तेरी मेरी यारी - 2 Ashish Kumar Trivedi द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरी मेरी यारी - 2


       (2)




दो दिन हो गए थे। करन की कोई खबर नहीं मिली। किडनैपर ने भी फोन नहीं किया था। मि. लाल अपने बेटे के बारे में सोचकर परेशान थे। उनकी पत्नी मधुरिमा का बुरा हाल था। उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। हर वक्त अपने बेटे करन को याद करके रोती थींं। करन की बहन सोनम भी अपने भाई की फिक्र में रोती रहती थी। मि. लाल के लिए उन दोनों को संभालन मुश्किल हो रहा था। 



खाने की थाली लेकर वह मधुरिमा और सोनम को खाना खिलाने के लिए गए थे। लेकिन उनके बार बार कहने पर भी दोनों में से कोई भी खाना खाने को तैयार नहीं थीं। उन्होंने समझाते हुए कहा,


"हम लोगों पर बहुत कठिन समय आया है। इस समय हिम्मत से काम लेने की ज़रूरत है। मैं भी तो करन के किडनैप हो जाने पर दुखी हूंँ। फिर भी अपने आप को मज़बूत बनाए रखने के लिए खा रहा हूँ। तुम लोग भी मेरी बात मानो और खाना खा लो। कबीर के लिए हमें हिम्मत बनाकर रखनी है।"


उनके इस तरह समझाने पर मधुरिमा और सोनम ने थोड़ा सा खाना खा लिया।


कबीर बहुत दुखी था। उसका ना तो खाने पीने में मन लग रहा था और ना ही पढ़ाई में। उसके घरवालों ने समझाया कि वह इस तरह दुखी ना हो। करन जल्दी ही मिल जाएगा। लेकिन कुछ भी उसके दिल को तसल्ली नहीं दे पा रहा था। उसका प्यारा दोस्त जो उसके भाई की तरह था उसके देखते ही देखते किडनैप हो गया। यह बात उसे परेशान किए हुई थी। 


कबीर की परेशानी को उसका कुत्ता टाइगर महसूस कर रहा था। उसके दुख से वह भी दुखी था। टाइगर बहुत ही संवेदनशील व होशियार था। जब वह छोटा था तब कबीर उसे अपने घर लाया था। कबीर ही उसकी देख भाल करता था। दोनों ही एक दूसरे के बहुत करीब थे।


कबीर के मम्मी पापा करन के घर उसके मम्मी पापा को तसल्ली देने गए थे। कबीर भी करन के घर से संपर्क बनाए हुए था। वह सोनम से फोन पर हालचाल ले लेता था। वह दुखी था कि करन का केस थोड़ा भी आगे नहीं बढ़ पाया था। वह चाह रहा था कि जल्दी ही करन का पता चल जाए। जिससे शीघ्र ही उसे घर लाया जा सके।


मि.लाल बहुत परेशान थे। वह समझ नहीं पा रहे थे कि करन को किडनैप करने वाला कौन हो सकता है ? उसका मकसद यदि पैसे मांगना था तो किडनैपर उन्हें फोन करके पैसे क्यों नहीं मांग रहा। वह इंस्पेक्टर आकाश से संपर्क बनाए हुए थे। लेकिन उनकी तरफ से भी अभी तक कोई नई सूचना नहीं मिली थी।


दो दिन तक कबीर स्कूल नहीं गया था। उसके मम्मी पापा परेशान थे कि इस तरह सारा दिन अपने दोस्त के बारे में सोचने से कहीं उसकी तबीयत खराब ना हो जाए। इसलिए तीसरे दिन उन्होंने समझा-बुझाकर स्कूल भेजा था। स्कूल से लौट कर कबीर सीधा करन के घर गया। मि.लाल ने बताया कि अभी तक पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला है। वह बहुत परेशान थे। कबीर उन्हें सांत्वना देने लगा। 


उसी समय मि.लाल के मोबाइल की घंटी बजी। फोन किसी अंजान नंबर से था। मि.लाल ने फौरन फोन उठा लिया। किडनैपर का फोन था। पहले वह उनसे बात करता रहा फिर उसने करन से उनकी बात कराई। करन की मम्मी, बहन व कबीर तीनों ही करन के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे।


बात समाप्त होने पर मि.लाल भावुक हो गए। तीनों ने उन्हें संभालने की कोशिश की। कुछ देर में शांत होकर उन्होंने सारी बात बताई। किडनैपर ने दस लाख रुपयों की मांग की थी। पैसे कब और कहाँ पहुँचाने हैं इसके लिए दोबारा फोन करने की बात कही थी। साथ ही पुलिस को कुछ भी ना बताने की धमकी भी दी थी।


कबीर ने पूछा,


"अंकल करन से आपकी क्या बात हुई ?"


