पिता का दुख Vikas rajput द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पिता का दुख

होली के दिन श्यामपट गांव के लोग इकट्ठे हो रहे थे लेकिन जोर से एक चीखने की आवाज आई। सभी लोग घबरा गए कि यह आवाज कहां से आई है। तब एक व्यक्ति ने उन लोगों को आकर बताया कि सेठ रामचरण ने फांसी खाकर आत्महत्या कर ली है। सभी लोग हैरान थे कि उन्होंने ऐसा क्यों किया और इसका क्या कारण था। उनके दो बेटे और दो बेटियां थी। थोड़ी ही देर में नंबरदार और गांव के सभी बुजुर्ग लोग इकट्ठे हो गए। सभी लोग उनकी मृत्यु पर विलाप कर रहे थे। उनकी पत्नी ने रोते हुए बताया कि उनकी मृत्यु का कारण उनके बच्चे है। वह बच्चों को कोस रही थी कि तुम्हारे कारण उनके पति इस दुनिया से चले गए हैं । उसने बताया कि उसके दोनों बेटे बहुत ज्यादा नशा करते थे। रामचरण जी ने इन्हें बहुत समझाया था लेकिन यह नहीं सुधरे अपने पिता की मौत करवा कर ही बैठे। वह कहती है कि एक गम तो था ही बेटों का ऊपर से उनकी बेटियां भी ऐसी निकली। उन दोनों ने उन लड़कों को पसंद किया हुआ था जो कोई काम नही करते थे अपने पिता पर निर्भर थे। उन्होंने अपनी बेटियों को भी समझाया था कि ऐसा वर चुनो जो तुम्हारे योग्य हो । जो तुम्हारी रक्षा कर सके। सुख-दुख में साथ निभाए। साथ में वे नशे भी करते थे। नशे पी पी कर वे ऐसे हो चुके थे जैसे एक पतली लकड़ी हो। इसी कारण से रामचरण जी ने आत्महत्या की है। लेकिन उनके बेटों का कहना था कि उनकी आत्महत्या का कारण वह नहीं बल्कि कुछ और है। उन्होंने बताया कि पिता जी ने बहुत से लोगों को पैसा देना था और उनके पास देने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने सारा पैसा मकान बनाने पर खर्च कर दिया था ताकि हमारी शादी अच्छे घर में हो सके। पिता जी ने हमें बहुत पढाया लेकिन हम उसके काबिल नहीं थे वह हमें एक अच्छा इंसान बनना चाहते थे और सरकारी नौकरी दिलवाना चाहते थे। उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई। ऊपर से हमारी बहनें चंडीगढ़ में पढ़ाई करती थी वहां पर बहुत पैसा खर्च होता था। पिता जी ने हमें कभी भी नहीं बताया कि यह पैसा कहां से आता है और कैसे आता है। हम जो भी मांग करते थे वह बस पूरी कर दिया करते थे। दोनों बेटियां एक दूसरे पर दोष लगने लग गई कि पिता जी ने आत्महत्या उसके कारण की है। वे पक्षचाताप करती हैं कि अगर वे प्रेम ना करती तो शायद उनके पिता इस दुनिया में होते। वे अपने आप को दोषी मानने लगती है और जोर-जाती रोने लग जाती है। रामचरण जी के बड़े बेटे ने बताया कि पिताजी बहुत से संस्थानों मे पैसे का दान किया करते थे। वह गरीबों का भला चाहते थे। उनका समाज संगठनों में भी योगदान था। आधे पैसे तो उनके वही बर्बाद हो जाया करते थे। तब गांव के बुजुर्गों ने कहा कि जो हुआ सो हुआ अब रामचरण जी दाह संस्कार कर दिया जाना चाहिए। शरीर को अधिक समय तक रखना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर पुलिस आ गई तो सारा इल्जाम उनके पुत्रों और बेटियों पर आएगा। इसलिए जल्दी से जल्दी इनका दाह संस्कार कर देना चाहिए। फिरदा संस्कार की प्रक्रिया शुरू की जाती है उनके घर के सभी सदस्य जोर-जोर से रोने लग जाते हैं। दाह संस्कार के बाद गांव में यह बात फैल जाती है कि उनकी मृत्यु का क्या कारण रहा। सभी लोग तरह-तरह की बातें बनाने लग जाते हैं। रामचरण में घर में मायूसी छाई हुई थी । कोई कुछ नहीं खा रहा था और पी रहा था कहते हमें भूख नहीं है। रामचरण जी की आत्महत्या गांव का एक विषय बन चुकी थी। उनकी पत्नी की हालत भी खराब होने लगी थी। रो-रोकर उनका बुरा हाल हो गया था। अचानक से एक व्यक्ति उनके घर पर आता है और कहता है कि वह मानवता भलाई संस्था का एक सदस्य है। वह कहता है कि मुझे रामचरण जी से मिलना है। उसे यह पता नहीं था कि रामचरण जी की मृत्यु हो चुकी है। उनके बड़े बेटे ने कहा कि वे अब इस दुनिया में नहीं है। वह व्यक्ति सुनकर हैरान हो गया और उसने कहा कि कल तो वह ठीक थे। उनके बेटे ने बताया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली है । उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ। उसे व्यक्ति ने कहा कि अब हमारी संस्था का क्या होगा वही तो हमारी संस्था को को चलाते थे। उसे व्यक्ति ने बताया कि रामचरण जी को बहुत से लोगों का कर्ज चुकाना