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थाईलैंड

प्रशांत महासागर पर आरती के थाल सा थाईलैंड

संतोष श्रीवास्तव

थाईलैंड में सृजन सम्मान एवं वैभव प्रकाशन (छत्तीसगढ़) द्वारा आयोजित चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए मैंने पैंतीस साहित्यकारों, पत्रकारों के साथ कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से १६ दिसंबर को फ्लाइट ली|बैंकॉक तक उड़ान ढाई घंटे की थी| विशाल पंखों से आकाश को नापते विमान की खिड़की से झाँकता समंदर का स्थिर, शांत..... नीला जल बिना हिले डुले बस हमें ताके जा रहा था| मानो कह रहा हो-

मैं अपने हृदय में कितने द्वीपों को धारे हूँ

बस, तू यात्रा करता रह मुसाफिर.....

विमान के भीतर स्क्रीन पर थाईलैंडकी भारत से दूरी, तापमान और नक्शा उभर रहा था| भारतीय समय से डेढ़ घंटे आगे है वहाँ का समय| अब हमें घड़ी के काँटे थाईलैंड के समयानुसार घुमाने हैं| मैं अपनी सोलह देशों की लंबी, छोटी उड़ानों को याद कर रोमांचित थी और एक अनदेखी, अनचिन्ही दुनिया में प्रवेश करने ही वाली थी| अपनी प्रिय सखी सुमीता केशवा और अन्य साहित्यिक बंधुओं के साथ|

धीरे-धीरे समंदर के वक्ष पर उभरा आरती के थाल सा सजा थाईलैंड द्वीप जिसके उत्तर में बर्मा, पूर्व में लाओस, कंबोडिया, दक्षिण में मलेशिया, जैसेपर्यटन के लिए मशहूर देश हैं| पिछले साल मैंने अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ, भारत सरकार की पहल द्वारा एक प्रतिनिधि की हैसियत से जापान की यात्रा की थी और बैंकॉक से ही टोकियो के लिये उड़ान ली थी|तभी से यह द्वीप मेरी नज़रों में बस गया था| आज इस चाहत को अंजाम दिया है मानस जी और उनकी संस्था ने| थाईलैंड में पिछले दिनों आई बाढ़ के अवशेष विमान से साफ दिख रहे थे| थोड़ी देर को मन विचलित हुआ..... फिर शांत| वक़्त का यही तकाज़ा है|

बैंकॉक के सुवर्णभूमि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से हम लग्ज़री बस द्वारा पटाया के लिये रवाना हुए| मुम्बई से जब चले थे तो पटाया में हमारे तीन दिन के प्रवास को लेकर बड़ी सरगर्मी थी| पटाया एक ऐसा शहर है जिसे लेकर सब के मन में बड़ी रंगीन धारणाएँ उपजती हैं..... कि पटाया सेक्स का खुला बाज़ार है..... कि पटाया में उत्तेजित कर देने वाली बॉडी मसाज़ होती है कि पटाया कीवॉकिंगस्ट्रीट में शराब और शबाब छक कर लेने का खुला आमंत्रण है..... बस जेब गरम हो और जन्नत ही जन्नत..... पर कोई भी शहर बिना वजह सृजित नहीं होता..... बरसों पहले इस सुनसान द्वीप पर सीधी सादी, भोली भाली मोन्स और श्वेर्स जनजातियाँ निवास करती थीं जो जंगलों से कंदमूल एकत्रित कर धान उगाकर और समुद्री भोजन पर निर्वाह करती थीं| विश्वयुद्ध के दौरान उस द्वीप पर अमेरिकी सैनिकों ने अड्डा डाला और यहाँ की लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाकर ढेर सारी धन दौलत दीं| धीरे-धीरे उस संस्कृति की जड़ें गहरी होती गईं|आज यह विश्व का ऐसा बड़ा देश है जहाँ सेक्स के द्वारा ‘ईज़ी टू अर्निंग’ का फार्मूला अपनाने में अन्य देश भी नहीं हिचकते..... फिर चाहे खुद की बीवी ही क्यों न हो..... फिर हम पटाया को ही क्यों गुनाहगार मानें?

