Aadmi ne Nibhai Dosti Dr Sunita द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Aadmi ne Nibhai Dosti

आदमी ने निभाई दोस्ती

डा. सुनीता

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बहुत पुरानी बात है, जब कुत्ते शहरों में नहीं, शेर, हिरन, भालू जैसे जंगली प्राणियों की तरह बस जंगलों में ही रहते थे और आदमियों से उनकी दोस्ती नहीं हुई थी। पर जंगल में भी उनके लिए कम मुसीबत न थी, क्योंकि दूसरे जंगली जानवर उन पर धौंस जमाया करते थे। इसलिए कुत्तों को कभी यहाँ, तो कभी वहाँ से छिपकर भागना पड़ता, नहीं तो उनकी जान आफत में आ जाती थी।

उन्हीं दिनों घने जंगल में एक कुतिया रहती थी, जिसे जंगल के सब प्राणी मिड्डी कहकर बुलाते थे। मिड्डी का स्वभाव बहुत अच्छा था और वह बिना बात किसी को तंग नहीं करती थी। उसकी आँखें हमेशा जैसे मुसकराती रहतीं। उसके दो प्यारे-प्यारे पिल्ले थे नेडा और मीडा, जिन्हें वह बहुत प्यार करती थी।

जैसे ही वे पिल्ले थोड़े बड़े हुए, मिड्डी कुतिया ने उन्हें जंगल से परिचित कराया। वह उन्हें अपने साथ-साथ घुमाती और उसे पुराने और घने जंगल की एक से एक विचित्र कहानियाँ सुनाती। दोनों पिल्लों नेडा और मीडा को माँ के साथ जंगल में घूमना और माँ से जंगल की अचरज भरी पुरानी कहानियाँ सुनना बड़ा पसंद था।

मिड्डी और उसके दोनों पिल्लों के दिन सुख से बीत रहे थे। अब नेडा और मीडा कभी-कभी अकेले भी घूमने जाते और लौटकर माँ को अपने दिन भर के अनुभव बताते। मिड्डी हँसकर कहती, “अब तुम बड़े हो गए हो, मेरे बच्चो। जहाँ मन हो, वहाँ घूमो। पर मेरी एक बात याद रखना। जंगल के बड़े और घमंडी प्राणियों से दूर रहना। वे हमें फूटी आँखों नहीं देखना चाहते। इसलिए अपनी जान की खुद परवाह करना सीखो।”

एक बार की बात, नेडा और मीडा दोनों पिल्ले अपनी माँ के साथ घूम रहे थे। मौसम अच्छा था, इसलिए वे एक पहाड़ी पर मजे में किल्लोलें करने लगे। उन्हें ऊँचाई से नीचे कूदते और आपस में झूठ-मूठ कुश्ती लड़ते देख, मिड्डी को हँसी आ रही थी। वह दोनों पिल्लों का हौसला बढ़ा रही थी।

इतने में एक दुष्ट हिरन दौड़ता हुआ वहाँ आया। उसने मिड्डी और उसके पिल्लों को मजे से पहाड़ी पर दौड़ते-भागते और किल्लोल करते देखा, तो उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने तेजी से झपट्टा मारकर मिड्डी को अपने पैरों की ठोकर से गिरा दिया और मार डाला। दोनों पिल्ले नेडा और मीडा दुख के मारे आर्तनाद करने लगे।

अब पिल्ले बेचारे अनाथ हो गए थे। उन्होंने हिरन को अपनी माँ को मारते हुए देखा था। यह दृश्य हर वक्त उनकी आँखों में कसकता रहता।

मरने से पहले मिड्डी ने बड़े करुण ढंग से पुकारा था, “मैं तो जा रही हूँ, मेरे प्यारे बच्चो! पर तुम अपना खयाल रखना। जंगल में हमेशा चौकन्ने होकर रहना और अपने आप को बचाकर रखना।”

*

धीरे-धीरे समय बीता। अब दोनों पिल्ले नेडा और मीडा बड़े हो गए थे। उनमें काफी ताकत आ गई थी और मुसीबत आने पर वे बड़ी तेजी से दौड़ भी सकते थे। पर उनका मन शांत नहीं था। वे हर हाल में उस हिरन से बदला लेना चाहते थे, जो कि उनकी माँ का हत्यारा था।

दोनों पिल्ले नेडा और मीडा रात के समय घर लौटते तो इस बारे में सोचते और योजना बनाते थे। पर उन्हें कोई अच्छा रास्ता सूझ नहीं रहा था।

तब एक दिन नेडा ने मीडा से कहा, “भाई, मुझे लगता है, हम लोग अकेले कुछ नहीं कर सकते। हमें दूसरों की मदद लेनी चाहिए।”

“हाँ, बात तो तुम ठीक कह रहे हो।” मीडा को भी नेडा की बात जँच गई। बोला, “ठीक है, कल से हम कुछ करते हैं।”

अगले दिन दोनों पिल्ले नेडा और मीडा मिलकर महाबली हाथी के पास मदद माँगने गए। उऩ्होंने कहा, “दुष्ट हिरन ने बिना बात हमारी माँ को मार दिया। हम उससे बदला लेना चाहते हैं। आप हमारी मदद कीजिए।”

