इत्फाक़ Shweta Misra द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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इत्फाक़

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  • 1. सरहद


    मेरी आँखों के ख़्वाब

    अब सरहद तक जाने लगे हैं

    रंग और गुलाल की होली

    खून ही खून में दिखने लगे हैं

    दिवाली की रातों के दीए की

    जगह लाशें जलते दिखने लगे हैं

    अब कौन सी दिवाली के दीए जलाउं

    अब कौन सी होली के गुलाल उड़ाऊं

    त्यौहार इंसानों का था

    अफ़सोस .....

    हैवान को हैवानियत ही हर सु भाने लगे हैं

    या रब !! फिर से वो दिवाली की रौनक दे

    फिर से होली के गुलालों की शोखिया बख्श !!!!



    2. तुमने


    हर जख़्म जिसे मैँ

    थपकियां दे सुला आयी थी

    अभी 'तुमने' क्युं उसे जगा दिया

    भूल जाना ही क्या मेरी गुस्ताख़ी थी

    'तुम' कहो तो मैँ 'तुम्हे' भी भूल जाऊं

    इक पल क्युं सदियोँ के लिए ख़ामोश हो जाऊं

    दफ़न कर दूं 'ख़ुद' को ही 'कब्र' मेँ 'अब्र' की राह हो जाऊं


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    3. उम्मीद



    गुजरते इन लम्हों मे

    आज फ़िर बेकली सी क्यूं है

    उठती गिरती पलकों मे

    आज फ़िर कुछ नमी सी क्यूं है

    वक्त से करके तकरार

    इन सांसों की रफ्तार थमी सी क्यूं है

    हर इक आहट पे तेरे आने की

    उम्मीद आज फ़िर बंधी सी क्यूं है



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    4. याद


    तेरी खुश्बु

    तेरी यादें

    बिखरी हैँ घर के

    कोने-कोने मेँ

    तेरे हर ख्याल के

    साथ बिखरी मैँ

    सबा की खामोशियां

    शबनम की नमी

    पीले पत्तोँ की रुत

    सिमेटुं कैसे बस एक आईने में !!

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    5. लफ्ज़


    फिर वही भीगी शाम

    फिर लौटा वही आयाम

    महज़ दो लफ्ज़

    और

    नैनों से

    छलकती मोतियाँ

    नन्ही अंजुली

    फिर समेट लिया

    तेरा निश्छल प्रेम

    बस यही खज़ाना

    तुम मेरे नाम कर जाना

    तुम से मुझे प्यार है

    बेहद और बेहद प्यार है


    ___________________________________________________________________________________________

    6. काश !


    ए जाते हुए लम्हों

    काश तुम्हे बांध लेती

    हिना की ख़ुशबू की तरह

    हथेली के बीच छुपा लेती

    फुर्सत के पल में

    तेरी खुश्बू से जी बहला लेती

    ए लम्हों रेत की तरह तुम

    मेरी मुठ्ठी से निकल रहे हो

    काश एक ख्वाब बना तुझे

    तकिये के नीचे छुपा लेती !!


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    7. दयार में


    हैरान हूँ मैं

    आज फिर अपने ही

    हैरतों के दयार में

    क्यों घिर सी रही हूँ मैं

    खुद अपने ही अनसुलझे से सवाल में

    वो आता क्यों है जाने को

    जिसे मांगने लगे हैं हम अपनी ही दुआओं में

    हूँ बहुत शुक्रगुज़ार तेरी मैं ए खुदा !

    तू देता रहा है हर आहट मेरे पलकों के आईने में



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    8. पत्ता


    एक पत्ता ही तो हूँ मैं

    जाने किस शाख से

    टूट के गिरी हुई

    थोड़ी मुरझाई

    थोड़ी झुलसी हुई

    सबा ले जाती

    कभी आँधियों के

    झोंको संग उड़ी

    कभी सावन ने भिगोया

    कभी तेज़ धूप ने तपाया

    एक रोज़ तेज़ झोंकें ने

    पेड़ के उस शाख तक पहुँचाया

    एक लम्हे को छू लिया उसे

    फिर उसे गले लगाया

    कम्बखत...............

    फिर हवा जाने किधर ले उड़ी

    एक पत्ता ही तो हूँ मैं !!!


    9. ज़िद


    ये कैसी

    ख्वाईश है

    तुझे भूलने की जिद

    दिल में समाई है

    करते थे पहरों बाते

    तुझसे ख्वाबों में

    हकीकत की दुनिया में

    तेरे ही दिल में जगह न पाई है

    खुदा हाफिज कह दिया तुझको अब

    देखती हूँ नज़र उठा कायनात में अज़ब सी नूर छाई है


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    10. इत्तफाक़


    वो इत्तफ़ाक ही तो था

    शायद

    जब तुम्हारे दो शब्दों ने

    दिल में कोलाहल मचाया था

    बयां कर रहे थे तुम

    जख्म अपने किसी से

    लबों पर हसीं थी और

    जिस्म पर थे घाव गहरे

    महज़ उन दो लफ़्ज़ों ने

    मेरी ज़ीस्त ही पलट दी

    टूटा तो तू कम न था

    मगर

    दरारें मुझमे समां गयी

    वो इत्तफ़ाक ही तो था

    शायद.....!

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    11. तन्हाई


    हवा गुलों को जब खार चुभोती है

    हमे अपने दरीचे की बहुत याद आती है

    वो हर रोज़ भवर में हमे डुबोते हैं

    हमे अपनी टूटी कश्ती बहुत याद आती है

    जब बातों के नस्तर दिल पर चलाते हैं वो

    पल भर के मरहम की बहुत याद आती है

    सुबुकता दिन तो गुज़र ही जाता है


    12. शून्य


    न जाने क्यों

    फिर इन आँखों ने

    शून्य आकाश को निहारा

    बचपन के उन मासूम

    सवालों ने फिर पुकारा

    कब सितारे सा मैं भी

    दूर आसमान में जगह पाऊँगी

    प्रेम-सूत्र से बाँधा न कोई

    सितारे की चमक से कब

    उनको आकर्षित कर जाउंगी

    टूटते तारे सा कब इस जहां के

    मुराद पूरी कर पाऊँगी


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    13. मौसम


    भीगे से मौसम में

    गीत लिखूं या ग़ज़ल लिखूं

    दिल के सागर में उठती

    लहरों के साहिल तक आने के

    कितने हिसाब लिखूं .......

    बता ए ख़ामोश दिल

    दिल के कितने ज़ज्बात लिखूं !!



    14. ख़ामोशी


    ए ख़ामोशी

    थाम ले मुझे

    हवा का रुख़

    फिर तेज़ हो रहा है

    खुद को खो दूँ न मैं

    आहटों में ये कौन

    अब आहट दे रहा है

    दफ़न कर आये थे

    खुद को कब्र में

    ये कौन आकर

    मेरे मज़ार के

    फूल चुरा रहा है !!


    15. गुलमोहर


    बांध ले नजरो को

    रोक ले राह को

    तुम वो ही तो

    गुलमोहर हो !


    रंग दे फिजां को

    महका दे राह को

    तुम वो ही तो

    गुलमोहर हो !!


    कोयल की कूक दे

    पपीहे की तान दे

    तुम वो ही तो

    गुलमोहर हो !!!


    यादों को महका दे

    छावं तले बचपन सवार दें

    तुम वो ही तो गुलमोहर हो !!!!


    हर पल साथ थे

    यादों की बरसात थे

    नन्ही बाँहों के हार थे

    ठंडी सी बयार थे

    खो के मिले हो तुम

    तुम वो ही तो

    गुलमोहर हो !!!!!