थाईलैंड की पूरी इकॉनॉमी स्त्री प्रधान है| इस बात की गवाह थी पूरी पटाया नगरी| बस की खिड़की के शीशों के उस पार बाज़ार, बड़े-बड़े मॉल, होटल, फुटपाथ पर लगा बाज़ार, फलों की दुकानें, मछली तलती ठेलों को सम्हाले हर ओर स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ कार्यरत थीं| पुरुष तो नहीं के बराबर ही दिखे| मुझे अपना पूर्वोत्तर भारत याद आया जहाँ स्त्री सत्ता यानी मातृसत्ता है और बाज़ार को ‘माइती बाज़ार’ कहते हैं| थाईलैंड विश्व का ५१वां ऐसा बड़ा देश है जिसकी आबादी ६४ मिलियन है| यहाँ ७५ प्रतिशत थाई, १४ प्रतिशत चायनीज़, ३ प्रतिशत मलय और बाकी मोन्स, श्वेर्स जनजातियाँ हैं|ये जनजातियाँ आज भी घने जंगलों में निवास करती थाईलैंड की धरोहर कहलाती हैं| वैसे मुसलमान, सिक्ख, ज्यूइश, हिन्दू भी काफी संख्या में रहते हैं| बौद्धधर्म के अनुयायी ९५ प्रतिशत हैं| मुख्य भाषा थाई है| अंग्रेजी न तो कामकाज की भाषा है, न बाज़ार की| करेंसी भाथ है| एक भाथ १.७७ पैसे भारतीय मुद्रा का है| खेलों में ओलंपिक, रग्बी, गोल्फ और फुटबॉल बड़े लोकप्रिय हैं|

स्वभाव से बेहद आत्मीय छत्तीसगढ़ के साहित्यकार बंधुओं के साथ जिनके कार्यक्रमों में मैं पिछले तीन वर्षों से सक्रिय हूँ |हम पटाया के शानदार होटल ‘मंत्रापुरारिसॉर्ट’ में तीन रातों के लिये ठहरे और यह वो ठहराव था जहाँ आकर मेरे कई लोगों से गहरे आत्मीय संबंध बने| डॉ. सुधीर शर्मा, संदीप तिवारी, डॉ. सुखदेव, उनकी पत्नी, सुधीर सक्सेना (इनसे तो पिछले १३ वर्षों से घरेलू सम्बन्ध हैं) गीताश्री, सीमा श्रीवास्तव, लतिका दीदी, युक्ता दीदी, बेहद सौम्य और टूर संचालक विकी मल्होत्रा..... चूँकि मैं जबलपुर (म.प्र.) की हूँ सो लगा मेरा मायका मेरे साथ है| मुम्बई के तनावों से दूर..... एकदम निश्चिंत..... .....

रूम एलॉटमेंट के बाद हम अपने-अपने रूम में एक घंटे सफर की थकान जो मेरे लिये तो थकान थी ही नहीं..... उतारते रहे| मेरी ज़िगरी दोस्त सुमिता मेरी रूम पार्टनर थी और क्या चाहिये? एहसास कुछ ऐसा कि आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे, आज मैं आगे, ज़माना है पीछे.....

भारतीय रेस्तरां में डिनर के बाद कुछ लोग पटाया की रात्रि सैर के लिये निकल गये| मैं सुमिता के साथ वापिस होटल में आ गई| खिड़की के शीशों का परदा हटा देर रात तक पटाया को रोशनी में नहाया देखते रहे| आसमान के सितारे उस जगमगाहट के आगे फीके लग रहे थे| अक़्सर रात के पहर में मैं अवसाद से घिर जाती हूँ और तब अपना होना व्यर्थ लगता है पर शीशों के पार की दुनिया व्यर्थता महसूस नहीं होने दे रही थी बल्किकानों में फुसफुसा रही थी कि..... ‘ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा’

