स्वयंवधू - 26 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 26

उस रात सभी लोग भूखे पेट सोये, लेकिन उनके पास हज़म करने के लिए बहुत सारी चीजें थीं। बम, जो वृषा ने उन पर गिराया। वृषाली भी पहेली को गले लगाकर फर्श पर ही बेसुध सोई थी और फोन उसकी जेब में था। वृषा निराश था कि चीजें उसकी योजना के अनुसार नहीं चल रही थीं और वृषाली के जीवन के साथ अब हर कोई खतरे में था। वह एक गिलास पानी लेने के लिए नीचे गया, क्योंकि महाशक्ति सो गयी थीं और उसने, उसकी निजी सहायक के रूप में अपना काम नहीं किया था। वहाँ उसने जो देखा उससे वह और अधिक निराश हो गया, वहाँ राज सो रही लड़की पर गंदी नज़र डाल रहा था। वह अपना आपा खो बैठा, उसने उसे गर्दन से पकड़कर नीचे पटका और बुरी तरह पीटने की कोशिश की, तभी अचानक सबसे बड़े शक्ति, शिवम ने अचानक छलांग लगाई और राज के चेहरे पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा। कवच उसके कार्यों से आश्चर्यचकित था।
उसने उसे तुरंत बाहर निकलने का आदेश दिया। ऊपर जाते हुए तो दोनों एक-दूसरे को घूर रहे थे, वृषा क्रोध से धधक रहा था जबकि राज सिर्फ लक्ष्य को नीचे लाने की कोशिश कर रहा था। 
उसने उसे शांत करने की कोशिश की, "हमें माफ करना, वह ऐसा दोबारा कभी नहीं करेगा। अब वह मेरी साली है, मैं वादा करता हूँ कि वह ऐसा दोबारा कभी नहीं करेगा-", कवच ने उसे टाल दिया।
"रहने दो, शिवम। गलती मेरी है तो दूसरो पर क्या दोष मढ़ू?",
उसने अपनी शक्ति को उठाया और ऊपर जाने लगा, जाते-जाते उसने शिवम से कहा, "तुम भी जाकर आराम करो। सुहासिनी?",
"हम्म। वही।", शिवम ने कहा,
"अच्छा।", उसने कहा और सोई हुई शक्ति को अपने कमरे में ले गया जहाँ उसने उसका दरवाज़ा खटखटाया। उसने दरवाज़ा खोला, "क्या?!", उसने आश्चर्य से कहा,
उसने उसे अन्दर आने का इशारा किया, "धन्यवाद। वह पहेली के साथ नीचे सो गई थी।",
वह सोच रही थी, मेरी बहन इतनी मूर्ख क्यों है? जब उसे उठाया जा रहा था तो वह आधी भी नहीं जागी? इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उसका इतनी आसानी से अपहरण हो गया।
जब उसने उसे बिस्तर पर लिटाया तो वह बुदबुदाई, "पैंट...फ़ोन...चा-", उसने घर की चाबी और फोन को निकालकर बगल फेक दिया और नींद में चादर ढूँढने लगी।
(वो फोन! चाबी?) सूहासिनी ने अचरज में देखा। उसने चाबी का ज़िक्र उसके सामना कभी नहीं हुआ। कवच हल्का सा मुस्कुराकर उसे अच्छी तरह से लपेट दिया।
"मैं अपनी जान लगा दूँगा पर कभी फिर वही परिस्थिती नहीं आने दूँगा।", उसने महाशक्ति का सिर सहलाते हुए कहा। सुहासिनी अपने भावी पति के भावनाओं को ध्यान में रखकर कहा, "शिवम तुम पर भरोसा करते है तो मैं भी, पर मत भूलना तुम्हारा परिवार जितना अत्याचारी है उतना हमारा परिवार षड़यंत्रकारी!"
