जंगल का दोस्त Dr Sunita द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जंगल का दोस्त

जंगल का दोस्त

डा. सुनीता

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बहुत पुराने समय की बात है, मिनकाई गाँव में एक युवक रहता था कोराबैबू। वह अकेला ही था। माता-पिता बचपन में गुजर गए थे। शुरू में तो गाँव वालों ने उसकी परवाह की, फिर कहा, “अब तुम खुद शिकार करो और अपने भोजन का इंतजाम करो।”

कोराबैबू अभी किशोर ही था कि उसने जंगल में जाकर शिकार करना शुरू कर दिया। शुरू में उसे कई परेशानियाँ झेलनी पड़ीं। एक बार तो विशाल डीलडौल वाले एक खूंखार जंगली भालू ने उस पर इतनी बुरी तरह से आक्रमण किया कि कोराबैबू के लिए जान बचाना मुश्किल हो गया। पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

कबीले के लोगों ने उसे कुछ जंगली बूटियों के बारे में बताया था। कोराबैबू ने उन्हीं बूटियों को खोजकर अपना इलाज शुरू कर दिया। और आखिर वह पूरी तरह ठीक हो गया।

होते-होते कोराबैबू बड़ा पक्का शिकारी बन गया। अब दूर-दूर तक उसका नाम हो गया था। हर वक्त वह तीर-कमान लिए जंगलों में घूमता रहता था। उसके तीर का निशाना इतना पक्का था कि जानवर उसे देखते ही भाग खड़े होते थे।

इससे शुरू-शुरू में तो कोराबैबू को बड़ी खुशी होती थी। वह सोचता था कि ‘देखो, मैं इतना पक्का शिकारी हूँ कि मुझसे सब डरते हैं।’ पर धीरे-धीरे वह परेशान होने लगा। वह यह सोचकर दुखी हो उठता कि मैं इतना अच्छा शिकारी हूँ। इसके बावजजूद कोई शिकार मेरी पकड़ में नहीं आता।

एक दिन की बात, कोराबैबू जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहा था। सुबह से कई जानवर उसे नजर आए थे। पर वह उन पर निशाना साधता, इससे पहले ही वे भाग खड़े हुए। देखकर कोराबैबू हक्का-बक्का था।

सबसे पहले तो उसे एक बड़ा ही ताकतवर शेर नजर आया था। वह इतना विशाल था कि उसे देखते ही डर लगता था। कोराबैबू ने अपने भाग्य को सराहते हुए उस पर झटपट तीर का निशाना साधा। पर तब तक शेर की निगाह उस पर पड़ी और कोराबैबू को देखते ही वह ऐसे भागा, जैसे उसने कोई हौआ देख लिया हो।

इसके बाद एक काला चीता और विशालकाय हाथी भी उसे नजर आया, पर कोराबैबू चाहते हुए भी किसी पर निशाना नहीं साध पाया। कोराबैबू ने धनुष पर तीर चढ़ाकर निशाना साधा, पर तब वे गायब हो गया। वे किधर चले गए, कोराबैबू समझ न सका।

उसे बड़ा गुस्सा आया। वह सोचने लगा, “या तो मेरी किस्मत ही खराब है या फिर इस जंगल में ही कोई ऐसा जादू है जिससे मैं अपना निशाना नहीं साध पाता। तभी तो मुझे देखते ही सब जंगली जानवर दूर से ही भाग जाते हैं। मुझे लोग बहुत बड़ा शिकारी कहते हैं, पर मेरे जैसी बुरी हालत तो किसी की नहीं है।”

कोराबैबू यह सोच ही रहा था, इतने में उसे एक जोर की चीख सुनाई दी, “बचाओ...बचाओ!” मुजाई झील में से आवाज आ रही थी।

कोराबैबू दौड़ा। तभी उसकी निगाह सुनहले बालों वाली एक युवती पर पड़ी जो झील के गहरे पानी में डूब रही थी। कुछ और आगे आकर देखा, तो पूरी बात पता चली। एक मगरमच्छ पैर पकड़कर उसे तेजी से गहरे पानी में खींच रहा था।

कोराबैबू उसी समय दौड़ पड़ा। उसने पानी में छलाँग लगा दी और मगरमच्छ से भिड़ पड़ा। बड़ी देर तक वह मगरमच्छ से लड़ता रहा। आखिर उसने मगरमच्छ की गरदन पर इतने जोर का घूँसा मारा कि उसका मुँह खुल गया। इस तरह कोराबैबू ने उस सुंदर युवती की जान बचाई।

