स्वयंवधू - 29 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 29

विनाशकारी जन्मदिन भाग 2

उसे ज़बरदस्ती नीचे दबा दिया गया, उसका हर पल, हर हरकत आतंक से भरी थी, खुद को बचाने के लिए कड़ी लड़ाई लड़ने के बाद, वह लड़ाई हार गई और अपने आत्मसम्मान को अपने सामने टुकड़ों में एक नीच के हाथों कुचलने का इंतजार करने लगी। वह भाग्यशाली थी कि दो बार उसकी इज़्ज़त बच गई, लेकिन आज सारे चमत्कार उसके लिए कहीं से भी संभव नहीं दिख रहे थे। बँद कमरे में राज ने एक जंगली जानवर की तरह उसकी पवित्रता पर हमला किया, जिसने समीर से बदला लेने के लिए उसे हर शक्ति का खिलौना बनाने की कसम खाई थी।
यह हिस्सा हर कवच और शक्ति के रिश्ते के लिए मुश्किल है, जीवित रहने के लिए उन्हें एक दूसरे के अपने ऊर्जा स्तर का प्रबंधन करके चलना की आवश्यक हैं। यदि ऐसा नहीं होगा तो वे दोनों अधिक शक्ति या कम शक्ति के कारण मारे जाऐंगे। इसलिए उनकी शादी कच्चे उम्र में करा दी जाती थी। कुप्रथा, जिसे मैं चाहकर भी मिटा नहीं पाई। यदि कवच और महाशक्ति आज तीन बजे तक एक दूसरे को चिन्हित करने में असफल रहे या उन्होंने एक दूसरे को चिन्हित नहीं किया तो वे 'शक्तिशाली शक्ति' होने का अधिकार खो देंगे क्योंकि यह केवल पहला कदम है उनकी अपनी सुरक्षा करने का। अगर वे सफलतापूर्वक असफल रहे तो सज़ा के तौर पर वे, दूसरों के गुलाम की तरह अपना शेष जीवन बिताएंगे। कारण? महाराजाओं के समय पर, पूरे देश की सुरक्षा उन पर निर्भर थी और यदि वे इस प्रकार का सरल कार्य भी ठीक से पूर्ण नहीं कर सकते, तो उन्हें सबसे 'शक्तिशाली शक्ति' होने का कोई अधिकार नहीं है। उनके जैसे कमज़ोर और गैर-ज़िम्मेदार लोगों को चूसा जाता, या उन्हें जीवन भर दास बनाकर रखा जाएगा।

