दुःख का कारण
वैसे तो हर व्यक्ति के भौतिक दुःखों का कारण अलग — अलग होता है । जैसे — किसी के दुःख कारण पैसा , तो किसी के दुःख का कारण औलाद , किसी के दुःख का कारण स्वास्थय आदि अनगिनत कारण हैं । परन्तु भगवान बुध्द ने सभी भौतिक दुःखों का कारण एक केवल ,, इच्छा ,, को ही बताया है । और ये यर्थात सत्य है ।
उदाहरण के तौर पर माँ — बाप अपने बच्चों का पालन पोषण करते समय ही मन में ये इच्छा पाल लेते हैं कि वो बुढापे मे उनका सहारा बनेगा । या उन से आजीवन अच्छा व्यवहार करेगा । लेकिन यदि उनकी इस इच्छा में जरा भी फेर बदल होता है तो वे विलाप करते हैं कि क्या उन्होने अपने बच्चों को इस दिन के लिए पाला पोषा था। भगवान ने उन्हें ये दिन क्यूं दिखाया । उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया था वगैरा — वगैरा ।
लेकिन वे भूल जाते हैं कि अपनी संतान का पालन पोषण दुनिया का हर प्राणी करता है और वो भी निस्वार्थ ( इंसान को छोड़ कर )। दुनिया के सभी प्राणीयों को कभी न कभी बुढापा भी आता ही है । और उनके बच्चे कभी उनके पास नही होेते । तो क्या उनका बुढापा नही कटता । भगवान ने प्रत्येक प्राणी को अकेले जीवन जीने का सामर्थय दिया है पर इंसान जान बूझ कर दुसरों के अधीन रहता है ।
लेकिन इसका अर्थ ये बिलकुल नही की कोई भी बच्चा अपने माता — पिता का ध्यान न रखे उनकी सेवा न करे । पषु — पक्षियों के बच्चें उनके पास तभी तक रहते हैं जब तक उन्हें ( बच्चों को ) उनकी ( माता — पिता की ) जरुरत होती है । वे उन्हें तभी तक पहचानते हैं जब तक वे स्वयं सक्षम नही हो जाते हैं । अगर हम स्वयं को इंसान समझतें हैं तो हमें जानवरों से भिन्न व्यवहार भी करना चाहिए । हमें रिस्तों को समझना चाहिए उन्हें निभाना चाहिए । क्योंकि रिस्तें सबसे बेहतर अगर कोई निभा सकता है तो वो इंसान नही निभा सकते हैं । और माता — पिता का महत्व केवल और केवल इंसान ही समझ सकता है । जो इस रिस्ते को नही जानता ,, नही मानता । वो स्वयं ही सोच सकता है की वो क्या है ? क्योंकि सोना , मैथुन करना , बच्चे को पालना और पेट के लिए मेहनत करना ये तो पशु भी करते हैं । इसी तरहा अगर कोई भी किसी से किसी भी प्रकार की इच्छा रखता है और वो इच्छा पूरी नही होती या आंशिक रुप से पूरी होती है तो दुःख होता ही है । इसलिए दुःख दूर करने के लिए अपनी इच्छा को खत्म करो । अगर इच्छाओं को समाप्त करना आपके बस की बात नही है तो दुःखों को दूर करने का एक और उपाय है वो है कि जैसा हो रहा है वो सही हो रहा है और आगे भी सही ही होगा ( गीता ज्ञान )
दुःखों को कम करने का एक उपाय ये भी है कि प्राप्त को ही प्रयाप्त समझें ।
अगर आप जो आपको मिला है उससे खुश नही रहते तो भी आप सुखी और प्रसन्न नही रह सकते । जैसे यदि आपको चार रोटियों की भूख है और आपको केवल दो ही रोटियां मिलें तो आप बजाय दुःखी होने के भगवान का धन्यवाद दें की हे ईश्वर आपने मुझे जो दो रोटियां दीं उसके लिए धन्यवाद । और आपने जो दो रोटियां कम दीं न जाने उसमें मेरा क्या भला छिपा हो । तो उसके लिए भी धन्यवाद । अगर इस प्रकार के विचार मन में रखोगे तो दुःख तुमसे दूर ही रहेंगें ।
त्याग में भी दुःखों को दूर करने का सामर्थय है । और जो भी त्याग करता है वो और अधिक प्राप्त करता है ।
कहानी
