नितिन मेनारिया
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कहानी .................. बाल कथा - चमकादड़ .............................
मेरी कृति कवि की राह के प्रकाशन के पश्चात मेरे चचेरे भाई ने प्रशंसा करते हुए मुझे चमकादड़ की कुछ तस्वीरें भेजी और कहा कि आपकी कवि की राह में शायद ये कुछ काम आ सके। तब मुझे लगा कि वास्तव में ये विषय बड़ा रोचक है और इस विषय पर मुझे कुछ लिखना चाहिऐ। मेरे भीतरात्मा से आवाज आई और मुझे अहसास हुआ तभी कहानी लिखने का मन जाग्रत हुआ। इस चमकादड़ कहानी को लिखने का मार्ग प्रषस्त हुआ और मुझे पहली कहानी का विषय प्राप्त हुआ।
वेसे तो आपने कई कहानीयाँ अब तक पढ़ी होगी और सुनी भी होगी। हो सकता है इस नामकरण से और कोई कहानी साहित्य भण्डार में मौजूद हो उसके लिए मैं पाठको का क्षमापार्थी हूँ। कहानी पुरी तरह काल्पनिक है यदि इसमें कथानक, कोई संवाद एवं किसी बात का भूलवष जिक्र हो गया हो तो उसे अन्यथा ना ले इसका उद्देष्य किसी को कतई नाराज करना नहीं है और ना ही इसे किसी ओर सन्दर्भ से जोड़ा जाये।
कहानी:-
एक नगर जिसका नाम नवरंग था। नगर बहुत सुन्दर एवं प्राकृतिक रूप से बसा हुआ था। नगर के चारों और घने जंगल और पर्वतमालाऐं थीं। वहाँ के राजकुमार अंश थे। राजकुमार की आयु 12 वर्ष थी। राजकुमार का मन कई बार पुराने किले और बड़े पर्वतों पर घूमने का होता रहता था लेकिन पिता की आज्ञा ही सर्वोपरी थी। पिता की सहमती बिना राजकुमार राजमहल से बाहर नहीं जाते थे। एक दिन राजकुमार के पिता कुछ दिनों की यात्रा पर चले गये। इन दिनों राजकुमार पिता के यात्रा पर साथ ना ले जाने से नाराज थे। राजकुमार ने महल से बाहर घूमने की योजना बनाई।
राजकुमार अगले दिन अपने दो सिपाहियों के साथ घुड़सवारी करते हुए पुराने किले को देखने गये। पुराने किले के नजदीक पहूँचने पर सिपाही ने राजकुमार से अनुरोध किया की राजकुमार आप इस किले में प्रवेष मत कीजिए। राजकुमार ने अपने सिपाही को आज्ञा दी कि हम राजा के पुत्र है एक यौद्वा है और यहाँ कैसा डर। हम इस किले के भीतर जायेगें तुम्हे डर लगता है तो बाहर ही हमारी प्रतिक्षा कीजिए।
राजकुमार धीरे-धीरे किले में प्रवेष कर गये। सिपाही बड़े वफादार थे वह भी राजकुमार की सेवा हेतु साथ चलते गये। अचानक राजकुमार ने किले के अन्दर एक पुरानी गुफा देखी। राजकुमार उस गुफा की ओर बढ़े ही थे कि उसमें से कई चमकादड़ बाहर की ओर उड़ते हुए निकले। राजकुमार डर गये लेकिन वह गुफा को देखना चाहते थे। राजकुमार ने साहस किया ओर वो गुफा के अन्दर प्रवेष कर गये।
राजकुमार की नजर अचानक चमकादड़ के एक छोटे बच्चे पर टिक गई ओर उन्होने देखा की वह चमकादड़ का बच्चा उड़ने में असमर्थ था लेकिन फिर भी उसने प्रयास किया ओर अपने को बचाने के लिए उसने उड़ान भरी और वह गुफा के अन्दर एक लोहे की झाल से टकरा गया था और वहीं गिर पड़ा था। राजकुमार का बाल मन समझ गया था कि हम अपने में कई भ्रान्तीयों को पालते है, ये चमकादड़ हमें नहीं डराते है और स्वयं डरते है। राजकुमार ने बचपन में अपनी दादी से चमकादड़ के बारे में सुन रखा था की ये अन्धेरी जगह पर रहते है और उल्टे लटकर सोते है। राजकुमार बड़े खुश हुए कि आज दादी की कहानी का चमकादड़ देखने को मिला। राजकुमार ने अपने नन्हे हाथों से उस चमकादड़ को उठाया तथा अपने सिपाही को उसकी चोट पर मरहम लगाने के लिए मरहम मंगवाया और स्वयं ने उस नन्हे चकमादड़ को मरहम लगाया तथा उसको अपने साथ महल ले गये। राजकुमार ने कहा जब यह ठीक हो जायेगा तब पुनः इसे हम यहाँ छोड देगें। राजा को जब इस बात का पता चला तो राजकुमार के इस साहस और बहादूरी के लिए उनकी प्रशंसा की।
षिक्षा:- हमें पक्षीयों से डरना नहीं चाहिए और उनकी जान बचानी चाहिए। हम जितना पक्षीयों से डरते है वह भी हमसे उतना ही डरते है अतः हमें उनसे प्रेम करना चाहिए।