बेटी घलो संतान हे आखिर
बेटी घलो संतान हे आखिर।
उहू बिधि के बिधान हे आखिर।।
नइ उपजय कोनो भिंभोरा ले ।
कोखे ले सरी जहान हे आखिर।।
घर नइ जोड़य इन सिरिफ बिहा।
नारी म नता खदान हे आखिर।।
बेटे म जग चलही का बानी हे।
बेटियो के गुन जान हे आखिर।।
दाई बाई बहिन बेटी एक।
बइरी काबर संतान हे आखिर।।
बेटी लछमी जलधार सहीन ।
दू दिन के मेहमान हे आखिर।।
कौड़ी घलो जादा हे मोल बोल हाँस के
कौड़ी घलो जादा हे मोल बोल हाँस के।
एकलउता चारा हे मनखे के फाँस के।।
टोर देथे सीत घलो पथरा के गरब ला।
बइठ के बिहिनिया ले फूल उपर खाँस के।।
सबे जगा काम नइ आय, सस्तर अउ सास्तर।
बिगर हाँक फूँक बड़े काम होथे हाँस के।।
हाँसी बिन जिनगी के, सान नहीं मान नहीं।
पेड़ जइसे बिरथा न फूलय फरय बाँस के।।
दुनिया म एकेच ठन चिन्हा बेवहार हँ।
घुनहा धन तन अउ भरोसा नइहे साँस के।।
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पागा पहिराथे बाबूजी
धराके अंगरी बचपन ले, रेंगे ल सिखाथे बाबूजी।
सुख दुख ल जग जिनगानी के, कहिनी म सुनाथे बाबूजी ।।
जाड़ म कथरी बरखा छतरी, छाँव घाम म बन तन जाथे।
नहाके अपन पसीना म, हमला ओगराथे बाबूजी ।।
गलती म जब डाँट पियाथे, लगथे दुनिया रूठ गे का।
रतिहा ओढ़ा मया के कथरी, भर नींद सुलाथे बाबूजी।।
नइ बोलय धुँधरागे तसमा, बाँधे डाँड़ी के जगहा सुँत ।
धोती सीलत सुजी म कँदरे, अंगरी चुभाथे बाबूजी ।।
पहिन लेथन पनही ओकर फेर, पाँव के पार नइ पावन।
पाकत देख चुँदी मुड़ के, पागा पहिराथे बाबूजी।।
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अपन तैं सोंच
हमर का हे अपन तैं सोंच।
हमन ठुड़गा जतन तैं सोच।।
हम आँसू के बोहत धार।
खड़े करार जतन तैं सोंच।।
पी आँसू ल जर उग जाबो।
पागा तोर धरन तैं खोंच।।
हमर भाग हे भूख पियास ।
पानी हवा अगन तैं सोंच।।
खाथन कमा निचो पहीरन।
फेसन ठसन कफन तैं सोंच।।
ढेला माटी हमर संगी।
महल अटार अगन तैं साेंच।।
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सपड़ाथे ते दागी होथे
जाड़ के मजा तभे आथे जब तापे बर आगी होथे।
किस्सा म रंग तभे जमथे जब संग कोनो रागी होथे।।
मया सुमत म ढेला पखरा बँधके बाँध उलटथे धार।
जिँहा सुवारथ जाग जथे उँहचे संगी बागी होथे।।
जगहा पाके अंधियार म छँइहा हो जाथे बइमान।
संग रेंगत घलो कोनो भीतर लगइया आगी होथे।।
बाँटे भाई परोसी कहिथे होथे अपन अपन सुभाव।
मन मिले परोसी कतको जिनगी के सहभागी होथे।।
समझ समझ म होथे फेर हावय सीख देवइया कतको।
इँहा कोनो सिधवा नइ हे सपड़ाथे ते दागी होथे।।
उही मालामाल हे
खल ओढ़े खाल हे उही मालामाल हे।
खुले भंडारा हे भीतर कंगाल हे।।
हाथ म हे आरती नीयत चंडाल हे।
ओकरेच खोल हे जेमा सुरताल हे।।
कुकुर बर गंगा हे बाजु म पंडाल हे।
घोड़ा के दाना म गदहा हर लाल हे।।
सेठ के अलाली म चोरहा हमाल हे।
कीरा परे भाटा के चिक्कन गाल हे।।
घींव का काम के काला सबो दाल हे।
मरे बिहान जेघर कमइया अलाल हे।।
सेर के हलाली बर मुसुवा दलाल हे।
कोंदा के राज म अंधरा चौपाल हे।।
