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यादों की अशर्फियाँ - 18.4.मेहुल सर का मस्तीभरा लेक्चर

 4.मेहुल सर का मस्तीभरा लेक्चर


जिसका हमे और खास करके नए स्टूडेंट्स को इंतजार था - मेहुल सर का लेक्चर वह आखिर आ गया। मेहुल सर क्लास में आए, ऋषि कपूर की तरह दिखने वाले, बिना कोई किताब के वह मुस्कुराते आ गए। हम उनको देखकर ही समझ गए थे की उनका लेक्चर बोरिंग नही होने वाला पर ये क्या? उन्होंने आते ही बोर्ड पर उनके अच्छे अक्षर में लंबा चौड़ा सिलेबस लिखना शुरू कर दिया। सब फ्रेंड्स हमारी और देखने लगे की यह क्या आपने तो कहा था की यह सर का लेक्चर में मजा आता है। हम भी क्या करे हमने भी वही कहा था जो हमने अपने सीनियर अमी दीदी और प्रीति से सुना था। 


   सर ने लिखकर थोड़ा विराम लिया तो ध्रुवी ने मेरे कान में कहा की इतना सारा हमे पढ़ने का है तो सर ने यह सुन लिया और कहा कि यह सब कुछ खत्म भी हो जाएगा और पता भी नहीं चलेगा। "
" पता कैसे नहीं चलेगा सर , स्कूल में भी यही पढ़ाई, फिर स्वाध्याय पोथी करने की और अब आप भी होमवर्क देंगे न " क्रिशा ने अपने टेंशन को आखिर मे कह ही दिया। 
सर ने कहा पहले शुरू तो होने दो। 

 दूसरे दिन तो हम भी सर के इंतजार में लग जाए क्योंकि भाई एक तिथि जिसके लेक्चर में हमे मजा आने लगा था। यूं तो सर मणिक सर की तरह कोई बुक लेकर नहीं आते थे पर वह हमसे ही लेते थे। फिर थोड़ी देर में तो पूरा चेप्टर खत्म कर देते थे हालांकि वही चेप्टर स्कूल में दीपिका मेम एक हफ्ता लगाते थे। सर का दूसरा काम था हमे ट्रांसलेशन लिखवाना। जिसमे हमे मज़ा भी आता था क्योंकि यह नया काम था। और इसी बहाने हम सर से कोई भी शब्द का अर्थ पूछ सकते थे ।
 ऐसे हमारा मेहुल सर का लेक्चर शुरु हुआ। बाद में तो मस्ती, गेम, होमवर्क ना करने की जिद और आखिर में सर स्माइल करते करते भी अपनी बात मनवा ही लेते थे।   

कई बार तो मेरे शब्दों की लिस्ट इतनी लंबी होती थी की ssar अपना मोबाइल ही मुझे दे देते थे की खुद ही ढूंढ लो। हमारा लेसन बहुत ही जल्दी खत्म हो जाता था फिर सर बाकी टीचर्स की तरह दूसरा काम नहीं देते थे और तब हम सब गेम भी खेलते थे और सर कुछ नही कहते थे। हम बिंगो, राजा सिपाही चोर वाली चिट्ठी की गेम ज्यादा खेलते थे जिसमे पांच चिट्ठी में राजा, सिपाही, वजीर, मंत्री, और चोर लिख देते थे। चोर को जीरो मार्क्स मिलते थे और राजा को 500 ऐसे सबको चिट्ठी उठाने की जो चिट्ठी में आया उसके उतने मार्क्स। यह गेम मुझे ज्यादा पसंद थी। थोड़ा खेलते उसमे तो लेक्चर खत्म हो जाता। 