कोराबैबू उस युवती को उठाकर किनारे तक लाया। पूछने पर उस युवती ने बताया, “मैं सब्जपरी हूँ। जंगल में अपनी सहेलियों के साथ घूमने आई थी। सहेलियाँ तो झटपट नहाकर पास वाले बगीचे में चली गईं, जहाँ हम परियों के सामूहिक नृत्य का कार्यक्रम था। पर मैं थोड़ी दूर नहा रही थी तो कुछ पता नहीं चला। इस बीच किसी ने मेरे पंख चुरा लिए, जिससे मेरी सारी शक्तियाँ खत्म हो गईं। फिर एक मगरमच्छ ने अचानक मुझ पर हमला कर दिया। अगर मेरे पंख नदी किनारे होते, जहाँ मैंने उन्हें रखा था, तो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। पर पंख न होने से मैं लाचार थी। अगर आपने आकर मदद न की होती, तो...!”

“तुम चिंता न करो। अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी। कोराबैगू से टक्कर लेना हर किसी के बस की बात नहीं।” कोराबैगू ने हँसकर कहा।

थोड़ी ही देर में कोराबैबू ने परी के पंख ढूँढ़कर दे दिए। वे एक पेड़ की टहनी में अटके हुए थे। कोराबैबू बोला, “शायद कोई शरारती बच्चा खेल-खेल में इन्हें उठाकर ले गया था और पेड़ के पत्तों में छिपा दिया।”

सब्जपरी ने कोराबैबू को धन्यवाद दिया। फिर कहा, “मैं तुम्हें कोई वरदान देना चाहती हूँ। बोलो, तुम्हें क्या चाहिए।”

कोराबैबू आज सुबह से ही परेशान था। बहुत चाहने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला था। और सच तो यह है कि पूरे महीने भर से कोई बढ़िया शिकार उसकी पकड़ में नहीं आया था।

आखिर कुछ सोचकर उसने सब्जपरी से वरदान माँगा, “मैं जिस जानवर को भी देखूँ, वह भाग न पाए, बल्कि खड़ा-खड़ा वहीं गिर जाए और उसी समय उसकी मृत्यु हो जाए।”

सुनकर सब्जपरी एक पल के लिए उदास हो गई। वह सोचने लगी कि भला कोराबैबू ने यह कैसा वरदान माँगा? उसने कहा, “तुम फिर से सोच लो, कहीं यह वरदान माँगकर तुम्हें पछताना न पड़े।”

कोराबैबू ने सोचा, “यह वरदान मिल जाने पर दूर-दूर तक कोई शिकारी मुझसे ज्यादा शिकार नहीं पकड़ पाएगा। शायद इसीलिए सब्जपरी मुझे यह वरदान देना नहीं चाहती। वह चाहती है कि मैं कोई छोटा-मोटा वरदान माँगूँ। पर मैं भी इसके अलावा कोई और वरदान नहीं माँगूँगा।”

“नहीं-नहीं, मुझे तो यही वरदान चहिए।” कोराबैबू ने जिद ठानकर कहा।

इस पर सब्जपरी ने एक निगाह कोराबैबू पर डाली। फिर उसने दुखी मन से कहा, “अच्छा, तो ठीक है, यही सही। तुम जो चाहते हो, वही होगा।” कहकर सब्जपरी गायब हो गई।

इस पर कोराबैबू खुशी-खुशी घर की ओर चल दिया।

“जंगल के जानवरों ने मुझे कितना तंग किया है। कोई मेरी पकड़ में आता ही नहीं था। पर देखूँ, अब वे मुझे कैसे तंग कर पाते हैं!” कहकर कोराबैबू ने घने जंगल में चारों तरफ निगाह घुमाई।

इतने में कोराबैबू को दूर बरगद के विशाल पेड़ के नीचे घास चरता एक हिरन दिखाई दिया। पर जैसे ही कोराबैबू ने निगाहें उस पर गड़ाईं, वह हिरन उसी समय एकाएक गिर पड़ा, जैसे किसी ने उसके प्राण खींच लिए हों। और गिरते ही वह मर गया।

कोराबैबू ने पास जाकर हिरन को उठाया और मजे में उसे कंधे पर लादकर आगे चल पड़ा।

अभी वह कुछ ही आगे गया था, इतने में एक चील आसमान से झपटटा मारती हुई नीचे उतरी। वह उस हिरन को खाना चाहती थी। पर कोराबैबू ने गुस्से से चील की ओर देखा। देखते ही देखते चील भी जमीन पर गिर गई और उसके प्राण निकल गए।

*

अब तो कोराबाबू और भी घमंड से भर गया। उसे लगा, “अरे वाह, मैं भी कितना महान हूँ। अब तो बड़े-बड़े शक्तिशाली जानवर भी मेरे आगे पानी भरेंगे।”

