बाल कहानी - मनोविज्ञान
रोशनी ने देखा कि उसका पति कमाई कर उसी के खाते में रुपए जमा कर देता है। उसको एटीएम कार्ड चलाना भी आता है। इसलिए उसने गाँव से बाहर निकल आना उचित समझा।अगले दिन सास-ससुर को मनाया बुझाया। बेटे के विद्यालय से पत्रजात निकाल कर लायी और मायके से लगे बाजार में किराए पर घर लेकर रहने लगी। नये परिवेश में उसे आनन्द आ रहा था। अगले दिन रोशनी ने मानिक का पंजीकरण एक निजी विद्यालय में करवाया। मानिक को विद्यालय में छोड़ दिया। मध्यान्तर होते ही मानिक कक्षा से बाहर निकला। उसके हाथ में थाली थी। वह आदतन प्राँगण के किनारे पर जाकर आराम से बैठ गया। आया ने उसे इस तरह बैठा हुआ देखा। उसने कहा-, "तुम यहाँ क्यों बैठे हो?"मानिक बोला-, "भात खाने के लिए।" आया ने उसे झिड़क कर गँवार कहा।मानिक अपनी थाली उठाये चला आ रहा था। इस समय सारे बच्चे उसे देखकर हॅंसते-हॅंसते लोट-पोट हो रहे थे।वह सिसकियाँ ले रहा था और मन में संकल्प लिया कि-, "कल से नहीं आना यहाँ, अपने स्कूल जाऊॅंगा। मेरा स्कूल कितना अच्छा था!"लेकिन जिस बेटे के लिए वह घर-गाँव छोड़कर आयी, उसे नया वातावरण बिल्कुल सही नहीं लगा।वह माँ से बोला-, "यहाँ भात भी नहीं मिलता।"बच्चे के उदास होने से रोशनी का मन उचट गया। वह फिर से गाँव वापस आयी। मानिक अपने साथियों से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। अब वह अपने विद्यालय में बहुत प्रसन्न नजर आता। मेहनत से अपना पठन-पाठन करता।अब उसके पास गाँव और शहर ये दो विकल्प हो चुके थे। माँ बार-बार शहर की खूबियाँ गिनाकर उसे आगे बढ़ाने के लिए जिज्ञासु बनाती। मानिक ने बारहवीं पास किया। बीटेक करने के लिए हैदराबाद गया। हैदराबाद में उसमें आमूल-चूल परिवर्तन किया। वह एक अच्छा इंजीनियर बनकर धन और शोहरत कमा रहा है।
संस्कार सन्देश :- शिक्षा हमें आनन्ददायक परिस्थितियों में जीवन जी करके आगे बढ़ना चाहिए।
बाल कहानी - मनोविज्ञान
रोशनी ने देखा कि उसका पति कमाई कर उसी के खाते में रुपए जमा कर देता है। उसको एटीएम कार्ड चलाना भी आता है। इसलिए उसने गाँव से बाहर निकल आना उचित समझा।अगले दिन सास-ससुर को मनाया बुझाया। बेटे के विद्यालय से पत्रजात निकाल कर लायी और मायके से लगे बाजार में किराए पर घर लेकर रहने लगी। नये परिवेश में उसे आनन्द आ रहा था। अगले दिन रोशनी ने मानिक का पंजीकरण एक निजी विद्यालय में करवाया। मानिक को विद्यालय में छोड़ दिया। मध्यान्तर होते ही मानिक कक्षा से बाहर निकला। उसके हाथ में थाली थी। वह आदतन प्राँगण के किनारे पर जाकर आराम से बैठ गया। आया ने उसे इस तरह बैठा हुआ देखा। उसने कहा-, "तुम यहाँ क्यों बैठे हो?"मानिक बोला-, "भात खाने के लिए।" आया ने उसे झिड़क कर गँवार कहा।मानिक अपनी थाली उठाये चला आ रहा था। इस समय सारे बच्चे उसे देखकर हॅंसते-हॅंसते लोट-पोट हो रहे थे।वह सिसकियाँ ले रहा था और मन में संकल्प लिया कि-, "कल से नहीं आना यहाँ, अपने स्कूल जाऊॅंगा। मेरा स्कूल कितना अच्छा था!"लेकिन जिस बेटे के लिए वह घर-गाँव छोड़कर आयी, उसे नया वातावरण बिल्कुल सही नहीं लगा।वह माँ से बोला-, "यहाँ भात भी नहीं मिलता।"बच्चे के उदास होने से रोशनी का मन उचट गया। वह फिर से गाँव वापस आयी। मानिक अपने साथियों से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। अब वह अपने विद्यालय में बहुत प्रसन्न नजर आता। मेहनत से अपना पठन-पाठन करता।अब उसके पास गाँव और शहर ये दो विकल्प हो चुके थे। माँ बार-बार शहर की खूबियाँ गिनाकर उसे आगे बढ़ाने के लिए जिज्ञासु बनाती। मानिक ने बारहवीं पास किया। बीटेक करने के लिए हैदराबाद गया। हैदराबाद में उसमें आमूल-चूल परिवर्तन किया। वह एक अच्छा इंजीनियर बनकर धन और शोहरत कमा रहा है।
संस्कार सन्देश :-शिक्षा हमें आनन्ददायक परिस्थितियों में जीवन जी करके आगे बढ़ना चाहिए।