चमेली के तेल हे मुंड़ में न बाल हे।
सजोर के थपरा त निजोर के गाल हे।।
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चुँदी के पाकेच ले सियान नइ होवय
चुँदी के पाकेच ले सियान नइ होवय।
गुने बिना पढ़ेच ले गियान नइ होवय।।
कतकोन खोज करव बनालव कानहून।
धरम ले बड़े कोनो बिग्यान नइ होवय।।
इमान से कमइया ल गरीबे देखेन।
दू नंबर बिन कोनो धनवान नइ होवय।।
दम नइहे दुनिया म मनखे ल टोरे के।
जब तक अपन कोनो हँ बिरान नइ होवय।।
पानी पी छान के जानके बना गुरू ।
भगवा ओढ़ेच ले भगवान नइ होवय।।
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दुनिया म जम्मो पूरा ककरो
अपन रद्दा खुदे बनाथे खोजे मिलय नहीं किताब।
मया पीरा म हीरा पीरा के होवय नहीं हिसाब।।
नानुक जिनगी ल झगरा करके झन कर खुवार अइसे।
मया करे बर कभू समे दुबारा मिलय नही जनाब।।
लहुट नइ सकबे आके सुरता दूर गजब ले जाथे।
काकर संग गोठियाबे अकेल्ला मिलय नही जवाब।।
मया सींचे म मया पनपथे काम दगा हँ नइ आवय।
काँटा हे तभो बंबरी म कभू फूलय नही गुलाब।।
जतका हे ततके के खुसी म मजा हे जिनगानी के ।
जग म जम्मो कभू पूरा ककरो होवय नही खुवाब।।
कमाल होगे राजा
परजा के नारी ल छूवत मत्था ल ताड़ गे।
कमाल होगे राजा तोर हत्था हँ माड़ गे।।
पाँच साल के बिसरे आज घरोघर घुसरथस।
कमाल होगे राजा तोर नत्ता हँ बाड़ गे।।
अकाल म कोठी खुले बाढ़ म धोए बंगला।
कमाल होगे राजा तोर छत्ता हँ बाड़ गे।।
परजा के पिरा गे मुँहू फारे मँहगई ले।
कमाल होगे राजा तोर भत्ता हँ बाड़ गे।।
कुकुर खाय बिदेसी चारा परजा बर पैरा।
कमाल होगे राजा तोर सत्ता हँ बाड़ गे।।
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तैं धार कहाँ देखे हस
मन झनकार के तैं तार कहाँ देखे हस।
मन मतवार के तैं धार कहाँ देखे हस।।
झूके नजर नइ मिलय ते कम झन समझबे ।
नैन कटार के तैं धार कहाँ देखे हस।।
झन मचल जादा सादा रूप म संभल जा ।
सोला सिंगार के तैं धार कहाँ देखे हस।।
मुँह ले नइ बोले के मायने चुप नइए।
मया पियार के तैं धार कहाँ देखे हस।।
कोइली रोवाय उड़ा कउँवा ल रहन दे।
आस असार के तैं धार कहाँ देखे हस।।
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देख के तोला मैं जी लेहू
काल के मुड़ म बइठ जी लेहूँ।
संग देबे सरी आँसू पी लेहूँ ।।
मैंह तो उमरे घुमरत बादर ।
बरस फटे छाती ल सी लेहूँ ।।
तोर मया हे अथाह समुंदर ।
मन के डोंगी म नापी लेहूँँ।।
साँस हवा पानी ल छोड़ा दे।
मया दिया म दे सुध घी लेहूँँ।।
तैं कहिबे रे झन देख मोला।
मन म बसा फोर आँखी लेहूँ ।।
का होही तैं झन देख मोला ।
देख के तोला मैं जी लेहू ।।
जीये के बहाना मिलथे
हाँसे के ठिकाना मिलथे
जीये के बहाना मिलथे।।
रोये म दुख नइ बोहावय
बाढ़े के खजाना मिलथे।।
अपन अपन होथे नजरिया
मन होके सुहाना मिलथे।।
भटके ले मन के हो उदास
पीरा अउ पुराना मिलथे।।
आँखी ले झाँके जब मया
बोले के बहाना मिलथे।।
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