उसने उसका शक्ति लॉकेट पकड़ लिया।
वही लॉकेट जिसे स्वयंवधू के पहले चरण में मैंने धोखे से उसके कपड़ो के सेट में डाल दाया था और आज तक उसे छिपाए आ रही थी। इसमें महाशक्ति को करो या मरो जैसी स्थिति में सुरक्षित रखने की क्षमता है, लेकिन इसकी एक शर्त है, कि पहनने वाला इतना मजबूत होना चाहिए कि वह इसका न्यूनतम उपयोग कर सके। 
जैसे ही वह उन्हें गुलाम की बेड़ी से बाँधने से एक कदम दूर था, वह जम गया।
उसके हाथ, जो एक सेकंड के लिए रुक गए थे, उसके कंधे और गले को इतनी मज़बूती से पकड़ रहे थे कि वह ऑक्सीजन की कमी से लगभग नीली पड़ गई थी। वह हांफने लगी और साँस लेने के लिए संघर्ष करने लगी, उसने अपनी धुंधली दृष्टि से उसकी ओर देखा, वह उस क्षण में स्तब्ध सा था, उसने एक बार फिर उसे धकेलने कि कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसने खुद को मुक्त करने की कोशिश की, उसने अपने आप पर वापस काबू पा गया और फिर से उस पर स्वामित्व हासिल कर लिया। उसने उसे इतनी बुरी लड़की होने के लिए उसके चेहरे पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा और गालो काटा।
जब उसके हाथ फिर से उसके श्रोणि क्षेत्र के चारों ओर घूमने लगे, उसने बचने की आखिरी उम्मीद भी खो दी। उसने अपनी आँखें बँद कर लीं और अपने इष्ट देव से आखिरी उम्मीद के रूप में प्रार्थना करने लगी और अपने माता-पिता को याद करने लगी, तभी उसने काँच के दरवाज़े के टुकड़े-टुकड़े होने कि तेज़ आवाज़ सुनी। वह रुका, उसने मदद के लिए चिल्लाने कि कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नहीं। शीशे को कुचलता हुआ उसकी बहन का मंगेतर अंदर आया और अपने बड़े भाई को एक तरफ फेंक दिया। उसने गुस्से में उसे लात मारी, "तुम क्या कर रहे थे? उसे मारना चाहते थे!",
जब वह अपने भाई से झगड़ रहा था और वृषाली अपने लगभग नग्न शरीर को बंधे हुए हाथ और पैरों से छिपाने की कोशिश कर रही थी, *क्रंच क्रंच* उन्होंने उसकी ओर काँच को कुचलते आते हुए उन्मत्त कदमों की आवाज़ सुनी। वह उसका कवच था वह पसीने और भय से लथपथ था, जैसे ही वह पहुँचा, उसने अपनी पहनी हुई शर्ट उस पर फेंक दी।
जब बंधन खोलने के लिए उसे छूने कि कोशिश की गई तो उसने उसके हाथ को झटक दिया। पहले तो वह हैरान रह गया, फिर उसने देखा कि वह खुद को बचाने के लिए एक कोने में जा रही थी। उसके सभी अंग बंधे होने के कारण वह स्थिर नहीं थी। उसकी आँखें राज पर टिकी थीं। शिवम ने राज को वहाँ से बाहर फेंक दिया। वह बेंच से गिर गई और कवच ने उसे सुरक्षित पकड़ लिया। अभी भी पत्ते की तरह काँप रही थी, उसे सुरक्षित महसूस कराने के लिए उसने शिवम को भी जिम से बाहर जाने को कहा।
उसने फिर से अपनी शर्ट उसकी ओर फेंकी और उसके शरीर को ढक दिया। उसके बगल में उससे दूर मुँह करके बैठ गया, "मेरा कोई बुरा इरादा नहीं है। मैं उस तरह का आदमी नहीं हूँ जो खुद को दूसरों पर मज़बूर करता फिरु। तुम और मैं, हम दोनों एक जैसे हैं, हम ना प्यार ना शादी दिलचस्पी रखते हैं। मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हें छूने नहीं जा रहा हूँ तो निश्चित रहो... लेकिन तुम्हें अपने बंधन तोड़ने की ज़रूरत है। खून अब भी बह रहा है। क्या मैं तुम्हारे बंधन खोल सकता हूँ?",
उसने जवाब का इंतज़ार किया पल बहुत देरी बाद भी उत्तर नहीं मिलने पर और रोने की आवाज़ ना आने पर, "वृषाली मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है। क्या मैं घूम सकता हूँ?", उसने चिंता से पूछा।
फिर भी बहुत देर तक जवाब ना आने पर, "अगर तुम मुझे जवाब नहीं दोगी तो मैं घूम रहा हूँ! मैं अभी घूम रहा हूँ।", बार-बार कह वह उसकी तरफ घूमा।
वो वहाँ पर असहाय बैठी बिना आवाज़ के रोए जा रही थी। उसे ऐसी हालत में देख उसने उसे अपने बाहों में ले लिया। वो भी बिना किसी संघर्ष के उससे लिपट गयी। कवच की आवाज़ रोनी सी हो गयी थी जिसे उसने संभाल लिया और कहा, "डरो मत बच्चे। मैं यहाँ हूँ। पहले तुम्हारे बंधन खोलने है और इन काँच को निकालना है। क्या मैं?",
उसने हाँ में सिर हिलाया।
"ठीक है। मैं तुम्हारे हाथ-पैर खोल रहा हूँ।", कह उसने उसके हाथ के बंधन को खोला, "अब पैर।", कह उसने पैरों के बंधन को खोला। उसे शर्ट से ढाककर, "तुम नाखून का इस्तेमाल कर सकती हो। इसे सहन करो। यह छोटा है, लेकिन अंदर गहराई में फंसा हुआ है। चाहो तो अपना सिर मेरी छाती पर टिका सकती हो।", उसने अपना आँसू भरा चेहरा उसकी शर्टलेस छाती पर टिका दिया। उन दोनों को राहत का एहसास हुआ। उसने ध्यान से उसके हाथों से एक-एक कर चार छोटे और पाँच बड़े मोटे काँच को गहराई से निकाला। जब कवच ने टूटे हुए काँच को बाहर खींचने की कोशिश की तो हर छोटी सी हरकत ने उसके हाथों पर अपनी पकड़ मज़बूत करती गयी। वह दर्द से चिल्ला रही थी, पर उसमे आवाज़ नहीं थी, केवल उसके हाथ दिखा रहे थे कि वह किस दर्द से जूझ रही थी। बढ़ते दर्द का साथ उसके नाखून उसके हाथों को खरोंचते हुए और गहरे गढ़ते गए। "हो गया।", उसने कोमलता से कहा। उसके बाद उसने अपने शक्ति का उपयोग कर उसके ज़ख्मो को भरना चाहा पर मैंने बस उसके काँच के चोटो को भरने दिया। कवच परेशान था। बार-बार कोशिश कर रहा था पर असफल। हार मानकर उसने उसे अपनी शर्ट पहनाई, पर मज़े की बात यह है कि वो पहनकर गया था कुर्ता पजामा, तो ये फॉर्मल में कैसे बदल गया? कैसे?!
•••••
खैर छोड़ो, आगे बढ़ते है। तो जैसे ही उसने उसे अपनी शर्ट पहनायी, उसे विषय राधिका को ले घर पहुँचा। वो उसकी अनुमति से उसे अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया। ले जाते समय उसने अंजलि, प्रांजली, तारिका, सक्षम और तनीश, वहाँ विषय के साथ थे, और उन्हें वही रुकने का इशारा किया। राधिका उनके साथ ऊपर गयी। वृषाली को उसके हवाले कर बक्सा अपनी जेब में रख नीचे विषय के पास गया।
सबको मुँह बँद रखने का इशारा कर कहा, "समझ गए?",
सबने हाँ में सिर हिलाया और विषय को छोड़ सबको ऊपर भिजवा दिए गए।
"कैसी है वो, सर?", विषय चिंता से आधा हो गया था,
कवच ने गहरी साँस लेकर कहा, "तुम्हारे कारण वो सूई के नोंक से बच गयी। तुम्हारी तीव्र सोचने की क्षमता ने हमारी मदद की, धन्यवाद।",
उसे राहत तो महसूस हुई लेकिन असंतुष्टि भी, "हमारा ड्राइवर भव्या मैम को उनके घर ले गया। उन्होंने यहाँ आने पर ज़ोर दिया, लेकिन आपके आदेशानुसार उन्हें उनके घर भेज दिया गया।",
"ओके! फिर से तुम्हारा धन्यवाद। वे सब ऊपर हैं, तुम भी उनके साथ आराम कर सकते हो, लेकिन इस घटना के बारे में किसीसे बात मत करना और आर्य को मेरा संदेश देना कि वह मुझसे बालकनी में मिले। और हाँ, तुम सरयू से एक जोड़ी कपड़े भी पूछ सकते हो।",
"नो, सर। इटस्-", विषय ने उसे टालने कि कोशिश की,
"व्यवसाय प्रतिनिधि को हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए, भले ही वे अंदर से मर रहे हों।", विषय को प्रबुद्ध किया,
"यस सर।", कह वो छत पर चला गया। वह आज हुई सभी घटनाओं से डर गया था। घबराहट की हालत में उसने कवच कॉल किया, वह काफी देर तक हकलाता रहा और अंततः बोलने में सक्षम हुआ। जल्दी में अपनी बाइक की चाबी लेते समय उसने कवच को सब कुछ समझाने कि कोशिश की, हालांकि उसके शब्द उसकी मदद नहीं कर रहे थे, लेकिन उससे कवच को सब कुछ समझ गया और उसे डॉक्टर राधिका को अपने साथ लाने के लिए कहा, और भव्या के लिए एक ड्राइवर बुक करने के लिए कहा, जिसे कवच को पिकअप करने जाना था। हवाई अड्डे के रास्ते से वह पहले ही वापस आ रहा था जब उसके लॉकेट से पता चला कि वह खतरे में थी, उसने अपना काम एक तरफ रख दिया। उसकी अन्तर्ज्ञानता उसे सीधे जिम ले गई, जहाँ उसकी तात्कालिकता को नज़रअंदाज कर दिया गया। उसने राज को मारने की अपनी इच्छा को दबा दबाकर वृषाली पर ध्यान केंद्रित किया।

