तेरी मेरी यारी - 3 Ashish Kumar Trivedi द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरी मेरी यारी - 3


      (3)




इंस्पेक्टर आकाश अपने केबिन में चिंतित मुद्रा में बैठे थे। वह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या किया जाए ? वह यह सोचकर परेशान थे कि उन्होंने तथा उनकी टीम ने पूरी सतर्कता बरती थी। फिर भी किडनैपर को ना जाने कैसे उनके वहाँ होने की भनक लग गई थी ?


तमाम कोशिशें करने के बाद भी अभी तक उन्हें कोई सूत्र हाथ नहीं लगा था।


घटना के संबंध में कबीर और अन्य लोगों के बयान उन्होंने कई बार पढ़े पर उससे भी आगे की कार्यवाही के लिए कुछ भी सुराग नहीं मिला। किडनैपिंग में प्रयोग गाड़ी का नंबर भी कोई नहीं देख पाया था। उस इलाके में कोई सी.सी.टीवी कैमरा भी नहीं लगा था जिसकी फुटेज से कोई सुराग हाथ लगता। 


वह मि.लाल से भी कई बार बातचीत कर चुके थे। मि. लाल भी किसी पर संदेह नहीं कर पा रहे थे। उनके अनुसार उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। ना ही कभी किसी से झगड़ा हुआ। ऐसा कोई भी नहीं था जो उनके साथ ऐसा करे। 


किडनैपर के हाथ से निकल जाने के बाद से इंस्पेक्टर आकाश की परेशानी और बढ़ गई थी। मि.लाल का उन पर भरोसा कम हो गया था। अब पूछने पर वह यही कह देते थे कि किडनैपर ने दोबारा उनसे कोई संपर्क नहीं किया। किडनैपर पैसे लेकर भाग गया था। करन अभी भी उसके कब्ज़े में था। इंस्पेक्टर आकाश के लिए यह केस प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। इंस्पेक्टर आकाश को आगे बढ़ने का कोई सुराग नहीं मिल रहा था। यह बात उनकी हताशा को बढ़ा रही थी। रह रहकर वह किडनैपर के पैसों के साथ भाग जाने के लिए दोषी मान रहे थे। 


सब इंस्पेक्टर राशिद उनका इस केस में सहयोगी था। उनकी मनोदशा को देखकर उसने समझाया कि वह इस तरह परेशान ना हों। केस में कई बार ऐसा दौर आता है जब आगे का रास्ता सुझाई नहीं देता है। ऐसे में धैर्य बनाए रखना आवश्यक है। ना जाने कब कोई सुराग मिल जाए जो सारा रास्ता साफ कर दे। इंस्पेक्टर आकाश पूरी कोशिश करते थे कि खुद को निराश ना होने दें।



उस दिन किडनैपर का साथी कुछ ही दूर पर एक और गाड़ी में करन को लेकर बैठा था। वह अपने साथी के संकेत की प्रतीक्षा कर रहा था। ताकि सब कुछ ठीक होने पर करन को उसके पिता को सौंप दे। तभी उसकी निगाह सादी वर्दी में छिपे इंस्पेक्टर आकाश पर पड़ी। वह उन्हें पहचान गया। खतरा भांप कर उसने फौरन अपने दोस्त को फोन किया और करन को लेकर भाग गया।


मि.लाल पुलिस के संपर्क में थे यह जानकर किडनैपर ने तय किया कि करन को पुरानी जगह पर नहीं रखेंगे। अतः उसने उसे दूसरी जगह पहुँचा दिया। 


कैद में करन का हाल भी बुरा था। उस दिन किडनैपर उसे उसके पापा को सौंपरने के लिए ले गया था। उसे उम्मीद थी कि वह जल्दी ही अपने घर पहुंँच जाएगा। लेकिन अचानक जाने क्या हुआ किडनैपर उसे वापस ले आया। उसे दूसरी जगह लाकर कैद कर दिया। वह सोच रहा था कि अब ना जाने कब उसे इस कैद से मुक्ति मिलेगी।



कबीर का मन बहुत अशांत था। वह जानता था कि जो कुछ हुआ उससे करन पर खतरा बढ़ गया था। पुलिस की मौजूदगी के बारे में जानकर किडनैपर अब करन के साथ कुछ भी कर सकता था। यह सोचकर वह घबरा रहा था।


घटना के चार दिन बीत चुके थे। लेकिन ना तो करन की कोई खबर मिली थी और ना ही किडनैपर का फोन ही आया था। करन के घर वालों के लिए एक एक पल भारी पड़ रहा था। 


कबीर रोज़ ही मि.लाल से मिल कर हालचाल लेता रहता था। मि.लाल ने कुछ कहा तो नहीं था लेकिन कबीर को लगता था कि वह शायद उससे नाराज़ हैं। 


