(लॉजिक सो रही हैं हमारी आपकी और मीडिया की)
हम लोगों में एक कमी है जो आजकल अधिक दिख रही है,मीडिया जैसे नशे में है,कोई भी पृष्ण नहीं!
आंकड़े अलग थलग करके देख के खुश होते हैं या दुखी भी,जैसे
बेरोजगारी क्यों है? एक कारण है कि शिक्षा की गुण वत्ता अच्छी नही पर कई और बातें हैं
बेरोजगारी की दर ज्यादा क्यों है?
नेता लोग कहेंगे कि सारी विश्व मे यही हो रहा है पर हम कई और कारण को इग्नोर करते हैं
जैसे पैसा सड़को मे लगाया जा रहा है,रेल मे भी पर अति सबकी अच्छी नही होती,(कोई लॉजिक नही न)
शिक्षा संस्थान नये क्यों नही खुल रहे?
क्योंकि पैसा नहीं है
पैसा कहाँ गया?
गैर ज़रूरी बिल्डिंग आदि मे खर्च हो गया
किसी ने पूछा क्यों नही?
"जवाब देना पड़ेगा ' इस तरह का पृष्ण कोई नही पूछता,मीडिया नशे मे है,पहले ही कहा
खर्च हो रहे हैं पर सही तरह से नहीं
मूर्ति , हर तरह की गैर ज़रूरी बिल्डिंग आदि बन रही हैं पर हॉस्पिटल नहीं,स्कूल बन्द हो रहे हैं हज़ारों की संख्या में,कोई सवाल नही पूछता
रेल आदि पर खर्च हो रहा है,आधुनिक (?) बनाया जा रहा है पर कोई नही पूछता कि जब लोगों के पास पैसा ही नही तो कौन बैठेगा उन आधुनिक रेल मे,(किराये भी जान बुझ कर बढ़ाये जा रहे है,)
(पैसा नही है उनके पास,तभी तो करोड़ों को फ्री राशन दिया जा रहा है ,या शायद कुछ को,बाकी को सिर्फ कागज पर!)
अंध विश्वास क्यों है
है तो उन्मूलन क्यों नही होता
कई और कारण मुलाहीझा हों
राजनीति वालो को यही suit करता है यानी उन्मूलन न हो
तभी उनकी दुकान चलेगी
फ्लाना स्वामी नकली है पर फॉलो कर रहे हैं लोग
क्योकि वो वोट दिलवाएगा
दर्जनों स्वामी,लाखों वोट,चाहे वो स्वामी रेपिस्ट ही हों कोई फर्क नही,जेल मे भी हों कोई बात नही
(आगे आप समझदार हैं)
हजारों उदाहरण है
आप किस किस को नजर अंदाज करेंगे
गैस सुब्सीडी खत्म, मीडिया खामोश है
महंगाई भत्ता कम या रोक दिया गया
मीडिया खामोश है
Fd के रेट छ फीसदी से कम, मीडिया खामोश
मीडिया क्या लिखता है, देखिये न..
फ्लाने नेता ने गिटार बजाई, (तालियां)
उस नेता के कुत्ते ने ice क्रीम खाई, (तालिया)
फलाने अभिनेता ने फलाने को गाली दी
(तालियां)
मंदिर मे सौ दिया जलाये गए आदि
आप ही सोचिये
मीडिया को क्या पड़ी आपकी मुश्किलों की
उन्हे कट मिल रहे है या दो तीन मिनट के विज्ञापन
यानी एक एक करोड़ से ज़्यादा का एक विज्ञापन, रोज़ कई बार दिखाया जाता है
आपका मेरा पैसा, टैक्स का पैसा कहाँ जा रहा है, सोचिये न
जो विपक्ष पॉजिटिव रोल कर सकता था उसी को आंदोलन प्रेमी बताया जा रहा है
या और कई नाम दिये जा रहे है
एक ही पार्टी की बुराई विपक्ष को न सुनना
सरकारी कर्मचारियों की वाट लगाओ
कोई सरकार तब तक ही चलती है जब तक जनता के प्रति जवाब देह होती है
किसान आंदोलन के आप साथ हों या नही, पर उनको अजीब नाम दिया जा रहे है
मीडिया का रोल भी संदेह मे आ रहा है
यह कब तक होगा?
कब तक?
कब तक?
कब तक हम लल्लू बने रहेंगे?
कब तक?
कोई
यह विकास बाजार में नही बिकता,जान ओ मन लगाना पड़ता है
कोई किसान आराम से ए सी मे नही बैठता
दिन मे मेहनत रात को पहरा देना पड़ता है
"विकास विकास "की बक बक सुनाते हो देश को
इस बकवास को हमें दूसरे कान से निकालना पड़ता है
आ जाते हो हर साल या पांच साल के बाद
तुम्हारे इरादे पे हमें संदेह जताना पड़ता है
जाओ आप अपने रास्ते हम अपने
देश कोई आपकी जायदाद नही है
यह आपको मुसल्सल् बताना पड़ता है