पिता : मेरे सच्चे दोस्त Dev Srivastava Divyam द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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पिता : मेरे सच्चे दोस्त

आज की रात मैं,
फिर से बहुत रोया हूं ।
उस दिन को याद कर, 
अंदर से मैं टूटा हूं ।

वो तुम्हारा प्यार मेरे लिए, 
कि लड़ जाते थे दुनिया से ।
जब डांटे माता श्री मुझे तो,
बीच में आकर उनसे बचाते थे ।

पैसे ना हों जेब में तुम्हारे फिर भी,
पेट हमारा भर जाता था ।
तुम वो दोस्त थे मेरे जो मुझे, 
हर मुसीबत से बचाता था ।

याद आते हैं वो बचपन के दिन जब,
कंधे पर बैठ तुम्हारे देखा था जहां ।
याद आती है गोद तुम्हारी,
बैठ कर मैं सबको भूल जाता था जहां ।

मुस्कान तुम्हारी है इतनी प्यारी, 
जो देख ले मंत्रमुग्ध हो जाए ।
तुम्हारे हास्य में जादू ऐसा, 
जो देख ले दिल खुश हो जाए ।

तुम्हारी विशेषता है सादगी तुम्हारी, 
कि दिल ये श्रद्धा से भर जाए ।
तुम्हारी आवाज़ में जादू है, जो सुन ले, 
उसका दिल शांत हो जाए ।

जीने का तरीका सिखाया तुमने,
समाज में रहना सिखाया तुमने ।
मिट्टी के पुतले में डाल दी जान,
जिंदगी का रास्ता दिखाया तुमने ।

आधार हो तुम जीवन का मेरे,
मेरे जिंदगी की हो शान ।
जहां भी जाता हूं मैं,
तुमसे बढ़ता है मेरा मान ।

अब वो यादें हैं सुंदर सबसे,
जो पल थे तुम्हारे साथ बिताए ।
जो भी जीत होती है मेरी,
कारण हैं उनका तेरी दुआएं ।

मां पर तो लिखता है हर कोई,
पिता को याद रखता है कौन ।
मातृ भाषा होती सबकी क्योंकि,
पिता सदा रहता है मौन ।

शिक्षा तुमने ही दिलाई और,
है इस काबिल भी बनाया ।
कि तुम्हारे न होने पर भी,
हम सबने एक दूजे को संभाला ।

आंखों में तुम्हारे थे सपने हजार,
हमें पालने को जिन्हें तुमने गंवाया ।
खुद से ही लड़ कर, खुद से जीते,
और तुमने ही खुद को भी हराया ।

तकलीफें तो तुम्हें भी होती थीं,
पर तुमने कभी दिखाया नहीं । 
परेशानियां तो बहुत थीं,
पर तुमने कभी जताया नहीं ।

प्यार तो बहुत किया है तुमने,
पर कभी बता नहीं पाए ।
सत्य है कि इस संसार में,
पिता का स्थान भला कौन ले पाए। 

जब साथ थे तुम तो ये जीवन,
तैरती हुई नांव थी ।
खेवैया क्या छूटा इसका,
ये मानो अब है डूब रही ।

कदमों में जिनके स्वर्ग था,
आज मेरा वो स्वर्ग है छूटा ।
पिता थे जो ढाल मेरी,
मेरा वो ढाल आखिर क्यों टूटा ।

याद आ रहे हैं वो पल सारे जब,
देखा था आखिरी बार तुम्हें ।
याद आ रहे हैं वो सारे दृश्य जो,
आज भी रुला जाते हैं मुझे ।

भाई बहन मेरे थे रो रहे,
और माता श्री थीं सुन्न खड़ी ।
अचानक से इस परिवार पर थी,
कैसी विपदा आन पड़ी ।

शेर के जैसे दहाड़ता था जो,
उसकी आवाज थी थम गई ।
शरीर रह गया यहीं तुम्हारा,
आत्मा थी मुक्त हो गई ।

सोचा नहीं था कभी कि,
बुलाया जाएगा मुझे झूठ बोल कर ।
कि आखिरी दर्शन करूं तुम्हारे,
और समय भी मिला सिर्फ दो पल ।

अपने आखिरी समय में भी, 
तुम मुझको थे पुकार रहे ।
लेकिन मैं तुम तक आ न पाया,
इस बात का है मलाल मुझे ।

आपकी अर्थी को कंधा देना फर्ज था मेरा, 
जिसे मैं पूरा कर न सका ।
कहना तो था बहुत कुछ आपसे,
पर एक शब्द भी कह न सका ।

तुम्हारी जलती चिता के साथ ही,
मासूमियत भी मेरी जल गई ।
तुम्हारे चले जाने से मेरी,
ये दुनिया वीरान सी हो गई ।

लेकिन फिर भी लड़ता हूं मैं,
हर मुसीबत से डंट कर ।
याद तुम्हारी आती है तो,
रो लेता हूं मैं छुप कर ।

कहना तो बहुत कुछ है,
लेकिन मैं कह नहीं पा रहा हूं ।
विचार मन में इतने हैं कि उन्हें,
शब्दों में पिरो नहीं पा रहा हूं । 

बस इतना तुमसे है अनुरोध,
दुबारा अपना बेटा बनाना ।
और अगली बार इतनी जल्दी,
मुझे छोड़ कर मत चले जाना ।

~ देव श्रीवास्तव ✍️