Gopirampura ki Holi Dr Sunita द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Gopirampura ki Holi

गोपीरामपुरा की होली

डा. सुनीता

*

पाँच बरस की नन्ही सी नीना। उसे गोपीरामपुरा कस्बे के कमलाकुंज मुहल्ले में अपने मम्मी-पापा के साथ आए अभी कुल जमा दो महीने ही तो हुए थे। इतने में आ गई होली। बस, नन्ही सी नीना तो मुश्किल में पड़ गई।

नीना को अगर किसी चीज से डर लगता था तो होली के रंगों से। ओह, जाने कैसे-कैसे रंग चेहरे पर पोतकर बिलकुल भूत बना देते हैं लोग होली वाले दिन। शीशे में अपनी शक्ल देखो, तो खुद डर जाओ। यहाँ तक कि मम्मी-पापा की शक्लें भी होली वाले दिन कुछ ऐसी अजीबोगरीब हो जाती हैं कि कुछ पूछो मत।... ना बाबा, ना! हमें नहीं खेलनी होली और इस गोपीरामपुरा के कमलाकुंज मुहल्ले में तो बिलकुल नहीं खेलनी।

तौबा, तौबा! यहाँ की लड़कियाँ तो देखो। उस दिन कम्मो कह रही थी, “नीना, बस होली आने दो! इस बार तुम्हें ऐसा जोकर बनाऊँगी कि पूरे साल भर याद करेगी और हँसेगी।”

इस पर बबीता फिस्स-फिस्स हँसते हुए बोली, “और मेरे भैया ने तो कैमरे में नई रील भी डलवाकर रख ली है। मैं कह दूँगी कि भैया, इस बार होली पर नीना का फोटो खींचना न भूलना। देखना, फोटो खींचकर भैया जरूर किसी अखबार में भेजेंगे छपने।”

“न...न...न! मुझे नहीं खिंचवानी फोटो-वोटो। होली की अपनी फोटो देखकर तो मुझे खुद ही डर लगेगा।” नीना रुआँसी हो गई।

और होली से पहले वाली रात को तो बेचारी नीना सो ही नहीं पाई। पूरी रात यही सोचती रही कि कैसे गोपीरामपुरा की इन शरारती लड़कियों से बचूँ? ये तो होली पर मेरा हुलिया बिगाड़ देंगी।

आखिर सुबह उठते ही उसने लड़ियाते हुए मम्मी से कहा, “मम्मी...मम्मी, मुझे अंदर वाली कोठरी में छिपा देना। मुझे नहीं खेलनी होली”

मम्मी ने हैरानी से कहा, “क्यों नीना, सब बच्चे तो होली खेलने के लिए तरसते हैं। तू छिपकर बैठेगी?”

“हाँ मम्मी, प्लीज! मेरी सहेलियाँ आएँ तो उनसे कह देना कि नीना बाहर गई है। अपने अंकल के पास। खासकर कम्मो ओर बबीता को तो जरूर टरका देना। ये बहुत दुष्ट हैं।”

अभी नीना यह बात कह ही रही थी कि बाहर ‘होली है...होली है!’ का शोर सुनाई पड़ा। उसमें कम्मो और बबीता की आवाजें भी शामिल थीं।

देखते ही देखते आसपास के दस-पंद्रह लड़के-लड़कियों की टोली घर में दाखिल हुई। सभी रंगों में सराबोर, मगर हँस रहे थे। हँसते-हँसते लोटपोट हो रहे थे। कम्मो हँसते हुए बोली, “आंटी, आंटी, नीना को बाहर निकालिए न! उसे कहाँ छिपा रखा है?”

नीना की मम्मी बोली, “अरे कम्मो, वह तो अपने मामा के यहाँ गई है—मोती नगर।”

“क्यों आंटी! मोती नगर क्यों भेज दिया उसे आज के दिन?” कम्मो रुआँसी हो गई। बोली, “आज तो हमें उससे जमकर होली खेलनी थी।”

“हो सकता है, घंटे-दो घंटे में वह आ जाए। तब तुम लोग फिर आ जाना।” नीना की मम्मी ने बात को टालते हुए कहा।

पर बच्चे कब मानने वाले थे। बबीता बोली, “नहीं आंटी, हमें यकीन है, वो घर में ही होगी। कहीं गई नहीं है।”

बबीता की बात पूरी होते ही, सारे बच्चों ने मिलकर नारा लगाया, “नीना...नीना, बाहर आओ! प्लीज नीना, बाहर आओ...बाहर आकर होली खेलो।”

और फिर न जाने कब यही नारा लगाते-लगाते बच्चों की पूरी टोली नाच उठी। नाच नाचते हुए भी सब बड़े प्यार से और बढ़िया सुर में यही गाना गा रहे थे, “नीना...नीना, बाहर आओ, प्लीज नीना बाहर आओ। आकर हमसे होली खेलो!”

देखते ही देखते नाच का ऐसा रंग जमा कि नीना की मम्मी तो हँसते-हँसते लोट-पोट हो गईं। हँसते-हँसते बोलीं, “अरे बच्चो, नीना घर में होती तो क्या बाहर न आ जाती? वह तो सच में नहीं है। हाँ, तुम लोगों को गुझिए खाने हैं, तो खा लो। मैं ला देती हूँ।”

*

अभी नीना की मम्मी गुझिए की थाली लेकर बाहर आई ही थी कि अचानक भीतर से आवाज सुनाई दी, “मम्मी, हाय मम्मी...छिपकली! मोटी वाली...!”

सुनते ही बच्चों की टोली हैरान। कम्मो उछलकर बोली, “अरे वाह आंटी, यह तो नीना की आवाज है। नीना को कहाँ छिपा रखा है आपने, जल्दी बताइए!”

नीना की मम्मी हँसते-हँसते बोली, “अरे भई, वह भीतर स्टोर में छिपी बैठी है। डर रही थी तुम लोगों से, इसलिए भीतर छिपकर बैठ गई। जाओ, तुम लोग प्यार से बुला लाओ उसे।”

सुनते ही बच्चों की पूरी टोली धम-धम करती अंदर घुसी और सब उसे कंधे पर बिठाकर बाहर ले आए।

फिर तो उस पर रंगों की ऐसी बौछारें पड़ीं कि नीना पहले तो डरी, पर फिर उसे भी आनंद आने लगा। उसने भी सब पर खूब रंग डाले। और खूब हँसी-खिलखिलाई।

फिर एक बार बच्चों की टोली ने नीना को साथ लेकर, अपना खूब प्यारा सा नाच दिखाया। गाने गाए, गुझिया और घर के बने लड्डू खाए। और सब ‘होली है...होली है...!’ का नारा लगाते घर से बाहर निकले तो संग-संग हँसती-खिलखिलाती नीना भी थी।

कम्मो बाली, “उस मोटी छिपकली को धन्यवाद दो नीना। वरना तुम बाहर कैसे निकलतीं और होली का यह आनंद कहाँ आता?”

इस पर नीना खुदर-खुदर हँसी। बोली, “जैसी होली खेली है इस बार, वैसी आए हर साल...!” और हँसती-खिलखिलाती गोपीरामपुरा के बच्चों की यह टोली अब आगे जा रही थी।

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