वैसे ये तो सच है, तभी तो उन्हें ये भी नहीं पता कि ये शक्ति परिवार के सदस्य है।
कवच ने सिर्फ स्वीकृति में सिर हिलाया और कमरे से बाहर चला गया। फिर, सुहासिनी ने चाबी की जाँच की, यह इस घर की मास्टर चाबी थी और उसने इसे कबाड़ की तरह फेंक दिया था।
खट-खट, दरवाज़े पर शिवम था। सुहासिनी चाबी लेकर बाहर गयी, "क्या वृषा आया था?", शिवम पूछ ही रहा था कि उसकी नज़रे चाबी पर पड़ी, "ये? ये तुम्हें कहाँ से मिला?", उसने हैरानी से पूछा,
सुहासिनी ने उसे हिलाकर कहा, " इसमे क्या खास है?",
शिवम ने गंभीरता से कहा, "अगर मेरी याददाश्त ठीक है तो ये अमम्मा, वृषा की दादी का है। वही पँख वाली चाबी का गुच्छा।",
गुस्से से सुहासिनी, "और इस गधी ने इसे नींद में फेक दिया? पर इसके पास ये क्यों? और वृषा ने कुछ क्यों नहीं किया?",
दोंनो आज बहुत थक गए थे तो उन्होंने इसके बारे में कल सोचने का सोचा।
सबने बेचैनी से रात काटी, सिवाय अपने महाशक्ति के।

अगले दिन, वह जल्दी उठ गयी। समय देखकर उसने सोने की कोशिश की लेकिन अपनी बड़ी बहन को अपने पास देखकर वह पूरी तरह जाग गयी और आश्चर्यचकित हो गई कि वह यहाँ कैसे पहुँची? बच्चपन का जादू, सोफे पर सोना बिस्तर में जागना। हाथ-मुँह धो, जब वो बाथरूम से बाहर आई तो उसे उसकी ऊर्जा चुसी हुई लगी। वह बिना सोचे-समझे बालकनी की ओर चली गई, जहाँ कवच उसके पास आया।
"वाह! आज सूरज का उगना मुश्किल है।", वो उसे चिढ़ाते हुए आया,
महाशक्ति ने झुंझलाहट से उसकी ओर देखने की कोशिश की, "मैं पहले ही थकान महसूस कर रही हूँ और सो भी नहीं पा रही!",
उसने उसके माथे को छुआ, "बुखार तो नहीं।",
उसने, उसके कपड़े को देखा, "जिम?",
"हाँ।", उसने उसे देखकर, "आज तुम भी आ रही हो।",
उसने साफ मना किया और अब ट्रेडमिल पर दौड़ रही थी। पहले तो उसने बचने कि कोशिश की, फिर अंततः अपनी ताकत वापस पाते हुए चुप थी। मैं जानती हूँ, यह व्यायाम से नहीं था, महाशक्ति का एकमात्र स्रोत कवच है, वो पूरे वक्त कवच और उसके निर्देश से घिरी हुई थी जिससे वो कवच के रंग में घुले जा रही थी, और कवच उसके। दोंनो के लिए, दोंनो की ऊर्जा समान रूप से प्रवाह होना आवश्यक है नहीं तो कवच या महाशक्ति, ज़्यादातर महाशक्ति गंभीर घांवो के साथ रह जाती, शारीरिक, मानसिक या दोंनो!
