स्वयंवधू - 32 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 32

विनाशकारी जन्मदिन अंतिम भाग

"अक! उनका ख्याल रखना।", वह शर्मा कर कमरे से बाहर भाग गयी,
उसने अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया।
"यह क्या था?", (और मेरा दिल? यह इतनी तेजी से क्यों धड़कना चाहता है?) वह भ्रमित और परेशान महसूस कर रही थी। असमंजस में उसने आईने की ओर देखा। तभी उसे एहसास हुआ कि उसने हूडी पहन रखी थी, जो बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी उसने पहले कवच के लिए खरीदी थी। यह कवच के लिए छोटा था और उसके लिए बड़ा था। वह पूरी तरह से कवच के खून से लथपथ थी और उसके माथे और गाल पर उसके होठों के खून के निशान थे। लाल होकर, उसने स्नान किया।
अपने आरामदायक कपड़े पहनकर और सारे निशान छुपाकर वह कवच के कमरे में गई। आर्य और शिवम दोनों कुर्सी और सोफे पर झपकी ले रहे थे। उसने उनके कंधों पर हल्के से थपथपाया और फुसफुसाकर कहा कि वे थोड़ा आराम कर लें। अचानक इतनी ऊर्जा के संपर्क में आने से वे थके हुए और निढाल हो गए थे। दूसरी ओर कवच को बहुत असहनीय दर्द का सामना कर रहा था। दर्द बढ़ना स्वाभाविक था, लेकिन एक दशक से अधिक समय तक लगातार उस कोड़े से मारने के कारण उसका घाव लगभग असाध्य हो गया था। इसके लिए उसे गहन देखभाल और ऊर्जा की आवश्यकता है, उनकी आत्माएं एक दूसरे के साथ घुलने-मिलने में सक्षम होनी चाहिए। उसने अपनी उंगलियाँ उसके सिर पर इस तरह फेरीं मानो वह उसे आश्वस्त कर रही हो कि वह अकेला नहीं है।
"हाँ बस ठीक है, मैं जानती हूँ और मानती हूँ कि तुम परम शक्ति हो, मैं महाशक्ति और वृषा कवच! अब तो अपना मुँह बँद करो! तुम्हारा धन्यवाद अब मेरे सिर से निकलो!", उसने चिल्लाया और हार मानकर उसने इधर-उधर देखा और उसे एक डायरी मिली जिसे वह कई बार देखने से चूक गई थी। यह एक डेयरी थी, (बाप-बेटे दोनों की आदत एक जैसी है।)
इसका शीर्षक था: खुशी के दिन!
मुस्कुरा कर उसने डेयरी खोली। यह छुटकू वृषा की डेयरी थी जिसने अभी-अभी लिखना शुरू किया था। यह उसके बच्चपन के सबसे सुखद क्षणों से भरा हुआ था। शिवम और राज से पहली बार मुलाकात होना, राज को शरारती होने के लिए डाँटा जाना, मातृ दिवस पर माताओं के लिए फूल चुनना, तितली उनके माथे पर बैठ जाने पर हफ्तों तक डरे रहना। (बहुत प्यारा) अपनी दादी के साथ पार्क भ्रमण, स्कूल अभिभावक शिक्षक बैठक दादी के साथ, होमवर्क ना करने के कारण डाँटा जाना। आस्था आयुर्वेदिक भंडार में छुट्टियाँ बिताना। दादी द्वारा सोने से पहले की कहानियाँ सुनना। उसे विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ पसंद थीं। भारी मन से उसने उन सभी प्रविष्टियों को पढ़ा जो उसने पाँच वर्ष की आयु तक लिखी थीं। अंतिम प्रविष्टि थी, "मम्मी ने आज