सामक एक बहुत गरीब मजदूर था । उसका परिवार था तो छोटा पर कमाई का कोई पैत्रक व्यवसाय न होने के कारण ये भी बड़ा लगता था । रोज की कमाई से रोज का खाना बनता था । पर फिर भी सामक और उसका परिवार संतुष्ट था क्योंकि उन्हे खाने के अगावा कोई इच्छा न थी । जब तक इच्छाऐं दबी हुई हैं तभी तक ठीक है । अगर एक बार इच्छाओं ने सर उठाना शुरु किया तो संतुष्टी नही मिल सकती । सामक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । सामक मेहनत करता था तो उसकी तंदरुस्ती अच्छी थी । और जन्म से ही फुर्तिला भी बहुत था । एक दिन सामक के राज्य का राजा अपने प्रिय घोडे़ पर बैठ कर घुमने निकला । एक जगह अचानक घोड़ा हट मारकर खड़ा हो गया । अब घोड़ा न आगे चले न पिछे । राजा के साथ आये सैनिकों ने खूब प्रयत्न किया पर घोड़े को हिलाने में भी सफल न हुए । वंही पास में सामक काम कर रहा था । उसने आकर राजा को प्रणाम किया और पूछा कि क्या मैं प्रयत्न करुं । राजा ने तुरंत आज्ञा दे दी । सामक ने घोड़े के पीछे जा कर सूखे पत्तों में थोड़ी सर सराहट की तो घोड़ा एकदम चल पड़ा । राजा ने सामक को दरबार में पेश होने का आदेश दिया । सामक आ गया । राजा ने पुछा कि क्या तुम बता सकते हो कि हमारा घोड़ा क्यों नही चल रहा था और तुमने उसे कैसे चला दिया ? सामक ने उत्तर दिया जी महाराज — घोड़ों में एक विशेषता होती है कि अगर वे अपने आगे पत्तों में सर सराहट सुन लें तो फिर नही चलते । लेकिन यदि ,,,,,,
राजा ने बीच में ही कहा हम समझ गये । बताओ तुम्हे क्या ईनाम चाहिए ?
सामक ने पहले से ही सोच रखा था कि क्या मांगना है । उसने कहा — महाराज यदि कोई नौकरी मिल जाती तो मेरे परिवार का निर्वाह आराम से हो जाता । राजा ने कहा ठीक है । सामक को हमारे अंगरक्षकों में सामिल कर लिया जाये । अब सामक राजा का अंगरक्षक बन गया । उसका परिवार अब सम्पन्न हो गया था । एक दिन राजा अपने अंगरक्षकों के साथ जंगल भं्रमण को निकला । धुमते — घुमते जंगल में बहुत दूर निकल गये और रास्ता भटक गये । वो जंगल था भी बहुत बड़ा । राजा ने सैनिको को रास्ता ढूंढने को कहा । सबसे पहले सामक रास्ते की जानकारी करके आ गया । राजा और बाकी सैनिक उसके बताऐ रास्ते से वापस महल आ गये । राजा ने पूछा तुमने इतनी जल्दी कैसे रास्ता खोजा। सामक ने बताया — महाराज मैंने पास खड़े सबसे ऊंचे पेड़ पर चढ़ कर देखा तो मुझे जंगल में कुछ ही दूरी पर एक ऊंचे स्थान पर एक झोंपड़ी दिखाई दी । मैने वंहा जाकर पता किया और आपके पास लौट गया । राजा — बहुत अच्छे । तुम काफी होशियार हो । हम तुम्हें अपना सेनापति नियुक्त करते हैं । फिर तो सामक के मजे ही मजे । सामक का परिवार भी भौग — विलासता मैं रम गया । पत्नि रोज — रोज नये — नये गहनों की मांग करती । बच्चे भी मंहगे — मंहगे खिलौनों की फरमाइस करते । सामक भी महत्वकांक्षी हो गया । वो सोचने लगा कि यदि वो इस राज्य का राजा होता तो राज्य को कंहा से कंहा पहुंचा देता । अब उसे राजा के सब निर्णयों में खोट नजर आने लगा । वो धीरे — धीरे राजा से जलने लगा । अब वो किसी तरहा भी राजा बनने के सपने देखने लगा । सेनापति होने के कारण उसने सेना को अपने भरोसे में ले रखा था । उसने कुछ और मंत्रीयों और महत्वपूर्ण आदमीयों को भरोसे मे लेना आरम्भ कर दिया । धीरे — धीरे सामक ने बहुत से आदमीयों को राजा के खिलाफ कर लिया । और एक दिन योजना बना कर राजा का कत्ल कर दिया । और स्वयं राजा बन बैठा । अपने साथ जालसाझी मे सामिल लोगो को भी उसने महत्वपूर्ण पद दिये । राजा के पक्ष के मंत्रियों को कारागार में डलवा दिया । जिन्होने उसे सहर्ष राजा स्वीकार कर लिया उन्हें छोड़ दिया गया । अब सामक अपने तरीके से राज्य करने लगा । नये — नये नियम बनाये । और भी बहुत से बदलाव किये । कुछ बदलाव सफल रहे कुछ असफल । इसी तरहा कुछ दिनो में उसकी