दर्द दिलों के - 12 Anki द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दर्द दिलों के - 12

तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है और उधर  आरवी और अरनव इन सबसे अंजान है ----

आरवी के घर की 🔔 bell बजती है 

शांता शर्मा घर का दरवाजा खोलती है - जी आप लोग यहां । 

भाभी जी नमस्ते अब आप हमें दरवाज़े पर ही रखेंगी अंदर आने को नहीं कहेंगी । धनंजय मुस्करा कर घर के अंदर चला जाता है।

राम राम मास्टर जी ।

शाम , धनंजय को इस तरह अपने घर में देख कर सकपका  जाता है ।

राम राम जी आप और हमारे घर । 

क्या करे मास्टर जी आना पड़ता है जब विधि बुलाती है तो आना पड़ता है ये कहकर धनंजय बैठ जाता है और कहता है अरे ! मास्टर जी बैठिए आप का ही घर है । 

मम्मा कौन है? आरवी जैसे बाहर आती है शेर सिंह को देख कर हैरान हो जाती है । 

आरवी जाओ अंदर जाओ  आरवी की मां उसे अंदर जाने को कह ही रही होती है तभी धनंजय सिंह कहता है अरे भाभी जी रहने दीजिए । इसी के लिए तो हम आए है । 

मैं कुछ समझा नहीं  ! ये आप क्या कह रहे है ?

अरे मास्टर जी देखिए हम आपकी आरवी का हाथ अपने बेटे अरनव के लिए मांगते है । अब आपकी बेटी हमारी बहु । 

नहीं ऐसा नहीं हो सकता आरवी चीख कर कहती है । पापा इन्हें बोलिए हमारे घर से अभी चले जाए । मम्मा मुझे शादी नहीं करनी उससे । 

ओए लड़की तुझे इतनी तमीज भी नहीं है जब बड़े बात कर रहे होते है तो बीच में नहीं बोलते। शेर सिंह गुस्से  में आरवी की ओर आगे बढ़ता है ।

शांत शेर बेटा शांत हो जाओ । धनंजय शेर सिंह को रोक कर आरवी के पिता से कहता है - मास्टर जी मैं  आपको सीधे सीधे कह देता हु । आपके पास दो option है पहला या तो चुप चाप शादी करवा दीजिए या हम जबरस्ती करवा देंगे । 

देखिए आप ये गलत कर रहे है । आरवी हमारे घर की बेटी है कोई समान  नहीं है कि किसी को भी उठा के दे देंगे । अच्छा होगा आप घर से निकल जाए । वरना हम पुलिस को बुलाएं।

शांत मास्टर जी शांत। देखिए हम बड़े प्यार से समझा। रहे है कि चुपचाप शादी के लिए हां बोल दीजिए वरना कन्यादान करने के लिए परिवार  में से कोई नहीं बचेगा। हमारे घर की होने वाली बहु तुम डिसाइड करो क्या चाहिए परिवार या अपनी खुशी । और हां रही पुलिस को बताने की बात तो अपने  होने वाले समधियों के लिए हम बुला देते है और हां पुलिस आ ही रही है तो अम्मा जी की missing रिपोर्ट लिखवा देना शायद पहुंची नहीं है घर ।

ये सुनकर आरवी चीखते हुए कहती है - कहां है दादी ।

होने वाली बहु तुम्हारी दादी ठीक है और चाहती हो वो ठीक रहे तो जैसा कह रहे है वैसा करो समझी। और मास्टर जी तीन दिन में आपकी बेटी की शादी है । फिक्र मत कीजिए शादी का सारा खर्चा हमारा बस अपनी बेटी का कन्यादान करना है आपको बस ।

इतना कह कर वो लोग चले जाते है और आरवी के घर में जैसे मातम छा जाता है। 

आरवी अपनी मां के गले लगकर रो रही होती है तभी उसके पिता बोलते है आरवी तू यहां से चले जा बेटा । 

पापा में आप लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी ।

आरवी तेरे पापा सही कह रहे है अपनी जिंदगी बर्बाद मत कर हमारे लिए हम लोगों ने जितना जीना था उतना जी लिए है लेकिन तू बेटा तेरी तो जिंदगी अभी शुरू भी नहीं हुई । बेटा चली जा ।

पापा नहीं मैं कहीं नहीं जाऊंगी ये लोग कुछ भी कर सकते है अगर आपको कुछ हो गया तो वैसे भी मैं जी नहीं पाऊंगी । 

आरवी अपने आंसू पौंछ कर कहती है अगर मेरी किस्मत में यही लिखा है तो यही सही । 






क्या होगा आगे देखने के लिए बने रहिए मेरे साथ ।