गरीब किसान DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गरीब किसान

1. बाल कहानी - सोच में बदलाव

रामू गरीब किसान था। उसके तीन बच्चे थे। दो लड़के एक लड़की। रामू के माता-पिता भी उसके साथ रहते थे। रामू को अपना परिवार चलाने में बड़ी तंगी का सामना करना पड़ता था। रामू ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। उसके माता-पिता और पत्नी अशिक्षित थे।रामू के गाँव में बेटियों को पढ़ाया-लिखाया नहीं जाता था। गाँव में उन्हें बोझ समझा जाता था।रामू के दोनों बच्चे अब बड़े हो चुके थे। रामू ने उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया। जब रानी की उम्र पढ़ाई के लिए हुई, तब उसका नाम विद्यालय में नहीं लिखाया। अध्यापकों के कहने पर रामू कहता, "बेटी! पढ-लिखकर क्या करेगी? उसकी माँ भी 'हाँ' में 'हाँ' मिलाती और कहती, "बेटी तो पराया धन है। आखिर करना तो उसको चूल्हा-चौका ही है।" अध्यापकों के बार-बार कहने पर रामू, रानी का दाखिला करा देता है। समय बीतता है। जहाँ रानी मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी, वहीं उसके दोनों बेटों का मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। वह विद्यालय से आकर बस्ता फेंककर खेलने निकल जाते थे।रानी कक्षा पाँच में आ गयी थी। कक्षा अध्यापक ने उसकी मेहनत और लगन देखकर उसका नवोदय का फार्म भरवा दिया था। अब तो रानी को पढते-पढते सुबह से शाम हो जाती, वह दिए की रोशनी में भी पढ़ाई करती-रहती थी। समय बीत रहा था। वहीं उसके दोनों भाई विद्यालय में पढ़ाई की जगह झगड़ा करते थे और आए दिन उनकी शिकायतें आतीं थीं।जब परीक्षा का रिजल्ट आया तो रानी ने परीक्षा न केवल उत्तीर्ण की बल्कि जिले में पहला स्थान प्राप्त किया था।अब तो रानी की चर्चा चारों ओर हो रही थी। विद्यालय में सम्मान-समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें रानी के पूरे परिवार को बुलाकर सम्मानित किया गया। रामू की आँखों से खुशी के आँसू झलक पड़े। वह बोला कि, "हमें बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं करना चाहिए। दोनों को उनकी योग्यता के अनुसार पढ़ने का अवसर प्रदान करना चाहिए।"सभी गाँव वालों ने तालियाँ बजायीं और प्रतिज्ञा की कि, "वह भी रानी की तरह अपनी बेटियों को पढ़ने का सामान अवसर देंगे और बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं करेंगे।" आज सभी की सोच में परिवर्तन हो गया था।

संस्कार सन्देश - हमें बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं करना चाहिए। उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार पढ़ने का समान अवसर प्रदान करना चाहिए।

2. बाल कहानी - कपट

अनोखेलाल और भोलेशंकर दोनों गाँव में रहकर खेती करते थे। दोनों दोस्त थे। अनोखेलाल मन ही मन में भोलेशंकर से जलन रखता था। अनोखेलाल और भोलेशंकर दोनों के खेत में फासलें खड़ी थीं। उनके खेत नहर के पास थे। अनोखे लाल के खेत में मक्का और भोलेशंकर के खेत में मूँगफली की खेती थी। अनोखेलाल को भोलेशंकर की मूँगफली की खेती देखकर बहुत जलन हो रही थी क्योंकि इस समय मूँगफली का भाव बहुत अच्छा था। अनोखेलाल को लगता था कि भोलेशंकर अपनी मूँगफली को मन्डी में बेचकर उससे अधिक पैसे कमा लेगा। अनोखेलाल ने एक चाल चली। अनोखेलाल ने खेत के बगल से जाने वाली नहर के पास में लगे बम्बे को रात में काट दिया। पानी काटने से भोलेशंकर की मूँगफली की फसल पानी में डूब गयी परन्तु भला रहा कि दो-चार दिन के बाद में मूँगफली सड़ने से बच गयी और अधिक नुकसान नहीं उठाना पड़ा। एक दिन अचानक से आसमान में तेज बादल आ गये और तेज बरसात होने लगी। ऐसी बरसात हुई कि तीन-चार दिन तक बन्द नहीं हुई। अनोखे लाल की खेत में पकी हुई मक्का बुरी तरीके से खराब हो गयी। अनोखेलाल सर पकड़कर रोने लगे। भोलेशंकर को जब यह पता लगी तो वह अपने मित्र के पास गया और उससे कहा,-"अनोखेलाल! तुम चिन्ता ना करो.. कोई बात नहीं! मूँगफली की फसल महँगी है। मैं तुम्हें बेचकर कुछ पैसे दे दूँगा। तुम शोक मत करो।" अनोखेलाल को यह बात सुनकर बहुत ग्लानि महसूस हुई। अनोखेलाल मन ही मन सोच रहा था कि वह तो अपने मित्र का बुरा करता रहा और मित्र उसके भले के लिए सोच रहा है। उस दिन के बाद अनोखेलाल ने अपने मन से शत्रुता का भाव निकाल दिया और सच्चे दिल से भोलेशंकर को अपना मित्र मानकर जीवन-भर मित्रता निभाता रहा। हाँ! यही उसका सच्चा पश्चाताप था।

संस्कार सन्देश - जो दूसरों का अहित करते हैं, किसी न किसी रूप में उनका भी अहित होता है।