मैं उन्हें इस तरह कमज़ोर देखकर ठगा हुआ महसूस कर रही थी, वे एक भी कमज़ोर लड़ाई नहीं संभाल सकते, युद्ध तो दूर की बात है! शक्तियाँ रक्षक के रूप में पैदा हुए थे और अब वे भक्षक हैं। और मुझे नहीं लगता कि इस महाशक्ति में अपनी शक्तियों को बचाने की कोई क्षमता है। वह खुद की रक्षा भी नहीं कर सकती, कोई भी उसका फायदा उठा सकता है। मानसिक रूप से मज़बूत होना ही सब कुछ नहीं होता, आपको शारीरिक रूप से मज़बूत होने की आवश्यकता है ताकि तुम सही ढंग से नेतृत्व करने में सक्षम हो।
"मुँह बँद करो अपना!", मह- वृषाली अपने सिर में हाथ रखकर चिल्लाई।
(ओह! मैं उसके सिर में ही वर्णन कर रही थी? कोई बात नहीं।)
कवच उसकी मदद के लिए आया लेकिन वह लड़खड़ा गई और जिम के दाईं ओर रखे बड़े फूलदान के साथ जा गिरी और काफी घायल होकर गिरी। काँच ने उसकी त्वचा को बेरहमी से छेद दिया, जिससे खून का निरंतर प्रवाह जारी रहा। असमंजस की स्थिति में वह उठ खड़ी हुई, उसके घावों से खून बह रहा था। कवच ने बिना कुछ सोचे-समझे, उसे आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करते हुए, अपने पैर से फर्श पर रखा गिलास कुचल दिया। उसने उसे रोका और बेंच पर ले गया, जहाँ उसने प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स निकाला और उसके हाथों और पैरों से हर छोटे काँच को सावधानीपूर्वक निकाला।
"आह!", वह करहाई,
"अपने हाथों पर ज़ोर मत डालो।", उसने उसके पैर से बड़े काँच का टुकड़ा निकाला,
"अम!", उसने कवच के कंधे को दोंनो हाथों से कसकर पकड़ लिया।
"बस ये आखरी।", उसने एक महीन काँच को टुकड़ा उसके गर्दन से निकाला।
"नहीं!", उसने खुद को कवच को दे दिया।
बची जगह मरहम पट्टी कर, "कही और काँच तो नहीं लग रहा ना?",
वृषाली ने उसे धीरे से छोड़कर कहा, "आपका धन्यवाद। आपको तो कही-",
"काँच? नहीें। पर तुम...", कवच रुक गया,
खुद को दिखाकर, "अर्ध ममी।",
दोंनो एक-दूसरे को देख बिना रुके हँसे जा रहे थे। वृषाली दर्द से 'आ!, ओ!' करते हुए उसके साथ हँसते जा रही थी।

जिम के बाहर:-
"मैंने वृषा को ऐसे हँसते हुए कभी नहीं देखा।", शिवम ने हैरानी कहा,
"ना ही चुप्पी को।", सुहासिनी ने भी हैरान होकर कहा,
दोंनो उन्हें पूरे वक्त देख ही रहे थे। सुहासिनी अब भी संतुष्ट नहीं थी कि कवच ने उसके साथ कुछ उल्टा-सीधा ना किया हो। और वो जैसे उसे बिना किसी हिचक के उठाकर घूम-फिर रहा था और वो भी उसका साथ जितना सहज थी, बड़ी कुछ अधिक ही चौकस हो गयी थी।
(ये पहली बार है वो ख़राब हुए सामान और गंदगी को ले परेशान नहीं हुई।)
"वृषा?", उसने दोस्ताना अंदाज़ से कहा,
"अगर तुम उस गंदगी के बारे में सोच रही हो जो हमने पीछे छोड़ा है, तो चिंता मत करो, वो साफ हो जाएगा। तुम अपने ठीक होने पर ध्यान दो। हॉल चले?",
"हम्म।", उसने उदासीन चेहरे से कहा,
"दर्द दे रहा है?", कवच ने पूछा,