१७ दिसं -११

सख्त हिदायत थी कि कुछ इस तरह तैयार हो कि जैसे तैराकी के लिये जा रहे हों यानी कि ‘थोरो आयलैंड’ की सैर में भीग भी सकते हैं| मैं जूते पहन ही रही थी कि सुधीर शर्मा ने डोर बैलबजाई..... दरवाजा खोलते ही हैरान- “आपसमंदर में जा रही हैं..... ये जूते बिल्कुल नहीं चलेंगे|” लेकिनमुझे कोरल्स देखनेसमंदरके अंदर जाना ही नहींहै पिछली बार अंडमान निकोबारमें जो तजुर्बाहुआ था, वो मैं भूली नहीं थी|समंदरके भीतर थ्रिल से अभिभूत जब मैं गई थी तो मेरीटीशर्टमें एक नन्ही मछली घुस गई थी| उसने जो उत्पात मचाया था सो आज भी रोंगटे खड़े कर देता है| लेकिनसुधीर जी का कहा टालूँ भी कैसे? वोमेरे शुभचिंतक..... प्रादेशिक नातेदार..... “लीजिये, ये उतार दिये जूते, स्लीपर्स पहन लेती हूँ| सुमिता के पास स्लीपर्स नहीं थे| समंदर के किनारे बस से उतरते ही स्लीपर्स हैट आदि बेचने वालों की भीड़ थी| सुमिता ने स्लीपर्स खरीदे और हमकोरल आयलैंड जाने के लिये एक छोटे जहाज की ओर बढ़े| जहाज की सीढ़ियों परकदम रखते ही पास ही खड़े फोटोग्राफर ने कैमरे की ओर ध्यान दिलाते हुए फोटो खींच ली| हम सबसे आगे ओपन डेक पे बैठे| जहाज प्रशांत महासागर के नीले विस्तार में सफेद लहरों का कोलाज बनाता आगे बढ़ रहा था| हवा तेज..... थपेड़ेदार, मानो डुबो ही देगी समंदर में| समंदर भी चंचल हो रहा था| लाइफ़ जैकेट सबने पहन ली थी| लिहाजा कोरल आयलैंड जाना स्थगित करना पड़ा| समुद्र के बीचोंबीच खड़े दूसरे जहाज में हमें उतरना था..... एक छोटे से ब्रेक के लिए| जहाज के लम्बे चौड़े डेक पर बैंचेस पड़ी थीं| हमारे हाथ पर काले रंग से जहाज का नंबर आदि लिखा गया जैसेटैटू हो| दो दिन तक नहीं छूटा वो टैटू..... सुधीर शर्मा बोले- “उसने लिखा है आई लव यू|”

“लड़की ने लिखा है न..... खुश हो लीजिये आप|” मैं कब चूकने वाली थी|

ब्रेक के बाद हम वापिस अपने जहाज में आये| गाइड ने बताया कि “अब हम साक आयलैंड जा रहे हैं जो पोला सेलिंग के लिये मशहूर है|”

जहाज खूबसूरत हरे-भरे द्वीप पर रुका जहाँ नारियल, सुपारी और समुद्र के तटीय इलाके में होने वाले सदाबहार पेड़ों की खुशबूनुमा छाया में ढेर सारी आराम कुर्सियाँ पड़ी थीं| तट पर सफेद बालू में पैर धँस-धँस जाते थे| वॉटर सर्फिंग के लिये स्कूटर, वॉटर ग्लाइडिंग आदि की राइड्स थी और विदेशी सैलानियों की भीड़..... दरख़्तों पर चिड़िया फुदक रही थीं..... चहचहाहट हवा में बरपा थीं| एक घंटा मज़े में गुज़र गया|खाली कुर्सियाँ बैठने के लिये लुभा तो रही थीं..... परआधा घंटा बैठने की कीमत पचास भाथ| कुछ अमीरज़ादे आराम फरमा रहे थे| हमारी तो गाढ़ी कमाई थी..... बैठें कैसे? बैठना हम भूल गये| मानस जी अपने संगी-साथियों के साथ अंतर्ध्यान थे| जाते समय हनुमान जी की तरह प्रगट हो गये- “कैसी लगी ये जगह संतोषजी|” मैं मुस्कुराई..... ज़रानवाजी कोई उनसे सीखे| क्या मज़ाल जो कोई उपेक्षित महसूस करे|उन्होंने सबको अपनी आत्मीयता से बाँध रखा था|सबसे सीधे सादे थे वर्माजी..... उन्हें ये कहने में ज़रा भी संकोच नहीं था कि वे पहली बार जहाज़ पर बैठे हैं|