          यह गेम खेलना हमारा तब बंद हुआ जब सर ने ग्रामर के ' टेंस यानी काल ' पढ़ाना शुरू किया। इस तरह हमने कभी नहीं पढ़ा था। मेहुल सर की तरह मुझे आज तक किसी ने काल नहीं पढ़ाए। उसका तरीका कुछ हटके था। सर ने टेंस सीखाने के लिए सो - दोसो वाक्य दे देते थे। मेरे फ्रेंड्स तो काट कर लिख देते थे पर में उनमें से नहीं थी। पर जब मेरी हद आ गई तो मैने सीधा सर को जाकर कहा,
 “ सर, सबको सिर्फ लिखने से थोड़ी ही याद न रहता है। किसी को पढ़ने से भी याद रह जाता है।”
“अच्छा, मतलब अब नहीं लिखना।”
“ नहीं, सर ऐसा नहीं है।”
“ कह देना की यह तो अन्य है एक रचना याद करने के लिए कोई सो वाक्य थोड़ी ना लिख है।” पीछे से क्रिशा ने कहा। 
“ अगर , आपको याद रह गया है तो में आपको पूछता हूं अभी।” 
हम सब तो चौक गए। मेरी बात तो उल्टी पड़ गई और अगर हमे नही आया तो सर और ज्यादा होमवर्क दे देंगे।
“ नहीं सर, नहीं..सर” हम सब एक साथ बोल उठे। 
“ रीडिंग सिर्फ एक्जाम तक ही याद रहेगा और यह टेंस तो आपको जब तक इंग्लिश पढ़ेंगे तब तक याद रखने पड़ेंगे और अगर लिख कर याद रखेंगे तो जीवनभर याद रहेंगे।”
 
   सर की बात सो आने सच थी। सर कभी डांट के या गुस्सा हो कर नहीं समझाते थे पर नोक - जोक करके समझाते थे। कभी कभी वह बॉयज पे हाथ भी उठाते थे खास करके निखिल पर। निखिल तो किसी बच्चे के भांति पूरे क्लास में दौड़ता था हस्ते हस्ते और सर पीछे स्केल लेकर। कोई सोच भी नहीं सकता था की सज़ा भी इतनी मजेदार होंगी। कभी कभी में भी सर को मजाक में कहती थी, “ सर, इस तरह आप स्टूडनेट्स को पीटोंगे और कोई देख जाएगा तो आप पर केस होगा।” और सर स्माइल के साथ कहते थे की केस होता है तो होने दो । और कौन केस करेगा? यह निखिल? और निखिल कहता था की ऐसी मारी कैसी औकात की में आप पर केस करू। 
    
      सर के पैर में एक बार चोट आई थी। सर की एक आदत थी चलते - चलते पढ़ाने की जो कई टीचर्स में होती है। पर आज के दिन वह नहीं चल पाएंगे इसलिए वह कुर्सी पर बैठे थे और हमे होमवर्क दे दिया था। मेरी भी एक आदत थी बेंच के बाहर पैर लंबे कर के बैठने की यह आदत भी कई स्टूडेंट्स में होती है। मेरे बेंच के सामने ही सर बैठे थे। और मैने गलती से अपने पैर आगे फैलाए की वह सर को लग गए। मैने सर से सॉरी कहा और सर ने सिर्फ आखों से ठीक होने का इशारा किया। इतना भी मेरे लिए काफी नहीं था की मैंने यही गलती से मिस्टेक दूसरी बार दोहराई। और सर गुस्सा होने की जगह खड़े हो कर, हंसकर बोले,” आज तुम पैर छोड़ोगी नहीं। सब का ध्यान मेरी ओर गया और में शर्मीदा हो गई। पर सर खुद हसने लगे और बात को मजाक बना दिया
  सर को सीरियस बात तो मजाक में बदलना अच्छी तरह से आता था। एक बार ध्रुवी अब्सेंट थी तो दूसरे दिन सर उनके न आने की वजह पूछी तो ध्रुवी ने कहा की उसी पालतू भेंस मर गई थी। और हर बार जब ध्रुवी अब्सेंट होती थी, सर मजाक में यही पूछते थे की गाय मर गई या भेंस। कुछ बार तो ध्रुवी ने चला लिया पर एक बार तो उसने सर से कह ही दिया और सर भी चौक गए,
“ सर, आपको पता है किसान के लिए भेस कितनी कीमती है। लाख की भेंस आती है और हम सब उनको अपने घर के सदस्य की तरह रखते है। ध्रुवि कुछ इस तरह बोली की ऐसा लगा की वह सर की बातों से बहुत हर्ट हो गई थी पर सर ने फिर अपनी स्माइल से माहौल को शांत कर दिया। 





         लेक्चर की आखिर की पांच सात मिनट तो सिर्फ बाते की होती थी।