हाथी को भी पता था कि मिड्डी कुतिया तो बहुत भली और एकदम सीधी-सादी थी। दुष्ट हिरन ने बिना बात ही उसे मार डाला। वह नेडा और मीडा की मदद करना चाहता था। पर तभी उसका ध्यान नेडा और मीडा की भौंकने की आदत की ओर गया। जब से वे बड़े हुए थे, वे बहुत जोर-जोर से भौंकने लगे थे। उनकी यह आवाज पूरे जंगल में गूँजती थी।

हाथी ने सोचा, “अगर जंगल में हिरन को ढूँढ़ते हुए ये बीच-बीच में भौंकेंगे, तो इनकी आवाज सुनकर शेर या बाघ कोई भी आकर इन्हें मार देगा। फिर मुझे भी उससे मुकाबला करना पड़ेगा। मैं क्यों बेकार के झंझट में पड़ूँ?”

इसलिए हाथी कुछ देर तो उलझन में रहा। फिर उसने बहाना बनाते हुए कहा, “भाई, बात तो तुम्हारी ठीक है। पर कुछ दिनों से मुझे जुकाम ने तंग कर रखा है। इसलिए मेरी तबीयत कुछ उचाट-सी है। आजकल मैं कहीं आता-जाता नहीं हूँ, घर पर ही आराम करता हूँ। …पर तुम बाघ की मदद क्यों नहीं लेते? वह जरूर तुम्हारी सहायता करेगा।”

अब दोनों पिल्ले नेडा और मीडा बाघ के पास मदद माँगने गए। बाघ भी पिल्लों की इस आदत को जानता था कि आसपास कहीं जरा-सी आवाज होने पर ही वे भौंकने लगते हैं।

“अगर वे भौंकने लगे और आसपास किसी शिकारी ने सुन लिया तो वह अपने तीर-कमान से मुझे तीर मार देगा। इसलिए इस झंझट से दूर रहने में ही मेरी भलाई है।” ऐसा सोचकर बाघ ने कुत्तों से कहा, “भई, मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊँगा। कोई और रास्ता निकालो।”

यह कहकर वह घने जंगल के भीतर गुम हो गया।

अब दोनों पिल्ले नेडा और मीडा एक आदमी के पास गए और उसे अपना दुख-दर्द बताया। सुनकर उसे भी दुख हुआ। उसने उनकी यथासंभव मदद करने का वचन दिया।

आदमी ने उन्हें भोजन दिया और रहने का स्थान भी दिया। रात में जरा-सी भी आवाज होती तो नेडा और मीडा जोर से भौंकने लगते। उस आदमी को उनकी यह आदत बहुत अच्छी लगी। उसे उनके भौंकने से रात के अँधेरे में भी सुरक्षा का अहसास बना रहता था और कुत्ते भी उस घर में बड़े आराम से रह रहे थे।

वे अब अपने मालिक का इंतजार करते और जब वह आता तो पूँछ हिलाकर उसका स्वागत करते। आदमी भी उन्हें गोद में लेकर प्यार करता, उनकी पीठ थपथपाता।

इस तरह कुत्ते और आदमी की दोस्ती की शुरुआत हुई। दोनों को एक-दूसरे से कभी कोई खतरा महसूस नहीं हुआ। बल्कि दोनों को एक-दूसरे के प्यार की आदत पड़ गई। आदमी जब तक उनकी पीठ न थपथपाए, तब तक उन पिल्लों को चैन नहीं पड़ता था।

एक दिन पिल्लों ने उस आदमी को अपना वादा याद दिलाया कि वे अपनी माँ की हत्या का बदला लेना चाहते हैं। उस आदमी ने कहा, “हाँ, बात तो तुम्हारी ठीक है। चलो, आज ही उस दुष्ट हिरन को ढूँढ़ते हैं।”

आदमी ने एक भाला लिया और नेडा और मीडा को साथ लेकर जंगल की ओर चल दिया। जंगल में पहुँचकर थोड़ी ही देर में कुत्तों ने उस हिरन को पहचान लिया। अब आदमी हाथ में भाला लिए हुए एक झाड़ी के पीछे छिप गया और कुत्ते हिरन का पीछा करने लगे। भागते-भागते जैसे ही हिरन लौटकर इसी झाड़ी के पास से गुजरा तो उस आदमी ने खींचकर भाला मारा जो हिरन के आर-पार हो गया।

तब तक दोनों कुत्ते नेडा और मीडा भी पहुँच गए। उन्होंने भी इस पराक्रम में अपना हिस्सा बँटाने के लिए मरे हुए हिरन की दाईं टाँग नोंच खाई। कुत्तों ने अपनी माँ की हत्या का बदला ले लिया था। अब वे शांत थे। वह आदमी उन कुत्तों को लेकर घर आ गया।

बरसों तक, अपने जीवन के अंत तक वे कुत्ते उस आदमी के घर में ही रहे। वे उसके घर की चौकीदारी में कोई कमी नहीं रहने देते थे। बदले में वह आदमी भी उनकी बहुत अच्छी देखभाल करता था। उन्हें दूध में भीगी रोटी देता था और खूब प्यार करता था।

बस, तभी से आज तक आदमी और कुत्ते का साथ और दोस्ती चलती आ रही है और आगे भी चलती रहेगी।

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