगे की सफर की ओर बढ़ गए ।
©लता तेजेश्वर