जब हम वापिस लौटे तो हम सबकी तस्वीरें खूबसूरत फ्रेम में जड़ी सौ भाथ में तैयार थीं| कमाई का अच्छा साधन है ये| मेरी तस्वीर देखकर सुधीर सक्सेना ने कमेंट पास किया- “जान ही ले ली आपने|” मानस जी ने तस्वीर हाथ में ली..... “तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,क्या गम है जिसको छुपा रहे हो|’ समंदर का रेतीला तट हमारे कदमों से कम इन चुलबुले संवादों से अधिक..... कसमसा उठा|

सिटी टूर के बाद हमने लंच लिया और उसी दौरान विकी ने बताया कि“यहाँ का टिफ़्नी शो ज़रूर देखिये थाई कल्चर का बेहतरीन परफॉरमेंस है वहाँ|” प्रवेश टिकट पाँच सौ भाथ..... शो सात बजे शुरू होगा| पार्किंग प्लेस पर साढ़े छै: बजे मिलना तय हुआ| कुछ लोग शॉपिंग के लिये चले गये| हम दोनों सड़कों पर, पार्क में चहलकदमी करते रहे| समय कब बीत गया पता ही नहीं चला|टिफ़्नी शो एक ऑपेरा में बहुत ही रौनकदार हॉल में होता है| हमें बाल्कनी में बैठना था इसलिये लिफ़्ट से ऊपर आ गये| मेरे बाजू में सुधीर शर्मा थे और सुमिता के बाजू में हमारे ग्रुप का सबसे हँसोड़ व्यक्ति अखिलेस जिसकी बे सिर पैर की बातें सबको हँसाती थीं| विभिन्न देशों के नृत्य प्रस्तुत किये गये..... कलाकार बेहद मँजे हुए, मंच सज्जा और परिधान सज्जा के क्या कहने| भारत का जब ‘डोला रे डोला’ नृत्य प्रस्तुत किया गया तो सभी ने जमकर तालियाँ बजाईं| टिफ़्नी शो सभी देशों की संस्कृति को एक में समेटने का अद्भुत प्रयास है..... शो की समाप्ति के पश्चात् नृत्य सुंदरियाँ बाहर के खूबसूरत उद्यान में दर्शकों के संग सौ भाथ में फोटो खिंचवा रही थीं| ऑपेरा का स्थापत्य दर्शनीय था|

डिनर के बाद सुधीर शर्मा, अखिलेश, संदीपतिवारी और सुमिता के साथ मैं मानस जी को मना थपा कर वॉकिंग स्ट्रीट ले आई| तेज़ ऑर्केस्ट्रा, नीग्रो ड्रम, छलकते जाम और उत्तेजक हुस्न..... लम्बी सड़कें उसी से भरी|शोरोगुल का सैलाब..... खंभा पकड़कर उत्तेजक नृत्य करती हसीनाएँ..... वह क्या नृत्य था? न बाबा..... नृत्य जैसी कला को शर्मिन्दा नहीं करूँगी| वे भड़काऊ झटके थे जो पुरुषों को लुभाने के लिये किये जा रहे थे| नकहीं कला थी न कहीं कलाकार| सुधीर शर्मा ये कहकर अखिलेश के साथ चले गये कि“मैं तो मसाज़ पार्लर जा रहा हूँ..... मेरी बीवी का फोन आये तो बताना मत कि मैं वहाँ हूँ|”

“हम तो बता देंगे कि आप शराब में धुत्त..... बॉडी टू बॉडी मसाज़ करवा रहे हैं| वे हाथ जोड़कर चले गये| सुधीर सक्सेना और संदीप जी थिरकने के मूड में थे| मानस जी खामोश..... मैं और सुमिता अपनी लेखनी के लिये दिमाग में मैटर फीड कर रहे थे|