"नहीं घबराहट सी लग रही है जैसे कुछ होने वाला है।", उसने अपने चोट को सहलाते हुए कहा। कवच पहले कुछ बोल पाए उसने पूछा, "आपकी चोटे कैसी है?",
कवच सोच में, "कौन सी चोट?",
"वही वाली जो मैंने उस दिन सुबह देखा था और हम पहली बार...झगड़े और...रात को...", उसने पीछे डर से घूमकर अपना चेहरा अपने चोटिल हाथों से दबा लिया और फिर वही देखने लगी।
कवच समझ गया।
"दोंनो कर क्या रहे है? और वृषाली इतनी डरी हुई क्यों है?", दिव्या,
"ओह! खून? चोट!?", साक्षी ने चिंता में कहा,
"शांत रहो तुम लोग!", सरयू उनपर गुस्साकर खड़ा था,
"नमस्ते", आर्य भी उत्सुकता से आया पर अपनी इज्ज़त भी बनाई रखनी आगे के लिए चुप खड़ा रहा।
सबने रेड्डी दंपति के साथ जुड़ गए। 
"क्या हमे अंदर जाना चाहिए?", साक्षी ने चिंता करते हुए पूछा,
"म्याऊँ!", दहाड़ पहेली अंदर भागकर वृषाली पर चढ़ उस टूटे फूलदान पर गुर्राने लगी। उसकी ये हरकत रेड्डी दंपति को छोड़ सब समझ गये।
कवच ने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया तभी वो बिल्ली भी वहाँ आई और उसका ध्यान अपनी ओर करने लगी। कवच ने उसे, उसकी गोद में रख दिया।
"चिंता मत करो। ऐसी गलती और नहीं होगी।", उसके सिर को आराम से सहलाकर, "पहेली को देखो, उसके होते हुए तुम्हें, तुम्हारी मर्ज़ी के बिना देख भी नहीं सखता।", उसने उसे देखा। पहेली ने उसके गाल को प्रेम से चाटा, ऐसा मानो जैसे वो कह रही थी कि वो उसके साथ है। ये देख उसकी आँखो से आँसू गिरने लगे जिसे पहेली प्रेम से फिर चाट रही थी। उसे रोता देख सुहासिनी ने अंदर जाने कि कोशिश की तो शिवम ने उसे रोक लिया, "बस देखो।", तो उसने वही किया।
अंदर, कवच उसे थपथपा रहा था जब तक कि वह शांत नहीं हो गई। उसने उसके हाथों को छुआ और पूछा, "क्या आपको कभी मुझ जैसे कमज़ोर व्यक्ति के साथ रहने में चिढ़ नहीं होती? यहाँ तक कि कभी-कभार मैं खुद से चिढ़ जाती हूँ, लेकिन आपने कभी मुझसे सवाल नहीं किया या मेरा मज़ाक उड़ाया, क्यों?",
वो बस मुस्कुराया और पहेली को उसकी गोद में ही रहने दे, दोंनो को उठाकर बाहर ले जाते हुए पूछा, "क्या सुहासिनी अब तक जाग गयी होगी?",
"क्यों?", उसने समझने की कोशिश करते हुए पूछा,
"जाहिर है, मैं उसे असहज नहीं करना चाहता। वह पहले से ही मुझसे काफी नफरत करती है, मैं उसके और शिवम के सामने एक अजीब व्यक्ति नहीं बनना चाहता।",
वह बस हँसी, "अपहरणकर्ता और माफिया होते हुए पूछना? काफी विरोधाभासी है।",
"हाँ, हाँ। स्टडी रूम चलो।", उसे अंदर ले गया।
सब उन्हें जाता देख रहे थे।
सुहासिनी सोच ही नहीं पा रही थी कि यह सब उनके लिए कैसे सामान्य बात कैसे थी? वे सब उनके पीछे-पीछे अन्दर चले गए, जब वे अन्दर गए तो आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने देखा कि वृषाली और कवच जल्दी-जल्दी उसकी पट्टियाँ हटा रहे थे। हटाने के बाद वे यह देखकर हैरान रह गए कि वह कुछ ही मिनटों में ठीक हो गई। कवच ने उसके घावों को छुआ, "आह!", अभी भी दर्द हो रहा था।