मुझसे बास्तब (वास्तव) में बात की! उन्होंने मुझे अमम्मा को देने के लिए जुस (जूस) दिया। उन्होंने इसे कैंडी की तरह मीठा बनाने के लिए इसमें और टूटी मीठी (पिसी चीनी) भी मिला दी। अमम्मा ने रोते हुए इसे पी लिया। फिर उन्होंने मुझे बहुत सी बाते बताई और मुझे सिर्फ अपनी नियती पर भरोसा करते को कहा। पर ये नियती क्या चीज़ है? कल मैं उनसे पूछूँगा।", थोड़े आँसू और मिटी हुई पेंसिल के निशान के बाद लिखा था, "मम्मी ने कहा मैंने अमम्मा को मार दिया। मेरे हैप्पी ड्रिंक ने उन्हें मार दिया। मुझे डर लग रहा है, मैं मिठाई नहीं खाऊँगा दादी! कृपया वापस आ जाओ! कृपया वापस आ जाओ! मैं फिर कभी मिठाई नहीं छूऊँगा! भगवान जी प्लीज़ मुझे मेरी अमम्मा से मिला दीजिए! प्लीज़...", लगता है वह रोते हुए सो गए थे। पन्ने कटे-फटे, भीगकर सूख चुके थे। इस डायरी में पृष्ठ पर लिखे गए पश्चाताप से कहीं अधिक पश्चाताप देखा होगा।
"यही कारण है कि वे मिठाई से इतनी नफरत करते हैं? और यहाँ मैं उसे अपने अंधेरे अतीत को खाने के लिए मज़बूर कर रही थी। आप क्या हो वृषा?",
उसने खोज की लेकिन कोई अन्य डेयरियां नहीं मिलीं। लेकिन उसे कुछ और दिलचस्प चीज़ मिली, एक एल्बम।
यह बेबी वृषा की बहुत सारी तस्वीरें थीं जब तक वह पाँच साल का नहीं हो गया, फिर उसका अस्तित्व... उसका अस्तित्व बस फीका पड़ गया। केवल कुछ... कुछ तस्वीरें किसी कार्यक्रम में भाग लेने और लोगों से मिलने की थीं। पन्नों को पलटते हुए उसने लाल घेरे वाले कुछ लोगों को देखा। उसने उनकी तस्वीरें खींचीं। तभी कवच दर्द से करहा कर उठा। सब छोड़ वो हाथ पोंछते हुए उसके पास भागी।
"ऐसे मत उठिए।", उसने उसे संभालते हुए उठाया,
"प-पानी", उसने करहाकर पूछा,
"अभी लाई।", उसने पहले से तैयार रखी पानी को उसे पिलाया।
"हाह! धन्यवाद।", उसने पूरे गिलास पानी को एक घूंट में गटक कर कहा,
"दर्द दे रहा होगा ना? आराम से लेट जाइए।", उसने उसे पेट के बल सोने में मदद की।
उन्होंने पूछा, "क्या यह वायरल हो गया?",
"नहीं! इस खबर का एक भी धीमा झोंका नहीं है। क्या यह योजनाबद्ध है?", आखिरकार उसका दिमाग काम कर गया,
"तुम्हारे साथ क्या हुआ था?", उसने पूछा। उसकी आवाज़ में अभी भी दर्द था कि जब उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब वह उसके साथ नहीं था।
"यह किसी और दिन की बात है। बस अच्छी नींद लें और अच्छी तरह से स्वस्थ हो जाएँ।", उसने जम्हाई लेते हुए कहा,
उसने उसके बालों को धीरे से सहलाया, "बच्चे, बस जाओ और सो जाओ। आगे बहुत हंगामे है।",
उसने उसका हाथ पकड़ और सिर हिलाकर मना कर कुर्सी पर उसके बगल में सो गई और बुदबुदाने लगी, "आप महत्वपूर्ण हो।"
(समीर की खबर भी नहीं आई। वे क्या साजिश कर रहे थे? मम्मा-डैडा सुरक्षित हैं। जीवन जी ने मुझे आश्वासन दिया लेकिन...)