रास्ते में जो भी जानवर दिखाई देता, कोराबैबू उसकी ओर एकटक देखता और देखते ही देखते उसके प्राण निकल जाते।

“ठीक है, कल आकर इन मरे हुए जानवरों को उठा लूँगा। आखिर जल्दी किस बात की है।” सोचकर अपनी किस्मत पर खुश होता हुआ कोराबैबू आगे चल दिया।

रास्ते में उसे दिखाई पड़ा कि उसका दोस्त बींगा एक घोड़े पर सवार होकर उसी ओर रहा है। उसे देखकर कोराबैबू को बड़ी खुशी हुई। बींगा भी खुश होकर बोला, “कैसे हो भाई? बड़े दिनों बाद दिखाई दिए।”

“मैं अच्छा हूँ बींगा। जंगल से हिरन को मारकर ला रहा हूँ। शाम को मेरे घर आना। बड़ी जोरदार दावत होगी।” कहते-कहते कोराबैबू की निगाह बींगा के स्वस्थ और तगड़े घोड़े पर पड़ी।

“अरे, तम्हारा यह घोड़ा तो बड़ा तगड़ा और अच्छा है।” कोराबैबू के कहते ही घोड़ा फौरन जमीन पर गिर गया और तड़पकर मर गया।

बींगा यह देखकर एकदम हक्का-बक्का रह गया। “जरूर कोराबैबू की वजह से यह हुआ है।” उसने सोचा, “इसकी वजह से ही मेरा इतना अच्छा और स्वस्थ घोड़ा मर गया। पर मैं क्या कहूँ...कैसे कहूँ?”

इतने में कोराबैबू को बाँसुरी बजाता हुआ एक चरवाहा दिखाई दिया, जो उसी ओर आ रहा था। उसकी भेड़ें पीछे-पीछे चलती आ रही थीं।

“अरे, कितनी सुंदर बाँसुरी बजाता है यह बाँसुरी वाला। लगता है, ये भेड़ें भी इसके संगीत का पूरा आनंद ले रही हैं।” कोराबैबू अपनी बात अभी चरवाहे से कह ही रहा था, पर तभी देखते ही देखते सभी भेड़ें एक साथ जमीन पर गिर पड़ीं।

अब तो गाँव में सभी लोग कहने लगे कि कोराबैबू पर किसी अजीब भूत का साया है। उसी के कारण जिन जानवरों पर उसकी निगाह पड़ती है, वे जमीन पर गिरकर छटपटाने लगते हैं और उनके प्राण निकल जाते हैं।

आखिर लोगों ने कोराबैबू को गाँव से निकाल दिया। दुखी और परेशान होकर वह जंगल की ओर चल दिया।

पर जंगल में वह जिधर भी देखता, उधर मरे हुए जानवरों का झुंड दिखाई देता। उसकी एक नजर पड़ते ही जंगल के बाघ, हिरन, भालू, मोर, चिड़ियाँ सभी दम तोड़ देते।

*

एक बार की बात, उस दिन खूब खुशनुमा मौसम था। जंगल के सभी जानवर नदी किनारे घूमने और पिकनिक मनाने आए थे। सभी एक साथ नाच और गा रहे थे और आनंद मना रहे थे।

तभी कोराबैबू घमता हुआ वहाँ पहुँचा। जानवरों को खुश देखकर उसकी उदासी कुछ कम हुई। मन ही मन बोला, “अरे वाह, यहाँ तो कितना अच्छा लग रहा है। ऐसा आनंददायक दृश्य और जंगल के जनवरों की अनोखी पिकनिक तो मैंने कभी देखी ही नहीं। सचमुच यह कितनी खुशी की बात है, बड़ी ही खुशी की बात...!”

कहकर कोराबैबू ने चारों ओर निगाह घुमाई। और देखते ही देखते वहाँ जितने भी जानवर थे, छटपटाते हुए जमीन पर गिरे और देखते ही देखते सबके प्राण निकल गए।

देखकर कोराबैबू का हृदय चीत्कार कर उठा। उसने अपने आप से पूछा, “हाय-हाय, यह क्या हो रहा है। यह कितने दुख की बात है कि मेरे कारण इन सबकी जान चली गई।”

“ओह, मैंने यह कैसा वरदान माँगा सब्जपरी से, जिससे जंगल में हरियाली और खुशी की बजाय दुख की चीख-पुकार मच गई।” कोराबैबू ने दुखभरे निश्वास के साथ कहा।

दुखी होकर कोराबैबू पास वाले कोलराई पहाड़ की ओर चल दिया। पहाड़ पर सब ओर पेड़-पौधों और वनस्पतियों की सुंदर हरियाली देखकर उसका मन खुश हो गया। पर उसकी यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई।

