तेरी मेरी यारी - 8 Ashish Kumar Trivedi द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरी मेरी यारी - 8


         (8)





अगले दिन कबीर इंस्पेक्टर आकाश से मिलने पुलिस स्टेशन पहुँचा। उस समय वह केस के सिलसिले में बाहर गए हुए थे। पर उसकी मुलाकात सब इंस्पेक्टर राशिद से हुई। कबीर ने उनसे करन के केस में जो भी नया हुआ उसके बारे में बताने की गुज़ारिश की। सब इंस्पेक्टर राशिद जानते थे कि कबीर इस केस को लेकर बहुत चिंतित है। उन्होंने उसे करन के केस के बारे में जो भी जानकारी थी दे दी। साथ ही उसे करन की उस अजीबोगरीब तुकबंदी के बारे में भी बता दिया। उस तुकबंदी को सुनते ही कबीर समझ गया कि करन इसके माध्यम से कोई संकेत देना चाहता है। करन पहले भी इसी तरह की तुकबंदी कर उससे पहेलियां पूछता रहता था।


घर आते ही सबसे पहले उसने करन की पहेली को कागज़ पर लिख लिया। वह पूरे ध्यान से उसमें छिपे संकेत को समझने की कोशिश करने लगा। लेकिन तभी घर में कुछ मेहमान आ गए। उनके साथ बच्चे भी थे। उनकी धमाचौकड़ी में वह ठीक से ध्यान नहीं लगा पा रहा था। उसने फैसला किया कि वह रात को शांत माहौल में इस पहेली को सुलझा कर रहेगा।



कोठरी में चारों तरफ घुप्प अंधेरा था। बंधे रहने के कारण करन के हाथ पांव में दर्द हो रहा था। वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि उसे जल्द से जल्द इस स्थिति से छुटकारा मिले। कई दिनों से वह इस तंग सीलन भरी कोठरी में कैद था। बस दिन में दो बार इस कोठरी का दरवाज़ा खुलता था। एक आदमी उसके लिए खाने का सामान लेकर आता था। नेचर कॉल के लिए उसे कोठरी से लगे एक छोटे से टॉयलट में ले जाया जाता था। वह भी सिर्फ सुबह के समय। वह आदमी पूरे समय टॉयलट के बाहर खड़ा रहता था। टॉयलट की सफाई ना होने के कारण उसकी बदबू भी कोठरी में भरी रहती थी। करन की हालत दिन पर दिन बिगड़ रही थी। 


उस दिन पंच शीट्स खरीद कर जब वह वापस आने लगा तो अचानक एक वैन सामने आकर रुकी। जब तक वह कुछ समझता किसी ने उसके मुंह पर रुमाल रख कर उसे वैन के भीतर ढकेल दिया। कुछ ही क्षणों में वह बेहोश हो गया। होश आने पर उसने खुद को एक कमरे में कैद पाया। वह समझ गया कि उसकी किडनैपिंग हो गई है।


करीब चार दिन के बाद उसे बताया गया कि उसके पापा मांगी गई फिरौती की रकम लेकर उसे छुड़ाने आ रहे हैं। उसे एक कार में बैठा कर ले जाया गया। लेकिन पुलिस को देख कर उसके किडनैपर भाग लिए। उसके बाद से उसे पुरानी जगह से हटा कर इस कोठरी में लाकर कैद कर दिया गया। तब से वह यहीं कैद था।


जिस दिन उसे इस कोठरी में लाया जा रहा था तब उसे बेहोश नहीं किया गया था। कार की पिछली सीट पर लेटे हुए वह रास्ते में पड़ने वाली चीज़ों पर गौर कर रहा था। कोठरी में पड़े हुए वह बाहर से आती हुई आवाज़ों पर भी कान लगाए रहता था। रास्ते में देखी गई चीज़ों और आवाज़ों के आधार पर उसने अपने मन में एक पहेली गढ़ ली। वह घर वालों को संकेत देने के लिए मौके का इंतजयार कर रहा था।


हर बार खाना लेकर आने वाला आदमी उसकी उसके पापा से बात कराता था। उस समय वह उसका मुंह और हाथ खोल देता था। लेकिन सारा समय उसके सर पर ही खड़ा रहता था। उस दिन भी वह बात कराने आया। करन को फोन देकर वह टॉयलट में घुस गया। सही मौका देख कर करन ने वह पहेली सुना दी। लेकिन वह और कुछ कह पाता उससे पहले ही वह आदमी ना जाने क्या सोच कर बिना पेशाब किए ही वापस आ गया। करन कुछ ना कह सका।


कोठरी में पड़े हुए करन यही सोंच रहा था कि काश पापा उसकी इस पहेली में छिपे संकेत को समझ सकें। उसे पूरा यकीन था कि अगर पहेली कबीर को पता चली तो वह तुरंत समझ जाएगा कि इसमें कोई संकेत है। वह भगवान से मनाने लगा कि उसकी पहेली का पता कबीर को चल जाए। 