था शायद उन्होंने इसी कारण आत्महत्या की होगी क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। उनके बेटे के पूछने पर उसे व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने कंपनियों के बहुत पैसे देने थे क्योंकि उन्होंने संस्था को फिर से तोड़कर बनवाया था। उन्होंने उन लोगों को भी पैसे देने थे जहां से बहुत से बच्चों का भोजन आता था। संस्था में बहुत अधिक बच्चे हो गए थे। उन सभी के कपड़े खरीदने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। तभी रामचरण जी की पत्नी बोलती है कि वे कई दिनों से बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी उन्होंने मुझे नहीं बताया ताकि मैं परेशान ना हूं । वह व्यक्ति तभी वहां से चला जाता है। कुछ दिनों के बाद वह लोग पैसे मांगने आ जाते हैं जिनके पैसे रामचरण जी ने देने थे। उन सभी व्यक्तियों ने अपने-अपने पैसे बता दिए कि हमने इतने इतने पैसे रामचरण जी से लेने हैं। उनके बेटे ने कहा हमें कुछ समय दीजिए हम आपका सारा पैसा चुका देंगे। वे लोग वहां से चले जाते हैं जाते हैं। तभी दोनों लड़के काम पर लग जाते हैं और नशा छोड़ देते हैं । बेटियां भी काम पर लग जाती है और सभी मिलकर पैसे इकट्ठे करने शुरू कर देते हैं । चारों बच्चों ने बहुत मेहनत की। एक-एक करके उन्होंने सभी के पैसे चुका दिए थे। वे उसे संस्था को भी चलाने लग गए थे और उनका कहना था कि हम अपने पिता कि इस संस्था को जीवन पर्यंत चलाते रहेंगे। चारों बच्चे अब सुधर चुके थे। एक दूसरे के लिए उनके मन में तड़प पैदा हो चुकी थी। अभी अब मिल जुल कर रहने लगे थे लड़ते नही थे। उनकी मां अपने बच्चों को सुधरता हुआ देख बड़ी खुश थी। चारों बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो चुके थे। रामचरण जी की पत्नी ने सोचा कि अब जय विवाह के योग्य हो गए हैं। उनका विवाह कर देना चाहिए। रामचरण जी की पत्नी ने अपनी अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों से उनके बेटों के लिए लड़कियां देखने के लिए कहा। कुछ ही दिनों में उनके घर में रिश्ते आने लग गए थे। रामचरण जी की पत्नी ने अपने बेटों के लिए लड़कियां पसंद कर ली थी। उनके बेटों ने कहा जो आपकी पसंद है वही हमारी पसंद होगी। आप हमारे लिए कुछ अच्छा ही चुनेगी। दोनों लड़कों के रिश्ते हो चुके थे। लड़कियों के रिश्ते करने अभी बाकी थे। रामचरण जी की पत्नी चाहती थी कि चारों बच्चों का विवाह एक साथ ही कर दिया जाए । समय काकुछ पता नहै है कब क्या हो जाए । कुछ दिन बाद उन्हें बेटियों के लिए रिश्ते आए । रामचरण जी की पत्नी और उनके दोनों बेटे लड़कों के घर को देखने गए। उनके घर बहुत अच्छे थे और वह कंपनियों में जॉब करते थे। रामचरण जी की पत्नी को लड़के पसंद आ गए थे । उन्होंने उनका वही रिश्ता पक्का कर दिया। चार मीना के बाद उनका विवाह तय कर दिया गया। सभी लोग विवाह के लिए बहुत खुश थे। जैसे-जैसे विवाह के दिन नजदीक आ रहे थे उनकी तैयारी बढ़ती जा रही थी। आखिर वह दिन आ ही गया जब उनकी शादी होनी थी। उनकी शादी पर सारे कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से किए गए। बेटियों की विदाईयों का समय आ चुका दोनों बेटियां रो रही थी। उन्हें अपने पिता की याद आ रही थी। दोनों भाई अपनी बहनों को चुप कर रहे थे। वे मां के गले लगा कर रोने लगी थी। मां ने कहा कि एक दिन बेटी को घर छोड़कर ससुराल जाना ही होता है। फिर उनकी विदाई कर दी जाती है। अगले दिन बेटों की बरात जानी थी। सभी बारात के लिए तैयार हो चुके थे। बारात सुबह घर से निकल चुकी थी । लड़की वालों के घर पहुंच कर सारी रस्में कर दी गई। फिर वहां से शाम को वह अपनी पत्नियों को लेकर घर घर आए। मां ने गृह प्रवेश की रसम की। दोनों बहुएं का घर में प्रवेश करती है। उनका परिवार पूर्ण हो चुका था। सब खुशी से रह रहे थे। किसी के मन में किसी के लिए बुरी भावना नहीं थी। रामचरण जी की पत्नी ने सोचा कि दोनों बहुओ को मंदिर के दर्शन करवा आए। रामचरण जी की पत्नी दोनों बेटे और बहुएं मंदिर के दर्शन के लिए जाते हैं। वे वहां पर माथा टेकते हैं और पूजा करते हैं। मार्ग में उन्हें एक ऋषि मिलते हैं वे कहते हैं आप के बच्चों का जीवन आपके पति की मौत से ही सुधरा है । अगर वे न मरते तो यह कभी ना सुधरते। इसलिए कहते हैं हर घटना के पीछे एक कारण होता है।