डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 80 Saloni Agarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 80

अब आगे,

दिनेश की बात में आखिरी शब्द सुनकर उसके दोनों साथी नौ दो ग्यारह हो गए और साथ में दिनेश के कहने पर कुछ गाड़िया वहां आ गई फिर दिनेश के डूबी साथियों के कहने पर सिंघानिया विला के गार्ड्स ने मैन गेट खोल दिया..! 

और उन सात लोगों को सिंघानिया विला में अंदर आने दिया और अंदर आने के बाद उन सब लोगों की अच्छे से तलाशी ली जाने लगी और जब राजवीर के गार्ड्स को लगा कि उन लोगों के पास कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो राजवीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं..!

तो उन गार्ड्स ने उन साथ लोगो को वहां से जाने की अनुमति दे दी और फिर वो लोग आगे बढ़ने लगे पर उनके साथ अब राजवीर के कुछ बॉडीगार्ड्स भी उनके पीछे पीछे चलने लगे और अब कुछ देर बाद वो लोग दिनेश के सामने पहुंच गए..! 

पहले तो दिनेश ने उन लोगों को देखा जिनमें से तीन तो लगभग 50 से 55 की उम्र के लग रहे थे उन लोगों ने कुर्ता और पजामा पहन रखा था और दो लोगो ने जो दिखने में लगभग 70 वर्ष के लग रहे थे..!

उन्होंने कुर्ता और धोती और सिर पर पगड़ी पहनी हुई थी और दो जो दिखने में जवान लग रहे थे पर दोनों की उम्र समान नहीं थी एक की उम्र करीब 15 से 18 साल होगी और दूसरे की उम्र करीब 20 से 24 साल के बीच में होगी उन्होंने कमीज और पेंट पहनी हुई थी..! 

अब उन सात लोगों को दिनेश ने एक बड़ी सी कार में बिठाकर उनको राजवीर के सिंघानिया विला लेकर जाने लगा वो दरअसल बात ये है कि सिंघानिया विला के मैन गेट से अंदर आने के बाद भी वहां से सिंघानिया विला में अंदर जाने के कार से जाना पड़ता था..!

क्योंकि उन दोनों के बीच में भी काफी हद तक रास्ता दिया हुआ था जो कार के द्वारा ही पूरा किया जा सकता था और जब वो सातों लोग उस कार में बैठे हुए थे तो सबकी नजर राजवीर के सिंघानिया विला के आस पास सलीके से लगे हुए रंग बिरंगे फूलों जा टिकी थी..!

क्यूंकि राजवीर के सिंघानिया विला में हर तरह के फूल और पौधे सलीके और बहुत ही सुन्दर तरीके से लगाए गए थे कि जो कोई भी उनको एक बार देखता तो उनकी खूबसूरती में ही खो सा जाता था..!

और अब जब उन सात लोग जिस कार में बैठे थे वो एक बड़े से वाटर फाउंडेन से होकर गुजर गई और वो सात लोग उसको देखते ही रह गए क्यूंकि वो अकेला ही राजवीर के सिंघानिया विला की खूबसूरती को बढ़ावा दे सकता था..!

और जब दिनेश ने उन सात लोगों के चेहरे के भाव को देखा तो उसके चेहरे पर एक घमंड की मुस्कान आ गई थी और क्यों न आए दिनेश हमारे राजवीर का खास आदमी जो था और सिंघानिया विला में बनी हुई हर एक चीज राजवीर के अनुसार ही बनाई गई थी..!

करीब 15 मिनट बाद,

वो सात लोग और दिनेश के साथ राजवीर का एक बॉडीगार्ड्स अब सिंघानिया विला के सामने पहुंच चुके थे और वहां एक बहुत बड़ा लकड़ी पर पॉलिश करके बनाया हुआ दरवाजा लगा हुआ था जिसमे बहुत ही खूबसूरती से नकाशी करी हुई थी..!

अब दिनेश ने उन लोगों से बड़ी बेरुखी से कहा, "तुम सब अब मेरे पीछे पीछे आओ और हां किसी भी चीज को हाथ लगाने की कोशिश भी मत करना क्यूंकि उस चीज की भी इस सिंघानिया विला में अहमियत है सिवाए तुम्हारे..!" 

दिनेश की बात सुनकर अब वो लोग एक दूसरे का चेहरा देखने लगे और साथ में एक लड़के का दिखने में करीब 20 से 24 साल के बीच में होगा उसने गुस्से में दिनेश से कहा, "तुमने हमें समझ क्या रखा है और एक बात कान खोलकर सुनलो कि हमे भी तुम्हारे उस बॉस ने ही यहां अपनी सिंघानिया विला में बुलाया है और वो तो पागल कुत्ते की तरह हमारी जमीन के पीछे पड़ गया है वरना हमें कोई भी शौक नहीं है तुम्हारे उस बॉस के सिंघानिया विला में आने की..!" 