१८ दिसं-११

आज का दिन चिर प्रतीक्षित दिन था क्योंकि आज सम्मेलन होने वाला था|हमें चूँकि वापिस नहीं लौटना था इसलिये साड़ियाँ मैंने और सुमिता ने बैग में रख ली थी ताकि सम्मेलन के लिये चेंज कर सकें| बदली भरे..... धूप छाँव की आँखमिचौली वाले दिन की शुरुआत नोंगा नाच बोटैनिकल गार्डन से की| पटाया फिशिंग, बंजी जंपऔरटिफ़्नी शो के लिये तो प्रसिद्ध है ही..... यहाँ की जैम फैक्ट्री भी सैर करने लायक है| जैम फैक्ट्री में प्रवेश करते ही एक जगर-मगर हीरों भरी दुनिया मुसाफिर को आवाज़ देती है|जेम्स गैलरी में तो आँखें ही चौंधिया गईं| दीवारों पर हीरे जवाहरात से बनी पेंटिंग्स,स्कल्पचर्स देखते ही बनते थे| मोर इतना खूबसूरत कि आँखें उस पर से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी| हैंड क्राफ्टिंग ज्वैलरी देखने लायक थी| राशि के हिसाब से नगों का भंडार था पर सब कुछ बहुत महँगा|

लंच के लिये हम ‘मुम्बई मैज़िक’ भारतीय रेस्तरां में आये| यहीके कांफ्रेंस हॉल में सम्मेलन होना था|जब तक हॉल, स्टेज़ सज्जा, चित्रकार डॉ. नायडू की पेंटिंग्स दीवारों पर टाँगी गईं तब तक हम ऊपर के कमरे में चेंज़ के लिये आ गये| सभी महिलायें भारतीय परिधान साड़ी में थीं|

कार्यक्रम तीन सत्रों में हुआ|पहले सत्र के अध्यक्ष मंडल में मैं भी थी| गीताश्री, संदीप तिवारी और सुधीर सक्सेना के सम्मान समारोह के बाद ‘हिन्दी के वैश्विक स्तर’ पर खुलकर चर्चा हुई| कई पुस्तकों का विमोचन भी किया गया| दूसरे सत्र में मुझे और सुमिता केशवा को सृजन श्री सम्मान से सम्मानित किया गया| पुष्प गुच्छ, मोमेंटो, प्रशस्ति पत्र, एक हज़ार रुपये मूल्य की पुस्तकें सम्मान स्वरूप दी गईं| तीसरा सत्र काव्य संध्या का था|अचानक सुधीर शर्मा ने घोषणा की कि इस सत्र का संचालन संतोष श्रीवास्तव करेंगी| मैं मानसिक रूप से कहाँ तैयार थी लेकिन संचालन तो करना था और ताज्जुब..... कमेंट्स इस तरह के कि आप तो छा गईं, महफिल लूट ली आपने| सभी की कवितायें स्तरीय थीं और इस अच्छी काव्य संध्या के लिये मैं आयोजकों की शुक्रगुज़ार हूँ, लेकिन मानस जी से इस शिकायत सहित कि उनके गीतों का पिटारा खुलता क्यों नहीं? हॉल में लगी चित्रकला प्रदर्शनी देखने के बाद हमने डिनर लिया और होटल लौट आये|

आज पटाया में आखिरी रात थी| हम किसी ऐसी जगह की तलाश में थे जहाँ अलका सैनीजी डिस्को कर सकें और कैंप फायर हो..... पर कहीं जगह नहीं मिली| गीताश्री और मुझसे वॉकिंगस्ट्रीट के बारे में सुन सीमा श्रीवास्तव ने वहीँ जाने की इच्छा प्रगट की| विकी की दोस्त हमेंगाड़ी से वॉकिंग स्ट्रीट तो छोड़ गई पर सीमा जी ने अंदर जाने से इंकार कर दिया| मानस जी की नाराज़ी झेल मैं सुमिता और सीमाजी के साथवॉकिंग स्ट्रीट की रंगीनी में प्रवेश किये बिना ही बेरंग वापिस लौट आई|

शहर कहीं सन्नाटे कहीं रात की रंगीनियों में डूबा था| सपनों की गलियों में मन ढोलक की थाप बन मचल पड़ाथा| ज़िन्दगी की हक़ीक़त यही है..... चार दिनों का खेल हो रब्बा बड़ी लम्बी जुदाई..... लेकिनजुदाई लम्बी नहीं है क्योंकिमानस जी ने घोषणा कर दी थी पाँचवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन की जो २५ जून २०१२ को ताशकंद में होगा.....

