विकल्प की स्वतंत्रता Nitin Menaria द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

विकल्प की स्वतंत्रता

नितिन मेनारिया

E-Mail : nitinmenaria2010@gmail.com

विकल्प की स्वतंत्रता

विकल्प एक ऐसा शब्द है कि व्यक्ति अपने जीवन के जंजाल में जकड़ा हो तो विकल्प की राह देखता है और यदि वह स्वतंत्र है तो भी उसे हरदम एक विकल्प की आवश्यकता रहती है। बचपन से लेकर वृद्ध व्यक्ति के सामने सम्पूर्ण जीवन में कई विकल्प विद्यमान रहते है।

कई बार मन में यह ख्याल आया कि कोई लेख लिखा जाये लेकिन समय के अभाव में और किसी सही शीर्षक की खोज में ही वक्त गुजरता गया। जब कोई विकल्प नहीं मिला तब मुझे ज्ञात हुआ कि विकल्प ही मेरे लिए एक ऐसा शीर्षक है जिस पर लिखा जा सकता है। दोस्तों यह लेख एक सही राह दिखाने वाला साबित हो ऐसा मेरा विचार है। फिर भी लेख पढ़ने उपरान्त आपको कोई शिकायत हो तो अवगत जरूर कराये। मैं किसी को भी नाराज कतई नहीं करना चाहता हूँ पर भूलवश कोई बात आपके जीवन पर लागू हो जाये तो एक पाठक की तरह उस लेख को देखे और जहाँ स्वंय को सुधारने की आवश्यकता हो तो सुधारे तथा आसपास के वातावरण में बदलाव की आवश्यकता महसूस हो तो सामूहिक तौर पर प्रयास प्रारम्भ करें।

विकल्प एक ऐसा शब्द है कि व्यक्ति अपने जीवन के जंजाल में जकड़ा हो तो विकल्प की राह देखता है और यदि वह स्वतंत्र है तो भी उसे हरदम एक विकल्प की आवश्यकता रहती है। बचपन से लेकर वृद्ध व्यक्ति के सामने सम्पूर्ण जीवन में कई विकल्प विद्यमान रहते है। जीवन के हर दौर में दैनिक कार्यों से लेकर अपने स्वयं के निर्णय में भी आपका अधिकांश वक्त विकल्प के चुनाव में बीत जाता हैं। आप हर समय अधिक विकल्प मिलने से चिन्तित तो कभी कम विकल्प मिलने पर बेचैन हो जाते हैं।

यहाँ तक तो बात फिर भी ठीक है कि आप सही विकल्प चुनेगें तो आपको सफलता निश्चित प्राप्त होगी। आपके द्वारा विकल्प का चयन गलत हुआ तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन आत्मसंतोष रहता हैं कि आपके द्वारा ही विकल्प चुना गया और आपको विकल्प चयन में स्वतंत्रता थी। कभी-कभी किसी की जिन्दगी में ऐसा दौर भी आ जाता हैं कि विकल्प तो उसके सामने कई सारे लाकर खड़े कर दिये जाते हैं लेकिन उसे विकल्प चयन की स्वतंत्रता नहीं होती हैं। उस पर किसी भी विकल्प को लाद दिया जाता हैं और वह कुछ भी नहीं कर पाता। घर, दफतर, समाज, देश के कई जगह पर जब हमें विकल्प की स्वतंत्रता नहीं मिलती तो लगता है कि हमारा जीवन निरर्थक बन गया हैं। हमारे सामने वही विकल्प रखे जाते हैं जिसमे हम उलझ कर रह जाये, आगे कदापि ना बढ़ पाये। विकल्प देने वाले वही विकल्प सम्मिलित करते है जिसके द्वारा उनको फायदा पहुँचे या उनका वजूद बरकरार रहे।

जिन्दगी में यदि विकल्प कभी नहीं हाते तो जिन्दगी मे केवल एक ही लक्ष्य रह जाता कि बढ़ते रहो और हर मुसीबतों का सामना करते रहो। लेकिन आज विकल्प ने कई राह आसान कर दिये हैं। आज हम हर मुसीबतों में किसी न किसी विकल्प की तलाष करते है कि कंही से हमें कोई सहायता या मदद प्राप्त हो जाये। लेकिन बहुतो को कोई मदद या सहायता नहीं मिलती और किसी व्यक्ति को कोई मदद मिले तो उसमें कई शर्तो का उल्लेख होता है।

नन्हा बालक जब भूख से व्याकुल रहता है तो उसे माता दूध पिलाती है लेकिन आज बाजारवाद ने एक नन्हे बालके के पोषण के लिए कई तत्व बाजार में उपलब्ध करा दिये है और उस नन्हे बालक को भी नहीं पता कि उसकी माँ उसके पौष्टिक दूध के विकल्प के रूप में अन्य कृत्रिम दूध पिला रही है। वह विकल्प का चयन नहीं कर सकता। उसे विकल्प चयन की स्वतंत्रता नहीं है। विकल्प थोप कर उसकी सेहत को नुकसान पहुँचाने वाली माँ को अपने स्वास्थय की चिंता है उसके पास समय नहीं है क्लब जाना है तो बच्चे को आया, नौकरानी के पास छोड़ कर डिब्बा बंद दूध पिलाने का आदेश देकर घर से निकल जाती है।