उसने उसे सोफे पर बैठाया और गर्म पानी से भरा टब लिया तथा उसके चेहरे और हाथ पोंछने में उसकी मदद की। फिर उसने उसके जूते उतारे और उसके पैर पोंछे, "आपको इतनी दूर जाने की जरूरत नहीं है!", वह चौंककर उछल पड़ी,
"नौटंकी मत करो! ऐसा लगेगा जैसे मैं तुमसे ज़बरदस्ती कर रहे हूँ।", उसने पैर पोंछते हुए कहा,
"पर आप अचानक अपनी इज़्ज़त के बारे में क्यों सोच रहे है? क्या? हीरो बनना चाहते हो?", उसने मस्ती के साथ कहा,
".....", वो चुप रहा,
उसने उसे थोड़ा छेड़ने के लिए कहा, "या दी के सामने अपनी नाक बचाना चाहते हो?",
उसने दबी आवाज़ में कहा, "मैं नहीं चाहता मेरी वजह से उसकी इज़्ज़त खराब हो। मैंने पहले ही उससे बहुत कुछ छीना चुका हूँ और मैंने तुम्हारा अपहरण कर-",
उसने उसे बीच में रोककर कहा, "आपने हमे वो दिया जिसके वे हकदार है, हम इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे लेकिन आप अचानक कही से आ गए और उन्हें वह दिया जिसके लिए उन्होंने अपने पूरे जीवन में मेहनत की थी। हक और सम्मान मिला- आ- मेरी बात अलग रखे तो।",
"बात करना चाहोगी?", उसने पूछा,
"क्या कहूँ? क्या मैं एक अरबपति से शादी करने की प्रतियोगिता में भाग ले रही हूँ, और यह और कोई नहीं वही है जिसने एक साथ उनके दोनों बच्चों का अपहरण करने की कोशिश की थी? आपको क्या लगता है, वे खड़े होकर तालियाँ बजाएंगे? जूती भी ना देखे उनकी मुझे।",
"सुहासिनी?",
"मैं दी से ठीक से बात तो क्या उनसे नज़रे भी नहीं मिला पा रही हूँ। सावधान रहने की ज़रूरत आपको नहीं, मुझे है। मैं उनकी नफरत नहीं झेल सकती।",
दोंनो शांत थे। फिर वृषाली ने कहा, "तो आप जैसे हो वैसे ही रहो। कोई हमेशा किसी को याद नहीं रखता। क्या आप मुझे ऊपर तक छोड़ सकते है?",
दोंनो ने आगे कुछ नहीं कहा। कवच उसे ऊपर ले गया।
"आपका धन्यवाद।"
नीचे भी सब अपने कमरे में चले गए। सुहासिनी दुविधा में थी कि उस पर गुस्सा किए बिना उससे कैसे बात करे। वे सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे थे, जहाँ उसने कवच को बैठे देखा, फिर उसने अपनी बहन को सीढ़ियों से नीचे आते देखा, उसने अपना संतुलन खो दिया और सीढ़ियों पर ठोकर खा गई। बिजली की तेज़ी से उसे बचाने हुए नीचे लाया।
"ध्यान से चलो!", उसे उसकी जगह तक ले गया।
वह उसकी मदद करना चाहती थी, लेकिन कर नहीं पा रही थी, वह बस उन्हें एक-दूसरे को भोजन में मदद करते हुए देख रही थी और कमरे में मौजूद हर कोई इस बारे में शांत था। क्या उसका सचमुच अपहरण हुआ था? यह उसके दिमाग में पूरा दिन घूम रहा था। बाकी दिन सभी लोग उसके जन्मदिन और वृषाली के लिए एक सरप्राइज बर्थडे की योजना बना रहे थे। वे उसे अपनी बहन की तरह बिगाडे रहे थे। सांस लेने के लिए जब वह छत से नीचे गई तो उसने देखा कि उसके साथ कोई दूसरा आदमी काम कर रहा था, वह खुद भी काम कर रही थी लेकिन वह आदमी बस-