सुबह बैंकॉकके लिये निकलना है| नींद आने का नाम नहीं ले रही थी| सपनेपलकों पर मचल रहे थे और पटाया रात के आगोश में था|

१९ दिसं-११

अलविदा पटाया| एक अहसास कि पटाया, तुमने मुझे जिया था या मैंने तुम्हें? जिनसड़कों पर मैं चलीहूँ..... मेरे नक़्शे पा तुम्हें मेरी याद दिलायेंगे..... उनकी खुशबू से तुम लबरेज़ रहोगे..... रहें न रहें हम महका करेंगे..... अलविदा..... पटाया..... अलविदा.....

बैंकॉक का चुम्बकीय प्रवाह अपनी ओर खींचे ले रहा है| इस दर्शनीय ऐतिहासिक शहर को देखने के लिये लम्बा अरसा चाहिये..... इतना वक्त कहाँ है ज़िन्दगी के पास? बैंकॉक ऐतिहासिक धरोहर को संजोए है| यहाँ का ग्रांड पैलेस, मैजिक ऑफ डिनर क्रूज़, चाओफ़राया पर्यटकों के बीच आकर्षण का केन्द्र है| ओल्डसिटीख्तानाकोसिन, चायना टाउन, पन्द्रह सौ साल पुराना रेन फ़ॉरेस्ट, सांध्यमंदिर, बौद्ध मंदिरों को अपने में समेटे बैंकॉक थाईलैंड की पोलिटिकल, कमर्शियल, इंडस्ट्रियल और कल्चरल हब है जो राजधानी होने कारुतबा रखती है| फुकेट क्रेबी, छियांग माई और को सेमयू जैसे टूरिस्ट गंतव्य हैं, राजशाही है| राजा राम नवम हैं| हिन्दू संस्कृति चहुँ ओर..... बौद्ध धर्म तो है ही, तमिलमंदिर, दुर्गा, गणपति, हनुमान..... इनके मंदिर मूर्तियाँ भी हैं| मंदिरों के पास गेंदे के फूलों के छोटे-छोटे गज़रे बिकते हैं जो केवल कलाई तक ही आते हैं|कई थाई युवक-युवतियाँ माथे पर तिलक लगाये दिखे| यहाँ रामलीला, शकुंतला दुष्यंत, विश्वामित्र मेनका जैसे पौराणिक नाटकों को खेलने वाली नाटक मंडलियाँ भी हैं| भारतीय सुस्वादु भोजन परोसते भारतीय रेस्तरां जहाँ थाई लोगों की भीड़ जुटी रहती है| अच्छा लगा हर जगह भारत का अस्तित्व झलक रहा था| हम गौरवान्वित थे| होटल‘फर्मा साईलॉम’ में हमारा काफिला रुका| शानदार होटल, सुविधाओं से पूर्ण कमरे|रिलैक्स होने के लिये इतना काफी था| भूख जोरों की लगी थी अतः लंच के लिये नज़दीक के भारतीय रेस्तरां में गये|खाना बहुत स्वादिष्ट था और उससे भी ज़्यादा अच्छी खाना परोसने वाली लड़की थी जो शक्ल से थाई दिख रही थी लेकिन जिसका नाम सोनिया था| खाना खाने के बाद मैंने पूछा- “मीठे में क्या है?”

