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दोस्ती

कुमुद तीन भाइयों की एकलौती बहन और मैथिली एकलौती संतान अपने माँ बाप की l दोनों ही के कुछ निश्चित दायरे थे जिसे दोनों के माता पिता ने तय कर रखे थे l कुमुद के पिता का स्थानान्तरण उस शहर में नया था लिहाज़ा दोनों नये पडोसी बन गए l पारिवारिक सम्बन्ध के साथ कुमुद और मैथिली अच्छी सहेलियां बन गयी l दोनों ही का बचपना साथ गुज़रा और कुछ वर्षों बाद मैथिली के पिता दूसरे शहर में स्थानान्तरण हो गया और दोनों सहेलियां अलग हो गयीं l दोनों एक दूसरे से खतों के माध्यम से जुड़ गयी और कुछ ही दिनों में कुमुद के भी पिता दूसरे शहर में आवास बना लिया l


मैथिली का ननिहाल भी उसी शहर में था लिहाज़ा दोनों समय समय पर मेल मुलाक़ात भी कर लेती थी और साथ घूमने फिरने और बातें करने की सारी कसर पूरी कर लेती l समय तेज़ी भागने लगा था और समयाउपरान्त कुमुद का व्याह दुसरे शहर में भी हो गया अब ख़त की जगह लैंडलाइन फोन ने ले लिया l जिस पर दोनों सहेलियां घंटों बातें करती l मैथिली भी व्याह दी गयी l समय अपनी रफ़्तार पकडे तेजी से भागता जा रहा था इसी दौरान अब समय भी लैंडलाइन से निकल कर मुठ्ठी में समां जाने वाले सेल फ़ोन में बदल चुका था l साधन बदल तो गए थे पर दोनों सहेलियों का मन आज भी वैसा ही था बांतों ही बातों घंटें कैसे बीत जाते थे पता भी नही चलता था दोनों को l


कुमुद अपने बच्चों के साथ विदेश चली गयी अब मैथिली अकेली l दोनों में कम ही बातें हो पाती l दोनों ही के बीच अब दिन रात के फासले जो आ गये थे l कुमुद जब भी फ़ोन करती तो मैथिली की दर्द भरी आवाज़ में यही सुनती ''कुमुद, तू तो बहुत दूर चली गयी '' कुमुद कहती नही मैथिली ''मैं दूर नही गयी बस समय और दूरियाँ बढ़ गयी हैं हम दोनों के दरमियान'' और वो भी मायूस सी हो जाती l दो तीन ही वर्षों बाद मैथिली का फोन बंद हो गया कुमुद सोचती रहती कैसी मिलूं ,किससे पूछूं ....पर कोई भी जबाब न मिलता था l


आठ वर्षों के बाद अचानक एक दिन उसी नम्बर से IMO चैट आया आप कुमुद मौसी हो ?? ''हां''.. कुमुद ने लिखा उधर से कुछ लिखने से पहले फिर लिखा ..''मैथिली तुम ''
और आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे थे आज कितना अच्छा दिन है तुम इतने दिनों बाद मुझे आज मिल ही गयी l हज़ार सवाल बिना रुके उंगलियों ने टाइप कर डाला l उत्तर में ''मैं मैथिली का बेटा सनिल हूँ l'' मैथिली कहाँ है'' जबाब में लिखा आया ''मासी चार वर्ष हो गये माँ हम सब को छोड़ के जा चुकी है l ''इतना सुनते ही कुमुद पाषण बन बुद्बुताते हुए बोली ''मैथिली मैं नही तू बहुत दूर चली गयी पर देख न तुझे मेरे दिल से कोई नही ले जा सकेगा ,कभी भी ''और मैथिली की सारी यादों को समेट आसुओं की लड़ियों के चिलमन से उस पार धुंधली यादों को एक बार फिर समेट रही थी l

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