अगले दिन वे छह बजे जल्दी उठ गये।
दोंनो में लंबी और गहन चर्चा हुई,
"भागना या खात्मा?", कवच ने पूछा,
"खात्मा। कल मैंने जो नर्क देखा... अब और नहीं!", वह उसे काँपते हाथों से दस्तावेज़ सौंप रही थी, "आप अकेले नहीं हैं। अब हम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मैं सब कुछ जानती हूँ लेकिन फिर भी मैं इसका उपयोग नहीं कर सकती।",
"उसने अपनी चाल चल दी। उसने तुम्हें अपना निर्दयी पक्ष दिखाया और तुम्हारे परिवार का एक वीडियो दिखाया होगा जिसमें उसे लगातार मौत से भी बदतर स्थिति में बेख़बर जी रहे थे। तुम्हें बस उससे सहमत होना पड़ा और उसके अनुसार चलना पड़ा। क्या यह खतरनाक था?", उसने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा,
"खतरनाक भयानक, भयाक्रांत, अब मेरा अंतर्मन ही जाने। छोटे बच्चों के सामने लोगों की हत्या करना, महिलाओं के साथ उनके पतियों और परिवार के सामने बलात्कार करना और फिर उनके सामने ही उनकी पतियों की बेरहमी से हत्या करना। एसिड हमले, मानव तस्करी, मादक पदार्थों, सोने, हीरे, हथियारे और पता नहीं क्या-क्या की तस्करी, यह सब डरावना से ज़्यादा खौफनाक था। ये उन सभी की सच्चाई थी। वहाँ आप भी थे। वही भीड़ कि हिस्सा, पर किसी दूसरे तरफ से।", वह डर से काँप रही थी,
"इसीलिए हमें यह करना होगा। यदि यह योजना सफल हो गई तो कोई भी पीड़ित नहीं रहेगा।", उसने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की।
पर वो और खुद को रोक नहीं पा रही थी।
"नहीं, नहीं, नहीं, नहीं। मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैंने जो कुछ भी आपको सहते हुए देखा है, उसके बाद यह सीधे आत्महत्या है। मैं यह जोखिम नहीं उठा सकती, भले ही मेरा परिवार खतरे में हो, मैं जानती हूँ कि आप कर सकते है और उन्हें बचा सकते हो, इसलिए कृपया मुझे ऐसा करने के लिए मज़बूर मत करिए। मैं हाथ जोड़ती हूँ।", वो हाथ जोड़कर उसके सामने रोने लगी।
उसे ऐसे देख उसने उसे अपने पास बिठाया और आँसू पोंछते हुए पुचकारा, "हमें यह कदम कैसे भी उठाना ही है तो क्यों ना अब करे जब हम उससे एक कदम आगे है? यही सही समय है। अगर तुम उसका भरोसा जीत लोगी तो तुम यहाँ से अधिक सुरक्षित रहोगी। तुम्हारी सुरक्षा मेरी पहली प्राथमिकता है।",
"आपकी सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। दाईमा ने मुझे आपकी ज़िम्मेदारी दी है, मैं उनका अनादर कैसे कर सकती हूँ?", वह उसे मनाने की पूरी कोशिश कर रही थी, "मैं अपने लिए आपकी आहुति नहीं दे सकती।", आँखों से आँसू बहते हुए उसने कहा,
"वृषाली बच्चे, यह सिर्फ हमारे बारे में नहीं है। तुम्हारे परिवार वाले, रेड्डीज, खुराना, सरयू सभी खतरे में है। अगर मैं अभी कार्रवाई नहीं करूँगा तो और भी लोग पीड़ित होंगे, जैसे तुम्हें कल देखने के लिए मज़बूर होना पड़ा। यह अधिकतम लोगों की वास्तविकता होगी और वह पहले से ही विदेशों में भी जड़े फैला रहा हैं। चिंता मत करो। हम मन ही मन बात कर सकते हैं जैसे हमने कल किया था। और सबसे महत्वपूर्ण बात, अगर तुम सुरक्षित रहोगी तो मैं भी सुरक्षित रहूँगा।", उसने उसके हाथ में पहने अंगूठी के रत्न को चूमते हुए कहा,
उसने सहमति में सिर हिलाया और आखिरी बार उसके गर्म, आश्वस्त हाथों में बहुत देर तक रोई। वे नहीं जानते कि भविष्य में उनका क्या होगा, लेकिन वे एक साथ काम करने के लिए तैयार थे। पहली बार उसे कसकर गले लगाते समय उसकी आँखों से केवल एक बूँद बह निकली।
(मैं तुम्हें इस अपराध के खेल में घसीटने के लिए क्षमा चाहता हूँ।) वह दोषी लग रहा था
(नहीं, मेरे अधीन शक्ति को दंडित करना मेरा कर्तव्य है। हम एक ही नाव पर हैं।) उसने उसकी बांह कसकर पकड़ी और अपना चेहरा उसके पट्टी बँधे शरीर में छिपा लिया। उसने उसे ऐसे सुरक्षित रखा जैसे वह उसकी एकमात्र निधि थी।


-यह उनके दुखद जन्मदिन का अंत और उनके दुखद सीमित जीवन की शुरुआत थी-