“जी सिवईं खीर..... दसमिनिट लगेंगे|” उसकी प्यारी सी मुस्कान क्या मीठे से कम थी? दस मिनिट कौन इंतज़ार करता? उसके बाद हम जितनी भी बार वहाँ खाना खाने गये..... पहले वह मीठा परोस लाती “मैम..... मीठा पहले|”

लंच के बाद हमने बौद्ध मंदिरों के दर्शन किये| बेहतरीनस्थापत्य..... शान्ति..... वाटइन में भी और वाटहुआलम्पोंग में भी| भारत के सिद्धार्थ जब बुद्ध हुए तब शान्ति पाई लेकिन जिन सवालों की खोज में उन्होंने राजपाट, पत्नी, परिवार त्यागा उनके उत्तर तो आज तक कोई पा न सका|सिद्धार्थ ने जीवन से पलायन किया..... गृहस्थ धर्म का पालन नहीं किया..... पलायन क्या हल है? अरे, ज़िन्दगी की मुश्किलों का सामना करो, ईश्वर ने जो ड्यूटी दी है उसे पूरा करो..... उसमें जो आनन्द है वह कहीं नहीं|

रात को मेरे कमरे में महफिल जुटी|अलका सैनी का डिस्को आवाज़ दे रही था| पहले सबने गीत गाये| लतिका दीदी के चुलबुले गीतों ने हम सब में जोश भर दिया| फिर क्या था मैंने और गीताश्री ने खूब नाचा|मेरे कत्थक पर आधारित सूफी नृत्य ‘मेरा इश्क सूफियाना’ और‘रंगरेज मेरे, कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला’ की सबने सराहना की| मगन होकर नाची मैं| सुधीर सक्सेना अभिभूत..... ‘कितनी ढेर सारी कलाएँ हैं आपमें| आपके इस रूप से तो परिचित ही न था|’ मानस जी दीवार के उस पार..... पल-पल की खबर थी उन्हें| परदर्शन दुर्लभ| ग़ज़लों, गीतों, कविताओं और नृत्य से रंगारंग वह रात ठिठकी सी खड़ी रह गई| रोशनी के समंदर में डूबा बैंकॉक रात की पनाह खोज रहा था|

२० दिसं-११

आज सुमिता ने बैड टी बनाई थी- “उठ कितना सोती है?”

उसने मुस्कुराकर चाय का प्याला मेरी ओर बढ़ाया| मैंने कम्बल में दुबके-दुबके ही चाय खत्म की| हमें तैयार होना था सफ़ारी वर्ल्ड और मरीन पार्क के लिये| नाश्ते के बाद काफ़िला बढ़ा| हमारे गाइड को..... “चलो, चलो नीचे उतारो’ हिन्दी में बोलना आता था|बाकी वह माइक पे क्या बोलता था, समझ से परे था| वह हँसता तो हम भी हँस देते| भाषा शब्द भले ही प्रेषित न कर पा रही थी पर भाव ज़रूर समझा देती थी| दिवाकर भट्ट अपनी राजकुमार जैसी अदा में बोले- “जानी, मरीन पार्क आ गया|”

मरीन पार्क कई एकड़ भूमि पर फैला विशाल उद्यान था जिसकी हरीतिमा और रंग बिरंगे फूल, पत्ते दूर से ही लुभा रहे थे| यहाँ जल थल के प्राणियों को मानवीय कारनामों के लिये प्रशिक्षित करके उनके शो दिखाए जाते हैं| सबसे पहले एलीफैंट शो हुआ..... फिर हमने हाथ भर की दूरी पर खुले में बैठे शेर और उसके बच्चे को देखा|शेर जंजीरों से बँधाचट्टानों पर दुबका बैठा था| उसके बगल की चट्टान पर उसका बच्चा बोतल से चुकुर-चुकुर दूध पी रहा था|सैलानी उसके संग फोटो खिंचवा रहे थे ८५ भाथ में| सील शो, मंकी शो, डॉल्फिनशो, अद्भुत..... सील तो दर्शकों के गालों का चुम्बन लेते हुए पोज़ दे रही थी २०० भाथ में..... बहुत खूब..... कमाई का जरिया भी और यादगार भी| मुझे तो सील के हर करतब के बाद अपने पतवार नुमा पंखों से तालियाँ बजाना बहुत लुभाता रहा| समुद्री जीवों के अद्भुत कारनामे जहाँ हमें चकित किये था वहीँ हॉलीवुड स्टाइल में फिल्मी स्टंट देखकर बिन बारिश हम लथपथ..... स्टंट ग्राउंड से पानी की तेज बौछार मुझे और सुमिता को सिर से पाँव तक सराबोर कर गई| सुधीरशर्मा कब चूकने वाले थे..... गाने लगे- “एक लड़की भीगी भागी सी..... ओह| भीगे कपड़ों में ही हमें लंच लेना पड़ा जो एक विशाल हॉल में था| असल में वह हॉल कम बड़ा पार्क जैसा नज़र आ रहा था जहाँ चिनार के नकली पेड़ पूरे माहौल को जंगल का लुक दे रहे थे|

