प्रेम की परिभाषा : कृष्ण और राधा Dev Srivastava Divyam द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम की परिभाषा : कृष्ण और राधा

*_प्रेम की परिभाषा : कृष्ण और राधा_* 

पहली बार जब राधा आई,
गोकुल अपने पिता के संग ।
नजर उनकी पड़ी कान्हा पर,
ओखल से बंधे थे जिनके अंग ।

प्रथम मिलन में हो गई वो मोहित, 
कृष्ण की उस मासूमियत पर ।
कृष्ण भी भाव विभोर हो गए,
पहली बार राधा को देख कर ।

शुरूआत हुई यहां से इनके,
धरती पर प्रेम लीला की ।
अब क्या ही करूं वर्णन मैं,
श्री कृष्ण के महिमा की ।

वो सदा ही एक साथ खेलना उनका,
और राधा को छेड़ते रहना कृष्ण का ।
चिढ़ कर रूठ जाना राधे का,
और फिर उन्हें मनाना कृष्ण का ।

जब बांसुरी बजाए कान्हा तो,
दौड़ी चली आना राधा का ।
वो वन में, चांदनी में रात्रि के,
गोपियों संग रास रचाना कृष्ण का ।

मन में प्रेम था दोनों के, 
एक दूजे संग रमता था मन ।
वो दोनों साथ हो या ना हो,
मन में थी उनके प्रेम की उमंग ।

बचपन तो था ऐसे ही बीत गया,
किंतु आया वो भी समय था ।
विवाह हो गया अयन से राधा का,
और कृष्ण चले वध करने कंस का ।

देह से अब वो दूर हुए थे,
किंतु मन में था प्रेम अपार ।
दूर होते हुए राधा से कृष्ण के,
आंखों में थे अश्रु हजार ।

किंतु उनकी विडंबना ये थी,
कि वो रो भी सकते नहीं थे ।
मन था उनका दुखी बहुत पर वो,
किसी से कह भी सकते नहीं थे ।

चले गए वो छोड़ के गोकुल,
मथुरा उनका घर था अब ।
राज्य वापस दे दिया नाना को,
लेकिन प्रजा के लिए वही राजा थे अब ।

कर्तव्य अपने निभाने को,
कृष्ण राधा से थे विलग हुए ।
और राधा के भी आंसू,
रुकने में थे विफल हुए ।

छोड़ दी आस हर गोपी ने,
अश्रु रहें सदा उनके आंखों में ।
किंतु राधा ने आनंद था ढूंढ लिया,
कृष्ण के संग बीत पुराने समय की यादों में ।

पुरा जीवन प्रेम थे वो,
केवल एक दूसरे का ।
समय वो भी आया जब,
राधा पहुंची थीं द्वारिका ।

वृद्धावस्था अब थी आई उनकी,
किंतु रूप उनका अप्रतिम था ।
कृष्ण ने कैसे भी उनको था,
राज महल में रोक लिया था ।

काम करतीं वो महल में सारे,
देखती छुप छुप कान्हा को ।
समय था वो भी निकट आ गया,
जब छोड़ के जाना था उन्हें धरा को ।

रात्रि के किसी पहर में,
वो छोड़ कर महल को निकल पड़ीं ।
ना राह थी और न मंजिल कोई,
ना जाने कहां वो जा रुकीं ।

शरीर था अब थक गया,
सांसें भी भारी होने लगीं ।
बेकल होकर के राधा,
कृष्ण को तब पुकारने लगीं ।

अगले ही क्षण प्रकट हुए वो,
शीश गोद में ले ली राधे की ।
राधा ने अंतिम इच्छा व्यक्त की,
धुन मधुर सुनने को बांसुरी की ।

तान छेड़ी कृष्ण ने तब,
मुरली की धुन चहुं ओर गूंजी ।
उस धुन को सुनते सुनते ही,
राधा ने अपनी आँखें मूंदी ।

प्राण निकल गए जब राधा के,
उनके माटी के तन से ।
वो पूरा जगह था गूंज उठा,
भगवान कृष्ण के क्रंदन से ।

दुख इतना कि बयां न हो पाए,
शब्दों में ये किसी के कभी ।
तोड़ कर फेंक दी बांसुरी कृष्ण ने,
त्याग किया था उसका वहीं ।

प्रेम का अर्थ विवाह नहीं,
हमें सिखाया इन दोनों ने ।
प्रेम में खुद को खोना है सुख,
संसार को बताया इन्होंने ।

इस लोक में था ये अंत इस,
अद्भुत प्रेम की यात्रा का ।
किंतु ये भी सत्य है कि,
प्रेम का कभी कोई अंत न होता ।

~ देव श्रीवास्तव ✍️