मि.लाल दुखी स्वर में बोले,


"बस बार बार कह रहा था कि पापा मुझे यहाँ से ले जाओ।" 


यह कह कर मि.लाल फिर रोने लगे।


मि. लाल ने इंस्पेक्टर आकाश को किडनैपर के फोन के बारे में बता दिया। तय हुआ कि किडनैपर जो भी जगह बताएंगे मि.लाल पैसे लेकर वहाँ पहुँचेंगे। पुलिस भी सादी वर्दी में वहाँ रहेगी। मौका देख कर पुलिस किडनैपर को पकड़ कर करन को छुड़ा लेगी।


सब लोग धैर्यपूर्वक किडनैपर के अगले फोन की प्रतीक्षा करने लगे। दो दिन के बाद फिर किडनैपर का फोन आया। उसने पैसे लेकर आने का समय व जगह बता दिया। 


तय प्लान के मुताबिक मि.लाल पैसे लेकर वहाँ पहुँचे। पुलिस की टीम भेष बदल कर वहाँ मौजूद थी। 


मि.लाल पैसों का बैग लेकर बताई गई जगह पर खड़े हो गए। वह कुछ घबराए हुए थे। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि सब ठीक रहे। कुछ ही देर में हरे रंग की एक कार आकर रुकी। मि.लाल सजग हो गए। कार से एक आदमी उतरा। उसका चेहरा ढका था। उसे देखते ही मि. लाल ने पूछा,


"मेरा बेटा कहाँ है?"


उस आदमी ने कड़क आवाज़ में कहा,


"मिल जाएगा। पहले बैग दो।" 


मि.लाल करन को देखे बिना बैग नहीं देना चाहते थे। लेकिन उन्हें किस बात की तसल्ली थी कि पास में पुलिस है। पुलिस उन बदमाशों को पकड़ कर करन का पता कर लेगी। उन्होंने बैग दे दिया। उस आदमी ने बैग खोल कर तसल्ली कर ली। उसने कहा,


"मेरा आदमी तुम्हारे बेटे को लेकर आ रहा है।" 


किडनैपर ने बैग गाड़ी में रख दिया। तभी उसका फोन बजा। बात समाप्त करते ही वह गुस्से से बोला,


"तुम पुलिस लेकर आए हो। तुमको यह बहुत महंगा पड़ेगा।" 


यह कह कर उसने मि.लाल को धक्का दिया और कार में बैठ गया। ड्राइवर फौरन कार लेकर भाग गया। पुलिस जब तक हरकत में आती किडनैपर निकल गया था। 


यह सब इतना अचानक हुआ कि सब हैरान थे। मि.लाल तो बुत बने खड़े थे। किडनैपर पैसे भी ले गए और करन अभी भी उनके पास ही था।


करन की मम्मी और बहन को इस बात से बहुत धक्का लगा। करन की मम्मी रोते हुए बोलीं,


"मैंने पहले ही पुलिस के चक्कर में ना पड़ने को कहा था। चुपचाप पैसे दे देते तो आज करन घर पर होता। अब ना जाने क्या होगा ?"


मि.लाल भी अब अपने निर्णय पर पछता रहे थे। उन्हें पैसों की चिंता नहीं थी। वह तो चाहते थे कि गुनहगार को सजा मिल सके। लेकिन अब तो किडनैपर का गुस्सा भड़क गया था। करन की जान खतरे में पड़ गई थी।


कबीर को जब सारी बात पता चली तो उसे भी बहुत धक्का लगा। जब उसने पुलिस के प्लान के बारे में सुना था तब उसे पूरी उम्मीद थी कि करन जल्दी ही अपने घर वापस आ जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ। 


करन के घर में दुख का माहौल था। उसकी मम्मी और बहन बस रोए जा रही थीं। ठीक से खा पी भी नहीं रही थीं। कबीर रोज़ ही उन्हें सांत्वना देने के लिए घर आता था।


मि.लाल भी दुखी थे। लेकिन खुद को काबू में किए हुए थे। वह जानते थे कि यदि वह कमज़ोर पड़ गए तो करन को घर वापस लाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए वह सामान्य बने रहते थे। अपनी पत्नी और बेटी को भी समझाते रहते थे। 


जो कुछ हुआ था वो पुलिस की बड़ी नाकामयाबी साबित हुआ था। पैसे भी चले गए थे और करन अभी तक किडनैपर्स के कब्जे में था। उसकी जान खतरे में थी। इंस्पेक्टर आकाश अपनी इस नाकामयाबी पर बहुत शर्मिंदा थे। करन को उसके घर वापस लाए बिना उन्हें चैन नहीं पड़ने वाला था।