थोड़ा आगे जाते ही उसे हिरनों का एक झुंड दिखाई दिया। उनमें हिरनों के नन्हे छौने भी थे। वे सब दौड़ते-भागते और उछल-कूदते हुए मिलकर खेल रहे थे और मस्ती कर रहे थे। कोराबैबू मगन होकर उन्हें देखने लगा।

पर यह क्या! उसकी नजर पड़ते ही जहाँ अभी भागते-दौडते और किल्लोलें करते हिरन थे, वहाँ अब मरे हुए हिरनों का पहाड़ नजर आने लगा। यही नहीं, वहाँ आसपास जो चीतल, भालू और खरगोश थे, वे सब भी प्राणहीन हो गए। पहाड़ पर सब ओर बस मरे हुए जानवर नजर आते, चाहे वे चिड़ियाँ-तोते हों या जंगली जानवर। यहाँ तक कि जमीन पर रेंगने वाले कीड़े-मकोड़े भी दम तोड़ चुके थे।

कोराबैबू बहुत दुखी था। “हे भगवान, यह क्या हो गया? यह कैसी दुनिया है मेरे चारों ओर जिसमें कोई जानवर जिंदा नहीं बचा। यह कैसा वरदान माँग लिया मैंने...!”

उसने सोचा था कि यह वरदान माँगने से उसे ढेर सारे मरे हुए जानवर मिलेंगे। पर अब तो चारों ओर मरे हुए जानवरों के पहाड़ ही पहाड़ थे। भला इतने दुख में कौन दावत की सोच सकता था?

कोराबैबू को लगा कि सारी धरती उसे शाप दे रही है। लोग उसकी ओर उँगली उठाकर इशारा करते हुए कह रहे हैं, ‘वह रहा कोराबैबू, जिसने इस धरती को नरक बना दिया है।’

देखकर कोराबैबू का हृदय चीत्कार कर उठा। दुख के मारे वह वहीं बेहोश होकर गिर गया।

होश आया तो उसने बड़े करुण स्वर में सब्जपरी को पुकारा। उसी समय सब्ज परी वहाँ आई। वह बहुत दुखी और उदास थी। उसने गुस्से में आकर कहा, “बोलो कोराबैबू, क्या तुम्हें कोई और वरदान चाहिए? क्या तुम अब ऐसा वरदान चाहते हो कि तुम्हें देखते ही आदमी मरने लगें? क्या तुम्हें अपने पहले वरदान से तसल्ली नहीं हुई। इस प्यारी सृष्टि में धरती हो, नदियाँ या पहाड़, सब कुछ को तुमने नरक में बदल दिया। अब और क्या चाहते हो?” सब्जपरी का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था।

“माफ करो सब्जपरी, मुझसे बड़ी गलती हुई। मैंने तो सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचा था। ऐसा स्वार्थ जिससे यह धरती सचमुच नरक बन जाएगी। यह बात अब मेरी समझ में आई है।” कौराबैबू फफकने लगा।

“तो अब क्या चाहते हो?” सब्जपरी ने पूछा।

“बस, मैं एक ही बात चाहता हूँ कि आपने जो वरदान दिया था मुझे, उसे अब वापस ले लीजिए।” कोराबैबू दुखी होकर बोला।

“चलो, ठीक है, तुम्हें जल्दी ही अक्ल आ गई। इसके बदले तुम कोई दूसरा वरदान माँग सकते हो।” सब्जपरी ने शांत होकर कहा।

“नही सब्जपरी, अब मुझे कोई वरदान नहीं चाहिए। जो कुछ मैं अपने इन दो हाथों से हासिल कर पाऊँगा, उसी से मुझे संतोष है। उससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए।” कहते हुए कोराबैबू ने सब्जपरी को वचन दिया कि अब वह किसी जानवर को नहीं मारेगा। सबको प्यार बाँटेगा।

और सचमुच उस दिन के बाद कोराबैबू एकदम बदल गया। अगले दिन से ही उसने जगह-जगह पेड़ लगाने शुरू किए। जंगल के जानवरों ने देखा कि कोराबैबू ने अपना तीर-कमान छोड़ दिया है, तो वे बेखटके उसके पास आने लगे। कोकाबैबू उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरता और कहता, “अब हम दोस्त हैं।”

अब सभी लोग कोराबैबू को जानवरों का दोस्त तथा जंगल का दोस्त कहने लगे थे। तब से कई सदियाँ गुजर गईं, पर आज भी लोग उसे बड़े प्यार से याद करते हैं।

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