उस लड़के की बात सुनकर अब सुनकर दिनेश का गुस्सा बढ़ गया और उसने अपनी लोडेड गन को बाहर निकल लिया और उस लड़के की कनपटी पर रखते हुए अपने गुस्से से उसको देखते हुए कहा, "अपना ये गुस्सा न कही और जाकर दिखाना नहीं तो तुझे और तेरे इस भाई को हम ऐसे गायब कर सकते है कि तेरे इस बूढ़े बाप को तेरे अंतिम संस्कार के लिए तेरी लाश तो क्या एक भी टुकड़ा भी नसीब नहीं होगा..!" 

दिनेश की बात सुनकर और उसका गुस्सा देखकर ही वहां खड़े उसकी उम्र से भी बड़े आदमी भी थर थर कांप रहे थे क्यूंकि उसके हाथ में लोडेड गन थी और जो दिनेश ने उस लड़के की कनपटी पर तान रखी थी...!

और अब उस लड़के के पिता जिनकी उम्र लगभग 50 से 55 वर्ष होगी वो आगे आ गए और उन्होंने दिनेश के पैरो को पकड़ लिया और अब गिड़गिड़ाते हुए उससे कहा, "मेरे बेटे को छोड़ दो, उसको माफ करदो और वो अभी नादान है, प्लीज मेरे बेटे को छोड़ दो..!" 

अपने पिता को ऐसे दिनेश के पैरो में देखकर उनके बेटे ने अपने पिता से कहा, "बापू सा, आप ऐसे किसी के भी पैरो में कैसे गिर सकते हो जबकि इसका वो बॉस हमारे जमीन के..!" 

वो लड़का आगे बोल पाता उससे पहले ही उसके पिता अब उठ खड़े हुए और उस लड़के पर डाट फटकार लगाते हुए कहने लगे, "चुपकर जा तू और अब तेरे मुंह से एक शब्द भी निकल गया न तो मुझसे बुरा कोई न होवेगा..!" 

और अब उस लड़के के पिता ने दिनेश से कहा, "माफ करदो इसको वो क्या है न अभी जवान खून से तो जल्दी उबाल मार जाता है और मैं इसके वास्ते आपसे माफी मांगता हु..!" 

उस लड़के के पिता का पूरा नाम "गोपाल चौधरी" था जिनकी उम्र लगभग 55 वर्ष थी और राजवीर को गोपाल जी की हाइवे पर बनी जमीन चाहिए थी और जिसकी बात करने के लिए ही गोपाल जी को अपने सिंघानिया विला में बुलाया था..! 

मगर उनके छोटे बेटे जिसका पूरा नाम "राघव चौधरी" था जिसकी उम्र करीब 17 साल थी ये थोड़ा शांत और समझदार लड़का था लेकिन उसको डर था कही उसके पिता को अकेले बुलाकर राजवीर उनके साथ कुछ गलत न करदे बस इसी डर की वजह से वो खुद अपने बड़े भाई जिसका पूरा नाम "राहुल चौधरी" था और उसकी उम्र 23 वर्ष थी और ये बहुत गुस्से वाला था..!

उसके साथ राजवीर से मिलने आ गया था मगर गोपाल जी को पता था कि उनके बड़े बेटे का गुस्सा बढ़ा हुआ रहता है और ऐसे में कही उसने राजवीर को गुस्सा दिला दिया तो उनको अपने बुढ़ापे के सहारे और अपनी संतानों को खोना पड़ सकता है..!

और इसी वजह से गोपाल जी अपने साथ अपने गांव के सरपंच जी, मुखिया जी और प्रधान जी को ले आए थे और उनके साथ उनकी उम्र का एक आदमी और साथ आ गया था..!

और गोपाल जी की बात सुनकर अब दिनेश ने राहुल को छोड़ दिया मगर गोपाल जी से कहा, "तुम्हारी उम्र का लिहाज कर रहा हु नहीं तो मेरा बस चलता न तो तुम्हारे इस बेटे को अभी के अभी मौत के घाट उतार देता..!" 

अपनी बात कहकर, अब दिनेश आगे बढ़ गया वही अब राहुल फिर से दिनेश को कुछ कहने ही वाला था कि राघव ने उसके हाथ को पकड़ लिया और उससे कहा, "भाई सा ऐसा कोई काम न करना जिससे हमारा इस विला और उस राजवीर के चंगुल से बाहर निकल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाए..!" 