इच्छा बढ़ गई । उसने दक्षिणी पड़ौस के राज्य पर हमला कर उस जीत लिया । उस राज्य में पहले ही गरीबी थी । अब उसका प्रभाव सारे राज्य पर पड़ा । सामक अब पूर्वी पडौसी राज्य पर हमला करने के बारे में सोचने लगा । क्योंकि वो राज्य काफी बड़ा और धन — धान्य से परिपूर्ण था । लेकिन सामक के राज्य से काफी ताकतवर था । पहले राजा ने कभी उस राज्य से शत्रुता का भाव नही रखा । सदैव उनसे मित्रता बना कर रखी । लेकिन सामक को अपने राज्य का विस्तार करना था । और उसे बहुत से धन की इच्छा थी । उसने अपने मंत्रियों को बुला कर उन्हें आदेश दिया की पूर्वी राज्य पर हमला करने की तैयारी की जाये । सभी ने उसे समझाया कि हमारा राज्य उनके सामने बहुत कमजोर है । हम युध में हार जायेंगे । लेकिन उसने कहा कि डरने से कुछ नही होता । अगर मैं भी तुम जैसा सोचता तो कभी राजा न बनता । युध की तैयारी करो ।
युध की तैयारी शुरु कर दि गई । सामक ने खूब जोशीला भाषण दिया और युध में पहुंच गया । सामक की सेना खूब बहादुरी से लड़ी पर सामने बहुत बड़ी सेना थी । जिसका मुकाबला करना उन के बस की बात न थी । केवल एक ही दिन सामक खुद को बचा सका । अगले दिन सामक मारा गया और उसका राज्य दूसरे राजा के हाथों में चला गया । उस नये राजा ने उसके ( सामक के ) परिवार को बंदी बना कर कारागार में डलवा दिया ।
मित्रों यदि आप सामक की जगह होते तो आप क्या करते ?
आप में से कुछ का जवाब होगा कि सेनापति बनकर खुश रहते । और कुछ का जवाब होगा कि राजा बन कर खुश रहते । लेकिन ये भी स़च्चाई है कि सौ में से कोई एक ही ऐसा नही करता जैसा के सामक ने किया । क्योंकि ये मानव चरित्र है । जो प्राप्त हो जाता है वो कम लगने लगता है । और आदमी और अधिक के लिए प्रयत्न करना षुरु कर देता है ।
कर्म करने मे कोई बुराई नही है । ना ही कर्म करने के लिए कोई मना करता है । लेकिन कर्म करते समय केवल फल की चिंता करते रहना सही नही है । ऐसा करने से ना तो आप कर्म ही सही तरहा से कर पायेंगे और ना ही कर्म के फल में कोई बढ़ोतरी होगी ।
अगर आप छात्र हैं और स्कूल का सत्र प्रारम्भ होते ही आप कक्षा में पढ़ाये जाने वाले अध्यायों के प्रश्नों के बारे में ये सोचने लगोगे की अमूक प्रश्न परीक्षा में आयेगा भी या नही । तो आप क्या तैयारी करेंगे । आपको उस समय केवल पूरे मनोयोग से समझना और याद करना चाहिए । परीक्षा के बिलकुल निकट जाकर आप महत्वपूर्ण प्रश्नों को दोहरा सकते हैं ।
बात करते हैं दुःख की । दुःख और गुस्सा इन्हें आप जितना मन से लगाओगे ये उतने ही बढ़ते जाते हैं । याद करो आप को पिछली बार गुस्सा कब और क्यूं आया था ? और ज्यादा दुःख कब और क्यूं हुआ था ? यदि आप इन प्रश्नों के उत्तर ध्यान से सोचेंगे तो पायेंगे कि इन चारों प्रश्नों के उत्तर में बहुत बड़ी समानता है । क्योंकि दुःख और गुस्से में आपस में बहुत बड़ी समानता है । अगर आप उस समानता को पहचान गये तो आप दुःख से बच सकते हैं ।
कई बार आपको लगता होगा कि फला आदमी ने या वस्तु ने आप को दुःख पहुंचाया । जबकि ऐसा नही होता है । कोई भी वस्तु या आदमी आपको दुःखी होने के लिए बाध्य नही कर सकता । क्योंकि दुसरा कर्म तो कर सकता है लेकिन उस पर दुःखी होना या ना होना ये आप का फैंसला है । अगर आप सोच ले कि दुःखी होने से क्या होगा तो आप को कोई ताकत दुःखी नही कर सकती । धीरे — धीरे खुश रहना शुरु करें दुःख अपने आप दूर भाग जायेगा ।
जीवन तो जीना ही पड़ेगा ।
और खुःश रहने के पैसे नही लगते ।
ेजंल ींचचल
इमबवेम लवन ूमतम इवतद वद ींचचल मअमदजण्
ज्ींदा लवन अमतल उनबीण्