आप बच्चों को बाजार में घुमाने ले जाते है और बच्चों को खिलौने, कपड़े इत्यादी दिलाते है और बच्चे से उसकी राय लेते है या बच्चे से उसकी पसंद पूछते है और उसकी पसंद की वस्तुएँ दिलाते हैं तब उसके पास विकल्प की स्वतंत्रता है लेकिन जब बच्चा किसी पसंद की वस्तु को लेना चाहे तो अभिभावक कभी-कभी उसकी पसंद की वस्तु दिलाने में असमर्थ रह जाते है। कोई आर्थिक कारण हो सकता है या वस्तु की गुणवत्ता भी हो सकती है। बच्चा यदि समझदार है या माता-पिता की आज्ञा ही सर्वोपरी है और वह दब्बू किस्म का है अथवा माता-पिता का डर मस्तिष्क में हमेशा रहता है तो वह उसे सहज स्वीकार कर लेता हैं। लेकिन उसके विकल्प चयन की स्वतंत्रता का यहाँ हनन हो जाता है। दूसरी ओर कोई जिद्दी प्रकार का बालक है तो वह माता-पिता से अपनी बात मनवाकर ही रहता है और अभिभावक को भी उसकी बात माननी पड़ती है। यदि आप बच्चों को उसकी पंसद की वस्तुएँ दिलाने में असमर्थ रहते है तो आपको उसके समक्ष इतने सारे विकल्प उपलब्ध नहीं कराने चाहिए और अपनी पसदं की वस्तुएँ सीधे उसे घर पर दे देनी चाहिए। समाज में और परिवार में कई बार ऐसा होता है।

अबोध बालक के शिक्षा चयन में भी माता-पिता अपने स्टेटस को देखते हुए शिक्षा का चयन करते है बालक की शिक्षा हेतु भाषा माध्यम, विद्यालय, दोस्त भी अमीरी-गरीबी देखकर किये जाते है और वो अबोध बालक अपने उस वातावरण में रहकर एक अलग समाज में ढ़ल जाता है और समाज के दो वर्ग बन जाते है अमीर और गरीब और उनके बीच कई दूरिया हो जाती है कोइ समानता नहीं। गरीब बालकों में हुनर है लेकिन उसके पिछड़ने का कारण यह अमीर समाज प्रमुख होता हैं।

समाज में रहकर बालक जब धीरे-धीरे विकसित हो जाता हैं उसकी शिक्षा और उसके अनुभव से बहुत कुछ ज्ञात करने के बावजूद उसे छोटा समझा जाता है और घर-परिवार में उसे सम्मान नहीं दिया जाता तथा उस पर हर निर्णय थोपा जाने लगे तो भी उसके विकल्प की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है उसका विकास अवरूद्ध हो जाता है यदि उसके स्वच्छंद विचारों को समझकर कोई निर्णय लिया जावे तो निष्चित ही बालक का अधिकतम विकास होना सम्भव हो सकता है। आज की पीढ़ी अधिकतर परिक्व होने लगी है लेकिन आज उस पीढ़ी को अपनी पुरानी पीढ़ी से तालमेल बनाने में आसानी नहीं हो रही। इसके लिए नवीन पीढ़ी को पुरानी बातों और विचारधारा की गूढ़ता को देखकर कुछ सीखने का प्रयास भी करना चाहिए। हर पीढ़ी का अपना जीवन चक्र रहता है। हर पीढ़ी में बहुत ज्ञान का भण्डार होता है। अतः बालकों को चाहिए कि वह अपने परिवार समाज का आदर करें उसने कुछ सीखें। साथ ही पुरानी पीढ़ी के समूह को आने वाली पीढ़ी से भी कुछ नया सिखना चाहिए ताकि इस पीढ़ी के ज्ञान से कंही पिछड़ा हुआ महसूस ना करे। जिससे दो पीढ़ी का पीढ़ी अन्तराल कम हो सके। विकल्प की स्वतंत्रता की बात जब युवा वर्ग पर लागू होती है तो वही बात हमारे बुजुर्ग वर्ग पर भी लागू हो जाती है। परिवार में वृद्ध वर्ग को भी पर्याप्त विकल्प और सही विकल्प प्राप्त नहीं होता। उनके पुत्र उन्हे नौकरों के भरोसे छोड़ जीवन का आनन्द लेने में ही व्यस्त रहते है जबकि सही आनन्द उस परिवार के मध्य ही उपलब्ध हो सकता हैं। जब सभी सदस्यों को मनोवांछित विकल्प मिलते रहे तो परिवार का वातावरण सुखद एवं समृद्ध रहेगा।

उपरोक्त लेख में विकल्प की स्वतंत्रता के बारे में और भी उदाहरणों द्वारा उसे गहराई से समझा जा सकता हैं। आप अपने आस-पास के वातावरण को देखें अपने परिवार-समाज को देखें और उनमें व्याप्त समस्याओं का निराकरण करें। धीरे-धीरे समाज में विकल्प की स्वतंत्रता स्वतः दिखने लगेगी। समाज को आधुनिकता में ढाले लेकिन पौराणिक परम्पराओं की ज्ञान की बातों को भी नजरअंदाज ना करें। व्यक्ति जीवन पर्यन्त सीखता है और उसे हमेषा सीखना चाहिए। फिर वो चाहे किसी भी उम्र का क्यों ना हो, विकल्प की स्वतंत्रा दें और प्राप्त करें अपने जीवन को हर रंग से सजाएँ।