राघव की बात सुनकर, अब राहुल ने गुस्से में उससे अपना हाथ छुड़वाते हुए उससे कहा, "छोड़ मेरा हाथ और मैं कोई बच्चा नहीं हु जो तू मेरा हाथ पकड रहा है और रही बात उस राजवीर के कुत्ते (दिनेश) की तो एक मिनट दे मुझे उसको तो उसकी औकात अभी दिखाकर आता हु..!" 

राहुल की बात सुनकर अब प्रधान जी ने गोपाल जी पर गुस्सा करते हुए कहा, "रे गोपाल, अपने इस छोरे नू समझा ले और मुझे इतनी जल्दी मरने का शौक कोनी है, वो भी उस शैतान (राजवीर) के हाथों से कि उसके बाद मेरे घर वालों को आखरी बार देखने के लिए मेरी लाश भी नसीब न होवे..!" 

प्रधान जी की बात सुनकर, अब सरपंच जी भी बोल पड़े और उन्होंने गोपाल जी से गुस्से से कहा, "देख गोपाल, मैं तो जो बोलूं मुंह पर ही बोलूं कि मैं तो यहां तेरे अच्छे व्यवहार की वजह से आया हु नहीं तो मुझे तेरा ये बड़ा छोरा फूटी आंख न सुहावे और पता नहीं थारी लुगाई ने क्या खाकर पैदा करो थो कि इसका गुस्सा हमेशा नाक पर ही चढ़ा रहता है और हम सब (मुखिया जी, प्रधान जी) पागल कोनी जो तेरे वास्ते उसके (राजवीर) हाथों से मर जावेंगे, समझ रहा है न तू, मैं क्या कहना चाह रहा हूं..!" 

राहुल की बात सुनकर, अबतक राघव को भी गुस्सा आ चुका था क्योंकि उसका बड़ा भाई उसकी बात समझने को तैयार ही नहीं था और इसलिए ही अब राघव ने राहुल से कहा, "अपना ये गुस्सा आप काबू में रखना कब सीखोगे और आप मेरी बात समझते क्यों नहीं ही कि ये हमारा गांव नहीं हैं जहां बापू सा की वजह से सब आपके गुस्से को नजरअंदाज कर देंगे और मेरी न सही कम से कम मां सा और भाभी सा का ही सोचकर अपने गुस्से पर काबू रख लो..!" 

राघव ने अपनी बात कहते कहते अब राहुल के सामने अपने हाथ जोड़ लिए और उससे कहा, "मैं आपके सामने हाथ जोड़ता हु कृपया करके सिर्फ और सिर्फ आज और अभी के लिए अपने गुस्से को काबू में करलो कि जिसकी वजह से हम सब इस मौत के मुंह से जिंदा और सही सलामत अपने घर लौट सके..!" 

राघव की बात सुनकर अब राहुल ने गुस्से में अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया तो अब गोपाल जी ने अपने बड़े बेटे से कहा, "सुन रे छोरे, मैं थारे से आज एक वादा चाहता हूं..!" 

अपने पिता की बात सुनकर, अब राहुल ने गोपाल जी से पूछा, "कैसा वादा बापू सा..?" 

राहुल की बात सुनकर, अब गोपाल जी ने अपने बड़े बेटे से कहा, "यही कि तू आज अपने इस गुस्से पर काबू रखेगा और वहां अंदर उस राजवीर के सामने कुछ नहीं बोलेगा क्यूंकि यहां मैं हु और मेरे साथ आए ये लोग (मुखिया जी, प्रधान जी, सरपंच जी) है और इन लोगों को बात करने और बात को संभालने का तेरे से ज्यादा अनुभव है..!" 

अपने पिता की बात सुनकर अब राहुल ने कुछ नहीं कहा तो सबको लगा कि आखिरकार राहुल, गोपाल जी की बात समझ ही गया और वही अब सबको दिनेश की चिल्लाने की आवाज सुनाई और वो, उन सबसे कहने लगा, "पैरो में मेंहदी लगी है क्या, जो तुम लोगों से इतनी सी दूरी भी पूरी नहीं हो रही है..!" 

दिनेश की बात सुनकर, अब राहुल कुछ बोलना तो चाहता था मगर उसके पिता के वादे की वजह से वो अब कुछ बोल नहीं पा रहा था और वही अब राहुल भी राघव और अपने पिता के साथ राजवीर के सिंघानिया विला में मौजूद उसके ही मीटिंग हॉल में पहुंच गया..! 