बालकनी में
"लॉकेट कहाँ गया?", आर्य ने चौंककर पूछा,
"महाशक्ति के गले पर।", चिढ़कर, "इतनी सावधानी और प्रतिबंध के बाद भी! और राज उसे आज चिन्हित करने ही वाला था। सब अपने चाल चलते जा रहे है और मैं!", कवच खुद पर गुस्सा निकाल रहा था, "मैंने हमेशा उसे अपने साथ रखा फिर भी इतनी बड़ी चीज़ मिस कर गया। अगर उसे आज चिन्हित नहीं किया तो...",
"और तुम्हारा क्या? तुम्हें उसे चिन्हित करना होगा। तुम्हारे अलावा कोई ये नहीं कर सकता। अपने लिए उसके लिए।",
"पर बिना सच्चाई बताए...", उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? जिस स्थिति को वो पहले दिन से टाल रहा था, वो अब उसके चौखट में खड़ी थी।
"क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पास वक्त है?", आर्य ने पूछा, "करो या उसे भी दासत्व में अपने साथ ले जाओ।",

जब वह उसके साथ था, उसका फोन पागलों की तरह बजता रहा, लेकिन हर बार अनदेखा कर दिया गया, हर संदेश और कॉल अब मौजूद नहीं थे। संदेशों और कॉलों के ढेर में वह एक महत्वपूर्ण संदेश चूक गया, जिसे वह तब भी नजरअंदाज नहीं कर सकता था, जब वह मरने वाला हो, वह बाद में मर सकता है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह उसके मालिक का एक संदेश था, वह यहाँ आ रहा था। पूरी दुनिया का दुःस्वप्न, सबसे कठिन माफिया जिसके पैर देखने की हिम्मत भी कोई नहीं कर सकता। वह यहाँ आ रहा था और उसे इसकी कोई याद नहीं थी। वह अपनी नियति की आवाज़ वापस लाने मेंव्यस्त था जो अंततः कुछ घंटों के बाद वापस आ जाएगी।

कवच होते हुए भी इन सारी छोटी-मोटी गड़बड़ी में उसने हर किसी की जान खतरे में डाल दिया, खासकर उन लोगों की जो पूरी तरह से सामान्य थे अंजलि, तनिश जैसे लोग।