उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

प्रिय साथियों 

स्नेहिल नमस्कार 

  कभी ऐसा होता है न कि कोई अचानक ही हमें बरसों बाद याद करे और हम हतप्रभ रह जाएं ! 

यह सोशल मीडिया जहाँ परेशानी देता है वहाँ प्रसन्नता भी देता ही है यानि वही बात हो गई न, एक सिक्के के दो पहलू !

 अचानक एक दिन रात को मैसेंजर पर एक मैसेज देखकर चौंक गई. पह्चान नहीं पा रही थी, किसी ने मुझसे नम्बर मांगा था. एक बार तो ऐसी फंसी थी कि एफबी अकाउंट ही हैक करवा लिया था, कई दिन बंद करना पद डा, सबको बोलना पड़ा कि किसी के मेरे नाम से कुछ माँगने पर बिलकुल भी न दे, मेरा किसी से लेना देना नहीं है । वह भी पहचान वाले ही थे । मैंने फ़ोन नं देकर अपनी ही मुसीबत बुला ली । फिर कहा, एक ओ टी पी आएगा, उसे स्वीकारना बहुत बड़ी भूल हुई । जैसे ही आया कि एक कुछ सेकण्ड का वीडियो बनाकर भेज दीजिए, तब दिमाग की बंद नसें खुली और समझ में आया कुछ तो गड़बड़ है लेकिन तब तक काम हो चुका था ।सब मैटर,फ़ोटोज़ गायब हो चुके थे जो कुछ स्नेहिल मित्रों ने ढूंढकर दिए लेकिन बहुत कम मिल पाए । 

 इसी घटना को याद करके अधिकतर एवायड करती हूँ। अब कोई बुरा माने तो माफ़ करजो !  

     खैर सीधी प्रोफ़ाइल पर गई, पहचान तो नहीं पाई लेकिन देखा कि दूसरा मैसेज आ चुका था, एफ़सी आई से मैडम ! नं दिया और प्रसन्नता हुई कि 2006 के बाद मुझे ढूंढ लिया गया । स्वाभाविक था, मेरे मित्र रमेश वर्मा जी वहाँ थे और बहुत बार वहाँ आमंत्रित की गई थी । अब इतने वर्षों बाद अचानक ----अगले दिन फ़ोन भी आ गया और मैं पन्ने पलटती पुरानी यादों में पहुँच गई । 

पूरे भारत से खाद्य निगम के कर्मचारियों का तीन दिन का कार्यक्रम था। व्यख्यान के लिए आमंत्रण था। अच्छा लगना स्वाभाविक था, अधिक अच्छा इसलिए कि अब वहाँ कोई भी पुराने स्टाफ़ से नहीं था। 2006 के बाद अब मुझे खोजकर आमंत्रित किया गया था।

स्वास्थ्य की थोड़ी सी परेशानी के कारण अब अकेले नहीं जाती। कोई आमंत्रित करता है तो कह देती हूँ, ले जाएंगे तो आ जाऊंगी। यही यहाँ पर भी कह दिया कि भई, अगर कोई लेने आ जाएगा तब आ सकूँगी । अकेले जाने के चक्कर में मैंने बहुत जगह जाना लगभग बंद ही कर दिया है । लेकिन सबका स्नेह है जो लेने-छोड़ने आ जाते हैं । 

  24 ता.. को कार्यक्रम था और हाँ करने के बाद सब कई बार फ़ोन करते रहे । लगातार टच में रहे । समय पर लेने आ गए, वहाँ भी सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा,पूरे भारत से खाद्य निगम के कर्मचारी पधारे हुए थे । मित्र श्री रमेश वर्मा कबसे अवकाश प्राप्त है और जिसने मुझे तलाश किया, वह अब दिल्ली में है । 

  युवा वर्ग से मिलकर हम स्वयं को ऊर्जावान महसूस करने लगते हैं, लगता है ज़िंदा हैं और ये जो रूँगे के दिन मिले हैं, वे किसी प्रकार उपयोगी हो सकते हैं । 

  मैंने एक कोशिश की कि मेरी स्मृति सबके मन में बनी रहे । मेरे 75वें जन्मदिवस पर पर्यावरण की अच्छा न्दस रचनाओं की जो पुस्तक,'डैफ़ोडिल ! तेरे झरने से पहले 'के शीर्षक से प्रकाशित हुई थी, उसकी काफ़ी प्रतियाँ मेरे पास थीं उस दिन मैंने बात करके उन्हें 100 से अधिक पुस्तकें भेज दीं । मुझे खुशी है कि पूरे भारत से पहुंचे कर्मचारियों मैं स्मृति चिन्ह भेज सकी । 

   अहमदाबाद के पुस्तकालय के लिए 'और प्रिय राशि के लिए 'GAVAKSH ' उपन्यास भेंट स्वरूप भिजवा सकी।

  इस प्रकार के आयोजन बहुत आनन्ददायी होते हैं। पुरानी स्मृतियाँ द्वार खोल झाँकने लगती हैं।

बहुत शुक्रिया  FCI अहमदाबाद । स्नेहिल धन्यवाद प्रिय राशी, पुष्पलता जी, आशीष व सभी को स्नेह ! 

इस दिन का लिंक मुझे भेज दिया गया था लेकिन मैं फ़ोटोज़ नहीं निकाल पाई। फिर मुझे स्मृति स्वरूप फ़ोटोज़ भी भेज दिए गए।

   नया और पुराना जब इस प्रकार मिलते हैं तब सब एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते हैं और वह ज़िंदगी में कहीं न कहीं काम आता है।

आप क्या सोचते हैं मित्रों?

 

सस्नेह 

आपकी मित्र

डा. प्रणव भारती