वही सरपंच जी ने मुखिया जी और प्रधान जी को पीछे कुछ दूरी पर ही रोक लिया तो मुखिया जी ने सरपंच जी से कहा, "अब तुम्हे क्या हो गया है चलो भी देरी हो गई तो पता चले कि वो इंसान (राजवीर) हमें इस बात पर भी कोई सजा न सुना दे..!" 

मुखिया जी की बात सुनकर, अब प्रधान जी डर गए और उन्होंने सरपंच जी से कहा, "हां, मुखिया जी सही कह रहे है, चलो चलो जल्दी से अंदर चलते हैं..!" 

अपनी बात कहकर अब प्रधान जी, मुखिया जी को साथ लेकर जाने लगे तो सरपंच जी ने फिर से उनके सामने आ गए और अब मुखिया जी कुछ बोलते उससे पहले ही सरपंच जी ने कहा, "अरे बवाली पूंछ मारी बात तो सुनलो पहले, फिर ही आगे चले जाना..!" 

सरपंच जी की बात सुनकर, अब मुखिया जी ने कहा, "तो अंदर चलकर ही बात करते हैं न यू बाहर खड़े होकर ही क्यों करनी से..!"

मुखिया जी की बात सुनकर अब सरपंच जी ने उनसे कहा, "सही में थारे में दिमाग नाम की चीज कोनी है..!" 

सरपंच जी की बात सुनकर अब मुखिया जी उनको घूरने लगे और प्रधान जी को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर सरपंच जी इतना घुमा फिराकर क्यों बोल रहे हैं तो अब प्रधान जी ने, सरपंच जी से पूछा, "अरे सरपंच जी, आप सीधा सीधा बात पर आओ न क्यों इतना घुमा फिराकर कर बोल रहे हो..!" 

प्रधान जी की बात सुनकर अब सरपंच जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और अब उन्होंने मुखिया जी को सुनाते हुए प्रधान जी से कहा, "चलो किसी के पास तो दिमाग से, नहीं तो मुझे तो लगा था कि आज का पूरा समय मुझे ऐसे ही समझाने में निकल जाएगा..!" 

सरपंच जी की बात सुनकर, अब मुखिया जी ने उनसे कहा, "अब मुझे सुनाकर खुशी मिल गई हो तो सीधा बात पर आओगे..!" 

मुखिया जी की बात सुनकर, अब सरपंच जी ने उनसे कहा, "हां हां क्यों नहीं तो अब तुम दोनों मेरी बातो को ध्यान से सुनो और बल्कि देखो भी कि उस राजवीर का ये घर (विला) कितना बड़ा और सुंदर है और इसमें कितनी महंगी महंगी चीजें रखी हुई है..!" 

सरपंच जी बोल ही रहे थे कि प्रधान जी बीच में बोल पड़े और उन्होंने कहा, "अरे सरपंच जी इतनी बड़ी जगह में तो दुबारा से पूरा एक गांव बस सकता है..!" 

प्रधान जी की बात सुनकर, अब सरपंच जी ने कहा, "वही तो मैं तुम्हे समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि..!" 

सरपंच जी आगे बोलने ही वाले थे थे प्रधान जी फिर से बीच में बोल पड़े और उन्होंने, सरपंच जी से कहा, "इसमें समझाने वाली बात क्या है और वही हमारी भी आंखे है तो खुद से ही देख सकते है कि ये राजवीर बहुत ही पैसेवाला आदमी हैं और आपको पता है मेरा एक आदमी बता रहा था कि इसके (राजवीर) ऐसा घर (विला) पूरे भारत के हर एक कोने मे मौजूद से..!" 

प्रशान जी की बात सुनकर ही सरपंच जी ने हैरान होते हुए, उनसे पूछा, "रे तू सच बोल रहा है क्या और तूने उस राजवीर के बारे मे पता कब करवाया था..!" 

सरपंच जी की बात सुनकर, अब मुखिया जी ने ऐसे ही बिना किसी भाव के बोल दिया, "उसमें पता करवाने वाली कौन सी बात है जब उस राजवीर के आदमी हमारे गांव में इतनी सारी गाड़ियों और बंदूकों के साथ आए थे तो उनको देखकर ही कोई भी बता सकता था कि उनका मालिक कितनी बड़ी तोप हो सकता है..!" 

To be Continued......❤️✍️

सरपंच जी, प्रधान जी को ऐसा भी क्या समझाने की कोशिश कर रहे है कि वो मीटिंग हॉल में भी जाने तक का इंतजार नहीं करना चाहते हैं और क्या सच में दिनेश अपने गुस्से में राहुल को मार देगा या फिर उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा हुआ है..?

हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।