इस गहरी और भावनात्मक स्थिति मे किसी ने रेग्रेशन थेरेपी की सलाह दी (जो मनोवैज्ञानिक हैप्नोटिज़म् करके करते हैं) वो तो बाद में सोच लूंगा पर स्वप्नों का भंडार था जो मुझे सोने नहीं दे रहा था
अतृप्त इच्छाओं का क्या करूँ यह सवाल एक भूत बन के खड़ा था...
रात का समय था और मैं अपने कमरे में अकेला बैठा था। चारों ओर सन्नाटा था, लेकिन मेरे मन में एक तूफान चल रहा था। मेरी अतृप्त इच्छाएँ, जो कभी पूरी नहीं हो पाईं, एक भूत की तरह मेरे सामने खड़ी थीं। वे मुझे लगातार परेशान कर रही थीं, जैसे कि वे मुझसे कुछ कहना चाहती हों।
पर स्वप्न और इच्छाएं मिक्स हुई जा रहीं थीं...
धीरे-धीरे, मैं उन इच्छाओं और स्वप्नों के बीच की धुंधली रेखा में खो गया। मेरी आँखें बंद थीं, लेकिन मेरे मन में एक नई दुनिया खुल रही थी। उस दुनिया में, मेरी इच्छाएँ और स्वप्न एक-दूसरे में मिलकर एक नई कहानी बुन रहे थे।
मैंने देखा कि मैं एक विशाल मैदान में खड़ा हूँ, जहाँ चारों ओर हरी-भरी घास और रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं। वहाँ एक हल्की हवा चल रही थी, जो मेरे चेहरे को छूकर गुजर रही थी। उस मैदान के बीचों-बीच एक पुराना पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर मेरी इच्छाओं के फल लटके हुए थे। क्या य़ह वो शरीर थे जिनकी ईच्छा कर रहा था या कोई छलावा था
. उत्तेजित अवस्था थी पर कुछ तो था जो...
मैंने उन फलों को छूने की कोशिश की, लेकिन वे मेरी पहुँच से बाहर थे। तभी, एक स्वप्न ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। उस स्वप्न में, मैं एक नदी के किनारे खड़ा था, जहाँ पानी की कल-कल ध्वनि सुनाई दे रही थी। उस नदी के पार एक पुल था, जो मेरी इच्छाओं की दुनिया की ओर ले जा रहा था।
मनोविज्ञान के एक्सपर्ट कहते हैं कि पानी एक सुरक्षा की भावना दर्शाता है पर क्या यौन ईच्छा यहि है या कुछ और?
शरीर पर मन का कंट्रोल न हो तो क्या?
स्खलन क्यों होता है?
य़ह सारे प्रश्न मुझे विचलित कर रहे थे..
मैंने उस पुल को पार करने की कोशिश की, लेकिन हर कदम के साथ, मेरी इच्छाएँ और स्वप्न और भी मिक्स होते जा रहे थे। वे एक-दूसरे में घुल-मिलकर एक नई वास्तविकता बना रहे थे, जहाँ मेरी अतृप्त इच्छाएँ भी पूरी हो सकती थीं।
य़ह कविता बनी फिर
मन चंचल होता है, उत्तेजित हो गया,
भावनाओं के सागर में, डूबता-उतराता।
कभी खुशी की लहरें, कभी गम की आंधी,
हर पल बदलता, जैसे मौसम की बयार।
कभी हंसता, कभी रोता, कभी गाता गीत,
कभी मौन में डूबा, कभी करता प्रीत।
कभी सपनों में खोया, कभी हकीकत से दूर,
कभी शांत झील सा, कभी तूफानी नूर।
मन की गति निराली, कोई न समझ पाए,
कभी स्थिरता की खोज में, कभी उड़ान भर जाए।
कभी यादों की गलियों में, कभी भविष्य की राह,
कभी अपनों के संग, कभी अकेला बेपनाह।
शांत रहना सीखो, मन को समझाओ,
संतुलन में ही सुख है, यह बात मनाओ।
धैर्य और संयम से, मन को साधो तुम,
जीवन की इस यात्रा में, सच्चा सुख पाओ तुम।
मन की इस चंचलता में, छुपा है एक राज़,
जो इसे समझ ले, वही है सच्चा साज।
मन को साधना ही, जीवन का है सार,
इसमें ही छुपा है, सुख और शांति का द्वार।
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