पाँचवें दिन टाइगर को घुमाने के बहाने कबीर फिर मि.लाल से मिलने गया। उन्होंने कहा कि अभी भी करन की कोई खबर नहीं मिली है। लेकिन कबीर को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उनके हावभाव से स्पष्ट था कि वह कुछ छुपा रहे हैं।


कबीर गंभीर स्वर में बोला,


"मैं समझ सकता हूँ कि उस दिन की घटना के बाद आप किसी को कुछ नहीं बताना चाहते हैं। पर मैं भी करन को लेकर उतना ही फिक्रमंद हूँ जितना कि आप हैं।"


मि.लाल कुछ देर नज़रें झुकाए बैठे रहे। उन्होंने कहा,


"कबीर तुम सही कह रहे हो। उस घटना के बाद मैं किसी को इस मामले में शामिल नहीं कर सकता हूँ। मैं अपने बेटे की जान खतरे में नहीं डाल सकता हूँ।"


यह सुनकर कबीर परेशान हो गया। उसने कहा,


"पर अंकल अगर आप पुलिस से बातें छिपाएंगे तो वो आपकी मदद कैसे करेगी।"


मि. लाल ने उसकी तरफ देख कर कहा,


"तुम कैसे कह सकते हो कि मैं पुलिस से कुछ छिपा रहा हूँ।"


कबीर कुछ देर शांत बैठा रहा। कुछ सोचकर बड़ी विनम्रता से बोला,


"माफ कीजिएगा अंकल मैं उम्र में छोटा हूँ पर सब समझ सकता हूँ। ज़रूर आपका संपर्क किडनैपर से हुआ है। वरना आप इतने शांत ना बैठे होते।"


उसकी बात सुनकर मि. लाल के चेहरे का रंग बदल गया। पर जल्दी ही खुद पर काबू करते हुए बोले,


"कबीर तुम बच्चे हो। अपनी उम्र से ऊपर उठने की कोशिश ना करो। तुम इस मामले से दूर रहो। करन मेरा बेटा है। उसे बचाने की ज़िम्मेदारी मेरी है।"


कबीर समझ गया कि मि. लाल उसे कुछ नहीं बताएंगे। उन्हें नमस्ते कर वह चुपचाप अपने घर चला गया।


कबीर अपने कमरे में बैठा पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसका मन तो करन में लगा था। आजकल स्कूल में बहुत अधिक एसाइनमेंट्स मिल रहे थे। वह जैसे तैसे बेमन से उन्हें पूरा करता था। 


उसकी दशा उसके मम्मी पापा से छिपी नहीं थी। वह उसे बार बार समझाते थे कि परेशान होने से कोई फायदा नहीं है। पुलिस अपना काम कर रही है। जल्दी ही करन के बारे में कोई अच्छी खबर मिलेगी। लेकिन करन को ऐसी बातों से कोई तसल्ली नहीं मिलती थी।


कबीर का मन पढ़ने में ज़रा भी नहीं लग रहा था। उसने किताब बंद कर दी। वह मि. लाल की बात के बारे में सोच रहा था। जिस तरह वो उसके साथ पेश आए थे उससे स्पष्ट था कि आगे जो कुछ भी होगा वो पुलिस को पता नहीं चलने वाला था। अपने दोस्त करन को याद करके उसका दिल घबरा उठा। वह सोच रहा था कि कहीं मि. लाल की ज़िद करन को नुकसान ना पहुँचाए। 


परेशानी में वह उठकर खड़ा हो गया। तभी उसे अपने पैरों के पास कुछ महसूस हुआ। कबीर ने देखा कि टाइगर चुपचाप आकर उसके पैरों के पास खड़ा हो गया है। कबीर ने प्यार से उसे सहलाया तो वो अपनी दुम हिलाने लगा। कबीर फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। टाइगर अपने आगे वाले पंजे उसकी गोद में रख कर प्यार से उसे देखने लगा। कबीर भावुक हो गया। उसने प्यार से टाइगर को पुचकारा। 


टाइगर उसके दर्द को अच्छी तरह समझ रहा था। अब वह उसे बाहर घुमाने के लिए परेशान नहीं करता था। बस चुपचाप उसके आसपास बैठा रहता था।


कबीर टाइगर को लेकर छत पर चला गया। वह सोच रहा था कि क्या करे जिससे वह अपने दोस्त की मदद कर सके। करन की दोस्ती उसके लिए बहुत मायने रखती थी। वह सिर्फ इस बात का इंतज़ार नहीं करना चाहता था कि पुलिस उसके दोस्त को तलाश करके ले आए। अपने दोस्त के लिए वह खुद भी कुछ करना चाहता था।