करन की किडनैपिंग के पीछे चार लोग थे। एक नवीन था जो कि ऑटोरिक्शा चलाता था। दूसरा दिनेश था जिसकी अपनी मोटर गराज थी। तीसरा रॉकी था जो कि एक रेस्त्रां में वेटर था। ये तीनों पुराने दोस्त थे और सट्टेबाज़ी के शौकीन थे।


चौथा संजय एमबीए का छात्र था। कॉलेज में हॉस्टल ना मिल पाने के कारण वह एक मोहल्ले में पीजी के तौर पर रहता था। वह एक मिडिल क्लास परिवार से था। यहाँ पढ़ते हुए उसे ड्रग्स की आदत लग गई। जिसके कारण उस पर कर्ज़ चढ़ गया। अपने कर्ज़े पूरे करने के लिए वह सट्टे की तरफ मुड़ गया। जहाँ वह बाकी तीन से मिला। उनमें दोस्ती हो गई। 


संजय भी उनके साथ सट्टा खेलने लगा। चारों को सट्टे से अच्छा मुनाफा हो रहा था। इससे उत्साहित होकर उन लोगों ने बड़ी रकम सट्टे में लगाई। लेकिन इस बार किस्मत ने साथ नहीं दिया। उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिससे चारों बौखला गए।


मोटर गराज का मालिक दिनेश इस काम मे आने से पहले एक अपराधी के गैंग में था। जिसका प्रमुख काम किडनैपिंग कर फिरौती वसूलना था। गैंग लीडर की मौत के बाद दिनेश गराज का काम करने लगा। उसने ही किडनैपिंग कर फिरौती लेने का सुझाव दिया। संजय जहाँ रहता था वहाँ कई पैसे वालों के घर थे। उसे इस काम के लिए पार्टी ढूंढ़ने का काम सौंपा गया। संजय जिस घर में पीजी था उसके पीछे वाली गली में ही मि.लाल रहते थे। 


संजय के मकान मालिक की बूढ़ी माँ को मोहल्ले के कई लोगों की जानकारी थी। संजय ने उनका भरोसा जीत कर उनसे मि.लाल के बारे में कई सूचनाएं एकत्रित कर अपने साथियों को दे दीं। अब सवाल था कि करन और सोनम में किसे चुनें। सोनम स्कूल बस से आती जाती थी। करन कबीर के साथ साइकिल से स्कूल जाता था। अतः उन्होंने करन को किडनैप करने का फैसला लिया। 


करन और कबीर के आने जाने के रास्ते की पड़ताल करने के बाद किडनैपिंग का दिन तय कर लिया गया। प्लान के अनुसार करन जब कबीर को घर छोड़ कर अपने घर की तरफ अकेला बढ़ेगा तब उसे किडनैप कर लेंगे। तय किए गए दिन किडनैपर वैन में एक निश्चित दूरी बना कर उनके पीछे चल रहे थे। पर करन रास्ते में पंच शीट्स लेने के लिए दुकान पर गया। सही मौका देख कर उन लोगों ने वहीं उसे किडनैप कर लिया।


किडनैप करने के बाद पहले करन को दिनेश के गैराज के ऊपर बने कमरे में कैद कर रखा गया था। लेकिन बाद में उसे ऑटोरिक्शा चालक नवीन की बस्ती में उसकी खोली में बने कोठरीनुमा कमरे में रखा गया। नवीन का परिवार गांव में था। खोली में उसके साथ रॉकी भी रहता था। संजय को सुबह शाम खाना लेकर जाने की ज़िम्मेदारी दी गई। मि.लाल के घर चिठ्ठी पहुँचाने भी वही गया था।


पहली बार पुलिस की मौजूदगी का पता चलने पर वह लोग पैसों के बैग के साथ भाग लिए। उसके बाद दिनेश जो सबका मुखिया था ने दो दिनों तक कोई संपर्क नहीं किया। वह चाहता था कि मि.लाल करन को लेकर फिक्रमंद रहें। ताकि वह अपने हिसाब से स्थिति को काबू कर सके। उसके बाद नए नंबर से जब उसकी बात मि.लाल से हुई तो वह बहुत घबराए हुए थे। पुलिस को इस सब में शामिल करने के लिए खेद प्रकट कर रहे थे। उनकी दुखती नब्ज़ को समझ कर दिनेश ने फिरौती की रकम बढ़ा कर पच्चीस लाख कर दी। मि.लाल ने रकम कम करने के लिए बहुत मिन्नत की पर वह नहीं माना। दिनेश पहले किडनैपिंग के धंधे में रह चुका था। उसे पता था कि मि.लाल बढ़ी हुई रकम दे देंगे। 


लेकिन अब रकम जुटाने में वक्त लग रहा था। इससे किडनैपर्स के बीच चिंता बढ़ रही थी। खासकर संजय अब इस सबसे जल्दी ही छुटकारा चाहता था।