लंच के बाद हम जू गए| हमें लगा पैदल चलना होगा और कटघरे में जानवरों को देखना होगा पर हमारी बस पूरी सफारी का बैठे-बैठे ही दर्शन कराने लगी| शेर, चीता, भालू, नीलगाय, बारहसिंगा, हिरण, जिराफ, हाथी, सायबेरियनफ़्लेमिंग पक्षी जिनकी पीली चोंच और गुलाबी सफेद पंख थे| सभी तरह के जानवर जंगल में स्वछंद विचरण कर रहे थे| मानस जी सहयात्रियों को जानवरों की उपाधि से विभूषित कर रहे थे| किसी ने पूछा- “और चिरैया कौन है?”

“आईं हैं न कोयल और मैना मुम्बई से|”

बस में ठहाके गूँज उठे| सफारी पार्क से सड़क पर आते ही हम शॉपिंग के लिये इंदिरा मार्केट की ओर बढ़ने लगे|गीताश्री मूड में थीं..... हम लोग अंत्याक्षरी खेलने लगे| नये, पुराने फिल्मी गानों से हमने वो समां बाँधा कि अलसाये लोग भी फ्रेश नज़र आने लगे|

इंदिरा मार्केट में हमें तीन घंटों के लिये बस ने पार्किंग प्लेस पर छोड़ा|हमने शॉपिंग फुटपाथ से शुरू की| मुम्बई के फैशन स्ट्रीट जैसा ही मार्केट था| इलेक्ट्रॉनिक सामान और सूती कपड़े अच्छे थे| कुछ खरीदा, कुछ देखा लौटे तो सखी-संबंधियों के लिये खरीदे उपहार के थैले हमारे हाथ में थे| बस चली तो मानस जी ने रात को डिनर के बाद कवि गोष्ठी के आयोजन की बात तो की पर सभी थके थे| नींद के आगोश में जाते देर नहीं लगी|

२१ दिसं-११

आज विदाई की अंतिम बेला थी| मधुर सपनीली यादों में डूबी मैं एयरपोर्ट की ओर जाते हुए भीगी पलकों से बैंकॉक को अलविदा कह रही थी|तभी विकी का हाथ कंधे पर- “आपके लिये ये प्रेम भरी सौगात| कत्थई रंग का कपड़े का नन्हा सा हाथी..... मन भीग उठा है|

सुवर्णभूमिएयरपोर्ट बहुत खूबसूरत स्थापत्य का जगमग रोशनियों वाला, चमकते फर्श वाला हवाई अड्डाहै| लगभग आधा कि.मी. के दायरे में समुद्रमंथन का दृश्य है| एक तरफ असुर, दूसरी तरफ देवता, बीच में भगवान विष्णु और शेषनाग..... भ्रम हुआ क्या मैं भारत में हूँ? जैसेहम उमंग भरे आये थे, वैसे ही उमंग भरे लौट रहे हैं| इस आने-जाने के बीच सपनों की एक नदी लगातार छै: दिन तक बही| आयोजकों के प्रयास ने उसमें साहित्य, संगीत और अनबुझे पलों के कोरल, मोती भरे| मैं थाईलैंड में अपना भारत जीकर लौट रही हूँ और साथ ले जा रही हूँ थाईलैंड को जो मेरे मन के समंदर में दीप सा जड़ गया है|

संतोष श्रीवास्तव

१०१, केदारनाथ को. ओप. हा. सो.,

सेक्टर ७, चारकोप बस डिपो के पास,

कांदिवली(प.) मुम्बई-४०००६७

मो.- ०९७६९०२३१८८

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